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गाँव की डॉक्टर साहिबा ( पुरी कहनी )
#94
सुलेमान के जाने के बाद काव्या तुरंत झोपड़ी का टूटा गेट बन्द करती है और खुद को शान्त करने की कोशिश करती है काव्या भी कहीं ना कहीं अंदर से काफी गर्म हो चुकी थी सुलेमान का लंड से बना तंबु देख कर पर कुछ कर नहीं पा रही थी. उसको सुलेमान के सामने अपनी हवस जो छुपानी थी. जो सुलेमान ने उसके अन्दर जगाया था. और काव्या को अपनी इज़्ज़त भी बचानी थी.

पर अब काव्या सोचती है कि सुलेमान का डिक ( लौंडा ) कितना बड़ा होगा उसके पति रमण से.

काव्या अपने मन में ... नहीं नहीं काव्या यह सब क्या सोच रही है रमण सबसे बेस्ट आदमी है इस दुनिया मे मेरा पति जो है. पर अन्दर ही अन्दर पर यार देख ना उस सुलेमान का लौंडा कितना बड़ा है. और बार बार खडा हो जाता है मैं कल से देख रही हूँ. लगता है सुलेमान जी को मुझमे कुछ ज्यादा ही रुचि है. 

अब यही सब सोचते हुए काव्या ने अपनी एक ऊँगली अपनी चूत में गुसा दी और धीरे धीरे उसे अन्दर बाहर करने लगी | धीरे धीरे उसके शरीर में मस्ती चढ़ने लगी उसके मुह से सिसकियाँ निकलने लगी | उसने मन में सुलेमान के लंड के बारे में सोच कर एक और ऊँगली अपनी चूत में घुसा ली | अब उसकी चूत भी हलकी हलकी पनिया गयी थी काव्या के मन में अब सुलेमान का लंड उसकी चूत में घुस चुका था और उसकी अन्दर बाहर होती उंगलियों की जगह अब सुलेमान का लंड उसकी चुदाई कर रहा था | काव्या किसी और ही दुनिया में खो चुकी थी और अपनी उंगलियों को और जोर से अपनी चूत में अंदर बाहर कर रही थी | धीरे धीरे काव्या के शरीर में तरंगे उठने लगी और थोड़ी ही देर में काव्या थोड़ी सी झड गयी | आज बहुत दिन बाद काव्या की चूत ने थोड़ा सा पानी छोड़ा था पर अब उसने ठान लिया था की वो अब उंगलियों की जगह सुलेमान का लंड अपनी चूत में लेगी. भले ही वो शादी शुदा है तो क्या हुआ....! पर रमण ने तो कभी मुझको कभी सन्तुष्ट नहीं किया. हमेशा काम काम में लगे रहते है मैं भी एक डॉक्टर हू मुझको भी बहुत काम होता है पर मैं रमण जैसे काम काम नहीं करती रहती. मुझको भी अपने निर्णय लेने का पूरा हक है. काव्या के मन में अब यहीं सब चल रहा था. और वेसे भी किसी को कहा कुछ पता चलने वाला है काव्या खुद से बात करते हुए. और इधर सुलेमान की रात खाट पे उलथते पलथते बित रही थी | वो सोच रहा था कि कब में अन्दर जाऊँगा वापस और डॉक्टरीया की चुदाई करेगा. सुलेमान का गर्मी और उमस से बुरा हाल हो चुका था | सुलेमान ने अपनी लूँगी उतार दी और लंगोट में ही बिस्तर पे पसर गया | थोड़ी ही देर में उसे नींद आ गयी |
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RE: गाँव की डॉक्टर साहिबा ( पुरी कहनी ) - by THANOS RAJA - 31-01-2021, 04:25 PM



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