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घर के औरतों की कामुक वासना
#6
कुछ तो यहॉ तक समझ रहे थे कि अभी हम लोगों की शादी होने बाली है। एक पाॉच साल के बच्चे की मॉ और लोग समझैं कुॅआरी हूॅ इससे बड़ी तारीफ क्या हो सकती है। मुझे वाइन से परहेज नहीं है पर वाइन लेते ही मैं बहकने लगती हूॅ इसलिये नहीं लेती। बहुत दिनों बाद ऐसी पार्टी में आयी थी। मैने एक गिलास ले ली। खाने के साथ एक गिलास और ला कर दिया। मैं एक से ज्यादा नहीं लेती पर लिहाज में मैने दूसरा गिलास भी ले लिया। 


मेरी तबियत हल्की हो गयी। डी जे ने म्यूजिक लगा दिया था। डान्स चालू हो गया था। मैं अच्छा डान्स करती हूॅ। सुकान्त भी सब के साथ अच्छा डान्स कर रहा था। माहिनी नाथ सुकान्त के साथ डान्स चिपक चिपक कर डान्स करने लगी थी। मुझ से बर्दास्त नहीं हुआ। मैं सुकान्त के पास पहुॅची और उसको साथ ले कर नाचने लगी। सब अपने में मग्न थे। मुझे एक शरारत सूछी। सोचा बच्चू को सबक सिखाऊॅ। ये अलग अलग रहता है। 

सब लोग मुझ पर बिछे जा रहे थे और ये हैं कि दूर से ही तारीफ कर के रह गया। देखूॅ इसका खड़ा होता है या नहीं। मैं सुकान्त से नीचे से चिपक गयी।अपने सामने हा हिस्सा उसकी टॉगों के बीच में बैठा दिया। सीधी अपनी चूत उसके लण्ड पर रगड़ी। उसका सॉप फन उठा के खड़ा हो गया। वह मेरी चूत के ऊपर चुभने लगा। अचानक सुकान्त मुझे अलग कर के एक टेबल पर जा कर बैठ गया। मैं भी जा कर बैठ गयी। पूछा “क्या हुआ सुकान्त। डान्स नहीं करोगे”। उसने कहा “मेरा मन नही है”। मैं बैठी रही। उसने कहा “आप तो जा कर के डान्स कीजिये”। मैने कहा “डान्स करूॅगी तो बस तुम्हारे साथ नई तो नहीं करूॅगी”। उसने हार कर कहा “अच्छा चलो”। मैं शुरूर में थी। कभी अपनी चूत कभी अपनी चूची उस से चिपका देती थी और वह दूर हट जाता था। पर थोड़ी देर में उसने पीछे हटना बन्द कर दिया। उसका पत्थर जैसा लण्ड मैं महसूस अपनी चूत के ऊपर महसूस करती रही। चूत के द्वार पर ठक ठक हो रही थी। चूत का दरवाजा खुल गया था। एकाध बार उसने कमर में हाथ डाल कर अपनी तरफ खीचा और सामने से लण्ड दबाया। पर जैसे उसे होश आ गया हो बोला ‘भाभी चलो चलते हैं”। मैने कहा “अभी से अभी तो पार्टी जमी है”। लेकिन वह मेरा हाथ पकड़ कर बाहर आ गया। मैने शुरूर में कहा “चलो कहॉ ले जाना चाहते हो”। वह बोला “भाभी अभी आप आपे में नहीं हैं”। उसने कार का दरवाजा खोल कर मुझे बैठा दिया और ड्राइवर सीट पर बैठ गया। मैने रौ में कहा “अब भाभी भाभी करते हो। वहॉ तो शशि की रट लगा लगा रखी थी। मैं तुम्हारी भाभी नहीं हूॅ शशि हूॅ शशि तुम्हारी बीवी”। 





उसने मुझे एकटक देखा। मेरे माथे पर आयी एक लट को पीछे कर दिया और मूझे चूम लिया। वहॉ से सीधे हम लोग घर आ गये। मैं अन्दर जाने लगी तो अचानक उसने मुझे पकड़ कर कस कर बॉहों मैं भर लिया। अपने होंठ मेरे होंठों पर चिपका दिये। उसका खड़ा हुआ लण्ड मैं अपनी टॉगों के बीच में महसूस कर रही थी। कुछ देर कर मुझे बॉधे रहा फिर “गुडनाइट भाभी” कह कर ऊपर बढ गया। मैं अन्दर गयी तो अनिल अभी जग रहा था। उसने पूछा “पार्टी इतनी जल्दी खत्म हो गयी”। मैने कहा “नहीं सुकान्त ही जल्दी चला आया”। अनिल जानता था कि मैं वाइन लेती हूॅ तो मूड में आ जाती हूॅ। या तो मैं बहुत खूबसूरत लग रही थी या मेरे शरीर की हालत मेरे चेहरे पर पढली। अनिल ने मुझे साड़ी उतारने का मौका भी नहीं दिया। उसने मुझ्े बिस्तर पर गिराया। मेरी साड़ी उलट दी। मेरी सोक हुयी पैण्टी खीच दी और एक ही झटके मैं पूरा लण्ड पेल दिया। मेरी चूत को लण्ड की जरूरत थी। मैने उसकी कमर को बाहों में बॉध लिया और बोली “अनिल कस कस के लगा दो”। अनिल ने लण्द प्ूरा बाहर खीच कर चोटैं मारना चालू कर दीं। वह पूरे बेग से पेल रहा था। चोटै मारते मारते ही उसने मेरा ब्लउज और ब्रेजियर कोल कर अलग की और दोनों मुठ्ठियों में दोनों तनी हुयी चूचियों को दबोच लिया। मैं उसकी हर चोट “ओह” “ओऔह’ अअ‍ेऔअओह” “आोह” आोहहहहहहहहहहह” करके ले रही थी। वह मेरी चूत की आधा घंटे तक गुड़ायी करता रहा। पहले मैं झड़ी। मेरी लौकती हुयी झड़ती चूत में जारों से पेलता हुआ अनिल मेरे ऊपर ढेर हो गया। दूसरे दिन मैं बड़ी देर तक सोती रही। अनिल ने उठा कर चाय दी। पूछा “कल की पार्टी कैसी रही” उसको मैने कह दिया “बहुत ही अच्छी थी”। पर मेरे को कल की याद आयी तो बड़ी ग्लानि हुयी। माई गाड मैं क्या कर बैठी थी। कितना आगे बढ गयी थी। 


भला हो सुकान्त का उसने मेरा सब कुछ ले लिया होता”। उसकी तरफ मेरी श्रद्वा और बढ गयी। साथ ही यह सोच कर मरी जा रही थी कि उसके सामने कैसे जा पााउॅगी। सुकान्त की जुबानी शशि भाभी में एकदम परिवर्तन आ गया था। कहॉ तो वह मुझ से बात भी नहीं करतीं थी लेकिन जब मैं खाने पर उनके यहॉ गया तो बुके लेते समय अपनी बाहों में भर लिया। मैं अचकचा गया। सरे वख्त वह मेरी ओर खिंची रहीं। बात बात पर हॅसती रहीं। कितनी साफ खनकती हुयी हॅसी। मेरे मन में हूक सी उठने लगती थी। उस दिन अचानक में कमरे में जा पहुॅचा। उनकी बदहवासी और वह शरीर। उनके अन्दर की भी झलक दिख गयी। ओ माई गाड अगर मैं पहले से जानता होता तो अपने को ना रोक पाता। उसके बाद तो वह मुझ् से घुलमिल गयी कि सोच भी नहीं सकते कि मैं इनके बगैर रहता था। खुबसूरत के अलाबा इतनी खुश दिल हैं। उनकी नजदीकी मुझे बहुत अच्छी लगती है। जब वह चिपकती तो मैं आगे बठ कर समेट लेना चाहता। पहले थोड़ा लिहाज से हिचकिचाहट थी। उन्होने अपने पहले किरायेदार के बारे में बतााया तो सारी बात समझ मैं आ गयी कि वह जब मैं आया आया था तो क्यों खिंची रहती थी। साथ ही मुझे अहसास हो गया कि मैं कुछ ऐसी बैसी बात न कर दूॅ जिससे पहले के किदायेदार जैसी स्थिति बन जाये। फिर भी मैं जब वह अपनी गरम गरम जाने अनजाने में ही सही पुष्ट रानें मुझ से चिपकाती हैं और उनको सख्त गोले मुझ पर गड़ते हैं तो मैं रोक नहीं पाता। आनन्द में भर जाता हूॅ। मेरे साथ पार्टी में जाने के लिये जब वह तूयार हो कर आयीं तो मैं देखता ही रह गया। रम्भा सामने खड़ी थी। 



कमल स चेहरा। पुष्ट उरोज। कमनीय देह। अदभुत श्रंगार। मैं आगे बढकर उनसे मिलता तो गजब हो जाता। दूर से ही जब्त करके रह गया। लेकिन पार्टी में तो हद हो गयी। सशि भाभी शायद पीने की आदी नहीं थीं। उन्होने नशे मैं ऐसी हरकत की सोच भी नहीं सकते। उन्होने अपनी चूत चिपका ही नहीं दी। वह उसको मेरे लण्ड पर रगड़ने लगीं। मेरा लण्ड काबू के बाहर हो कर तन्ना कर खड़ा हो गया। उनको चुभा तो जरूर होगा। इतने लोगों के बीच में मुझे अलग हो कर आ कर ही बैठना पड़ा। वह भी आ गयीं। अच्छा हुआ उन्होनें किसी और के साथ डान्स करने के लिये मना कर दिया। किसी और से कर बैठती तो। दुबारा उन्होने कहा तो मैने सोचा अब सॅभल गयी होगीं लेकिन वह तो बार बार वही हरकत करने लगी। आीखर मैं भी तो इंशान हूॅ और शशि भाभी को बेहद पसंद करता हूॅ। मैने भी इंनज्वाय करने की सोच ली। लेकिन उनके इस कामुक तरीके से रगड़ने मैम् इस स्टेज पर आ गया कि वहीं उनको पकड़ कर उनके ऊपर झड़ जाता। देखा तो औरतें मुझे घूर रहे थे। मोहिनी की निगाहें तो मेरे ऊपर लगी थीं। शशि भाभी तो आना ही नहीं चाहतीं थीम्। जबर्दस्ती कलाई पकड़ कर खीच लाया। उनको होश नहीं था। कहीं भी जाने को तैयार थी। सोचा कि नशे की हालत में फायदा न्हीं उठान चाहिये कि फिर पछताना पड़े और फिर अनिल ने जिस विश्वास के साथ भेजा था तोडना नहीं चाहता था। कार में जब वह बड़बड़ायीं तो इतनी प्यारी लगी। उनकी वह लटैं इतनी मादक लगीं ं कि मैं मैं उनको प्यार करने से रोक भी नहीं पाया। घर पहुॅचने पर मेरा सब्र का बॉध टूट गया। मैं अपने को रोक न सका और उनको अपने में समेट लिया। भला हो कि वह तो हम लोगों का घर आ गया था। थोड़ी देर बाद मैं सॅभल गया। लेकिन मेरा लण्ड खड़ा ही रहा। जाते ही मैने कपड़े फेंके। उनका नाम लेता हुआ उनकी चूत के रागड़ने को याद करता हुआ जब मैने पिचकारी छोड़ी तो मेरा लण्ड उनकी चूत के लिये लौंकता रहा। शशि की जुबानी सुकान्त से में अगले दिन ऑख नहीं मिला पा रही थी। लेकिन उसने बड़ी सहजता से लिया जैसे कि कुछ हुआ ही न हो। पर मैं शारिरिक तौर पर सुकान्त के और नजदीक आ गयी थी। उसके पास ज्यादा से ज्यादा रहना चाहती थी।उसको खुल कर अपना वदन दिखाना चाहती थी। उसको बात बात में बॉहों में भर लेती। उस से कुल कर मजाक करती जिसमें सैक्स सामिल होता था। सुकान्त मेरा और स्वीटी की दिनचर्या का अंग बन गया था। वह उसकी पढायी में भी सहायता करता था। स्वीटी भी उसी से पूछती थी। स्कूल की बातें भी उसे ही सब से पहले बतलाती थी। जब कभी स्कूल जाना होता था तो मुझे अनिल को बतला कर वह खुद ही चला जाता था। मेरी शॉपिंग तो उसके साथ ही होती थी। अनिल भी खुश था क्योंकि वह ज्यादा समय नहीं दे पाता था। एक दिन सुकान्त ने मुझ से कहा कि मैं उसकी एक अच्छी से अच्छी साड़ी खरीदने में मदद करूॅ मैने मजाक किया “क्या कोई पसंद की है उसके लिये चाहिये या मोहनी को देनी है”। वह मुस्करा के बोला ‘हॉ कुछ ऐसा ही है”। मैने कुछ साड़ियॉ पसंद की एक साड़ी बहुत पसंद आयी पर कीमत दूसरों से दुगनी थी। उसने वही साड़ी ली। मैने मजाक किया “कहो तो ब्रा भी खरीद दूॅ”। उसने हिचकिचाने के बजाय कहा “भाभी दैट विल बी ग्रेट”। मैने ऑख नचाके कहा “क्या साइज है”। उसने तपाक से कहा “आप की साइज की”। मेरा चेहरा थोड़ा लाल हो गया। उसको ताना दिया “अगर मोहनी के लिये लेना है तो दुगनी साइज की लेनी पड़ेगी और होने बाली बीवी के लिये आधा साइज की क्योकि हमारी साइज की होने में समय लगेगा”। फिर शरारत से पूछा “मोहनी का साइज तो तुम्हें मालूम होगा”। वह हाजिर जबाव था “मुझे तो बस एक साइज पता है आपका”। मैं अचकचा गयी”क्याााााााााााााा” फिर बोली “मुॅह धो के रखो तुम्हें मेरी साइज कभी भी पता नहीं चलने की”। उसी शाम को हमारे यहॉ आया। आते ही उसने कहा “हैप्पी ऐनीवर्सेरी भाभी जी हैप्पै ऐनीवर्सेरी भाई साहब”। उसके हाथ में एक गिफ्ट पेकिट था जो उसने मुझ को थमा दिया। हम लोगों की अगले हफ्ते शादी की छटीं वर्षगॉठ थी। अभी तो हम लोगों ने प्लान भी नहीं बनाया था। मैने खुशी जाहिर करके पेकिट रख लिया तो अनिल बोला “अरे खोल कर के तो देखौ क्या लाये हैं तुम्हारे लिये। मेरे लिये तो कुछ है नहीं”। सुकान्त बोला “नहीं भाभी जी आप बाद में खोलियेगा”। पर अनिल नहीं माना। मैने पैकिट खोला तो वही साड़ी थी जो शाम को खरीदी थी।ं मैैने अनिल के सामने साड़ी रख दी। पेकिट में नीचे विक्टोरिया सीक्रेट इम्पोर्टिड ब्रजियर का पेयर और पैण्टी का पेयर था। मैने उसकी तरफ देखा तो उसके चेहरे पर हवाइयॉ उड़ रहीं थीं। मैने उसकी तरफ मक्कारी से मुस्कराया। अनिल से नही कहा। साथ में अनिल के नाम का लिफाफा था। अनिल ने देखा तो आगरा मै हम लोगों की रिजर्वेशन थी। अनिल खुश हो गया। रात में मैने देखा तो मेरे ही नाप की बेहद कीमती बेजियर और पैण्टी थीं। उनकी ही कीमत दो तीन हजार होगी। मैं उसका धन्यवाद भी ढंग से नहीं कर पायी थी। बड़े सवेरे ही उसके निकल जाने के पहले मैं ऊपर गयी। वह विस्तर में ही था। मैने उसको कस के बॉहों में बॉध लिया और उसके होठों पर ही चुम्बन दिया। बोली “इतनी खूबसूरत गिफ्ट के लिये धन्यवाद”। उसने कहा “इट इज माइ पलेजर भाभी”। मैने पूछा “अच्छा ये तो बतााओ तुम्हें मेरी साइज कैसे पता चली”। वह बोला “मैं देख कर नाप ले लेता हूॅ”। मैने कहा “अरे जाऔ मेरी पैण्टी का नाप कैसे ले सकते हो”। वह बोला “यह मेरा सीक्रिट है”। मुझे जान ने की इच्छा हो रही थी। बड़ी मनौअल के बाद उसने बताया कि बाहर ताार पर सूखने के लिये पड़ी मेरी ब्रा और पैण्टी से उसने मेरी साइज पता लगायीक्त थीं। मैने उस से कहा ‘तुम भी हमारे संग चलो न”। वह मक्कारी से बोला “मैं दाल भात मैं मूसरचन्द क्या करूॅगा। मैं स्वीटी का ख्याल रखॅूगा तुम लोग अपन हनीमून मनाओ। पर मुझे पूरा हालचाल बताना मत भूलना”। मैं शर्म से लाल हो गयी। उसको एक चिकोटी काटी और वहॉ से भाग आयी। मेरी वर्षगॉठ बहुत ही मजेदार रही।



 मैने सुकान्त की दी हुयी साड़ी और ब्रेजियर और पैण्टी पहनी। अनिल ने मुझे रात में छक कर चोदा। पहली बार तो दोपहर के लंच के बाद थोड़ी सी देर के लिये ही कमरे में आये। नीचे ग्रुप टूर के लिये इंतजार कर रहे थे। मैं उसे इतनी अच्छी लग रही थी और वह इतना गरम था कि उसने मेरे बगैर कपड़े उतारे ही मेरी चुदायी की। बस साड़ी उलट कर पैण्टी उतार दी और ब्लाउज और ब्रेजियर के हुक खोल दिये। मैने टॉगें चौड़ा कर उसका लण्ड धाम कर अपनी बुर में घुसा लिया। मैं साड़ी सुकान्त की पहने थी। बेजियर सुकान्त की पहने थी। पैण्टी सुकान्त की थी जो उतार दी गयी थी। चुदबा अनिल से रही थी। जिस चोरी की तरह मैं चुदायी करा रही थी मुझे सुकान्त याद आ रहा था। बहम हो रहा था कि उसने पकड़ रखा है। मुझे उस चुदायी में भी नया मजा आ रहा था। अनिल का लण्ड मेरी चूत में शन्ट कर रहा था। मैं आनन्द मैं पागल हुयी मोन कर रही थी हॉफ रही थी ‘हॉ हॉ हॉ हॉ हॉ हॉ” तभी दरवाजे पर ठक ठक हुयी। आवाज आयी “सा’ब सब लोग आपका इंतजार कर रहे हैं”। अनिल ने कहा “आ रहा हूॅ”। मैने अनिल से कहा “ अभी झड़ना नहीं”। मै बिस्तर के किनारे खिसक आयी। अनिल से कहा खड़े हो कर जोरों से लगा दो। वह खड़ा हुआ तो मेरी चूत उसके लण्ड के सीध में थी। उसने पूरे वेग से पेला तो मैं अन्दर तक हिल गयी। मुॅह से निकल गया “ओ माााााॉ रीई“। उसने मेरी दोनोण् चूचियों को हाथ म्ों जकड़ा और बुरी तरह से चोदने लगा। हर झटके पर वह चूचियों को मसल रहा था और लण्ड अन्दर तक दीवार पर ठक से पड़ रहा था। मैं बिलबिला रही थी। वह बेरहमी से मारता रहा जब तक खलास नही हो गया। जब सारा पाानी अन्दर छोड चुका तो लण्ड बाहर खींचा और अअदत के अनुसार मेरी पैण्टी से पौछ लिया। पैण्टी मेरी चूत के मुॅह पर रख कर बाहर निकलता हुआ वीर्य पौंछ दिया। समय कम था और मेरे को न जाने क्या सूझी कि मैने बैसी ही पैण्टी पहन ली। जब हम लोग नीचे आये तो सब लोग बस में बैठे इंतजार कर रहे थे। लोगों ने हमें हिमाकत से घूर के देखा। कुछ औरतों ने शरारत भरी मुस्कान से। औरतें चाल से या चुदायी के बाद चेहरे पर आये भाव से समझ जातीं हैं कि चूत की अभी अभी मरम्मत हुयी है। घूमते समय वीर्य से गीली पेण्टी से मुझे बड़ा सुख मिल रहा था। चूत को रगडती अनिल के वीर्य और सुकान्त की पैण्टी की मिली जुली याद आ रही थी। उसके बाद रात में अनिल ने तीन बार फिर चुदायी की अलग अलग तरीके से। एक बार ऊपर चढ कर सीधी सीधी चोटै दीं। एक बार पलंग से सटा कर घोड़ी बना कर इतने जोर से पेला कि मैं पालंग पर बिछ बिछ गयी और तीसरी बार मुझे ऊपर चढा लिया। मैंने उसके लण्ड पर उछल उछल कर चुदायी की। 




बार बार मुझे सुकान्त की याद आयी। पहली बार हुआ था जब चुदबाते समय किसी दूसरे की तरफ ध्यान हुआ हो। गरमियों की छुट्टी में मैं कुछ समय के लिये मैके हो आती थी। मेरी भाभी कुसुम वह एक कस्वे से थीं । ज्यादा पढी लिखी भी नहीं थीं। बड़ी खुली हुयी और खुशमिजाज थीं। उनको क्या बात किसके सामने नहीं कहनी चाहिये इसकी परवाह नहीं थी। ब्ोधडल्ले कोई भी बात कह देती थीं। सैक्स की बात करने की उनकी आदत थी जिसको वह खुले आम कह देती थीं। अपनी चुदायी तक की बात करने में उनको शरम नहीं थी। पर दिल की साफ थीं। वह मुझे तो बहुत चाहतीं थीं इस कारण मेरा भी वहॉ जाने का मन करता था। उनकी और मेरी शादी एक ही समय हुयी थी। उनके दो बच्चे थे। बड़ी बेटी स्वीटी की उमर की ही थी। उसकी स्वीटी से बहुत पटती थी। इसलिये स्वीटी भी गरमियों में वहॉ जाना चहती थी। अनिल का भी चेन्ज हो जाता था और भाभी ननदोई में जिस तरह सैक्सभरी नौंकछौंक होती थी उसमें उसको तो क्या मुझे भी आनन्द आ जाता था। पर इस बार अनिल को समय नहीं था। अभी हाल में ही वर्षगॉठ के समय छुट्टी लीं थी। इस कारण इस बार जाने का प्रोग्राम नहीं था। पर स्वीटी जिद कर रही थी और कुसुम भाभी भी पीछे पड़ी थी। तय हुआ कि अनिल मुझे छोड़ आयेगा और एक हफ्ते के बाद लेने पहुॅच जायेगा। पर जब ले आने की बारी आयी तो अनिल के यहॉ एक हाईपावर डैलिगेशन आया हुआ था। मैने कहा कि सुकान्त को भेज दो तो अनिल ने कहा तुम्ही उससे बात कर लो। मैने सुकान्त को फोन किया “क्या तुम्हें भाभी की याद भी नहीं आती है”। वह भी कम नहीं था “भाभी मुझे तो नींद भी नहीं आती”। “तभी तो भाभी यहॉ पड़ी है और तुम मोहनी के साथ गुलछर्रे उड़ा रहे हो”। “भाभी तुम्ही तो मैके में सब को भूल गयी हो रोज आने का बढाती जा रही हो”। “तो फिर आ जाओ न लेने के लिये”। उसी दिन सुकान्त आ पहुॅचा। कुसुम भाभी पहली बार सुकान्त से मिलीं थीं पर अपनी आदत के अनुसार शुरू हो गयीं “क्यों देवर जी एक हफ्ते का सब्र नहीं कर सके”। मैने रोका “भाभी मैने बुलाया है इन्हें”। कुसुम भाभी अब मेरे से उलझ गयीं “ओ तो इतनी आदी हो गयी हो अपने देवर की कि एक हफ्ते में ही खुजली होना शुरू हो गयी”। मैने उनको टोका “भाभी कुछ भी कहना चालू कर देती हो। सुकान्त एक बहुत शरीफ आदमी है। बड़े ऊॅचे घराने से है”। कुसुम भाभी चालू थीं “क्यों शरीफ आदमी के वो नहीं होता है। वह करता नहीं है”। सुकान्त उनको मुॅह बाये देख रहा था। मैने कहा “बस तुम तो एक सम्बन्ध ही जानती हो”।
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RE: घर के औरतों की कामुक वासना - by Dani Daniels - 02-02-2021, 11:49 PM



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