02-02-2021, 11:47 PM
सुकान्त ने कहा “इट्रस आल राइट भाभी। मुझे ही इस तरह नहीं घुस आना था। आगे से नॉक करके आउॅगा”। मै धीरे से बोली “आगे से मैं वहॉ नहीं जाउॅगी”। सुकान्त अधीरता से बोला “भाभी ऐसी कैसी बात करती हैं। मैने अपनी गलती मान तो ली है। घर आपका है। ये लीजिये अन्दर के कमरे की चाभी। आप आराम से बन्द कर के हमेशा की तरह लेटिये”। शशि को ताज्जुब हुआ क्योंकि वह बिस्तर अच्छी तरह ठीक कर देती थी। उसने पूछ लिया “आपको कैसे पता कि मैं वहॉ लेटती हूॅ”। सुकान्त सम्मोहित सा बोला “भाभी तुम्हारे शरीर की गंध तो मेरे बिस्तर में बस गयी है”। शशि का चेहरा सिंदूर की तरह हो गया। इसके बाद मैं उठना बैठना नहाना धोना ऊपर बेधड़क करती थी। बाथरूम में सब आधुनिक सुबिधायें र्थींदीवार से दीवार तक का शीशा। प्रसाधन के सामान के लिये केबिनेट. अन्दर के कपड़ों के लिये क्लाजिट और चौबीस घंटे ठंडा गरम पानी की सुबिधा। बाथटब और शॉवर। सुकान्त के आने तक मैं मैं ऊपर ही तैयार हो जाती।
साथ में हम लोग चाय पीते फिर कभी स्वीटी के साथ कभी हम दोनों ही शॉपिंग या घूमने निकल जाते। लौट कर आते तो अनिल आ गया होता था। खाना मैं दिन में ही तैयार कर लेती थी। अनिल और मैं डिनर साथ लेते। सुकान्त भी आये दिन हमारे साथ ही डिनर करता। सुकान्त और वह गपसप करते रहते। सुकान्त और मैं काफी नजदीक आ गये थे पर हॅसने हॅसाने और छूने छुलाने से आगे हम लोगों के शारिरिक सम्बन्ध नहीं थे। सुकान्त मर्यादा का ध्यान रखता था। मैं दो मर्दो के बीच मैं झूल रही थी। घूमती फिरती रूठना रूठाना सुकान्त से करती थी। चुदबाती अनिल से थी। मेरी सहेलियॉ सुकान्त को ले कर मुझसे छेड़ाखानी करती थी। सैक्स की बात भी कह डालती थी “मजे तो इसके हैं दो दो स्वाद लेती है। बता तो कौन सा स्वाद अच्छा लगता है”। सुनकर मेरे मन में भी गुदगुदी होती थी। वदन में भी सुरसुराहट होने लगती थी। कभी कभी चूत मे भी सनसनाहट होने लगती थी। रात में चुदबाने में और मजा आ जाता था। इतने साथ रहते हुये भी सुकान्त दूरी बनाये हुये था। इसे मैं अपनी कमी समझ कर उसे अपनी ओर झुकाना चाहती थी। देखना चाहती थी कि वह मेरे पीछे पीछे डोले और मैं लापरवाही दिखाऊॅ। सुकान्त का इतना साथ रहता था। उसके व्यक्तित्व का आकर्षण ऊपर से सहेलियों की बातें। मैं सुकान्त की तरफ खिचती जा रही थी। मैं बात बात पर उस पर गिर गिर जाती थी। जाने अनजाने उस से चिपक जाती। सिनेमा में या और कहीं साथ साथ बैठते तो मैं अपनी रानों का दवाव उसकी रानों पर डाल देती। अपने उभार उस से चिपका देती। इन हरकतों से मैं आनन्द में भर जाती थी। इन दिनों मैं ज्यादा चुदबाना चाहती थी। जी करता था कि फिर हर दूसरे दिन के रूटीन पर आ जाऊॅ। चुदबाती तो मैं अनिल से ही थी। मुझे सुकान्त के साथ थोड़ा मजा लेने में कोई भी बुरायी नहीं लगती थी। इस से चुदबाने में भरपूर आनन्द आ जाता था। सुकान्त मेरी हरकतों से पीछे तो नहीं हटता था। वह भी मजा लेता था पर अपनी तरफ से पहल नहीं करता था। ना ही आगे बढता था। एक शाम सुकान्त के दफ्तर में पार्टी थी। लोग बीवियों के साथ आ रहे थे। सुकान्त ने मुझ से पुछा “भाभी मेरे साथ चलोगी”। मैने हॅसते हुये कहा “यानी तुम्हारी बीवी बन के”। सुकान्त सकपका गया “भाभी ये बात तो……।” मैने उसकी बात को काटते हुये कहा “मुझे कोई ऐतराज नहीं है। पर घूमने जाने की बात और है पार्टी में जाने की दूसरी। तुम अपने भइया से पूछ लो”।् सुकान्त सुन कर रह गया। उसने अनिल से इस बाबत कोई बात नहीं की। मैने ही उसकी मौजूदगी में अनिल से पूछा “सुकान्त के आफिस में पार्टी है। वह मुझे साथ चलने को कह रहा है”। अनिल ने चट से जबाव दिया “इस में पूछने की क्या बात है”। पार्टी के लिये मै खूब सजी सॅभरी। नयी साड़ी कसी ब्रेजियर और ब्लाउज पहने। मैच्ािंग झूलता हार चूड़ियॉ सैडिल पर्स। ऊपर गयी तो सुकान्त ने मुझे देखा। उसकी ऑखों में पसंद की चमक थी। उसने कहा “भाभी आप बहुत खूबसूरत लग रही हौ”। बस इतना कह कर रह गया। मूझे कोफ्त हुयी। चाहती थी और तारीफ करे। मुझे चिपकाये करे। चूम भी ले तो कोई बात नहीं। मैने कुढ कर कहा “वहॉ भाभी भाभी मत करना बरना मैं बूढी लगूॅगी। बैसे भी तुमसे बड़ी हूॅ”। सुकान्त ने ईमानदारी से कहा “आप को बड़ी कोई भी नहीं कह सकता”। सुकान्त शेरवानी मैं बहुत हैंडसम लग रहा था। मै उसका हाथ पकड़ कर दाखिल हुयी तो लोग हम लोगों की ओर देखते रह गये। पार्टी में मैं केन्द्र बन गयी। एक तो सुकान्त की पोजीशन ऊॅची थी। ज्यादातर उसके मातहत लोगों की बीवियॉ थीं। दूसरे सब लोग मेरी खूबसूरती से प्रभावित थे। उसके साथियों ने और सीनियरों ने मेरी तारीफ की। सुकान्त ने मेरा परिचय कराते हुये कह “ये शशि हैं”। आगे का लोगों ने अपने आप मतलब निकाल लिया। सुकान्त औरतों में बहुत पापुलर था। वह सब से मजाक भरे लहजे में बात कर रहा था खाासतौर पर मिसिज माहिनी नाथ से। यह एक नया ही सुकान्त था।मोहिनी नाथ का अंग अंग भरा हुआ था। वह मोटी नहीं थीं । बाहें रानें कमर सीना और कूल्हे जिस तरह से भरपूर थे वह बेहद सेक्सी लगती थी। वह सुकान्त पर बिछी जा रही थी। उसके खास लोगों को छोड़ कर बाकी सब मुझे उसकी बीवी समझ रहे थे। खासतौर पर उसके जूनियर मिसिज अग्रवाल कह कह कर मेरी खुशामद में लगे थे।
साथ में हम लोग चाय पीते फिर कभी स्वीटी के साथ कभी हम दोनों ही शॉपिंग या घूमने निकल जाते। लौट कर आते तो अनिल आ गया होता था। खाना मैं दिन में ही तैयार कर लेती थी। अनिल और मैं डिनर साथ लेते। सुकान्त भी आये दिन हमारे साथ ही डिनर करता। सुकान्त और वह गपसप करते रहते। सुकान्त और मैं काफी नजदीक आ गये थे पर हॅसने हॅसाने और छूने छुलाने से आगे हम लोगों के शारिरिक सम्बन्ध नहीं थे। सुकान्त मर्यादा का ध्यान रखता था। मैं दो मर्दो के बीच मैं झूल रही थी। घूमती फिरती रूठना रूठाना सुकान्त से करती थी। चुदबाती अनिल से थी। मेरी सहेलियॉ सुकान्त को ले कर मुझसे छेड़ाखानी करती थी। सैक्स की बात भी कह डालती थी “मजे तो इसके हैं दो दो स्वाद लेती है। बता तो कौन सा स्वाद अच्छा लगता है”। सुनकर मेरे मन में भी गुदगुदी होती थी। वदन में भी सुरसुराहट होने लगती थी। कभी कभी चूत मे भी सनसनाहट होने लगती थी। रात में चुदबाने में और मजा आ जाता था। इतने साथ रहते हुये भी सुकान्त दूरी बनाये हुये था। इसे मैं अपनी कमी समझ कर उसे अपनी ओर झुकाना चाहती थी। देखना चाहती थी कि वह मेरे पीछे पीछे डोले और मैं लापरवाही दिखाऊॅ। सुकान्त का इतना साथ रहता था। उसके व्यक्तित्व का आकर्षण ऊपर से सहेलियों की बातें। मैं सुकान्त की तरफ खिचती जा रही थी। मैं बात बात पर उस पर गिर गिर जाती थी। जाने अनजाने उस से चिपक जाती। सिनेमा में या और कहीं साथ साथ बैठते तो मैं अपनी रानों का दवाव उसकी रानों पर डाल देती। अपने उभार उस से चिपका देती। इन हरकतों से मैं आनन्द में भर जाती थी। इन दिनों मैं ज्यादा चुदबाना चाहती थी। जी करता था कि फिर हर दूसरे दिन के रूटीन पर आ जाऊॅ। चुदबाती तो मैं अनिल से ही थी। मुझे सुकान्त के साथ थोड़ा मजा लेने में कोई भी बुरायी नहीं लगती थी। इस से चुदबाने में भरपूर आनन्द आ जाता था। सुकान्त मेरी हरकतों से पीछे तो नहीं हटता था। वह भी मजा लेता था पर अपनी तरफ से पहल नहीं करता था। ना ही आगे बढता था। एक शाम सुकान्त के दफ्तर में पार्टी थी। लोग बीवियों के साथ आ रहे थे। सुकान्त ने मुझ से पुछा “भाभी मेरे साथ चलोगी”। मैने हॅसते हुये कहा “यानी तुम्हारी बीवी बन के”। सुकान्त सकपका गया “भाभी ये बात तो……।” मैने उसकी बात को काटते हुये कहा “मुझे कोई ऐतराज नहीं है। पर घूमने जाने की बात और है पार्टी में जाने की दूसरी। तुम अपने भइया से पूछ लो”।् सुकान्त सुन कर रह गया। उसने अनिल से इस बाबत कोई बात नहीं की। मैने ही उसकी मौजूदगी में अनिल से पूछा “सुकान्त के आफिस में पार्टी है। वह मुझे साथ चलने को कह रहा है”। अनिल ने चट से जबाव दिया “इस में पूछने की क्या बात है”। पार्टी के लिये मै खूब सजी सॅभरी। नयी साड़ी कसी ब्रेजियर और ब्लाउज पहने। मैच्ािंग झूलता हार चूड़ियॉ सैडिल पर्स। ऊपर गयी तो सुकान्त ने मुझे देखा। उसकी ऑखों में पसंद की चमक थी। उसने कहा “भाभी आप बहुत खूबसूरत लग रही हौ”। बस इतना कह कर रह गया। मूझे कोफ्त हुयी। चाहती थी और तारीफ करे। मुझे चिपकाये करे। चूम भी ले तो कोई बात नहीं। मैने कुढ कर कहा “वहॉ भाभी भाभी मत करना बरना मैं बूढी लगूॅगी। बैसे भी तुमसे बड़ी हूॅ”। सुकान्त ने ईमानदारी से कहा “आप को बड़ी कोई भी नहीं कह सकता”। सुकान्त शेरवानी मैं बहुत हैंडसम लग रहा था। मै उसका हाथ पकड़ कर दाखिल हुयी तो लोग हम लोगों की ओर देखते रह गये। पार्टी में मैं केन्द्र बन गयी। एक तो सुकान्त की पोजीशन ऊॅची थी। ज्यादातर उसके मातहत लोगों की बीवियॉ थीं। दूसरे सब लोग मेरी खूबसूरती से प्रभावित थे। उसके साथियों ने और सीनियरों ने मेरी तारीफ की। सुकान्त ने मेरा परिचय कराते हुये कह “ये शशि हैं”। आगे का लोगों ने अपने आप मतलब निकाल लिया। सुकान्त औरतों में बहुत पापुलर था। वह सब से मजाक भरे लहजे में बात कर रहा था खाासतौर पर मिसिज माहिनी नाथ से। यह एक नया ही सुकान्त था।मोहिनी नाथ का अंग अंग भरा हुआ था। वह मोटी नहीं थीं । बाहें रानें कमर सीना और कूल्हे जिस तरह से भरपूर थे वह बेहद सेक्सी लगती थी। वह सुकान्त पर बिछी जा रही थी। उसके खास लोगों को छोड़ कर बाकी सब मुझे उसकी बीवी समझ रहे थे। खासतौर पर उसके जूनियर मिसिज अग्रवाल कह कह कर मेरी खुशामद में लगे थे।