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घर के औरतों की कामुक वासना
#1
मैं शशि गोयल हूॅ। शादी को पॉच साल हुये हैं। मेरा छोटा परिवार है जिसमें मेरे पति अनिल और चार साल की बेटी स्वीटी है। सास ससुर है जो ज्यादातर समय राजिस्थान में अपनी खानदानी हवेली में रहते हैं। मेरे ससुर एक बहुत बड़े सरकारी पद पर थे। उन्होने दक्षिण दिल्ली में बसंत विहार मे एक बड़ी दो मंजिला कोठी बनबायी थी। अपने दोनों बच्र्चों मेरे पति और उनसे छोटी मेरी ननद को. उन्होने ऊॅची शिक्षा दी। मेरी ननद की एक अच्छे परिवार मे शादी हुयी है । उसके पति मध्यप्रदेश कैडर के आइ ए एस अफसर है। मेरे पति एक प्राईवेट कम्पनी में मैनेजर के पद पर हैं। घर में खुशहाली है और हमारे सम्बन्धों में मधुरता। मैं पूरी औरत हूॅ । मुझे चुदबाने में बड़ा मजा आता है और उतन ही मजा अनिल को मुझे चोदने में। पहले तो करीब करीब रोज चुदायी करते थे।अनिल बहुत व्यस्त रहते हैं।अब हफ्ते में दो दिन पर आ गये हैं। जिस दिन बीच में नहीं चुद पाती हूॅ तो मैं मिस करती हूॅ पर अगली बार हफ्ते भर की कसर निकाल लेती हूॅ। बैसे तो हम लोगों को आर्थिक जरूरत नहीं थी लेकिन मकान खाली पड़ा होने की बजह से हम लोगों ने ऊपर की मंजिल किराये पर उठा दी। ऊपर दो कमरे का पूरी यूनिट है। सामने खुली हुयी बड़ी सी छत जिसको हम लोग भी स्तेमाल करते रहते हैं। कपड़े बगैरह सुखाने डाल आते हैं। पहला जो किरायेदार आया वह सी पी डब्ल्यू डी में इंजीनियर था। नाम था राजन माथुर। अकेला जवान था शादी नहीं हुयी थी। आते ही स्वीटी से घ्ुालमिल गया। मुझे भी बड़े अपनेपन से भाभी भाभी बुलाने लगा। मैं बातचीत में बहुत जल्दी खुल जाती हूॅ। 

राजन से भी हॅसी मजाक करने लगी। शादी को ले कर उसको छेड़ती जिसमें सैक्स का पुट होता। वह भी कहता “भाभी जब तुम हो तो बीवी की क्या जरूरत है”। शायद मेरे खुलेपन का उसने गलत मतलब लगाया। वह बात बात में मेरा हाथ पकड़ता था. चिपकने की कोशिश करता था। एकाध बार उसने मेरी चूचियॉ दबा दीं। मैं मजाक समझ कर टाल गयी। थोड़े दिनों में ही उसकी नियत साफ हो गयी। मुझे घूरता था तो उसकी ऑखों में सैक्स साफ नजर आता था। उसकी नजरें मेरे सीने और टॉगों के बीच में ही गडी रहतीं। मुझे उलझन होने लगी थी। एक दिन मौका देख कर उसने मेरी चूत के ऊपर हाथ फेर दिया। मैने उसको सीधे शब्दों में झटक दिया “राजन मुझे यह सब पसंद नहीं है आगे से मत करना”।

लेकिन वह नहीं माना। एक दिन उसने मुझ को बॉहों में जकड़ लिया। मैं धक्का दे कर अलग हो गयी। मैं उस से दूर रहने लगी। अनिल को तो बैसे भी समय नहीं था। जब कभी वह होते उनके बहाने राजन आ जाता और तपाक से भाभी करता रहता पर मैं वहॉ आती ही नहीं थी। अनिल को मैने बतला दिया था कि वह मुझे अच्छा नहीं लगता है। एक दिन तो हद हो गयी। मैं झत पर कपड़े डालने गयी। देखा तो राजन दरवाजा खोले एकदम नंगा खड़ा हुआ था। उसकी तौंद निकली हुयी थी। उसके नीचे काला लण्ड जो थोड़ा छोटा था एक दम तना हुआ था। उसको न जाने कैसे मुगालता हो गया था कि मैं अपने अच्छे खासे पति को छोड़ कर उसके इस लण्ड पर रीझ जाउॅगी। मैं वहॉ से भागी तो नीचे आ कर ही सॉस ली।मेरा सीना धुक धुक कर रहा था। शाम को मैने अनिल से सब कुछ कह सुनाया। वह क्रोध से पागल हो गये। मैने उनको बहुत रोका पर सीधे ऊपर जा कर उन्होने राजन को जा पकड़ा “मैने तुम्हें शरीफ समझ कर घर का समझा पर तू तो इतना नीच है। तेरी हिम्मत कैसे हुयी”। गलती मानने की जगह राजन हाथापाई और ऐसी गाली गलौच पर उतर आया जो हम लोग सोच भी नहीं सकते। अनिल ने कहा “तू मेरा मकान खाली कर दे”। राजन ने बुरा सा मुॅह बना कर के कहा “जा जा बड़ा मकान खाली कराने बाला आया है। करा के तो देख। मैं तो यहीं रहूॅगा. देखता हूॅ कौन करा सकता है मकान खाली”। उसकी धमकी सच्ची निकली। वह किराया समय पर भेज देता था। मकान खाली कराने का कोई जरिया नहीं था। राजन की हरकतें भी बढ गयीं थीं। ऊपर सुखाने डाली हुयी मेरी पैण्टी गायब हो जाती। एक दिन गायब हुयी पैण्टी तार पर मिली।उसने पैण्टैी को अपने लण्ड पर रगड़ कर के पैण्टी को ही मेरी चूत समझ के चोद दिया था। पैण्टी के ऊपर ठीक चूत के सामने जहॉ पर मेरी चूत के रिसने दाग पड़ गया उसका वीर्य सूख गया था। मैने पैण्टी को फेंक दिया। अनिल को नहीं बतलाया नहीं तो खून खराबा हो जाता। अब मैं बहुत डर गयी थी। ऊपर जाती ही नहीं थी। अनिल तो देर से आते थे। जब वह घर में होता था तो मैं कमरे से बाहर नहीं निकलती थी। मैं अपने मकान में ही कैद हो गयी थी। हम लोग बहुत परेशान थे खासकर मैं। किसी तरह मकान खाली कराने में जुड़े थे। सब तरह की तरकीबें सोचने पर एक हल निकला। मेरे ननदोई ने अपनी पोजीशन का फायदा उठा कर राजन का ट्रान्सफर गौहाठी करा दिया। उसको मालूम हो गया कि इस्के पीछे किसका हाथ है। राजन ने बहुत हाथ पैर मारे पर ऊपर से जोर होने के कारण अपना ट्रान्सफर न रूकबा पाया। आखिर उसको जाना पड़ा और हम ने चैन की सॉस ली। उसके बाद हम लोगों ने यूनिट किराये पर नहीं उठायी। कई महीने वह हिस्सा खाली पड़ा रहा। अनिल के दोस्त ने सुझाव दिया कि मल्टीनेशनल कम्पनी को किराये पर दो और लीज लिखबालो । अनिल के मन में लोभ है। उसने एक बड़ी अमेरिकन कम्पनी को अच्छे किराये पर उठा दिया। किसी के आने के पहले कम्पनी ने ऊपर के हिस्से की काया पलट कर दी। दोनों कमरों में में एयर कंडीशनर लग गये। बथरूम में बड़ा सा गीजर लग गया। कार्पेट डाल दिये। पर्दे टॅग गये। सोफा बैड टेबल सब नया फर्नीचर जम गया। और एक दिन उनका आई टी मैनेजर इम्पोर्टिड एयरकंडीशन कार में आ गया। मैं सकते में आ गयी। यह भी अकेला अविवाहित नौजवान था। नाम था सुकान्त अग्रवाल। देखने में सुदर्शन था। उसने भी आते ही सब से पहले स्वीटी से दोस्ती की। उसको इतनी बड़ी चाकलेट दी जो उसने पहले कभी नहीं देखी थी। वह खुश हो गयी। मुझे अपनेपन से भाभी पुकारा। मैं कुढ़ गयी। मुझे किसी अजनबी से भाभी बुलाये जाने से चिढ हो गयी थी। मैं उसे बढाबा नहीं देना चाहती थी। सुकान्त भी अपने काम से काम रखने लगा। जब अनिल सामने पड़ जाता था तो ‘भाई साहब नमस्ते” कर लेता था। मुझ से बात नहीं करता था। हॉ स्वीटी से उसकी अच्छी पट रही थी। सुकान्त की जुबानी कम्पनी ने जो मकान दिया वह बहुत अच्छा था। नीचे मकान मालिक का छोटा सा परिवार रहता था। वह सम्भ्रान्त सलीेके बाले लोग थे। पति पत्नि और चार पॉच साल की बच्ची स्वीटी। पति अनिल का बहुत अच्छा व्यक्तित्व था और बहुत अच्छी पोजीशन। पत्नि शशि गजब की खूबसूरत थी। लम्बी सॉचे में ढली बनाबट। एक बच्ची के बाबजूद भी उसकी फिगर में कोई फर्क नहीं आया था। नाजुक सा चेहरा एक कमसिन लड़की की तरह लगता था। अंग पूरे खिल गये थे। सीने के उभार एकदम गोल और उठे हुये। नितम्ब आधा गोले की आकार के सुडौल। आगे से भरी भरी रानेों पर साड़ी सीधी तनी हुयी उसके ग्रेस को बढा देती थी। चेहरे से तो वह खूबसूरत थी ही। सैक्स पाकर शरीर भी मादक हो गया था। जहॉ जहॉ ंमॉस होना चाहिये था भर गया था। वह मुझे बिल्कुल अपनी बड़ी भाभी की तरह लगी। और स्वीटी तो बाकई स्वीटी थी। अपनी मॉ की तरह खूबसूरत चेहरा था। पर उसका और उसके पति का व्यवहार बहुत ही ठंडा लगा। बस स्वीटी ही को खुशी हुयी। मेरे भाभी अभिवादन का भी शशि ने कोई जवाब नहीं दिया।
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घर के औरतों की कामुक वासना - by Dani Daniels - 02-02-2021, 11:36 PM



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