03-02-2021, 05:39 PM
सफ़ेद रंग की होली
……
हुयी जम के हुयी , सफ़ेद रंग की होली।
पहले अनुज के साथ , कम्मो की , ...
और मंटू बंटू के साथ भी , ...
मेरे जाने के पहले ( अनुज तब तक बनारस चला गया था , इम्तहान देने ) ,
नहीं नहीं सिर्फ कम्मो नहीं , मैं भी होली में साथ थी ,
एक दिन बाद ही अनुज बनारस जाने वाला था , वहां गुड्डो के के घर हमने उसके रहने किया था ( अरे वही गुड्डो , हाईस्कूल वाली , मेरी शादी में आयी थी और जिस समय अनुज ने उसकी नथ उतारी थी , और उसके बाद बीसों बार ) , मैंने कम्मो को समझाया था ,
" आप बड़ी हो , देवर को आज असली वाली होली , बनारस में जाके हम भौजाइयों की नाक न कटवाए , तलवार तो हम दोनों ने उसकी कितनी बार देखी है , पकड़ी है , आज तलवार बाजी भी , ... "
" एकदम , मैं तो खुद आज उसके ऊपर चढ़ के , निचोड़ के रख दूंगी स्साले को , देखूंगी कितना रंग है बहनचोद की पिचकारी में। "
कम्मो तो पहले से ही तैयार थी , और अब मैंने भी मन बना लिया था , हमारे गाँव की होली में कोई भौजाई किसी देवर को छोड़ती नहीं थी , ... तो मैं ही क्यों इस स्साले चिकने को ,... हाँ बस मैंने तय किया था पहले कम्मो , एक तो वो बड़ी थीं , दूसरी बात मेरी और उसकी दोनों हिचक निकल जायेगी , और असली बात , सेकेण्ड राउंड में पहली बार से डेढ़ गुना टाइम तो लगता ही है और रगड़ाई भी जम के होती है , ... तो बस इसलिए ,
लेकिन सफ़ेद रंग वाली होली के पहले असल रंग वाली होली भी तो होनी ,ही थी , और अबकी मैंने और कम्मो दोनों ने एकदम गाँव देहात वाली होली की तैयारी की थी , कड़ाही की कालिख कई दिन की , कीचड़ , ' और भी बहुत कुछ. और हाँ देवरों को पिछवाड़े का मजा कम्मो ऊँगली से ही देती थी , लेकिन मेरे दिमाग में एक आइडिया आया और ,
कंडोम में गुलाल भर भर के , तीन चार मोटे मोटे , सात आठ इंच के , ....
और सबसे बड़ी बात ये थी की आज मैदान एकदम क्लियर था , सास और जेठानी पड़ोस के गाँव में किसी रिश्तेदारी में गयी थीं ,सुबह सुबह रिश्तेदारी में , इनको भी बाजार में कुछ काम था , तीन चार घंटे के लिए ये भी ग्यारह बजे निकल गए , यानी दोपहर तक दो भौजाइयां और उसी समय आया बेचारा कुंवारा देवर ,
उसके आते ही कम्मो ने उसे घर के अंदर किया और उसे दिखाते हुए , एक बड़ा सा भुन्नासी ताला पांच किलो का, बाहर ंनिकल कर के , बाहर के दरवाजे पर वो बड़ा सा ताला लगाया , और पीछे के दरवाजे से अंदर और वो दरवाजा भी बंद , ...
अब कोई मिलने विलने वाला आता भी तो समझ जाता की घर में कोई नहीं है ,
और अनुज भी समझ गया की आज क्या होने वाला है उसके साथ ,
आज सिर्फ भौजाइयां कपडे उतार के नहीं छोड़ देंगी , बल्कि कपडे के अंदर वाले का भी पूरा इम्तहान लेंगी ,
लेकिन पहली बाजी मेरे देवर के हाथ ही रही
हर बार की तरह मैंने सोचा था की उसे डबल भांग वाली गुझिया और ठंडाई खिला के पहले हम दोनों उसे टुन्न कर देंगे फिर तो , ..
लेकिन आज देवर जी तैयारी से आये थे फिर कम्मो भी बाहर ताला बंद करने में लगी थी मैं अकेली ,
बस ठंडाई का ग्लास उसने मेरे हाथ से ले लिया , ' लाइए भाभी मैं पकड़ लेता हूँ '
मैंने भी उसे दे दिया और और जब तक प्लेट से गुझिया उठाती जबरन पूरी की पूरी ठंडाई का ग्लास मेरे होंठों से चिपका के , मुझे पिला के ही वो माना , और साथ में आध नहीं तो तिहाई इस छिना झपटी में मेरी चोली के अंदर , और
और चोली भी मैंने एकदम झीनी सी , कसी कसी ,... बैकलेस , स्ट्रिंग वाली ,
कम्मो की तरह मैंने भी अब देवरों से होली खेलते समय ब्रा पहनना बंद कर दिया था ,
बस वो मेरे उभारों से एकदम चिपक गयी ,
भांग भरी ठंडाई मेरी देह के अंदर , मेरी देह के ऊपर
मेरी चोली के अंदर ,
और भौजाई की भीगी चोली में झलकते जोबन को देखकर जो असर देवरों पर होता है , वही मेरे देवर पर हुआ , खूंटा टनाटन ,
और कनखियों से उस टनटनाये खूंटे को देख कर मैं भी गीली हो गयी ,
……
हुयी जम के हुयी , सफ़ेद रंग की होली।
पहले अनुज के साथ , कम्मो की , ...
और मंटू बंटू के साथ भी , ...
मेरे जाने के पहले ( अनुज तब तक बनारस चला गया था , इम्तहान देने ) ,
नहीं नहीं सिर्फ कम्मो नहीं , मैं भी होली में साथ थी ,
एक दिन बाद ही अनुज बनारस जाने वाला था , वहां गुड्डो के के घर हमने उसके रहने किया था ( अरे वही गुड्डो , हाईस्कूल वाली , मेरी शादी में आयी थी और जिस समय अनुज ने उसकी नथ उतारी थी , और उसके बाद बीसों बार ) , मैंने कम्मो को समझाया था ,
" आप बड़ी हो , देवर को आज असली वाली होली , बनारस में जाके हम भौजाइयों की नाक न कटवाए , तलवार तो हम दोनों ने उसकी कितनी बार देखी है , पकड़ी है , आज तलवार बाजी भी , ... "
" एकदम , मैं तो खुद आज उसके ऊपर चढ़ के , निचोड़ के रख दूंगी स्साले को , देखूंगी कितना रंग है बहनचोद की पिचकारी में। "
कम्मो तो पहले से ही तैयार थी , और अब मैंने भी मन बना लिया था , हमारे गाँव की होली में कोई भौजाई किसी देवर को छोड़ती नहीं थी , ... तो मैं ही क्यों इस स्साले चिकने को ,... हाँ बस मैंने तय किया था पहले कम्मो , एक तो वो बड़ी थीं , दूसरी बात मेरी और उसकी दोनों हिचक निकल जायेगी , और असली बात , सेकेण्ड राउंड में पहली बार से डेढ़ गुना टाइम तो लगता ही है और रगड़ाई भी जम के होती है , ... तो बस इसलिए ,
लेकिन सफ़ेद रंग वाली होली के पहले असल रंग वाली होली भी तो होनी ,ही थी , और अबकी मैंने और कम्मो दोनों ने एकदम गाँव देहात वाली होली की तैयारी की थी , कड़ाही की कालिख कई दिन की , कीचड़ , ' और भी बहुत कुछ. और हाँ देवरों को पिछवाड़े का मजा कम्मो ऊँगली से ही देती थी , लेकिन मेरे दिमाग में एक आइडिया आया और ,
कंडोम में गुलाल भर भर के , तीन चार मोटे मोटे , सात आठ इंच के , ....
और सबसे बड़ी बात ये थी की आज मैदान एकदम क्लियर था , सास और जेठानी पड़ोस के गाँव में किसी रिश्तेदारी में गयी थीं ,सुबह सुबह रिश्तेदारी में , इनको भी बाजार में कुछ काम था , तीन चार घंटे के लिए ये भी ग्यारह बजे निकल गए , यानी दोपहर तक दो भौजाइयां और उसी समय आया बेचारा कुंवारा देवर ,
उसके आते ही कम्मो ने उसे घर के अंदर किया और उसे दिखाते हुए , एक बड़ा सा भुन्नासी ताला पांच किलो का, बाहर ंनिकल कर के , बाहर के दरवाजे पर वो बड़ा सा ताला लगाया , और पीछे के दरवाजे से अंदर और वो दरवाजा भी बंद , ...
अब कोई मिलने विलने वाला आता भी तो समझ जाता की घर में कोई नहीं है ,
और अनुज भी समझ गया की आज क्या होने वाला है उसके साथ ,
आज सिर्फ भौजाइयां कपडे उतार के नहीं छोड़ देंगी , बल्कि कपडे के अंदर वाले का भी पूरा इम्तहान लेंगी ,
लेकिन पहली बाजी मेरे देवर के हाथ ही रही
हर बार की तरह मैंने सोचा था की उसे डबल भांग वाली गुझिया और ठंडाई खिला के पहले हम दोनों उसे टुन्न कर देंगे फिर तो , ..
लेकिन आज देवर जी तैयारी से आये थे फिर कम्मो भी बाहर ताला बंद करने में लगी थी मैं अकेली ,
बस ठंडाई का ग्लास उसने मेरे हाथ से ले लिया , ' लाइए भाभी मैं पकड़ लेता हूँ '
मैंने भी उसे दे दिया और और जब तक प्लेट से गुझिया उठाती जबरन पूरी की पूरी ठंडाई का ग्लास मेरे होंठों से चिपका के , मुझे पिला के ही वो माना , और साथ में आध नहीं तो तिहाई इस छिना झपटी में मेरी चोली के अंदर , और
और चोली भी मैंने एकदम झीनी सी , कसी कसी ,... बैकलेस , स्ट्रिंग वाली ,
कम्मो की तरह मैंने भी अब देवरों से होली खेलते समय ब्रा पहनना बंद कर दिया था ,
बस वो मेरे उभारों से एकदम चिपक गयी ,
भांग भरी ठंडाई मेरी देह के अंदर , मेरी देह के ऊपर
मेरी चोली के अंदर ,
और भौजाई की भीगी चोली में झलकते जोबन को देखकर जो असर देवरों पर होता है , वही मेरे देवर पर हुआ , खूंटा टनाटन ,
और कनखियों से उस टनटनाये खूंटे को देख कर मैं भी गीली हो गयी ,