02-02-2021, 11:38 PM
मैने भी तय कर लिया कि मैं अपने काम से काम रखॅगा इस परिवार से दूर ही रहॅूगा। पर स्वीटी जब भी मुझे देखती दौड़ कर आ जाती। वह मुझे बहुत पसंद करती थी। मुझे भी वह बहुत भली लगती थी। शशि की जुबानी सुकान्त और राजन मैं एक फरक था। राजन मना करने के बावजूद भी भाभी भाभी कह कर पीछे पड़ा रहता था और सुकान्त मुझ से बात तक नहीं करता था। अभी उसे आय्ो थोड़े ही दिन हुये थे कि देखा कि एक दिन स्वीटी उसकी उॅगली पकड़े हुये छलॉग लगाती चली आ रही है। पता चला कि रास्ते में सुकान्त को देख कर उसने रिक्शे से उसको आवाज लगा दी और सुकान्त उसको रिक्शा छुड़बा कर अपनी कार में ले आया साथ ही आइसक्रीम भी। इस बीच थोड़ी बहुत बातचीत के आधार पर ही अनिल भी उसको पसंद करने लगे थे।बस मैं ही उदासीन थी। सुकान्त को आये एक महीना हो गया था। इस बीच स्वीटी सुकान्त से घुलमिल गयी थी। उसका सारा समय उनके यहॉ गुजरता था। उसको एयरकंडीशन की आदत पड़ गयी थी। घर में उसे आग बरसती थी। सुकान्त ने उसको एक चाभी दे दी थी। उसके लिये अलग से टेबिल लगा दी थी जिस पर उसकी किताबें सजी रहतीं थीं। वह अंकल से उसके चाचा हो गये थे। हम लोगों को भी अब एकान्त मिलने लगा था। जब अनिल घर में होता था तो दिन में भी हम लोग चुदायी का मजा ले लेते थे। अगले महिने मेरे सास ससुर आ गये। एक दिन देखा कि वह सुकान्त की कार से उतर कर आ रहे हैं। सुकान्त ने उन्हें पार्क से लौटते हुये देखा तो साथ ले आया। मेरी सास उससे बहुत प्रभावित थीं। उन्होने अनिल की पसंद की खीर बनायी तो एक कटोरी में निकाल कर मुझ से कहा ‘बहू इसे सुकान्त को दे आ”। मैं सास से शालीन व्यवहार करती थी इसलिये न कह सकी कि वहॉ भेजने की जरूरत नहीं है। बस इतना कहा “ंमॉजी मैं ऊपर नहीं जाती आप ही दे आइये”। मॉजी ऊपर गयीं तो वहीं की हो कर रह गयीं। कहॉ तो खीर देने गयीं थीं पर वहॉ से ढेर सारी मिठाई ले के आ गयीं। साथ में उसके बारे में पूरा चिठ्ठा। बड़ा ही सीधा लड़का है। जमींदार घराना है। एक भाई है जिसकी पॉच साल पहले शादी हो गयी है। घर बालों ने जोर दिया तो अमेरिका से लौट आया है। अगले साल शादी हो जायेगी। यही नहीं उसने पट्टी पढा दी थी कि सास और ससुर दोनों उसके यहॉ आराम किया करं। उसके सोफे के दोनों सिरे बटन दबाते ही खुल जाते थे जहॉ वह लोग आराम कर सकते थे. टी। वी। देखा सकते थे या पढ सकते थे। जैसे जैसे वह लोग उसके यहॉ दिन गुजारने लगे उसकी और तारीफ करने लगे। सुकान्त भी उनकी सेवा में लगा रहता था।
अनिल के पास तो समय था नहीं। सुकान्त अपने समय का मालिक था। घर पर बैठ भी कम्पयूटर से काम करता रहता था। वह सास ससुर को मंदिर ले जाता था। स्वीटी तो जहॉ कहती थी वह जाता था। मैं घर मैं कोई चीज नयी बनाती थी मेरी सास सुकान्त को ले जाती थीं। लौट कर कहती सुकान्त ने कितनी तारीफ की। मुझे सुन कर अच्छा लगता था। अब मैं खुद ही उसके लिये चीज बनाती थी। घर में नहीं बनती तो उसके लिये बना कर स्वीटी से भिजवा देती। स्वीटी से पूछती “तेरे चाचा को पसंद आयी”। वह कहती “चाचा तो पूरी चट्ट कर गये”। मन के साथ साथ मेरा शरीर भी रोमॉचित हो उठता। कोई त्योहार का दिन था। घर में पकवान बन रहे थे। मॉजी से रहा नहीं गया “तीज त्योहार का दिन है और घर का लड़का बाहर होटल में खाने जायेगा”। मैने कहा “तो बुला लो न”। अनिल बीच में बोल पड़े “शशि बैसे तो तुमको बुलाना चाहिये”। मैं ऊपर गयी। सुकान्त पेपर पढने में लगे थे। जैसे ही मुझे देखा उठ खड़े हुये “आइये. आइये”। मैने हॅस कर कहा “भाभी नहीं कहोगे”। सुकान्त तुरत बोला “आइये भाभी. बैठिये”। मैने कहा “मैं बैठने नहीं आयी हूॅ। आज त्योहार का दिन है शाम का खाना आप हमारे साथ कीजिये”। सुकान्त ने कहा “भाभी आज शाम को तो मुझे कहीं जाना है”। मैंने और कुछ नहीं कहा। लौटने बाली थी कि वह बोला “भाभी ठीक है मैं शाम को आउॅगा”। यह सोच कर कि शाम को सुकान्त आ रहा है मैने ज्यादा श्रंगार किया। खूब फिट होते हुये कपड़े पहने। नये साड़ी ब्लाउज पहने। डिजायनर ब्रेजियर और पैण्टी पहनी हालॉकि नीचे का दिखाना नहीं था। सुकान्त भी सज सॅभर कर आया था। बहुत ही सैक्सी लग रहा था। वह मेरे लिये एक बहुत बड़ा बुके लाया था और स्वीटी के लिये ड्रैस। जब सुकान्त ने झुक कर मुझे बुके दिया तो अनजाने ही मैने उसको चिपका लिया।
फिर सॅभल गयी। शाम हॅसी खुशी में गुजरी। उसको खुश देख कर मैं आनन्द मैं भर गयी। यहॉ तक कि उस रात मैने पहल करके चुदबाया और चुदबाने मैं बहुत आनन्द आया। मन में हुलास भरी रही। सुकान्त की जुबानी उस दिन मैं पेपर पढने में तल्लीन था। पैरों की आवाज आयी तो मै समझा स्वीटी आयी है। सोच भी नही सकता था कि शशि भाभी होंगीऌ वह तो बात भी नहीं करतीं थीं। पर शशि भाभी को देख कर हड़बड़ा कर ‘आइये आइये” निकल पड़ा। वह बड़ी मीठी आवाज में बोल उठीं जैसे घंटी बज उठी हो “भाभी नहीं कहोगे”। मैने अचकचा कर कहा “आइये बैठिये भाभी”। उन्होने शाम की दावत का न्योता दिया। उसी दिन क्लब में मेरे सहयोगियों ने प्रोग्राम रखा था। मना करने पर शशि का चेहरे पर जिस तरह के भाव आये उनको देख कर अपने आप ही मेरे मुॅह से हामी निकल गयी। ऊपर से नीचे सामने के दरवाजे से पहली बार जा रहा था। शशि को देखा तो देखता ही रह गया जैसे रति सामने खड़ी हो कामदेव को रिझाने के लिये। उन्होने बड़े प्यार से मेरा स्वागत किया। अपने से चिपका लिया तो उनके सख्त उभार मुझ पर गढ गये। मैं सिहर कर सॅभल गया। वह खिलखिला हॅसती रहीं। उनसे पहली बार बातें हुयीं थीं पहली बार आना जाना शुरू हुआ था। शशि की जुबानी मेरे सास ससुर तो चले गये पर आने जाने का सिलसिला बना गये। ऊपर नीचे में बहुत फरक था। सुकान्त ने सब तरह का सुख जुटा रखा था। स्वीटी के साथ मैं भी दोपहर में जब कड़ाके की धूप पडती थी ऊपर पहुॅच जाती थी। स्वीटी तो बाहर अपनी डेस्क या सोफे पर काम करती रहती थी। मैं अन्दर के ठंडे कमरे में मैगजीन या नाविल पढती रहती थी। पहले तो उसके पलंग पर लेटने में हिचक हुयी। फिर आराम से उसके बिस्तर में तकिया लगा कर टिक कर पढती रहती थी और पढते पढते वहीं खिसक कर सो जाती थी। सुकान्त के आने के पहले बिस्तर ठीक कर देती थी और नीचे आ जाती थी। एक दिन पता नहीं मैं देर तक सोती रही या सुकान्त जल्दी आ गया। वह अन्दर घुस आया। उस दिन साड़ी नयी होने की बजह से उतार दी थी कि मुस न जाये। पेटीकोट ब्लाउज में पड़ी थी। हड़बड़ा कर बैसी ही खड़ी हो गयी। पेटीकोट भी नाड़े के पास ज्यादा चिरा हुआ था। अन्दर से चूत के आसपास का हिस्सा दिख रहा था। केसरक्यारी झलक रही थी। चेहरा शरम से लाल हो गया। मै साड़ी उठा कर बाहर की और बढी। सुकान्त ने कहा “भाभी आइ एम सॉरी। आप आराम करो”। मेरे कुछ कहने के पहले ही वह बाहर निकल गया और खीच कर दरवाजा बंद कर दिया। मैं जल्दी से साड़ी पहन कर बाहर आ गयी। सुुकान्त ने सहजता से पूछा “भाभी चाय पियेंगी”। मैं सुकान्त से ऑखें न्हाीं मिला पा रही थी। उसने मुझे अधनंगा देख लिया था वह भी अपने बिस्तर पर। मै वहॉ से भाग आना चाहती थी। बोली “आप नीचे मेरे यहॉ चाय पीजियेगा”। नीचे आ कर कुछ देर में मैं सहज हो पायी। सुकान्त आया तो चाय देते हुये मैने सफाई दी “पता नहीं बैठे बैठे मुझे कब झपकी लग गयी”।
अनिल के पास तो समय था नहीं। सुकान्त अपने समय का मालिक था। घर पर बैठ भी कम्पयूटर से काम करता रहता था। वह सास ससुर को मंदिर ले जाता था। स्वीटी तो जहॉ कहती थी वह जाता था। मैं घर मैं कोई चीज नयी बनाती थी मेरी सास सुकान्त को ले जाती थीं। लौट कर कहती सुकान्त ने कितनी तारीफ की। मुझे सुन कर अच्छा लगता था। अब मैं खुद ही उसके लिये चीज बनाती थी। घर में नहीं बनती तो उसके लिये बना कर स्वीटी से भिजवा देती। स्वीटी से पूछती “तेरे चाचा को पसंद आयी”। वह कहती “चाचा तो पूरी चट्ट कर गये”। मन के साथ साथ मेरा शरीर भी रोमॉचित हो उठता। कोई त्योहार का दिन था। घर में पकवान बन रहे थे। मॉजी से रहा नहीं गया “तीज त्योहार का दिन है और घर का लड़का बाहर होटल में खाने जायेगा”। मैने कहा “तो बुला लो न”। अनिल बीच में बोल पड़े “शशि बैसे तो तुमको बुलाना चाहिये”। मैं ऊपर गयी। सुकान्त पेपर पढने में लगे थे। जैसे ही मुझे देखा उठ खड़े हुये “आइये. आइये”। मैने हॅस कर कहा “भाभी नहीं कहोगे”। सुकान्त तुरत बोला “आइये भाभी. बैठिये”। मैने कहा “मैं बैठने नहीं आयी हूॅ। आज त्योहार का दिन है शाम का खाना आप हमारे साथ कीजिये”। सुकान्त ने कहा “भाभी आज शाम को तो मुझे कहीं जाना है”। मैंने और कुछ नहीं कहा। लौटने बाली थी कि वह बोला “भाभी ठीक है मैं शाम को आउॅगा”। यह सोच कर कि शाम को सुकान्त आ रहा है मैने ज्यादा श्रंगार किया। खूब फिट होते हुये कपड़े पहने। नये साड़ी ब्लाउज पहने। डिजायनर ब्रेजियर और पैण्टी पहनी हालॉकि नीचे का दिखाना नहीं था। सुकान्त भी सज सॅभर कर आया था। बहुत ही सैक्सी लग रहा था। वह मेरे लिये एक बहुत बड़ा बुके लाया था और स्वीटी के लिये ड्रैस। जब सुकान्त ने झुक कर मुझे बुके दिया तो अनजाने ही मैने उसको चिपका लिया।
फिर सॅभल गयी। शाम हॅसी खुशी में गुजरी। उसको खुश देख कर मैं आनन्द मैं भर गयी। यहॉ तक कि उस रात मैने पहल करके चुदबाया और चुदबाने मैं बहुत आनन्द आया। मन में हुलास भरी रही। सुकान्त की जुबानी उस दिन मैं पेपर पढने में तल्लीन था। पैरों की आवाज आयी तो मै समझा स्वीटी आयी है। सोच भी नही सकता था कि शशि भाभी होंगीऌ वह तो बात भी नहीं करतीं थीं। पर शशि भाभी को देख कर हड़बड़ा कर ‘आइये आइये” निकल पड़ा। वह बड़ी मीठी आवाज में बोल उठीं जैसे घंटी बज उठी हो “भाभी नहीं कहोगे”। मैने अचकचा कर कहा “आइये बैठिये भाभी”। उन्होने शाम की दावत का न्योता दिया। उसी दिन क्लब में मेरे सहयोगियों ने प्रोग्राम रखा था। मना करने पर शशि का चेहरे पर जिस तरह के भाव आये उनको देख कर अपने आप ही मेरे मुॅह से हामी निकल गयी। ऊपर से नीचे सामने के दरवाजे से पहली बार जा रहा था। शशि को देखा तो देखता ही रह गया जैसे रति सामने खड़ी हो कामदेव को रिझाने के लिये। उन्होने बड़े प्यार से मेरा स्वागत किया। अपने से चिपका लिया तो उनके सख्त उभार मुझ पर गढ गये। मैं सिहर कर सॅभल गया। वह खिलखिला हॅसती रहीं। उनसे पहली बार बातें हुयीं थीं पहली बार आना जाना शुरू हुआ था। शशि की जुबानी मेरे सास ससुर तो चले गये पर आने जाने का सिलसिला बना गये। ऊपर नीचे में बहुत फरक था। सुकान्त ने सब तरह का सुख जुटा रखा था। स्वीटी के साथ मैं भी दोपहर में जब कड़ाके की धूप पडती थी ऊपर पहुॅच जाती थी। स्वीटी तो बाहर अपनी डेस्क या सोफे पर काम करती रहती थी। मैं अन्दर के ठंडे कमरे में मैगजीन या नाविल पढती रहती थी। पहले तो उसके पलंग पर लेटने में हिचक हुयी। फिर आराम से उसके बिस्तर में तकिया लगा कर टिक कर पढती रहती थी और पढते पढते वहीं खिसक कर सो जाती थी। सुकान्त के आने के पहले बिस्तर ठीक कर देती थी और नीचे आ जाती थी। एक दिन पता नहीं मैं देर तक सोती रही या सुकान्त जल्दी आ गया। वह अन्दर घुस आया। उस दिन साड़ी नयी होने की बजह से उतार दी थी कि मुस न जाये। पेटीकोट ब्लाउज में पड़ी थी। हड़बड़ा कर बैसी ही खड़ी हो गयी। पेटीकोट भी नाड़े के पास ज्यादा चिरा हुआ था। अन्दर से चूत के आसपास का हिस्सा दिख रहा था। केसरक्यारी झलक रही थी। चेहरा शरम से लाल हो गया। मै साड़ी उठा कर बाहर की और बढी। सुकान्त ने कहा “भाभी आइ एम सॉरी। आप आराम करो”। मेरे कुछ कहने के पहले ही वह बाहर निकल गया और खीच कर दरवाजा बंद कर दिया। मैं जल्दी से साड़ी पहन कर बाहर आ गयी। सुुकान्त ने सहजता से पूछा “भाभी चाय पियेंगी”। मैं सुकान्त से ऑखें न्हाीं मिला पा रही थी। उसने मुझे अधनंगा देख लिया था वह भी अपने बिस्तर पर। मै वहॉ से भाग आना चाहती थी। बोली “आप नीचे मेरे यहॉ चाय पीजियेगा”। नीचे आ कर कुछ देर में मैं सहज हो पायी। सुकान्त आया तो चाय देते हुये मैने सफाई दी “पता नहीं बैठे बैठे मुझे कब झपकी लग गयी”।