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घर के औरतों की कामुक वासना
#27
और अब 



“और कसके और और और ……………। लगाओाााााााााााााा जितनााााााााााााा जोरररररररररररररररररर है”। ‘अपने कोरे लण्ड से पूराााााााााााााााा सुख लेलोााााााााााााााााााााााााााा। भाभीीीीीीीीीीीीीीीीीीीीीीीीीीीीीीीीीीीीीीीिि िक िचूत से बुझालो इसकी प्यास फिर न कहनााााााााााााााााााााााााााा भाभी ने मजाााााााााााााााााााााााााााााााााा नहींअअअअअअअअअअअअअअअअअ दियाााााााााााााााााााााााााााााााााााााााााााााााााााााा”। मैने लण्द बाहर निकाल लिया। भाभी चिल्लायी” रोको मत लगा दो कस कस के इसमें” मैं चित लेट गया। मेरा लण्ड सीधा मुॅह बाये खड़ा था। मैने कहा “भाभी अब तुम्हारा नबर ह। तुम लगाओ। मैं कहानी सुनूॅगा”। भाभी इतनी ै गरम हो गयी थी कि छलॉग लगा कर वह मेरे ऊपर बैठ गयी। उन्होंने ापने को उठाया। अपने हाथ से मेरा लण्ड धामा और अपने छेर की तरफ करके वह उस पर बैठती चली गयी जब तक वह पूरा नहीं समा गया। उनके मुॅह से संतोष की आवाज निकली “हॅुऊॅऊॅ”। 



शशि की जुबानी मेरी चूत में आग भरी हुयी थी। पूरा अन्दर घुसते ही मैं सुकान्त के लण्ड को अपने अन्दर पम्प करने लगी। मैं इतने तेजी से उसके लण्ड के ऊपर जम्प कर रही थी कि मुझे होश ही नहीं था। मेरे बाल बिखर गये थे। सुकान्त ने मेरी कमर साध रखी थी। मेरे जोवन गेंद की तरह उछल रहे थे। मैं हवा म्ें उठ कर धप्पसे उसके लण्ड पर बैठ जाती थी। उसी समय सुकान्त नीचे से ऊपर उठ कर और जोर से लण्ड ठोक देता था। मैं “ऊह” कर बैठती थी। मैं बड़े जोरों से मोन कर रही थी “ओह मॉआ ओह अअ‍ेह ओह मॉऑ ओह ओह ओह मॉऑ ऊऊऊहहहह ओह मॉआ ओह अअ‍ेह ओह मॉऑ ओह ओह ओह मॉऑ”।



सुकान्त भी हॉफ रहा था “ऐहैं ऐहैं ऐहैं ऐहैं ऐहैं ऐहैं ऐहैं ऐहैं ऐहैं ऐहैं ऐहैं ऐहैं”। अचानक सुकान्त ने कमर पर जोर लगा कर मुझे रोक लिया। बोला “भाभी अपनी कहानी सुनाओ। सब से पहले किसको दी”। मैने कहना शुरू किया तो वह बोला भाभी आराम से लगाती भी जाओ। मेरी अनिल से सगायी हो गयी थी। मेरी एम ए की पढायी के कारण व्याह नहीं हुआ था। होली के दिन थे। हमारे यहॉ बड़ी रौनक थी। मेरी बड़ी बहिन सुनीता आ गयीं थीं । वह मुझ से काफी बड़ी हैं। उनकी शादी को पॉच छह साल हो गये थे। मेरा खास भाई तो एक ही है। मेरी भाभी कुसुम से तो तुम मिले ही हो। पर उनकी उस समय शादी नहीं हुयी थी। पर मेरे दो चचेरे भाइयों की ललिता और रागिनी भाभियॉ थीं। दोनों मेरी बहिन की उमर की ही थीं। 



सुनीता से उनकी बनती भी खूब थी हम उम्र जो ठहरीं। दोनों खूब मस्त जवान थीं। खूब भरा हुआ वदन था। बड़ी बड़ी छातियॉ थीं। खूब फैले हुये कूल्हे थे। और जबान उस से भी ज्यादा खुली हुयी। खुल कर मजाक करती थीं जो प्रैक्टीकल भी हो जाता था। एक तो होली का सैक्सी माहौल और ऊपर से उनकी मस्त तबियत।और फिर मेरी सुनीता दीदी भी आ गयी थी। दिन भर उनकी सैक्स भरी हरकतें होती रहती। वह मुझे तंग करती रहती थी क्योंकि मेरी सगायी हो गयी थी। मेरे को ले कर अपनी भड़ास निकालती थीं। कोई कहती”सगाई तो करली है अब दबबाने की डलबाने की प्रैक्टिस कर लो”। कोई कहती “चलो मैं सिखाती हूॅ क्या होता है”। कभी कभी दोनों पकड़ कर के मेरे उरोजों को मसलती “इनको खीच खीच कर बड़ा तो करो कि लाला जी के हाथ में तो आ जायें”। यहॉ तक कि चूत पर भी हाथ फेर देती “इसमें उनके लिये कुछ हल चल होती है या नहीं। ना हो तो केला ही डाल लिया करो”। दूसरी कहती “केला क्या कहो तो मैं इन्तजाम कर दूॅ। उनकी बातों से बाकई म्ोरी चूत में कुछ सिहरन सी होने लगी थी। होली के लिये जीजा जी और अनिल को भी निमंत्रण दिया गया। जीजा जी एक दिन पहले ही आ गये। क्योीक शादी नही हुयी थी संकोच या औपचारिकता की बजह से अनिल ठीक होली बाले दिन आने बाले थे और वह भी अपने एक दोस्त के यहॉ ठहरने बाले थे। होली की सुबह थी। दोनों भाभियॉ और मैं तैयारी में लगे थे। सुनीता दीदी देर से नीचे आयीं। 




ललिता भाभी ने बड़ी शरारत से ऑख मार कर उनके चूतड़ पर चिउॅटी काटते हुये कहा “क्या हुआ बन्नो तुम तो बड़ै लॅगडा के टॉगें चौड़ा कर के चल रही हो”। सुनीता दीदी ने शर्माते हुये कहा “भाभी रात भर लगाते रहे। कहते थे जितने दिन बाहर रही हो उतनी बार करूॅगा”। रागिनी भाभी बोली “ओ दइया तो दस बार रगड़ी गयी हो। मैं चाय ले कर जाती हूॅ देखा कर तो आऊॅ कि लालाजी की क्या हालत है”। सुनीता दीदी ने जल्दी से मना करते हुये कहा “भाभी वहॉ मत जाना। वह तो नंगे पड़े हुये हैं। मुश्किल से छुड़ा के भाग के आयी हूॅ। रागिनी भाभी ने मुझ से कहा “छोटी बन्नो अपने जीजा जी को चाय दे आ आओ”। मैं और जीजा जी खूब मजाक करते थे पर ऊपर ऊपर से ही। बात सुन कर मैने मना कर दिया “ंमैं नहीं जाती”। ललिता भाभी बोली “मैं जाती हूॅ। मैं भी तो देखॅ आखिर “। वह एक ट्रे में चाय और नास्ते का सामान रख कर ऊपर गयी। कमरा खुला हुआ था। अन्दर आ कर चाय की ट्रे रखते हुये उन्होने कहा “लालाजी उठो चाय लो बहुत सो लिया अब थोड़ी होली खेलो”। उन्होने एक हाथ से चादर फेक दी। उनका लण्ड फूला हुआ तन्नाया हुआ खड़ा था। सुनीता की चूत के रस और उनके अपने वीये से सना हुआ। उन्होने एक हाथ पकड़ कर ललिता भाभी को पलंग पर गिरा लिया। उनके ऊपर चढ कर बाहों में भरते हुये बोले “आओ ललिता भाभी होली खेल लो”। ललिता भाभी अपने को छुड़ा कर नीचे भागी। उनका चेहरा लाल हो रहा था। हॉफतीं हुयीं बोली “ओ दइया री उनका तो सॉप फन फैलाये हुये डंक मारने को तैयार है”। अनिल आ गये थे। जिन दोस्त के यहॉ ठहरे थे. वह और उनकी बीवी नीलम भी आये थे। हम सब ओरतें अन्दर ऑगन में होली खेल रहीं थीं। आदमी सब बाहर। नीलम भाभी की शादी को ज्यादा समय नहीं हुआ था पर व्ह भी बड़ी रंगीन तबियत की थी। वह सब से खासतौर पर भाभियों से जल्दी ही घुलमिल गयीं। 





अन्दर हम लोग खूब मस्ता रहे थे। भर भर के रंग फेक रहे थे। गुलाल मल रहे थे। दोस्त की बीवी नीलम भाभी ने मुझे पकड़ लिया । उन्होने चेहरे पर तो गुलाल मला ही साथ ही ब्रजियर के अन्दर हाथ डाल कर के मेरी चूचियौ पर मलती हुयी बोली “अनिल के पहले में तो कसर निकाल लूॅ”। फिर एक हाथ मेरी पैण्टी के अन्दर डाल दिया और सीधा बुर के ऊपर मल दिया। मैने कहा “भाभी मैं भी पीछे रहने बाली नहीं”। जोश में आ कर मैने भी गुलाल भरा हाथ उनकी ब्रेजियर के भीतर डाल दिया। उनके शरीर के मुकाबले उनके जोवन बहुत बड़े थे। फिर मैने पैण्टी के भीतर ंभी हाथ घुसेड़ दिया। उनकी बुर भी खूब फूली हुयी थी। उन्होने खुद ही टॉगें फैला दी बोली “लो खूब मलो। कहो तो मैं चडढी उतार दूॅ”। उसके बाद तो दोनों भाभियों ने मेरी हालत खराब कर दी। उन्होने मेरे जोवनोम् को ही नहीं मसला मेरी चूत की मरम्मत की। अपनी उॅगली तक डालने की कोशिश की। मैं गरम हो गयी थी। पहली बार मैने भी उनको पकड़ कर उनकी चूतों को खूब सहलाया। उन्होने ताना मारा “ओ दइया शादी के पहले ही यह हालत है”। रंगौं से भीगे कपड़े सब के शरीर से चिपक गये थो। सबकी चूचियॉ और चूतड़ उजागर हो गये थे। नीलम भाभी तो एकदम महीन साड़ी और मलमल का ब्लाउज पहन कर आयीं थीं। वह दोनो. तो न होने के बराबर थे। उनकी तनी हुयी घुणियॉ चौच सी दिखायी दे रहीं थीं और भरी हुयी रानें साफ नजर आ रहीं थीं। इस बीच जीजा जी अन्दर घुस आये। बोले “मैं अपनी साली से तो होली खेल लूॅ”। भाभियॉ जो किसी को भी अन्दर नहीं आने दे रही थीं हुलक कर बोलीं “हॉ ऐ रही तुम्हारी साली”। उन्होने मुझे पकड़ लिया और मुॅह पर गुलाल मलते हुये मेरे जोवनों को भी मसलते रहे। उनका एक पैर मेरी टॉगों के बीच में मेरी चूत को भी रगड़ रहा था। उनका खड़ा लण्ड भी मुझे गड़ रहा था। मुश्किल से छाुड़ा कर मैं अन्दर भागी। नीलम भाभी जीजा की ओर बढती हुयी बोली “जीजा जी मैं भी तो तुम्हारी साली हूॅ”। उन्होने जीजा जी के मूॅह पर ग्ुालाल मल दिया। जीजा जी ने उनको दबोच कर सब के सामने सब कुछ कर दिया। अपने गाल उनके गालों पर रगड़े फिर उठी हुयी चूचियौ पर और उस समय सामने से ही उनका लण्ड नीलम भाभी की टॉगों के बीच में चिपका हुआ था। रागिनी भाभी ने उन्हें अलग करते हुये कहा “ यहॉ सबके सामने ही कर डालोगे क्या”। उन्होने उनके हाथ पीछै बॉध लिये और कहा “लगाऔ तबियत से रंग जहॉ लगाना हो”। अब तो मैं भी भाग कर आ गयी। मैने उनको रंग मला तो ललिता भाभी बोलीं “नीचे हाथ डाल कर लगाओ देखो आदमी हैं या नहीं या सुनीता बन्नो किसी और से ही लगबाती रहती हैं”। नीलम भाभी बोली “वो तो पजामा खोल कर देखे लेते हैं”। नीलम ने उनका कुर्ता उठा दिया। उनका फूला हुआ लण्ड साफ दिख रहा था। भीग करके पजामा उस पर चिपक गया था। नीलम ने उनके नाड़े पर हाथ डाला। वह छूटने के लिये हाथ पैर मार रहे थे। सुनीता दीदी ने उनको छुड़ा दिया तो वह भाग निकले। जाते जाते रागिनी भाभी से कह गये “भाभी मैं तुम्हें छोड़ूॅगा नहीं। सबने सुनीता दीदी को नंगा ही कर दिया और तबियत से मनमानी की। यहॉ तक कि रागिनी भाभी ने उन्हें मर्द की तरह बाहों में भर लिया और मर्द की तरह धक्के मारने लगीं। अनिल बाहर ही रहे थे। रागिनी भाभी ने दरवाजे पर जा कर उनको इशारे से बुलाया। लिहाज में वह जैसे ही बाहर आये उनको पकड़ कर अन्दर खीच लिया। अब अनिल की बारी थी। नये होने बाले जीजा के लिये उनका उत्साह भी ज्यादा था। रागिनी भाभी ने उनके हाथ भी जकड़े हुये थे। मुझ से उन्होने कहा “बन्नो खोलो अपने पिया के संग होली”। मैं शर्मा रही थी। ललिता भाभी ने कहा “पहले इनको औरत तो बनाओ फिर खेलेंगे इनसे होली”। ललिता भाभी नीलम भाभी औरत सुनीता दीदी अनिल को लिपिस्टिक बिन्दी लगाने में जुट गये। रागिनी भाभी उनको डॉटे थी। मैने भी आगे बढ कर अनिल को खूब रंग मला. नजर बचा कर उनके लण्ड के ऊपर भी मल दिया। नीलम भाभी ने देख लिया। बोली “पजामें में हाथ डाल के डंडे पर लगाओ रंग”। अनिल ने सब को छेड़ा “हॉ हॉ तुम लोगों में दम है तो लगा के देख लो”। नीलम भाभी जबाव देने में नहीं चूकीं “हॉ हॉ मैं डरती हूॅ। उन्होने मुठ्ठी में गुलाल भर कर अपना हाथ अनिल के पजामें में डाल दिया और उसके लण्ड पर मल दिया। ऑखें नचाकर बोलीं “शशि रानी के मजे हैं एकदम मुगदर कै”। ललिता भाभी ने चुटकी ली “तो तुम लेलो मजे”। 




नीलम भाभी सीने पर हाथ रख कर सॉसें भरती हुयी बोली “मेरे भाग्य कहॉ ये तो ननदी का इंतजार कर रहा है”। सब हॅस दिये। होली खेल कर लोग अन्दर आने लगे थे। अनिल उनके दोस्त और उनकी पत्नि नीलम चले गये। यह प्रोग्राम बना कि शाम को हम लोग उनके यहॉ जायेंगे। घर मै ऐसे ही रंगे रंगाये सब लोग होली के लडडू गुझ्यिा पापड़ी खाने लग गये थे। मैं बहुत थी। मैने देखा कि जीजा जी नजर नहीं आ रहे थे। उनको होली के पकवान देने के लिये छलॉक लगाती ऊपर गयी। जैसे ही झट पर कदम रखा तो देखा कि झत की मुड़ेर पर जीजा जी रागिनी भाभी को पकड़े हुये खड़े थे। रागिनी भाभी जो पकवान लायीं थी उसकी तस्तरी मुड़ेर पर ही रखी थी।रागिनी भाभी के ब्लाउज के बटन और ब्रजियर खुली हुयीं थीं। जीजाजी ने उनकी साडी उल्टी हुयी थी। जीजाजी ने अपना पजामा गिराया हुआ था। रागिनी भाभी मुड़ेर पर ही अधलेटी हो गयी थीं। जीजा जी ने अपना लण्ड उनकी चूत में घुसेड़ा हुआ था। वह जोरों से पेले जा रहे थे। रागिनी भाभी मजे ले ले कर उनको उकसा रही थी “हॉ हॉ और डालो। फाड़ डालो होली में। पूरी होली मनालो”। जीजा भी बोले जा रहे थे “ये लो ये और लो और लो लो और लो मुझे छेड़ने का मजा तुम भी याद रखोगी”। मैं नीचे उतर आयी। मेरी चूत पहले से ही खुजला रही थी। उसमें आग भर गयी। नहा धो कर तैयार हो कर अनिल के दोस्त के यहॉ जाना था। 




भाभियों ने तो जाने से मना कर दिया। सुनीता दीदी और जीजा जी सथ जा रहे थे। सब से बाद में मेरा नहाने का नम्बर आया। कपड़े उतार कर नहाने के लिये खड़ी हुयी तो देखा मेरी टॉगें चूत का भाग रंग से रंगा हुआ था। चूत को धोया तो अन्दर से भी रंग बह निकला। भाभियों ने उॅगली करते समय गुलाल भर दिया था। मैने साबुन का झाग बनाया और चूत के अन्दर उॅगली से ठेर सारा भर दिया। उॅगली अन्दर बाहर की तो बहुत ही अच्छा लगा। रागिनी भाभी और जीजा की तस्वीर सामने आ गयी। मुझमें मस्ती भर गयी। होश तब आया जब बाहर से सुनीता दीदी दरवाजा पीट रहीं थी “शशि चलना नहीं है कितनी देर हो गयी है। बाथरूम में ही बनी रहोगी आज”। पता नहीं कब मैने कपड़े डालने बाली दीवाल पर लगी खुटिया को अपनी झाग लगी चूत में घुसेड़ लिया थाऔर आगे पीछे किये जा रही थी। मुझे रोकना बहुत मुश्किल था। पर चूत पर ठंडे पाानी के छीटे दिये और बाहर निकल आयी। खूब सजधज कर तैयार हुयी तो ललिता भाभी ने कहा “सजन से मिलने जा रही हो खूब सिंगार करके”। रागिनी भाभी ने ऑखों में शरारत भर कर कहा “अब सुहागरात मना के ही आना। अगर बिना सील तुड़बाये आयीं तो तुम्हारे जीजा से तुड़बा दूॅगी”। अनिल के दोस्त के यहॉ होली का माहौल था। एक बार सबने एक दूसरे को बाहों में बॉध कर मुबारकबाद दी। सबने मेरे ऊपर हाथ साफ किया। अनिल ने तो अपना हक समझ कर बाकायदा मेरे जोवन मसले चूत पर हाथ फेर ा नीलम भाभी एकदम टाइट द्रैस में थीं उनकी चूचियॉ और चूतड़ बाहर निकलने को आतुर थे। जीजा जी ने दोनों को आराम से दबाया। यहॉ तक कि अनिल उनसे या वह अनिल से ज्यादा चिपकी रहीं। ठंडायी का इंतजाम था जो मैने थोड़ी सी चखी। पकोड़े बहुत स्वादिस्ठ बने थे जो मैम् ठेर सरे खा गयी। नीलम भाभी हॅस हॅस कर देती गयीं। बाद में पता चला कि वह भॉग के पकौड़े थे। मेरे ऊपर भंग का पूरा शुरूर हो गया था। 



होली की सैक्सभरी गारियॉ बज रहीं थीं जिन में देवर भाभी जीजा साली भाभी ननदोई होली में जवानी का सुख ले दे रहे थे। नाचते हुये गाते हुये सभी खुलेआम एक दूसरे को चिपका रहे थे अंंगों को छू रहे थे। जीजा जी मेरी तरफ जिन नजरों से देख रहे थे कि अगर अनिल न होते तो वह मुझे छोड़ते नहीं। मैं अनिल के ऊपर ठेर हुयी जा रही थी। खाने के बाद जोक्स गाने शुरू हुये।
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RE: घर के औरतों की कामुक वासना - by Dani Daniels - 04-02-2021, 06:41 PM



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