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गाँव की डॉक्टर साहिबा ( पुरी कहनी )
#80
अब काव्या सीधे हवेली के अन्दर जाती है. दादी को मैं आ गयी बोल कर सीधा अपने कमरे में जाती है और कमरा अन्दर से बन्द कर देती है काव्या का दिल काफी तेजी से धधक रहा था. उसको कुछ समझ नहीं आ रहा था कि आगे क्या करे वो. बहुत सारे सवालों के जवाब को खोजने का प्रयास कर रही थी. आज रिक्शा का सारा सफर उसको बहुत भारी सा लग रहा था. पर उसको सुमन से मिलने की खुशी भी हो रही थी. इन्हीं सभी सोच के बीच काव्या को काफी दुःख भी होता है कि कैसे वो सुलेमान को देख कर बहक गयी थी. सुलेमान की गंदी हरकतों से उसको भी मजा आ रहा था. वो कबसे ऐसी होने लगी. उसकी चुत आज इतनी गरम कैसे हो गयी. अब काव्या को थोड़ी थकान भी महसूस हो रही थी. काव्या अपने कपड़े बदल कर एक टी शर्ट और केपरी पहन कर जैसे ही बेड पर जाती है थोड़ी देर आराम करने वेसे ही उसके रूम के दरवाजे पर कोई खट खट करता है. काव्या तुरन्त खड़ी होकर गेट खोलती है. उसके सामने नजमा और रफीक दोनों खड़े थे. नजमा के चेहरे पर हल्का गुस्सा दिख रहा था और रफीक तो काव्या को बस एक टूक देख रहा था.

नजमा - मैडम मैं अन्दर आ सकती है क्या...?

नजमा की बोली थोड़ी कठोर लग रही थी.

काव्या - हाँ नजमा ताई आओ अन्दर.

नजमा और रफीक दोनों अन्दर आते है. रफीक की तो आंखे ही फटी की फटी रह जाती है काव्या को देख कर. रफीक ने अपनी पूरी जिन्दगी में कभी किसी लड़की या औरत को टी शर्ट में और इतने छोटे कपड़ों में नहीं देखा था. और इधर नजमा का भी यही हाल था उसने भी कभी किसी औरत या लड़की को इतने छोटे कपड़ों में नहीं देखा था. टी शर्ट के अन्दर काव्या के निप्पल के बीच का क्लीवेज साफ़ दिख रहा था.

नजमा - मैडम आप तो कमाल ही करती हो मैंने बोला था मैं दस मिनट में आ रही हूँ फिर भी आप कहीं चली गयी.

काव्या - क्या बोल रही हो नजमा मैं वहीं तो थी तुमने शायद ध्यान से नहीं देखा होगा.

नजमा - कहा थी आप मैं आयी थी वापस पर आप नहीं दिखी.

काव्या - मैं वहीं तो थी सुमन के घर पर.

सुमन का नाम सुनते ही जैसे नजमा को थोड़ा गुस्सा सा आ जाता है अब नजमा को लगता है ये सुमन साली शहर की कुतिया ने मेरे बारे कहीं सब तो नहीं बता दिया. ये सुमन मुझको लगता है कहीं का नहीं छोड़ेगी. अब नजमा ज्यादा काव्या को बोल भी नहीं सकती थी क्योंकि वो है तो एक नौकरानी ही. और नजमा काव्या से शाम के खाने के बारे में पूछती है और दूसरी फालतू बातें करती है जिसमें काव्या कोई इंटरेस्ट भी नहीं आ रहा था पर इधर काव्या नजमा से बात करते करते रफीक को देखती है. रफीक की निगाहें अभी तक काव्या के क्लीवेज को देखने में ही लगी हुई थी. रफीक को क्या बात चल रही है इसका कुछ ध्यान नहीं था पर अब रफीक के यू देखते हुए काव्या कभी काफी मजा आ रहा था. अब काव्या थोड़ा टी शर्ट को हल्का सा नीचे करते हुए अपना निप्पल के क्लीवेज को और थोड़ा अच्छे से दिखाती है रफीक को. यह शायद सुलेमान के द्वारा करी हुई इन्हीं हरकतों का नतीज़ा था कि काव्या इतनी बोल्ड और गरम हो रही थी. रफीक तो अभी तक अपनी आँखों से काव्या को कहीं बार नंगा कर चुका था पर वो ऐसा कुछ असलियत मैं नहीं कर सकता था. अब काव्या अपने दोनों हाथो को अपने निप्पल पर रख देती है जिससे रफीक को अब होश आता है. रफीक फिर काव्या को देखता है और काव्या भी रफीक की आँखों में आंखे डाल कर एक स्टाइल में आँख मार देती है और उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आ जाती है. इधर तो रफीक को यकीन ही नहीं हो रहा था कि अभी उसने क्या देख लिया. काव्या ने उसको भाव दिया. अब तो मानो रफीक अपने सपनों में काव्या को अपनी बेगम बना चुका था. फिर काव्या काव्या नजमा को बोलती है ठीक है नजमा ताई तुम जाओ. हम बाकी बात शाम को करते है. मुझको अभी आराम करना है. और नजमा रफीक को लेकर जाने लगती है पर रफीक को तो काव्या के कमरे से जाना ही नहीं था. पर उसको जाना पड़ा.

अब काव्या बिना कुछ सोचे सो जाती है और एक अच्छी नीन्द लेकर सीधा शाम को उठती है. उठते ही काव्या को आराम करने से पहले उसने क्या गलती करी इसका एहसास होता है उसने रफीक के साथ ये क्या किया. सुलेमान जी यह आपने क्या करवा दिया. अगर रफीक ने कही कुछ बोल दिया तो....? कहीं उसने कुछ गलत समझ लिया तो....? क्या सोचेगा मेरे बारे में. मैं एक शादी शुदा औरत हु. एक अच्छे घर की बहू हु. नहीं नहीं रफीक के साथ बात करके यह मज़ाक को क्लीन करना पड़ेगा.

अब काव्या एक बाथ लेती है और फ्रेश होकर बाहर आती है वह अपने दिमाग को शान्त रखती है. और अब नीचे दादी के साथ डिनर के लिये बैठती है. काव्या को हर बार की तरह इस बार भी नजमा के हाथ का खाना बिलकुल अच्छा नहीं लगा. पर उसने बिना कुछ बोले खाने लगी और सोचने लगी कहा सुबह का सुमन के हाथ का बना खाना था और कहा ये नजमा के हाथ बेस्वाद और बकवास खाना. फिर काव्या दादी को नजमा के सामने सुमन के बारे में सब बताती है.

दादी - अच्छा तुम्हारी दोस्ती सुमन से हुई है वो पंडित जी की बहू.

काव्या - हाँ दादी वहीं.

दादी - हाँ बेटा वो बहुत अच्छी लड़की है. उसका गाँव में काफी नाम है गाँव की महिलाओं के बीच. सुमन भी तुम्हारी तरह ही शहर की ही है.

एक कोने में नजमा खड़ी हो कर यह सब सुन रही थी उसको सुमन की तारीफ बिलकुल अच्छी नहीं लग रही थी. अब काव्या नजमा को सुनाने के लिये दादी से बोलती है

काव्या - हाँ दादी आपको पता है सुमन खाना काफी टेस्टी बनती है उसके हाथ का खाना किसी भी फाइव स्टार होटल के खाने से कम नहीं है.

दादी - हाँ बेटी सही कहा, मैंने तो टेस्टी और स्वादिष्ट खाना खाये सालो हो गये है.

दादी यह सब नजमा की और देखते हुए बोलती है नजमा समझ जाती है ये सारा तंज उसी पर कसा जा रहा है. पर नजमा कुछ बोल नहीं पाती. ऐसी ही कुछ बातों के साथ काव्या का डिनर खत्म हो जाता है और वो दादी को इंग्लिश में शुभ रात्री बोल कर अपने कमरे में चली जाती है. काव्या का यू जल्दी से कमरे में जाना नजमा को थोड़ा अजीब लगता है पर वो अब रसोई की साफ़ सफाई में लग जाती है.

अब जैसे जैसे समय जा रहा था वेसे वेसे काव्या की भी सांसे तेज हो रही थी वो उसको पता नहीं चल रहा था कि अब आगे क्या करना चाहिये. उसको सलमा के इलाज के लिये इस समय जाना चाहिये या नहीं. काव्या का मन तो बिलकुल नहीं हो रहा था जाने का सुलेमान की बातों से... पर वो एक डॉक्टर भी थी उसको किसी भी हालत में किसी भी मरीज का खयाल रखना था अगर वो बीमार है तो.

इन्हीं सब विचारो के साथ काव्या निर्णय लेती है कि वह जायेगी और आधे घण्टे में वापस किसी भी हालत में आ जायेगी. पर अब समस्या यह थी कि वो कपड़े क्या पहने साड़ी पहन ले या सलवार सूट. पर काव्या के अन्दर कहीं ना कहीं कुछ आग तो थी. उसको भी आज सुलेमान की हरकतों से मजा आ रहा था. इसलिये काव्या भी एक सेक्सी सी काले और सफेद रंग की साड़ी पहन लेती है और साथ में बिना आस्तीन का ब्लाउज जिसमें काव्या के गोरे हाथ और सेक्सी आकृति वालीं कमर काफी अच्छे से दिख रही थी. पर काव्या ने खुद को तैयार करने के बाद एक जैकेट पहन लिया काले कलर का. जिसमें उसने अन्दर क्या पहन रखा किसी को नहीं दिखे. काव्या अब तैयार हो चुकी थी एक साहस और अन्दर एक डर के साथ.

अब घड़ी में 9 बज चुके थे यह गाँव का वह समय था जब पूरा गाँव सो गया था हवेली में भी सब सो गये थे. गाँव में लोग जल्दी सो जाते है. काव्या अब दबे पाँव हवेली के पीछे वाले गेट से बाहर निकलती है और जैसा कि उसने सोचा था वैसा ही हुआ उसके सामने हवेली से थोड़ा दूर सत्तू अपना रिक्शा ले कर खड़ा था. वो काव्या का इन्तेज़ार ही कर रहा था. काव्या को आता देख तो जैसे सत्तू के मुह से पानी ही आ गया. पर वो कुछ कर नहीं सकता था.

अब काव्या आकर सीधा रिक्शा में बैठ जाती है और सत्तू रिक्शा शुरू कर सुलेमान की झोपड़ी की तरफ ले लेता है. जैसे ही रिक्शा चलता है वेसे ही काव्या सत्तू से पूछती है

काव्या - सत्तू जी ये सुलेमान जी नहीं आये क्या उन्होंने तो बोला था कि वो आयेंगे क्या हुआ.....?

सत्तू - मैडम जी वो सुलेमान मिया और सलमा के बीच काफी बड़ा झगड़ा हो रहा है इसलिये सुलेमान भाई आ नहीं पाये.

काव्या को ये सुनते काफी अजीब लगता है कि सलमा और सुलेमान के बीच झगड़ा हो रहा है. पर मुझको जहां तक लगता है कि सलमा की इतनी औकात नहीं है और ना ही इतनी हिम्मत है कि को वो सुलेमान जैसे आदमी से लड़ या झगड़ा कर पाये........? वो कुछ बोल तो पाती है नहीं सुलेमान के सामने......? क्या पता अब वहा जाकर ही पता चलेगा......?
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RE: गाँव की डॉक्टर साहिबा ( पुरी कहनी ) - by THANOS RAJA - 28-01-2021, 12:42 PM



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