24-03-2019, 04:06 PM
होली की शाम
लेटते ही उन्होंने पहले तो मुझे जोर से अपनी बाहों में बांधा, फिर एक नया राग शुरू कर दिया-
“अरे यार तू अपने उस ‘चाहने वाले’ को लिफ्ट क्यों नहीं देती?”
मैं समझ रही थी भाभी का इशारा किस तरफ है,
वही जिसके रंग भरे गुब्बारे का निशाना सीधे मेरे उभार पे लगा था, जब मैं भाभी के साथ छज्जे पर से झांक रही थी।
रोज तो साइकिल से मेरे रिक्शे के पीछे-पीछे, जब से मैं हाईकॉलेज में गई थी, तभी से मेरे पीछे पड़ा था।
सारी लड़कियां उसका नाम ले लेकर मुझे चिढ़ाती थीं।
भाभी-
“देख जीजू से तो कभी-कभी ही, होली दिवाली में, कभी वो आये,
लेकिन अगर एक बार तू उसे लिफ्ट दे दे ना, मैंने उसे ठीक से देखा है, मैं गारण्टी करती हूँ, औजार उसका मस्त होगा, फिर उसके साथ तो जब चाहे तब मस्ती…”
बात में भाभी के दम था।
लेकिन बात टालने के लिए मैं बोलीं-
“छोडिए भाभी, अभी थोड़ी देर सो जाइये न, थकान लग रही है…”
हम दोनों सो गए, पौने तीन बजे भाभी का अलार्म बजा।
उसके साथ विनया का फोन, तू अभी तक चली नहीं?
विनया का फोन था, अरे आप भूल गए विनया को, पिछली पोस्ट में ही तो बताया था न।
चलिए फिर से मिलवा देते हैं- मस्त माल, पटाखा, और न जाने क्या-क्या लड़के उसे कहते हैं और वो बुरा भी नहीं मानती,
बल्कि मुश्कुरा देती है, और कई बार पलट के जवाब भी दे देती है।
सुरू के पेड़ की तरह लम्बी छरहरी, खूब गोरी, गुलाबी, भरे-भरे गाल गुलाब जैसे, बड़ी-बड़ी कजरारी आँखें,
और उभार तो बस, ये समझिए की जवानी बड़ी शिद्दत से आई है उस पर।
जोबन मुझसे बीस नहीं तो उन्नीस भी नहीं है। उभार, कटाव सब, चलती है तो आग लगा देती है।
और सबसे बड़ी बात, ना करना तो उसने सीखा नहीं है।
उसके जीजू उसके कच्चे टिकोरों के कोहबर में दीवाने हो गए थे,
और रिसेप्शन में ही, अपनी साली की कच्ची सील तोड़ दी।
विनया ने जरा भी बुरा नहीं माना, बल्कि पहला मौका मिलते ही, करीब हर महीने,
और कॉलेज में दिन भर उसका रेडियो बंद ही नहीं होता था।
पक्की सहेली है मेरी, इसलिए सब कुछ मुझे बताती थी, कई बार तो मुझे यकीन भी नहीं होता था,
किसी का इतना लम्बा मोटा हो सकता है, लेकिन वो कसम दिला-दिला के, और फिर चिढ़ाती थी-
“कब तक कोरी बचा के रखेगी, अरे यार कह तो अपने जीजू से फड़वा दूँ तेरी, फिर मिल के हम दोनों,
सच्ची यार वैसे भी जीजू तेरे जुबना के दीवाने हैं…”
फट तो मेरी गई, बस थोड़ी देर पहले, होली के हंगामे में, और मेरे अपने सगे जीजू ने फाड़ी।
अबकी होली का मजा ये भी था, की 12वीं के एक्ज़ाम हो रहे थे, इसलिए हम लोगों की छुट्टी थी।
अब अगली साल हम लोगों के भी बोर्ड के इक्जाम के बीच होली आएगी, पर अभी तो फुल टाइम मस्ती।
ऊपर से विनया रानी का हुकुम, शाम होने के पहले मैं उसके यहाँ पहुँच जाऊँ। जीजू आ रहे हैं उसके।
मेरे पास कुछ ना नुकुर करने का भी मौका नहीं था, उसने मेरी भाभी को मेरे पीछे लगा दिया।
मेरी भाभी, मुझसे ज्यादा उसकी भाभी थीं। और विनया की तरह वो भी मेरे पीछे पड़ी रहती थीं की
मैं जल्दी से अपनी गौरेया को चारा खिलाऊँ। और जब उन्हें पता चला की विनया के जीजा, तो बस फिर तो।
उठ तो मैं अलार्म से ही गई थी, तीन बजे का लगाया था।
फिर विनया का फोन, पहले तो मैंने सोचा था की शलवार सूट पहनूं।
फिर एक टाप निकाला।
भाभी जग गईं थीं, बिस्तर पर से टुकुर-टुकुर देख रही थीं, तुरंत उठकर खड़ी हो गईं और मेरे हाथ से टाप छीन के वापस रख दिया।
मेरे ब्रा का हुक पीछे से पकड़कर भाभी ने हल्के से खींचा, और फिर दोनों उभारों को कचकचा के दबोचते हुए छेड़ा-
“जानू, आज तो इन कबूतरों को खुल के उड़ने दो, ये ढक्कन क्यों लगा रखा है।
फिर वो तेरा आशिक भी तो मिलेगा रास्ते में, जब ये कच्चे टिकोरे थे, तब से इनका दीवाना है।
आज होली की शुरुआत भी तो उसी ने की थी, जरा खुल के उस बिचारे को होली के दिन तो झलक दिखा दो…”