03-02-2021, 05:38 PM
कहानी आगे
"तुम दोनों ने मेरा दायाँ बायां बांटा था न ,... दाएं वाले पे तुमने लगाया था और बाएं वाले पे बंटू ने , तो मैं दाएं हाथ से तेरा और बाएं हाथ से बंटू को मुठिया रही हूँ है न बराबर का मामला "
दोनों देवरों को छेड़ते , मुठियाते मैंने चिढ़ाया
पीछे से कम्मो बोली ,
" जो पहले झड़ा न उसकी इसी आँगन में गांड मारूंगी मैं , और स्सालो गांडुओं ये मत पूछना कैसे , पहले अपनी चूँची से फिर मुट्ठी , तुम स्साले बचाओं के गांडू हो मुझे मालूम है पर सब गाँड़ मरवाने का रिकार्ड आज टूट जाएगा दोनों का "
६० हुआ , ७० हुआ , ८० हुआ , ९० के बाद मेरी रफ़्तार भी कम होने लगी , पर दोनों वैसे के वैसे टाइट
उधर अनुज दरवाजा पीट रहा था , तो कम्मो ने दरवाजा खोल दिया ,...
हाँ तो बात मैंने कहाँ छोड़ी थी ,
हम तीन , हमारे दो ,... बल्कि इस समय तो हम दो हमारे दो , ( अनुज को तो जुगत लगा के कम्मो भौजी ने स्टोर रूम में बंद कर दिया था )
हम सब भांग के नशे में टुन्न , ... मेरे दोनों हाथों मेरे दोनों देवर के मोटे मोटे खूंटे , आसानी से मुट्ठी में न समायें,
मैं खुल के जोर से मुठिया रही थी ,
मेरी ससुराल की लड़कियां औरतें , वैसे तो अपने भाई बाप से चुदवाती रहती हैं , लेकिन सब की सब बच्चा जनने के पहले , गाभिन होने के लिए ,
सब की सब गदहे घोड़े के साथ , जब तक पेट न फूल जाए
( मेरी सास के बारे में तो मेरी और मेरी जेठानी दोनों की यही सोच थी , मेरी जेठानी जी के वो , जेठानी के देवर दोनों ही, गदहे घोड़े से कम नहीं थी और और जेठानी के देवर मेरे जेठ से बीस नहीं तो २२ जरूर ही होंगे , और अब अनुज , मंटू और बंटू का देखकर तो मैं पक्का कह सकती थी और उन दोनों को गरिया भी रही थी उन की माँ का नाम ले ले कर )
"स्साले , तुम दोनों का असली बाप कोई गदहा होगा , जाके अपनी माई से पूछना , लेकिन तोहार नयकी भौजी भी बनारस की हैं , निचोड़ के रख देंगी ,"
दोनों के बरमूडा तो मैंने खुद उतारे थे , और मैं भी देवरों की मेहनत और किस्मत पूरी तरह टॉपलेस , साड़ी भी आँगन में छितरी पड़ी , पेटीकोट रंग में तर बतर , देह से चिपका , जांघें , जाँघों के बीच सब कुछ साफ़ साफ़ झलक रहा था ,
मैं दोनों देवरों का मुट्ठ मार रही थी , खूंटा पकड़े , सटासट , सटासट
और कम्मो भौजी दोनों के पिछवाड़े पड़ी थीं , होली में बिना देवर की गाँड़ मारे , लेकिन मैं जान रही थी कम्मो की शरारत , वो चाह रही थी , दोनों देवर आज मेरी ,
और अनुज , ने जब अंदर से हल्ला मचाना शुरू किया तो कम्मो को मौका मिल गया , मेरे कान में वो फुसफुसा के बोली ,
" तुम निपटो इन दोनों से मैं जा के उस स्साले का गन्ना चूसती हूँ , आखिर उस भंडुए की बहन पटानी है अपने भाइयों के लिए , ... आज तेरी ये देवर बजा के रहेंगे "
लेकिन कम्मो भौजी इतनी आसानी से , तो कम्मो क्यों मशहूर होतीं , देवरों का जाते जाते उन्होंने फायदा भी करा दिया ,
सिर्फ पेटीकोट पहनी थी मैं ,
तो बस , उस पेटीकोट को उठा के मेरी कमर में अच्छी तरह फंसा दिया , एकदम बस एक छल्ले की तरह , भरतपुर का दरवाजा और गोलकुंडा का रास्ता दोनों खुल गए थे , खुल्ल्मखुला , और बंटू और मंटू के कानो में मंत्र उन्होंने फूंक दिया था ,
नतीजा हुआ की पल भर के लिए दोनों मेरे हाथ से छूट गए , बस उन्होंने होली में जैसे सब देवर करते हैं , भौजी की देवर बाँट, मुझे बाँट लिया ,
आगे दे बंटू , पीछे से मंटू , और दोनों ने एक साथ मुझे जकड लिया
दो दो गदहा छाप खूंटे ,
अपने गाँव में देवर भाभी की बहुत होली मैंने देखी थी , और एक बात अच्छी तरह समझ ली थी ,
होली में जो मना करे, वो भौजी नहीं ,
मना करने पर जो मान जाए , वो देवर नहीं
और अगर कोई देवर मान जाय तो उसकी माँ बहन सब चोद देने चाहिए उसी के सामने
दोनों कस के रगड़ घिस कर रहे थे , चार हाथों में मुझे कस के बांध रखा था , हिल भी नहीं सकती थी ,
हिलना चाहता भी कौन था , इतनी देर मैंने इन दोनों की रगड़ाई की अब मिठाई भी तो मिलनी चाहिए बेचारों को , ...
कम्मो ने स्टोर का दरवाजा खोला , लेकिन अनुज बाहर निकल पाता उसके पहले दरवाजा बंद
अब इससे ज्यादा क्या इशारा मिलता मुझे , और मुझसे ज्यादा बंटू और मंटू को ,
कम्मो बीच में नहीं आएगी ,
अनुज वहीँ बंद कमरे में अपनी कम्मो भौजी के साथ सफ़ेद रंग वाली होली खेल रहा है ,
और वो दोनों आँगन में नयकी भौजी के साथ , अपनी पिचकारी का रंग पूरा खाली करें
मैं वैसे भी , जब से मैंने तने हुए बारमूडा देखे थे दोनों को चिढ़ा रही थी
अजा असली भाभी के पल्ले पड़े हो , दोनों की पिचकारी , पिचका के रख दूंगी ,...
घर में किसी को आना जाना नहीं थी ,
लेकिन कहते हैं न मारने वाले से ,
वही हुआ ,
कम्मो निकली पीछे से अनुज , बदहवास , परेशान , मंटू से ,
और अनुज के हाथ में फोन ,... ( मंटू और बंटू ने तो होली शुरू होने के पहले ही अपने फोन बंद कर बरामदे में रख दिए थे )
" मंटू तेरे घर से दस बार फोन आ चूका है , तुझे ढूंढ रहे हैं , वो तो तेरी माँ खुद यहाँ आ रही थीं , मैंने मना कर दिया "
पता चला की क्राइसिस ये थी की मंटू की भौजाई बियाने वाली थीं , उन्हें दर्द उठा और हॉस्पिटल ले जाने वाला कोई नहीं था।
बाइक बंटू की थी जिस पर तीनों ट्रिपलिंग कर के आये थे , इसलिए तीनों ,
हाँ जाने के पहले कम्मो ने मेरी और अपनी दोनों की और से बोल दिया ,
" लाला हमार तोहार फगुआ उधार , लेकिन आजाना कल परसों , न मूसल कहीं गया न ओखरी। "
बस वो सफ़ेद रंग की होली नहीं हुयी
"तुम दोनों ने मेरा दायाँ बायां बांटा था न ,... दाएं वाले पे तुमने लगाया था और बाएं वाले पे बंटू ने , तो मैं दाएं हाथ से तेरा और बाएं हाथ से बंटू को मुठिया रही हूँ है न बराबर का मामला "
दोनों देवरों को छेड़ते , मुठियाते मैंने चिढ़ाया
पीछे से कम्मो बोली ,
" जो पहले झड़ा न उसकी इसी आँगन में गांड मारूंगी मैं , और स्सालो गांडुओं ये मत पूछना कैसे , पहले अपनी चूँची से फिर मुट्ठी , तुम स्साले बचाओं के गांडू हो मुझे मालूम है पर सब गाँड़ मरवाने का रिकार्ड आज टूट जाएगा दोनों का "
६० हुआ , ७० हुआ , ८० हुआ , ९० के बाद मेरी रफ़्तार भी कम होने लगी , पर दोनों वैसे के वैसे टाइट
उधर अनुज दरवाजा पीट रहा था , तो कम्मो ने दरवाजा खोल दिया ,...
हाँ तो बात मैंने कहाँ छोड़ी थी ,
हम तीन , हमारे दो ,... बल्कि इस समय तो हम दो हमारे दो , ( अनुज को तो जुगत लगा के कम्मो भौजी ने स्टोर रूम में बंद कर दिया था )
हम सब भांग के नशे में टुन्न , ... मेरे दोनों हाथों मेरे दोनों देवर के मोटे मोटे खूंटे , आसानी से मुट्ठी में न समायें,
मैं खुल के जोर से मुठिया रही थी ,
मेरी ससुराल की लड़कियां औरतें , वैसे तो अपने भाई बाप से चुदवाती रहती हैं , लेकिन सब की सब बच्चा जनने के पहले , गाभिन होने के लिए ,
सब की सब गदहे घोड़े के साथ , जब तक पेट न फूल जाए
( मेरी सास के बारे में तो मेरी और मेरी जेठानी दोनों की यही सोच थी , मेरी जेठानी जी के वो , जेठानी के देवर दोनों ही, गदहे घोड़े से कम नहीं थी और और जेठानी के देवर मेरे जेठ से बीस नहीं तो २२ जरूर ही होंगे , और अब अनुज , मंटू और बंटू का देखकर तो मैं पक्का कह सकती थी और उन दोनों को गरिया भी रही थी उन की माँ का नाम ले ले कर )
"स्साले , तुम दोनों का असली बाप कोई गदहा होगा , जाके अपनी माई से पूछना , लेकिन तोहार नयकी भौजी भी बनारस की हैं , निचोड़ के रख देंगी ,"
दोनों के बरमूडा तो मैंने खुद उतारे थे , और मैं भी देवरों की मेहनत और किस्मत पूरी तरह टॉपलेस , साड़ी भी आँगन में छितरी पड़ी , पेटीकोट रंग में तर बतर , देह से चिपका , जांघें , जाँघों के बीच सब कुछ साफ़ साफ़ झलक रहा था ,
मैं दोनों देवरों का मुट्ठ मार रही थी , खूंटा पकड़े , सटासट , सटासट
और कम्मो भौजी दोनों के पिछवाड़े पड़ी थीं , होली में बिना देवर की गाँड़ मारे , लेकिन मैं जान रही थी कम्मो की शरारत , वो चाह रही थी , दोनों देवर आज मेरी ,
और अनुज , ने जब अंदर से हल्ला मचाना शुरू किया तो कम्मो को मौका मिल गया , मेरे कान में वो फुसफुसा के बोली ,
" तुम निपटो इन दोनों से मैं जा के उस स्साले का गन्ना चूसती हूँ , आखिर उस भंडुए की बहन पटानी है अपने भाइयों के लिए , ... आज तेरी ये देवर बजा के रहेंगे "
लेकिन कम्मो भौजी इतनी आसानी से , तो कम्मो क्यों मशहूर होतीं , देवरों का जाते जाते उन्होंने फायदा भी करा दिया ,
सिर्फ पेटीकोट पहनी थी मैं ,
तो बस , उस पेटीकोट को उठा के मेरी कमर में अच्छी तरह फंसा दिया , एकदम बस एक छल्ले की तरह , भरतपुर का दरवाजा और गोलकुंडा का रास्ता दोनों खुल गए थे , खुल्ल्मखुला , और बंटू और मंटू के कानो में मंत्र उन्होंने फूंक दिया था ,
नतीजा हुआ की पल भर के लिए दोनों मेरे हाथ से छूट गए , बस उन्होंने होली में जैसे सब देवर करते हैं , भौजी की देवर बाँट, मुझे बाँट लिया ,
आगे दे बंटू , पीछे से मंटू , और दोनों ने एक साथ मुझे जकड लिया
दो दो गदहा छाप खूंटे ,
अपने गाँव में देवर भाभी की बहुत होली मैंने देखी थी , और एक बात अच्छी तरह समझ ली थी ,
होली में जो मना करे, वो भौजी नहीं ,
मना करने पर जो मान जाए , वो देवर नहीं
और अगर कोई देवर मान जाय तो उसकी माँ बहन सब चोद देने चाहिए उसी के सामने
दोनों कस के रगड़ घिस कर रहे थे , चार हाथों में मुझे कस के बांध रखा था , हिल भी नहीं सकती थी ,
हिलना चाहता भी कौन था , इतनी देर मैंने इन दोनों की रगड़ाई की अब मिठाई भी तो मिलनी चाहिए बेचारों को , ...
कम्मो ने स्टोर का दरवाजा खोला , लेकिन अनुज बाहर निकल पाता उसके पहले दरवाजा बंद
अब इससे ज्यादा क्या इशारा मिलता मुझे , और मुझसे ज्यादा बंटू और मंटू को ,
कम्मो बीच में नहीं आएगी ,
अनुज वहीँ बंद कमरे में अपनी कम्मो भौजी के साथ सफ़ेद रंग वाली होली खेल रहा है ,
और वो दोनों आँगन में नयकी भौजी के साथ , अपनी पिचकारी का रंग पूरा खाली करें
मैं वैसे भी , जब से मैंने तने हुए बारमूडा देखे थे दोनों को चिढ़ा रही थी
अजा असली भाभी के पल्ले पड़े हो , दोनों की पिचकारी , पिचका के रख दूंगी ,...
घर में किसी को आना जाना नहीं थी ,
लेकिन कहते हैं न मारने वाले से ,
वही हुआ ,
कम्मो निकली पीछे से अनुज , बदहवास , परेशान , मंटू से ,
और अनुज के हाथ में फोन ,... ( मंटू और बंटू ने तो होली शुरू होने के पहले ही अपने फोन बंद कर बरामदे में रख दिए थे )
" मंटू तेरे घर से दस बार फोन आ चूका है , तुझे ढूंढ रहे हैं , वो तो तेरी माँ खुद यहाँ आ रही थीं , मैंने मना कर दिया "
पता चला की क्राइसिस ये थी की मंटू की भौजाई बियाने वाली थीं , उन्हें दर्द उठा और हॉस्पिटल ले जाने वाला कोई नहीं था।
बाइक बंटू की थी जिस पर तीनों ट्रिपलिंग कर के आये थे , इसलिए तीनों ,
हाँ जाने के पहले कम्मो ने मेरी और अपनी दोनों की और से बोल दिया ,
" लाला हमार तोहार फगुआ उधार , लेकिन आजाना कल परसों , न मूसल कहीं गया न ओखरी। "
बस वो सफ़ेद रंग की होली नहीं हुयी