26-01-2021, 06:25 PM
अब काव्या और नजमा दोनों आगे बढ़ते है पक्के रास्ते से. कुछ घर आगे निकल कर काव्या को कुछ खाना पकने की सुगन्ध आती है काव्या को वो सुगंध इतनी अच्छी लगती है कि काव्या वहीं खडी हो जाती है और देखने लगती है कि यह इतना सुगंधित और खुशबु दार खाना कोन पका रहा है यह सुगंध तो मैंने जब लास्ट टाइम अपने पति के साथ 5 स्टार होटल गयी थी वहां यह सैम खुशबु आयी थीं खाने में से. पर यहां गाँव में कोन है...?
फिर अचानक नजमा को कुछ याद आता है और उसके हाथ पैर फूलने लगते है और वो काव्या से बोलती है मैडम मुझको कुछ जरूरी काम आ गया है यही पास में. मैं बस ये दस मिनट में आती हू काम निपटा कर आप इधर ही पैड के नीचे खड़ी रखियेगा कहीं जाएगा नहीं. फिर वो वहा से चली जाती है काव्या को उधर ही छोड़ कर.
फिर जिस घर से खाने की स्वादिष्ट सुगंध आ रही थी उसी घर की बालकनी मै काव्या एक औरत को खडी हुई देखती है कुछ सेकंड देखने के बाद फिर वो औरत भी देखती है काव्या को और कुछ देर बाद वो अपनी बालकनी से नीचे उतर कर घर के बाहर गेट के पास आती है और बोलती है आप कोन हो मैडम पहले तो कभी नहीं देखा आपको इधर.
काव्या - हा, मैं कल ही आयी हूं गाँव में. मेरी दादी का घर है इधर. पर आप कोन और ये घर पर खाना आप बना रही थी क्या.
औरत - मेरा नाम सुमन मिश्रा है. और ये मेरा ही घर है और ऑफकोर्स यह मेरा घर है तो लंच भी में ही बना रही थी. वेसे तेरा क्या नाम है...?
चलो आपको सुमन के बारे में बता देते है सुमन मिश्रा. इस गाँव के सबसे बड़े किसान के साथ साथ गांव के पंडित जी की इकलौती बहू. सुमन मिश्रा की उमर 31 साल है. रंग गौरा गाँव के गौरा पन के हिसाब से. सुमन को इस गाँव की हीरोइन भी कह दोगे तो भी कोई प्रॉब्लम नही होगी. सुमन काफी सेक्सी दिखती है. गाँव के कितने नौजवान और बूढे उसके लिये पागल है पर सुमन किसी को भाव नहीं देती है. गाँव की सभी औरते और लड़किया सुमन की बात मानती है. सुमन की काफी इज़्ज़त और सम्मान है गाँव की औरतों में. और इस सबके अलावा सुमन जैसा स्वादिष्ट खाना कोई नहीं पकाता पूरे गाँव में. सुमन के पति का नाम दीपक मिश्रा हैं. दीपक अपने पिताजी के खेतों को संभालता है और खेतों में ट्रैक्टर चलाता. दीपक इसके साथ साथ गाँव में हार्डवेयर की शॉप भी चलाता है जहां पर कभी वो या कभी उसका भाई मोहन बैठता है.
अब यहां समस्या यह है कि सुमन को पता नहीं है कि काव्या कोन है उसने तो बस काव्या को नजमा के साथ देखा इसलिये सुमन काव्या के साथ सीधे मुह बात नहीं कर रही थीं. काव्या को सुमन का यह रूढ़ बर्ताव कुछ अजीब लग रहा था. काव्या को यह समझ ही नहीं आ रहा था की उसने कहा कुछ गलत कर दिया या बोल दिया जो सुमन ऐसे बरताव कर रही है. अब काव्या भी थोड़ा डट कर अपना परिचय देती है .
काव्या - माय सेल्फ काव्या अग्रवाल. और मैं डॉक्टर हु. मैं यहां मेरे दादी और मेरे रणधीर अंकल की पोती हू. इधर हवेली में ही रह रही हूँ. दो दिन से.
रणधीर और हवेली का नाम सुनते ही सुमन के तो मानो होश ही उड़ जाते है उसको अपनी गलती का तुरंत एहसास हो जाता है. सुमन तो कबसे काव्या को नजमा के साथ देख कर शहर की कोई वेश्या समझ रही थी. सुमन को भी थोड़ा अजीब तो लग रहा था कि ऐसी पढ़ी लिखी सुन्दर अच्छे घर की दिखने वालीं औरत नजमा के साथ कैसे हो सकती है. पर अब उसको समझ में आया.
सुमन - सॉरी मैडम, मैंने आपको पहचाना नहीं. आपसे ऐसे ही उल्टे-सीधे तरीके से बोला. वो तो मैंने आपको नजमा के साथ देखा इसलिए.... फिर सुमन खुद को आगे बोलने से रोक देती है.
काव्या - नजमा के साथ देखा क्या...? आप कहना क्या चाहती हो.
अब सुमन समझ जाती है कि शायद काव्या को नजमा के बारे में कुछ भी नहीं पता इसलिये वो ऐसे पूछ रही है और शायद ये सही समय भी नहीं है नजमा के बारे में बात करने का. क्योंकि नजमा किसी भी समय आ सकती है वापस.
सुमन - अरे मैडम वो सब छोड़ो आप अन्दर आओ. आप पहली बार हमारे घर आयी है अन्दर तो आओ.
अब काव्या को कुछ अजीब लगता है कि अचानक सुमन का बरताव इतना बदल कैसे गया.
काव्या - अरे नहीं नहीं वो नजमा अभी आती ही होगी. वो मुझको गाँव गुमा रही है. वो कहा मुझको ढूंढती रहेगी.
सुमन - वो तो बाहर खड़ी रहेगी. उसकी चिन्ता मत करो आप अन्दर आओ.
काव्या - ठीक है, पर एक शर्त पर.....
सुमन - क्या मैडम....
काव्या - तुम मुझको बार बार ये मैडम करके नहीं बुलाएगी तो.
सुमन - तो फिर क्या...?
काव्या - सिर्फ काव्या.
सुमन - अरे नहीं आप तो हमारी मैडम ही है और आप ऊपर से डॉक्टर भी है.
काव्या - मैं कुछ नहीं सुनूँगी, तुम सिर्फ काव्या ही बोलो जस्ट ऐ फ्रेंड. मै यह मैडम शब्द सुन सुन कर थक गयी हू यहां इस गाँव में आकर. वरना मैं अन्दर नहीं आएँगी.
सुमन - ठीक है काव्या. अब तो अन्दर आ जाओ. पर काव्या तुम भी मुझको सिर्फ सुमन ही बुलाना जस्ट ऐ फ्रेंड.
काव्या - ओके
अब काव्या घर के अन्दर आ जाती है इस समय घर में सिर्फ सुमन और उसकी सासु ही थी. काव्या को अन्दर आते देख उसकी सासु को कुछ अच्छा नहीं लगता. पर जब सुमन काव्या के बारे में अपनी सासु माँ को सब कुछ बताती है तो वो भी फिर काव्या को काफी इज़्ज़त देती है और सुमन को कुछ बोल कर वहां से चली जाती है. अब काव्या और सुमन काफी देर तक अलग अलग बाते करते है. फिर सुमन रसोई में जाकर काव्या के लिये उसने जो खाना बनाया था वो ले आती है.
सुमन - काव्या लो टेस्ट करो मेरे हाथ का खाना. ना नहीं बोलना तुम फर्स्ट टाइम् आयी हो मेरे घर पर.
काव्या भी खाने की मन मोहक सुगंध के सामने ना नहीं बोल पाती और खाना टेस्ट कर लेती.
काव्या - सुमन मुझको तो यकीन ही नहीं हो रहा कि ऐसा खाना मुझको गाँव में खाने मिल रहा है ये तो एक दम मैंने फाइव स्टार रेस्टोरेंट में खाया था वैसा है एक दम.
काव्या फिर काफी तारीफ करती है खाने की और राज पूछती है इस स्वाद और जायके का.
सुमन - ऐसा कुछ नहीं है काव्या बस नॉर्मल फूड ही तो है. अगर तुम पूछ ही रही हो तो बता देती हूं मैंने मास्टर्स शेफ का कोर्स कर रखा है. अपनी बी. साइंस की स्टडी के साथ साथ. मेरे पापा के से. शादी से पहले. मैं शादी से पहले शहर में रहती थी. इसलिये बस.
काव्या - क्या बात कर रही हो ये तो वहीं कोर्स है जो सभी बड़ी होटल के खाना पकाने वाले करते है. और तुम इतनी पढ़ी लिखी हो. मुझको तुमारी बातों से लगा ही था.
फिर काव्या और सुमन ऐसे ही बात करती रहती है कभी अपने अपने पति की तो कभी अपनी स्टूडेंट लाइफ की. कभी अपनी सासु की और दोनों काफी अच्छी सहेलियाँ बन जाती हैं. काव्या को तो मानो आज काफी अच्छा लग रहा था. उसको अपना कोई दोस्त मिल गया हो ऐसा लग रहा था. काव्या को तो सुमन को छोड़ कर जाने का मन ही नहीं हो रहा था पर वो दादी के दिये समय से पहले घर पहुंचाना चाहती थी.
फिर दोनों बात करती करती घर के गेट के पास आ जाती है.
काव्या - यार सुमन देख ना ये नजमा आयी भी नहीं पता नहीं कहाँ चली गयी. कितनी लापरवाह लेडि है. और मुझको पूरा गाँव घुमाने कि बात कर रही थी. अब पता नहीं उसका कब तक मुझको उसका इन्तेज़ार करना पड़ेगा.
सुमन - नाम मत ले उसका तू भी बार बार. और वेसे काव्या मै तुझको उससे कहीं ज्यादा अच्छी तरह से गाँव घुमा दूंगी. तू बोलेगी तब. और तुझको उसका इन्तेज़ार करने की कोई जरूरत नहीं है उस पागल गंदी वैश्या की.
काव्या - क्या..........वैश्या.....? क्या मतलब...
सुमन - मेरा मतलब कामवाली की.
काव्या - नहीं नहीं सुमन तू मुझको पूरी बात बता. मुझको जानना है कि नजमा से तू इतना क्यों चिढ़ती है तू क्या मेरी दादी भी बहुत चिढ़ती है. मुझको अभी बता. और वैश्या का क्या मतलब है.....?
सुमन - देख काव्या अभी यह सही जगह नहीं है इन सब बातों के लिये. मेरी सासु माँ ने सुना तो काफी डाटेंगी मुझको. और वेसे भी हम दोनों कल मिलेगी तो बात करेगे ना. गाँव घूमते घूमते. तू टेंशन मत ले. बस तू नजमा से थोड़ा दूर रहना. उसकी बातों में मत आना. और उसके साथ कहीं भी नहीं जाना.
काव्या - यार पर मुझको जानना था. कोई नहीं कल पक्का है ना....?
सुमन - हाँ यार
काव्या - लेकिन अब मैं घर कैसे जाऊँ.
सुमन - इतनी सी बात रुक मैं अपनी स्कूटी से तुझको छोड आती हु. पर मुझको अपनी सासु माँ से पूछना पड़ेगा क्योंकि मुझको भी घर से ज्यादा बाहर जाने की परमिशन नहीं है रुक में पूछ कर और स्कूटी की चाभी लेकर आती हू.
काव्या - अरे कहा परेशान हो रही हो मैं चली जाऊँगी.
सुमन - पागल है क्या गाँव का माहौल तुझको पता नहीं है रुक इधर में आती हू...
तभी घर के गेट के पास एक रिक्शा आ कर रुकता है जिसे देख कर काव्या के पैरों के नीचे से जमीन खिसक जाती है.
आप लोगों ने अनुमान तो लगा ही दिया होगा ये रिक्शा किसका है........?
हाँ यह रिक्शा में और कोई नहीं सत्तू और सुलेमान थे. सत्तू जैसे ही रिक्शा को रोकता है घर के पास वेसे ही सुलेमान रिक्शा में से अपना मुह बाहर निकाल कर बोलता है नमस्ते मैडम पहचाना हमको. हम वहीं जो आपको गाँव लेकर आये थे अपनी रिक्शा में इस सत्तू और हमारी बेगम सलमा के साथ. पहचाना के नाही...
काव्या को मानो एक झटके में कल के दिन की पूरी घटना आँखों के सामने से निकल जाती है.
काव्या - हाँ हाँ आपको पहचान लिया.
काव्या सुमन के सामने अब खुद को काफी बेबस मेहसूस कर रही थी. उसको लग रहा था कि ये सुलेमान सुमन के सामने पता नहीं और क्या क्या बोल देगा. कहीं सुमन कुछ गलत नहीं समझ लें.
सुलेमान - मैडम कहीं जाना है क्या आपको. हम छोड देते है.
तभी सुमन काव्या के पास आती है
सुमन - नहीं नहीं मै काव्या को हवेली छोड दूँगी तुम जाओ.
काव्या और सुमन को एक साथ खड़ी देख कर तो सुलेमान और सत्तू का लंड ही खड़ा हो जाता है उनके पैंट और पाजामे में. सुलेमान का तो मन कर रहा था कि यही अभी के अभी सुमन और काव्या को नंगा करके उनकी साड़ी उतार कर चोदना शुरू कर दें. यही दोनों का बाजा बजा दे. दोनों को चलने लायक भी स्थिति में नहीं छोड़े. पर वो ऐसा कर नहीं सकता था. उसकी इतनी हिम्मत और औकात नहीं थी. सोचता हर कोई करने की हिम्मत और ताकत किसी में नहीं होती.
सत्तू - क्यों मैडम आपको हम पर भरोसा नहीं है क्या. कल के दिन तो आपको इतना दूर से लाकर छोड़ा था आपको हवेली आज क्या हुआ. हमारा काम है रिक्शा चला कर छोड़ना.
अब काव्या भी काफी घबरा गयी थी उसको डर था कि कहीं ये दोनों कल की पूरी घटना को बोलने नहीं बैठ जाये. काव्या सुमन की दोस्ती को बिलकुल नहीं खोना चाहती थी. अब काव्या ने सुमन की और देखा और बोला
काव्या - सुमन तुम इतनी टेंशन मत लो मैं चली जाऊँगी. हवेली यही तो है पास में. वेसे तुम इतना कहा परेशान होगी.
सुमन को तो बिलकुल भी यकीन नहीं हो रहा था कि काव्या क्या बोल रही है और वो इनके साथ जायेगी. पर अब सुमन की भी यह मुसीबत थी कि कोई देख ना ले इन दोनों को यहा उसके और काव्या के साथ. क्योंकि उसके ससुर के आने का समय भी हो गया है पर
सुमन - पर क्यों काव्या.....?
पर क्यों काव्या यह शब्द ही बता रहे थे कि सुमन की बिलकुल भी इच्छा नहीं थी कि काव्या इनके साथ जाये. पर अब काव्या भी सुमन को फटा फट बाय बोल कर रिक्शा में बैठ जाती हैं और सत्तू भी फट से रिक्शा शुरू करके वहां से निकल जाता है.
इधर सुमन अपने मन में घर के अंदर जाते जाते सोचती है कि कल मुझको काव्या को बहुत कुछ बताना पड़ेगा गाँव के बारे में, नजमा और ये दो कलूटे रिक्शा वालो के बारे में. काव्या के लिये यह सब जानना काफी आवश्यक है......
फिर अचानक नजमा को कुछ याद आता है और उसके हाथ पैर फूलने लगते है और वो काव्या से बोलती है मैडम मुझको कुछ जरूरी काम आ गया है यही पास में. मैं बस ये दस मिनट में आती हू काम निपटा कर आप इधर ही पैड के नीचे खड़ी रखियेगा कहीं जाएगा नहीं. फिर वो वहा से चली जाती है काव्या को उधर ही छोड़ कर.
फिर जिस घर से खाने की स्वादिष्ट सुगंध आ रही थी उसी घर की बालकनी मै काव्या एक औरत को खडी हुई देखती है कुछ सेकंड देखने के बाद फिर वो औरत भी देखती है काव्या को और कुछ देर बाद वो अपनी बालकनी से नीचे उतर कर घर के बाहर गेट के पास आती है और बोलती है आप कोन हो मैडम पहले तो कभी नहीं देखा आपको इधर.
काव्या - हा, मैं कल ही आयी हूं गाँव में. मेरी दादी का घर है इधर. पर आप कोन और ये घर पर खाना आप बना रही थी क्या.
औरत - मेरा नाम सुमन मिश्रा है. और ये मेरा ही घर है और ऑफकोर्स यह मेरा घर है तो लंच भी में ही बना रही थी. वेसे तेरा क्या नाम है...?
चलो आपको सुमन के बारे में बता देते है सुमन मिश्रा. इस गाँव के सबसे बड़े किसान के साथ साथ गांव के पंडित जी की इकलौती बहू. सुमन मिश्रा की उमर 31 साल है. रंग गौरा गाँव के गौरा पन के हिसाब से. सुमन को इस गाँव की हीरोइन भी कह दोगे तो भी कोई प्रॉब्लम नही होगी. सुमन काफी सेक्सी दिखती है. गाँव के कितने नौजवान और बूढे उसके लिये पागल है पर सुमन किसी को भाव नहीं देती है. गाँव की सभी औरते और लड़किया सुमन की बात मानती है. सुमन की काफी इज़्ज़त और सम्मान है गाँव की औरतों में. और इस सबके अलावा सुमन जैसा स्वादिष्ट खाना कोई नहीं पकाता पूरे गाँव में. सुमन के पति का नाम दीपक मिश्रा हैं. दीपक अपने पिताजी के खेतों को संभालता है और खेतों में ट्रैक्टर चलाता. दीपक इसके साथ साथ गाँव में हार्डवेयर की शॉप भी चलाता है जहां पर कभी वो या कभी उसका भाई मोहन बैठता है.
अब यहां समस्या यह है कि सुमन को पता नहीं है कि काव्या कोन है उसने तो बस काव्या को नजमा के साथ देखा इसलिये सुमन काव्या के साथ सीधे मुह बात नहीं कर रही थीं. काव्या को सुमन का यह रूढ़ बर्ताव कुछ अजीब लग रहा था. काव्या को यह समझ ही नहीं आ रहा था की उसने कहा कुछ गलत कर दिया या बोल दिया जो सुमन ऐसे बरताव कर रही है. अब काव्या भी थोड़ा डट कर अपना परिचय देती है .
काव्या - माय सेल्फ काव्या अग्रवाल. और मैं डॉक्टर हु. मैं यहां मेरे दादी और मेरे रणधीर अंकल की पोती हू. इधर हवेली में ही रह रही हूँ. दो दिन से.
रणधीर और हवेली का नाम सुनते ही सुमन के तो मानो होश ही उड़ जाते है उसको अपनी गलती का तुरंत एहसास हो जाता है. सुमन तो कबसे काव्या को नजमा के साथ देख कर शहर की कोई वेश्या समझ रही थी. सुमन को भी थोड़ा अजीब तो लग रहा था कि ऐसी पढ़ी लिखी सुन्दर अच्छे घर की दिखने वालीं औरत नजमा के साथ कैसे हो सकती है. पर अब उसको समझ में आया.
सुमन - सॉरी मैडम, मैंने आपको पहचाना नहीं. आपसे ऐसे ही उल्टे-सीधे तरीके से बोला. वो तो मैंने आपको नजमा के साथ देखा इसलिए.... फिर सुमन खुद को आगे बोलने से रोक देती है.
काव्या - नजमा के साथ देखा क्या...? आप कहना क्या चाहती हो.
अब सुमन समझ जाती है कि शायद काव्या को नजमा के बारे में कुछ भी नहीं पता इसलिये वो ऐसे पूछ रही है और शायद ये सही समय भी नहीं है नजमा के बारे में बात करने का. क्योंकि नजमा किसी भी समय आ सकती है वापस.
सुमन - अरे मैडम वो सब छोड़ो आप अन्दर आओ. आप पहली बार हमारे घर आयी है अन्दर तो आओ.
अब काव्या को कुछ अजीब लगता है कि अचानक सुमन का बरताव इतना बदल कैसे गया.
काव्या - अरे नहीं नहीं वो नजमा अभी आती ही होगी. वो मुझको गाँव गुमा रही है. वो कहा मुझको ढूंढती रहेगी.
सुमन - वो तो बाहर खड़ी रहेगी. उसकी चिन्ता मत करो आप अन्दर आओ.
काव्या - ठीक है, पर एक शर्त पर.....
सुमन - क्या मैडम....
काव्या - तुम मुझको बार बार ये मैडम करके नहीं बुलाएगी तो.
सुमन - तो फिर क्या...?
काव्या - सिर्फ काव्या.
सुमन - अरे नहीं आप तो हमारी मैडम ही है और आप ऊपर से डॉक्टर भी है.
काव्या - मैं कुछ नहीं सुनूँगी, तुम सिर्फ काव्या ही बोलो जस्ट ऐ फ्रेंड. मै यह मैडम शब्द सुन सुन कर थक गयी हू यहां इस गाँव में आकर. वरना मैं अन्दर नहीं आएँगी.
सुमन - ठीक है काव्या. अब तो अन्दर आ जाओ. पर काव्या तुम भी मुझको सिर्फ सुमन ही बुलाना जस्ट ऐ फ्रेंड.
काव्या - ओके
अब काव्या घर के अन्दर आ जाती है इस समय घर में सिर्फ सुमन और उसकी सासु ही थी. काव्या को अन्दर आते देख उसकी सासु को कुछ अच्छा नहीं लगता. पर जब सुमन काव्या के बारे में अपनी सासु माँ को सब कुछ बताती है तो वो भी फिर काव्या को काफी इज़्ज़त देती है और सुमन को कुछ बोल कर वहां से चली जाती है. अब काव्या और सुमन काफी देर तक अलग अलग बाते करते है. फिर सुमन रसोई में जाकर काव्या के लिये उसने जो खाना बनाया था वो ले आती है.
सुमन - काव्या लो टेस्ट करो मेरे हाथ का खाना. ना नहीं बोलना तुम फर्स्ट टाइम् आयी हो मेरे घर पर.
काव्या भी खाने की मन मोहक सुगंध के सामने ना नहीं बोल पाती और खाना टेस्ट कर लेती.
काव्या - सुमन मुझको तो यकीन ही नहीं हो रहा कि ऐसा खाना मुझको गाँव में खाने मिल रहा है ये तो एक दम मैंने फाइव स्टार रेस्टोरेंट में खाया था वैसा है एक दम.
काव्या फिर काफी तारीफ करती है खाने की और राज पूछती है इस स्वाद और जायके का.
सुमन - ऐसा कुछ नहीं है काव्या बस नॉर्मल फूड ही तो है. अगर तुम पूछ ही रही हो तो बता देती हूं मैंने मास्टर्स शेफ का कोर्स कर रखा है. अपनी बी. साइंस की स्टडी के साथ साथ. मेरे पापा के से. शादी से पहले. मैं शादी से पहले शहर में रहती थी. इसलिये बस.
काव्या - क्या बात कर रही हो ये तो वहीं कोर्स है जो सभी बड़ी होटल के खाना पकाने वाले करते है. और तुम इतनी पढ़ी लिखी हो. मुझको तुमारी बातों से लगा ही था.
फिर काव्या और सुमन ऐसे ही बात करती रहती है कभी अपने अपने पति की तो कभी अपनी स्टूडेंट लाइफ की. कभी अपनी सासु की और दोनों काफी अच्छी सहेलियाँ बन जाती हैं. काव्या को तो मानो आज काफी अच्छा लग रहा था. उसको अपना कोई दोस्त मिल गया हो ऐसा लग रहा था. काव्या को तो सुमन को छोड़ कर जाने का मन ही नहीं हो रहा था पर वो दादी के दिये समय से पहले घर पहुंचाना चाहती थी.
फिर दोनों बात करती करती घर के गेट के पास आ जाती है.
काव्या - यार सुमन देख ना ये नजमा आयी भी नहीं पता नहीं कहाँ चली गयी. कितनी लापरवाह लेडि है. और मुझको पूरा गाँव घुमाने कि बात कर रही थी. अब पता नहीं उसका कब तक मुझको उसका इन्तेज़ार करना पड़ेगा.
सुमन - नाम मत ले उसका तू भी बार बार. और वेसे काव्या मै तुझको उससे कहीं ज्यादा अच्छी तरह से गाँव घुमा दूंगी. तू बोलेगी तब. और तुझको उसका इन्तेज़ार करने की कोई जरूरत नहीं है उस पागल गंदी वैश्या की.
काव्या - क्या..........वैश्या.....? क्या मतलब...
सुमन - मेरा मतलब कामवाली की.
काव्या - नहीं नहीं सुमन तू मुझको पूरी बात बता. मुझको जानना है कि नजमा से तू इतना क्यों चिढ़ती है तू क्या मेरी दादी भी बहुत चिढ़ती है. मुझको अभी बता. और वैश्या का क्या मतलब है.....?
सुमन - देख काव्या अभी यह सही जगह नहीं है इन सब बातों के लिये. मेरी सासु माँ ने सुना तो काफी डाटेंगी मुझको. और वेसे भी हम दोनों कल मिलेगी तो बात करेगे ना. गाँव घूमते घूमते. तू टेंशन मत ले. बस तू नजमा से थोड़ा दूर रहना. उसकी बातों में मत आना. और उसके साथ कहीं भी नहीं जाना.
काव्या - यार पर मुझको जानना था. कोई नहीं कल पक्का है ना....?
सुमन - हाँ यार
काव्या - लेकिन अब मैं घर कैसे जाऊँ.
सुमन - इतनी सी बात रुक मैं अपनी स्कूटी से तुझको छोड आती हु. पर मुझको अपनी सासु माँ से पूछना पड़ेगा क्योंकि मुझको भी घर से ज्यादा बाहर जाने की परमिशन नहीं है रुक में पूछ कर और स्कूटी की चाभी लेकर आती हू.
काव्या - अरे कहा परेशान हो रही हो मैं चली जाऊँगी.
सुमन - पागल है क्या गाँव का माहौल तुझको पता नहीं है रुक इधर में आती हू...
तभी घर के गेट के पास एक रिक्शा आ कर रुकता है जिसे देख कर काव्या के पैरों के नीचे से जमीन खिसक जाती है.
आप लोगों ने अनुमान तो लगा ही दिया होगा ये रिक्शा किसका है........?
हाँ यह रिक्शा में और कोई नहीं सत्तू और सुलेमान थे. सत्तू जैसे ही रिक्शा को रोकता है घर के पास वेसे ही सुलेमान रिक्शा में से अपना मुह बाहर निकाल कर बोलता है नमस्ते मैडम पहचाना हमको. हम वहीं जो आपको गाँव लेकर आये थे अपनी रिक्शा में इस सत्तू और हमारी बेगम सलमा के साथ. पहचाना के नाही...
काव्या को मानो एक झटके में कल के दिन की पूरी घटना आँखों के सामने से निकल जाती है.
काव्या - हाँ हाँ आपको पहचान लिया.
काव्या सुमन के सामने अब खुद को काफी बेबस मेहसूस कर रही थी. उसको लग रहा था कि ये सुलेमान सुमन के सामने पता नहीं और क्या क्या बोल देगा. कहीं सुमन कुछ गलत नहीं समझ लें.
सुलेमान - मैडम कहीं जाना है क्या आपको. हम छोड देते है.
तभी सुमन काव्या के पास आती है
सुमन - नहीं नहीं मै काव्या को हवेली छोड दूँगी तुम जाओ.
काव्या और सुमन को एक साथ खड़ी देख कर तो सुलेमान और सत्तू का लंड ही खड़ा हो जाता है उनके पैंट और पाजामे में. सुलेमान का तो मन कर रहा था कि यही अभी के अभी सुमन और काव्या को नंगा करके उनकी साड़ी उतार कर चोदना शुरू कर दें. यही दोनों का बाजा बजा दे. दोनों को चलने लायक भी स्थिति में नहीं छोड़े. पर वो ऐसा कर नहीं सकता था. उसकी इतनी हिम्मत और औकात नहीं थी. सोचता हर कोई करने की हिम्मत और ताकत किसी में नहीं होती.
सत्तू - क्यों मैडम आपको हम पर भरोसा नहीं है क्या. कल के दिन तो आपको इतना दूर से लाकर छोड़ा था आपको हवेली आज क्या हुआ. हमारा काम है रिक्शा चला कर छोड़ना.
अब काव्या भी काफी घबरा गयी थी उसको डर था कि कहीं ये दोनों कल की पूरी घटना को बोलने नहीं बैठ जाये. काव्या सुमन की दोस्ती को बिलकुल नहीं खोना चाहती थी. अब काव्या ने सुमन की और देखा और बोला
काव्या - सुमन तुम इतनी टेंशन मत लो मैं चली जाऊँगी. हवेली यही तो है पास में. वेसे तुम इतना कहा परेशान होगी.
सुमन को तो बिलकुल भी यकीन नहीं हो रहा था कि काव्या क्या बोल रही है और वो इनके साथ जायेगी. पर अब सुमन की भी यह मुसीबत थी कि कोई देख ना ले इन दोनों को यहा उसके और काव्या के साथ. क्योंकि उसके ससुर के आने का समय भी हो गया है पर
सुमन - पर क्यों काव्या.....?
पर क्यों काव्या यह शब्द ही बता रहे थे कि सुमन की बिलकुल भी इच्छा नहीं थी कि काव्या इनके साथ जाये. पर अब काव्या भी सुमन को फटा फट बाय बोल कर रिक्शा में बैठ जाती हैं और सत्तू भी फट से रिक्शा शुरू करके वहां से निकल जाता है.
इधर सुमन अपने मन में घर के अंदर जाते जाते सोचती है कि कल मुझको काव्या को बहुत कुछ बताना पड़ेगा गाँव के बारे में, नजमा और ये दो कलूटे रिक्शा वालो के बारे में. काव्या के लिये यह सब जानना काफी आवश्यक है......