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गाँव की डॉक्टर साहिबा ( पुरी कहनी )
#84
अब रिक्शा आगे बढ़ रहा था. सत्तू को काव्या से बात करने की काफी इच्छा हो रही थी पर वो सुलेमान के डर से कुछ बोल नहीं पा रहा था. दरसल सत्तू को भी काव्या को चोदना था पर अब वो समय जा चुका था. सत्तू को कहीं ना कहीं सुलेमान से जलन और ईर्ष्या हो रही थी. अब रिक्शा एक पुरानी सी झोपड़ी के पास आकर रुकता है. झोपड़ी के आसपास भी टूटी फूटी झोपड़ियां ही थी. काव्या को वो जगह देख कर पता चल गया था कि यह कोई गरीबों की बस्ती है. फिर काव्या रिक्शा से उतरती है और खड़ी हो जाती है.....

सत्तू - क्या हुआ मैडम आप अन्दर क्यों नहीं जा रही है.

काव्या - तुम भी चलो साथ मे..... मैं जल्दी से सलमा को देख लेती हूं और इलाज कर देती हूं फिर तुम मुझको जल्दी से वापस हवेली छोड़ देना. कहीं दादी जी मेरे कमरे में ना आ जाये.

सत्तू - हाँ मैडम जी आप सही कह रही है पर अभी मुझको मेरे रिक्शा में तेल डलवाने जाना है. क्या करे मैडम जी हम ठहरे गरीब रिक्शा वाला. हमारे पास एक ही बारी में बहुत तेल डलवाने का रुपया होता नहीं है इसलिये हम थोड़ा थोड़ा तेल भरमाते है. पर आप कोई नहीं अन्दर जाइए हम अभी आधे घण्टे में आता हूं.

अब काव्या काफी डर भी लग रहा था कि ये सत्तू कहा जा रहा है मुझको वापस हवेली जाना है किसी ने मेरे कमरे में आकर देख लिया कि मैं नहीं हु और रणधीर अंकल को पता चल गया तो वो काफी नाराज होंगे.

पर अब काव्या कर भी क्या सकती थी उसने कहा ठीक है तुम तेल भरवा कर वापस जल्दी से आ जाओ. और अब सत्तू वहां से जा चुका था. काव्या को थोड़ा अजीब लग रहा था कि सुलेमान जी ना ही लेने आए और अब अपने घर से बाहर आ रहे हें मुझको अन्दर बुलाने. लगता है मुझको ही जाना पड़ेगा अन्दर कोई बात नहीं. शायद हो सकता है सत्तू जो कह रहा था वो सही हो सुलेमान और सलमा के बीच बहस हो रही हो पर यहा बाहर तो कोई आवाज नहीं आ रही चलो अन्दर जाकर ही देख लेते हैं. काव्या अब झोपड़ी के गेट के पास खड़ी थी है और गेट को टक्क यानी हल्का सा बजाती है. पर कोई नहीं आता फिर काव्या देखती है कि कि यह टूटा दरवाजा पहले से ही खुला हुआ है फिर वो अन्दर जाती है. अन्दर जाते ही वो देखती है कि सामने फटी लूँगी यानी धोती में सुलेमान बैठा हुआ था अपने सर पर हाथ रख कर. जैसे उसको अभी बहुत बड़ा सदमा लगा हो.

वेसे आपको बता दे कि सुलेमान को कोई सदमा नहीं लगा था यह तो सब उसकी चाल थी.

अब सुलेमान जैसे ही काव्या को देखता है वह अपने रोने जैसे मुह बनाता है.

काव्या - सुलेमान जी आप रो क्यों रहे है और सलमा कहा है......?

सुलेमान - काव्या क्या बताऊँ तेरे को वो मुझसे लड झगड़ कर कहीं चली गयी शायद अपने मायके ही गयी होगी इसलिये मैं रो रहा हू.

काव्या को यह सुन कर काफी अजीब और बेकार महसूस हो रहा होता है कि सुलेमान जैसा आदमी अब उसको उसके नाम से बुला रहा है. अभी तक तो सुलेमान मैडम जी और डॉक्टर साहिबा करके ही बुला रहा था. हो सकता है सलमा के जाने के कारण गुस्से और सदमे में होंगे इसलिये बोल रहे होंगे. पर अब काव्या भी थोड़ी गुस्से में आती है और सुलेमान से बोलती है......

काव्या - सुलेमान जी जब आपको पता था कि सलमा जा चुकी है तो आपने सत्तू जी को क्यों भेजा रिक्शा ले कर. अब मेरा इतना रिस्क लेकर आने का क्या फायदा.......?

इधर सुलेमान तो अपना नाटक जारी रखते हुए काव्या को ऊपर से लेकर नीचे तक निहार रहा था. बस उसका मजा किरकिरा वो कला जैकेट कर रहा था जो काव्या ने पहन रखा था कैसे भी करके सुलेमान को वो जैकेट निकलवाना था..

काव्या - बोलिए सुलेमान जी क्या फायदा हुआ. अब आप जल्दी से सत्तू जी को कॉल लगाइए और उनको जल्दी से आने का बोले. जल्दी कीजिये..

इधर सुलेमान को इस बात की बिलकुल आशा नहीं थी कि काव्या ऐसे रिएक्ट करेगी. सुलेमान को तो लग रहा था कि काव्या उसको सम्मान देगी सलमा को वापस लाने की बात करेगी पर इधर तो कुछ और ही हो गया काव्या को तो बस वापस ही जाना है कुछ करना पड़ेगा.

सुलेमान - काव्या जी आप यह क्या बोल रही है मेरी बेगम चली गयी है उसका कुछ नहीं आप उल्टा मुझको ही डांट रही हो. और सत्तू मुझको बिना पूछे आपको लेने आ गया था और जब तक आप आयी तब तक सलमा जा चुकी थी इसमे मैं क्या करता.

अब काव्या को भी लगता है कि उसने थोड़ा ज्यादा ही तेज बोल दिया. पर काव्या की भी यहा मजबूरी थी उसको जल्द से जल्द हवेली जाना था.

काव्या - ठीक है सुलेमान जी मैं आपकी बात समझ गयी पर आप भी मेरी मजबूरी समझिये मुझको वापस हवेली जाना है. जल्दी से आप कॉल लगाइए.

सुलेमान - काव्या जी आप पहली बार मेरे इस छोटी झोपड़ी में आयी है थोड़ी देर तो बैठिए अगर आपकी शान को इससे कोई फर्क़ नहीं पड़ता हो तो. मैं कुछ खाने को लेकर आता हूं आपके लिये.

काव्या - सुलेमान जी आप मेरी बात क्यों नहीं समझ रहे मुझको जाना होगा कल रणधीर अंकल भी आ रहे है.

इधर अब सुलेमान को काव्या की बात से कोई ज्यादा फर्क़ नहीं पढ़ रहा था वो तो बस अपने खेल में लगा हुआ था उसको केसे भी करके काव्या को आज रोकना था. वो अपने हाथ में आयी इस हुस्न की परी को छोड़ नहीं सकता था किसी भी कीमत पर. भले ही रणधीर जैसा खतरनाक आदमी भी बीच में क्यों ना आ जाये.
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RE: गाँव की डॉक्टर साहिबा ( पुरी कहनी ) - by THANOS RAJA - 29-01-2021, 01:41 PM



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