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घर के औरतों की कामुक वासना
#9
कुसुम भाभी ने ताज्जुब करते हुये कहा “लो इतना छैला सा देवर है और तुमने अभी तक कुछ नहीं किया है। इसको अभी तक नहीं निगला है। इसको अपनी रसमलायी नहीं खिलायी है । छी छी मैं होती तो दूसरे दिन ही चट्ट कर जाती। मैने कहा “भाभी भैया तो हैं कितना ही चट्ट करो उनको”। कुसुम भाभी सॉस भरती हुयी बोली “ वह स्वाद और है ये स्वाद और है। एक गाजर दूसरी मूली। मैने ताना कसा “तुम बड़ी चटखोर हो कितने स्वाद चखे हैं”। भाभी बोली “जब भी नया स्वाद मिल जाता है तबियत से चखती हूॅ। हाय किस किस का बताऊॅ। ननदेऊ का सुनोगी। सुकान्त उठ कर जाने लगा तो कुसुम भाभी ने उसका हाथ पकड़ कर कहा “देवर जी भागते कहॉ हो तुम भी सुनो ये काम की बातें हैं”। पर सुकान्त रूका नहीं । 


कुसुम से बोला “भाभी मैं एक मिनट में आता हूॅ”। मैं विश्वास भी नहीं कर सकती थी कि अनिल ने कुसुम को लगाया होगा। मैं सोच में थी कि कुसुम भाभी बोलीं “देख तेरी मेरी शादी साथ हुयी है। मैने कितने मजे लिये हैं और तुझे पता ही नहीं है कि मजा क्या होता है”। मैने कहा “मैं नहीं कर सकती कि जिस किसी से लगबाती फिरूॅ”। कुसुम भाभी बोली” सुन मेरी बन्नो। मैं हरेक के लिये थोड़े कह रहीं हूॅ कि तू किसी के साथ भी सोजा। देवर के साथ करने में कोई बुरायी नहीं है। हाय ये इतना बॉका है और बाकई बहुत सीधा है। अनिल बाबू तो हैं ही स्वाद बदलने के लिये इसके साथ मजे ले। तू नहीं करेगी तो और कोई चट्ट कर जायेगा। अभी इसको बुर नहीं मिली है तो तेरे पीछे पीछे डोल रहा है। एक इशारे में इतनी दूर तक आ गया है। एक बार शादी हो जायेगी तो बाजार तक छोड़ने नहीं जायेगा। मैने बात खतम करने के लिये कहा “भाभी तुमको मुवारक हो ये सब। आखिर नैतिकता भी तो होती है”। पर इधर एक हफ्ते से बुर को उसकी खुराक नहीं मिली थी रात के अकेले में उसमे सनसनाहट होने लगी। 


कुसुम भाभी की बातें भी याद आ रहीं थी। उनका कहना याद आता कि काई और चट्ट कर जायेगा तो मोहनी की सूरत याद आने लगती। सुकान्त की तरफ मैं झुक तो रही ही थी। कुसुम भाभी की सीधी सीधी बातो ने आग में घी का काम किया। मैने मन बना लिया कि सुकान्त से फ्लर्ट करूॅगी। सोच कर चूत में गुदगुदी होने लगी। ऐसा लगा जैसे पानी रिस रहा हो। मैने चूत पर हाथ दिया तो और भड़क उठी। तबियत हुयी कि सुकान्त के पास चली जाऊॅ। सुबह फिर कुसुम भाभी ने निशाना साधा। जब भाई साहब चले गये तो सुकान्त से उन्होने ऑखौं में शरारत करके पूछा “देवर जी रात कैसी गुजरी”? फिर मुझ से पूछा “क्यौ ननदी रानी इतनी दूर से देवर आया था। हालचाल जानने के लिये उसके कमरे में गयीं थी। या ऐसी ही पड़ी रहीं”। मैने चोट की “तुम्हारा मेहमान है भाभी तुम्हें हालचाल पूछना चाहिये”। वह बोलीं “हमें मालूम होता कि तुम हालचाल पूछने नहीं जाओगी तो जरूर चली जाती”। जब हम लोग बापिस आ रहे थे तो सुकान्त बहुत तैस में था “मैं आगे से यहॉ कभी नहीं आउॅगा”। मैने उसे उकसाया “क्यों तुम डरते हो कि वह तुम्हारे कमरे में न घुस आयें”। उसने जवाब दिया”मुझे उनकी बातें बिल्कुल पसंद नहीं हैं”। मैने फिर चैलेन्ज किया “क्योकि वह सच कह रहीं थी। तुम मेरे इतने साथ रहते हो। तुमको जो करना चाहिये उसकी तुम्हारी हिम्मत ही नहीं होती है”। सुकान्त को बुरा लग गया “मुझसे हिम्मत की बात मत करो। मैं जब तक तुम्हारी रजामन्दी नहीं हो कुछ नहीं करूॅगा। मैं जो चाहता हूॅ उससे ज्यादा सम्बन्ध महत्व रखते हैं। मुझे तुम्हारे और राजन के बीच की बात मालूम है”। 



मैने अपनी बात कह दी “राजन गुण्डा था और तुम बुद्वू हो”। उसने मुझे ध्यान से देखते हुये कहा “क्याााााााा कहाााााााााा”। मेरा चेहरा शर्म से भर गया केबल बोल पायी “हॉ ऑ”। वह बोला “घर चलो फिर मैं अपनी हिम्मत बताऊॅगा”। मैने कहा “मेरी बला से मैं हाथ ही नहीं आउॅगी”। इसके बाद हम लोगों का चूहे बिल्ली का खेल शुरू हो गया। मैं उसके साथ उसी समय होती थी जब स्वीटी या अनिल मौजूद होते थे या भीड़ की जगह होती थी। पहले जैसा मैं उसके यहॉ अकेले में जाती थी पर जल्दी भाग आती थी। मैं छेड़खानी पर उतर आयी थी। सब से पहले तो मैने एक दिन जब मैं उसके बिस्तर में लेटी थी अपनी पैण्टी उतार ली। यह वही पैण्टी थी जिसको उसने खरीदा था। उसको अपनी चूत के ऊपर रगड़ा। अच्छा लगा तो और रगड़ा फिर चादर के नीचे छोड़ दी। एक नोट छोड़ दिया “ ‘अभी तक तो तुमने मेरे शरीर की गंध ली है अब इसकी की गंध लो. मैं तो मिलने से रही चाहो तो इसी से अपना काम चला लो”। रात भर यह सोच कर चूत में चुनहाहट होती रही कि वह मेरी पेण्टी से क्या कर रहा होगा”। जैसे ही सुकान्त आफिस गया मैं देखने के लिये ऊपर आ गयी। पैण्टी वहॉ नहीं थी। सब जगह ढूॅढ डाली पैण्टी कहीं भी नहीं थी। नहाने के लिये बा्र और पंण्टी उतारी तो वहीं उसके बाथरूम में छोड़ दी उसके अण्डरवियर के बीच में। वह दोनों चीजें भी नहीं थीं। पर जब कपड़े डालने गयी तो वह धो कर के सूखने के लिये डाल दी गयी थी। मौका मिलने पर मैने रिमार्क कसा “कुछ आदमियों को ओरतों के कपड़े धोने में मजा आता है”। वह हॅस कर बोला “मैं तो सब तरह की सेवा के लिये तैयार हूॅ”। मै बोल्ड होती जा रही थी। एक दिन मैने बिना ब्रा के ही ब्लाउज पहना। मेरे सब ब्लाउज पतले कपड़े के हैं। उन में से मेरै काली निपिल्ल्स और घेरा दिख रहा था। शाम को जब हम सब खाने पर बैठे तो मैने उनको साड़ी से अच्छी तरह से ढॉप रखा था। मैं अनिल के बगल मैं और सुकान्त के ठीक सामने बैठी। 




जब मैने देखा कि समय ठीक है मैने साड़ी का पल्लू गिरा दिया। एक झलक दिखा कर मैने फिर से पल्लू कस लिया।उसका लाल मुॅह देखने लायक था। यहॉ तक की दूसरे छुट्टी बाले दिन ऊपर भी बिना ब्रा के चली गयी। स्वीटी वहॉ पर थी। मैने पैण्टी भी नहीं डाली थी। रात में ही चुदायी के समय उनको उतार दिया था फिर पहना ही नहीं था। अब मैने ठीक उसके मुॅह के सामने पल्लू अलग कर दिया। सुकान्त ने स्वीटी से कहा “स्वीटी बेटै जरा नीचे से पेपर तो ले आ”। मैने कहा “पेपर यही है”। पर तब तक स्वीटी भाग कर नीचे जा चुकी थी। सुकान्त ने चट से मुझै पीछे से चपेट लिया। उसने मेरी दोनों गोलाइयों को अपनी हथेलियों में जकड़ लिया। मेरे चूतड़ अपनी टॉगों में सम्ोट लिये। मैं उसका लण्ड अपने क्रेक में महसूस कर रही थी। मैं छूटने की कोशिश कर रही थी। वह बुरी तरह से मेरी चूचियों को मसल रहा था साथ ही पीछे से अपना लण्ड दबा रहा था। मैं कसमसाती रही और वह मुझे दबोचे रहा। जब स्वीटी के ऊपर आने की आहट हुयी तो उसने मुझे छोड़ दिया। चट से एक चुम्बन ले लिया। मैं ऑख तेरती हुयी नीचे चली आयी। वह हॅस रहा था। शाम को हम लोग शॉपिंग को गये। वह ऐसे ही मौके ढूॅढता था। वह मुझसे बिल्कुल सटा हुआ खड़ा था। उसकी रानों से मेरा एक चूतड़ दब रही थी। सामने की सेल्स गर्ल मुस्करा रही थी। मैने अपना पल्लू सामने गिरा लिया और उसके पीछे हाथ ले जा कर उसका लण्ड मुठ्ठी में भर लिया। तब तक मुठ्ठी बॉधे रही जब तक वह तन्ना के खडा. नहीं हो गया। सुकान्त तुरत बैंच पर जाके बैठ गया। मैं जान गयी कि खड़े हुये लण्ड को छुपाने के लिये वह जा बैठा है। मैं शरारत से उसको बुलाती रही। मैने सुबह का बदला ले लिया था। मै इसी तरह की शरारतों में लगी थी। इनका फायदा भी हो रहा था और नुकसान भी। फयदा तो ये था कि चुदबाने में मुझे अब बहुत ज्यादा मजा आता था। नुकसान यह था कि अब मुझे जल्दी जल्दी चुदबाने की तबियत होती थी और वह अनिल नहीं करता था। मैं तो चुदबा कर के अपनी तबियत शान्त कर लेती थी। पर बेचारा सुकान्त उसकी हालत दिन पर दिन खराब होती जा रही थी। कभी उसके ऊपर दया आती थी पर खिजाने में भी बड़ा मजा आ रहा था। जानती थी जब भी वह मुझे पकड़ पायेगा छोड़ेगा नहीं। उस दिन मेरी सब सहेलियों ओर उनके पतियों ने मिल कर पिकनिक मनायी। अनिल और सुकान्त दोनो थे। सब लोग हॅसी खुशी छेड़छाड़ में लगे हुये थे। कोई लोग वालीबॉल खेल रहे थे। कोई ताश खेल रहे थे। कोई खाने में लगे थे. कोई बनाने में.और कोई गपशप में। पास में लेक में स्वीमिंग भी चल रही थी। मैं और सुकान्त ब्रिज में पार्टनर थे। अनिल ब्रिज नहीं खेलता था। मै पैर पर पैर रख कर बैठी थी। मैने देखा कि आगे बढ कर हाथ उठाते समय मेरी साड़ी एक ओर हो जाती थी। मेरी जॉघ कुछ दिख जाती थी। सुकान्त वहॉ देखता था। जब पत्ते बॉटे जा रहे थे मैं बाथरूम गयी। वहॉ मैने अपनी पैण्टीउतार कर अपने पसे में रख ली। आकर मैं घुटने उठा कर बैठ गयी। घुटनो के सामने साड़ी खीच ली। 



जब मैने देखा कि दूसरे दोनों मियॉ बीवी खेलने मैं ज्यादा मग्न हैं। मैने अपनी साड़ी सामने से उठा दी। सामने से सब कुछ नजारा दिख रहा था। दौनों टॉगें. टॉगों का मिलन और मैने टॉघें चौड़ायीं तो स्वर्ग जिसका द्वार खुला हुआ था। सुकान्त खेलना भूल गया। उसका मुॅह खुला रह गया।
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RE: घर के औरतों की कामुक वासना - by Dani Daniels - 02-02-2021, 11:57 PM



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