28-01-2021, 10:01 AM
मेरा नाम आकांक्षा है।
मेरी कहानी मेरी कॉलेज लाईफ से शुरू हो जाती है। मेरा Boy Friend जिसका नाम रितेश है, जो बाद में मेरे जीवन का हमसफर भी बना। शुरू शुरू में जब हमने कॉलेज ज्वाईन किया तो केवल हम दोनों क्लास मेट ही थे। वो पढ़ने में भी बहुत अच्छा था, इसलिये मेरी उससे दोस्ती भी हो गई। हमने पढ़ाई में ही तीन समेस्टर निकाल दिये। वो मेरी बहुत हेल्प करता, लेकिन कॉलेज टाईम में ही... न तो उसने कभी मेरे घर आने की कोशिश की और न ही उसने मुझे अपने घर बुलाया। हाँ... उसमें एक अजीब आदत थी, वो यह कि जब कभी भी मैं उसके पास किसी प्रॉब्लम को लेकर जाती तो वो मेरी प्रॉब्लम सोल्व तो करता लेकिन बीच-बीच में मेरे उरोजों में झाँकने की कोशिश जरूर करता और मेरे उरोजों की गहराइयों को मापने की कोशिश करता। शुरू में तो मुझे बड़ा अजीब से लगता पर बाद में उसकी इस हरकत का असर होना ही बंद हो गया।
हम दोनों लोकल ही थे। अरे हाँ... मैं तो अपना पूरा परिचय देना तो भूल ही गई। मेरा नाम आकांक्षा है, मैं लखनऊ की रहने वाली हूँ, पाँच फुट पाँच इंच लम्बी हूँ। मेरे यौवन के दिनों का फिगर 28-30-28 था। न तो मेरी छाती ही ठीक से विकसित हुई थी और न ही मेरे शरीर का दूसरा अंग। मैं बहुत दुबली पतली थी फिर भी कॉलेज के लड़के मुझे लाईन मारने से नहीं चूकते थे। कामेन्ट तो ये होते थे कि एक बार मिल जाये तो इसकी चूची दबा-दबा कर बड़ी कर दूँ तो ये और मस्त माल लगेगी। शुरू में मुझे बहुत बुरा लगता था और रोना भी आता था। लेकिन धीरे-धीरे आदत होती गई और कभी-कभी लड़को की कमेन्ट सुनकर जब मैं घर पहुँचती थी तो शीशे के सामने नंगी खड़ी हो जाती थी और अपने छोटे छोटे लटके हुए अपने उरोजों को निहारती और अपने हाथों से दबाने की कोशिश करती। खैर अब मैं तो शादीशुदा हूँ और मेरे उरोज भी काफी बड़े, सुडौल और आकर्षक हो गये हैं।
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मेरी कहानी मेरी कॉलेज लाईफ से शुरू हो जाती है। मेरा Boy Friend जिसका नाम रितेश है, जो बाद में मेरे जीवन का हमसफर भी बना। शुरू शुरू में जब हमने कॉलेज ज्वाईन किया तो केवल हम दोनों क्लास मेट ही थे। वो पढ़ने में भी बहुत अच्छा था, इसलिये मेरी उससे दोस्ती भी हो गई। हमने पढ़ाई में ही तीन समेस्टर निकाल दिये। वो मेरी बहुत हेल्प करता, लेकिन कॉलेज टाईम में ही... न तो उसने कभी मेरे घर आने की कोशिश की और न ही उसने मुझे अपने घर बुलाया। हाँ... उसमें एक अजीब आदत थी, वो यह कि जब कभी भी मैं उसके पास किसी प्रॉब्लम को लेकर जाती तो वो मेरी प्रॉब्लम सोल्व तो करता लेकिन बीच-बीच में मेरे उरोजों में झाँकने की कोशिश जरूर करता और मेरे उरोजों की गहराइयों को मापने की कोशिश करता। शुरू में तो मुझे बड़ा अजीब से लगता पर बाद में उसकी इस हरकत का असर होना ही बंद हो गया।
हम दोनों लोकल ही थे। अरे हाँ... मैं तो अपना पूरा परिचय देना तो भूल ही गई। मेरा नाम आकांक्षा है, मैं लखनऊ की रहने वाली हूँ, पाँच फुट पाँच इंच लम्बी हूँ। मेरे यौवन के दिनों का फिगर 28-30-28 था। न तो मेरी छाती ही ठीक से विकसित हुई थी और न ही मेरे शरीर का दूसरा अंग। मैं बहुत दुबली पतली थी फिर भी कॉलेज के लड़के मुझे लाईन मारने से नहीं चूकते थे। कामेन्ट तो ये होते थे कि एक बार मिल जाये तो इसकी चूची दबा-दबा कर बड़ी कर दूँ तो ये और मस्त माल लगेगी। शुरू में मुझे बहुत बुरा लगता था और रोना भी आता था। लेकिन धीरे-धीरे आदत होती गई और कभी-कभी लड़को की कमेन्ट सुनकर जब मैं घर पहुँचती थी तो शीशे के सामने नंगी खड़ी हो जाती थी और अपने छोटे छोटे लटके हुए अपने उरोजों को निहारती और अपने हाथों से दबाने की कोशिश करती। खैर अब मैं तो शादीशुदा हूँ और मेरे उरोज भी काफी बड़े, सुडौल और आकर्षक हो गये हैं।
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