14-01-2021, 05:38 PM
Update 37
रामू की नींद सीधा शाम हो खुलती है और फिर रामू खेतों से अपने घर की तरफ निकल जाता है नशा बिलकुल उतर चुका था उसके दिमाग से। सुबह से अन्न का एक दाना भी उसके पेट में नहीं गया था। रामू बिना खाना खाए आंगन में आकर अपनी चारपाई पर लेट जाता है
इधर सविता का रामू पर बिलकुल ध्यान ही नहीं था वो तो बस धन्नो से बातों में लगी हुई थी और बेला चंदा के साथ अपने कमरे में थी।
कुछ देर बाद सविता आंगन में आती है
सविता - अरे रामू तू कब आया? चल हाथ मुंह धो ले मै तेरे लिए खाना लगाती हूं
रामू - रहने दे मां मुझे भूख नहीं है मुझे अकेला छोड़ दे
सविता - क्या बात है रामू ? तू ऐसे क्यों बात कर रहा है
रामू - मां मुझे तुझसे कुछ बात करनी है।
सविता - बोल ना लल्ला क्या बात है ?
रामू - यहां नहीं। तुझे मेरे साथ छत पर चलना होगा
सविता - ऐसी क्या बात है ? जो तू मुझसे अकेले में करना चाहता है
रामू सविता का हाथ पकड़ कर छत पर ले आता है और छत का दरवाज़ा बाहर से बंद कर लेता है
सविता - क्या बात है लल्ला! दरवाज़ा क्यों बंद कर रहा है
रामू सविता की आंखों में देखते हुए - मां तू मुझसे कुछ छुपा रही है ना
सविता - क्या? ये तू क्या बोल रहा है मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा
रामू - मां मै वो राज़ जान गया हूं जो तू मुझसे आजतक छुपाती आई है
रामू की बात सुनते ही सविता की आंखें नम हो जाती हैं काटो तो खून नहीं ऐसी हालत हो गई थी।
सविता - क्या ? क्या जानता है तू लल्ला?
रामू - मां मुझे धन्नो मौसी और हरिया चाचा ने सब कुछ सच सच बता दिया
रामू के मुंह से ये बात सुनते ही सविता को चक्कर आ जाते हैं और वो बेहोश होकर गिरने ही वाली होती है कि रामू उसको संभाल लेता है और वहीं एक कुर्सी पर बैठा देता है।
सविता रोने लगती है और बोलती है - लल्ला मैंने सारी ज़िन्दगी भर अपना और तेरे बापू का वो राज़ एक राज़ ही रखा। उसके लिए मुझे माफ करदे लल्ला मै तेरी गुनहगार हूं
रामू ये बात सुनकर दहल गया।
रामू ने अभी तक वो बात बताई ही नहीं थी जो धन्नो और हरिया ने उससे बोली थी। रामू की मां सविता ने तो कोई नया ही राज़ खोल दिया था जिसे रामू अब जानना चाहता था
रामू - कोई बात नहीं मां लेकिन फिर भी वो बात मै एक बार तेरे मुंह से सुनना चाहता हूं
रामू ने ये बात को कुछ इस तरह बोला जिससे सविता को लगे कि वो सब कुछ जान गया हो।
सविता - लल्ला मै और तेरे बापू मुरली रिश्ते में भाई बहन थे लेकिन सौतेले। ये बात आज से ३० साल पहले की है। उस वक़्त मै महज़ १३ साल की थी। मेरे बापू और मुरली के बापू बहुत अच्छे दोस्त थे। एक दिन मुरली के बापू मेरी मां के साथ भाग गए। हां लल्ला मेरी मां के गैर संबंध थे मुरली के बापू के साथ। उसके बाद मेरे बापू ने मुरली की मां को संभाला और फिर मेरे बापू ने मुरली की मां से शादी कर ली। इस तरह हम रिश्ते में भाई बहन बन गए लेकिन सौतेले। उस समय तुम्हारे बापू मुरली १५ साल के थे। मुझे मुरली की मां बिलकुल भी पसंद नहीं थी और ना ही मुरली को मेरे बापू। मुरली की मां और मेरे बापू ने एक दूसरे के साथ रंगरलियां मनाने के लिए शादी की थी। इस तरह मुझे और मुरली को ही एक दूसरे का ख्याल रखना पड़ता था और ऐसे ही एक दूसरे का ख्याल रखते रखते हम एक दूसरे से प्यार कर बैठे। समय गुजरता रहा और हमारा प्यार समय के साथ और भी गहरा हो गया।
"ऐसे ही एक दिन तुम्हारे बापू मुरली मेरा हाथ पकड़कर हमारे मां बापू के कमरे की खिड़की के पास लेकर आए और उस वक़्त से हमारी ज़िन्दगी बदल गई। अंदर मेरे बापू मुरली की मां के साथ संभोग कर रहे थे और फिर संभोग का सिलसिला मेरे और तुम्हारे बापू मुरली के बीच भी शुरू हो गया। ऐसे ही एक दिन मै तुम्हारे बापू मुरली के साथ संभोग कर रही थी पता नहीं कैसे मुरली के चचेरे भाई हरिया ने हमें संभोग करते देख लिया और ये बात उसने अपनी बहन चम्पा और हमारे घर के नौकर - नौकरानी प्यारेलाल और धन्नो को भी बता दी। उस वक़्त मां बापू घर पर नहीं थे इसलिए मुरली ने सभी को पैसों का लालच देकर मुंह बंद रखने को कहा।"
"फिर एक दिन मेरे बापू और मुरली की मां एक बस दुर्घटना में मारे गए और हम अनाथ हो गए। हमारे सभी रिश्तेदारों ने हमसे मुंह मोड़ लिया था। हम दोनों ही एक दूसरे का सहारा बने। लल्ला तुम शादी से पहले ही मेरी कोख में जन्म ले चुके थे फिर एक दिन हमने एक मंदिर में शादी की और रातों रात अपना गांव छोड़कर तुम्हारे बापू मुरली के चचेरे भाई हरिया के गांव में आ गए। यहां कोई भी हमें जानता नहीं था"
अपने ज़िन्दगी के किताब के पन्ने अपने बेटे रामू के सामने खोलकर सविता फूट फूट कर रोने लगी।
रामू अपनी मां सविता की बात सुनते सुनते ज़िंदा लाश बन गया था ऐसा लग रहा था जैसे रामू दिल की धड़कन रुक गई हो। आज जो राज़ उसकी मां ने उसके सामने खोला था उसकी रामू कल्पना भी नहीं कर सकता था
रामू अपनी मां से बिना कुछ बोले छत का दरवाज़ा खोला और एक नजर अपनी मां की तरफ देखकर वहां से चला गया।
रामू की नींद सीधा शाम हो खुलती है और फिर रामू खेतों से अपने घर की तरफ निकल जाता है नशा बिलकुल उतर चुका था उसके दिमाग से। सुबह से अन्न का एक दाना भी उसके पेट में नहीं गया था। रामू बिना खाना खाए आंगन में आकर अपनी चारपाई पर लेट जाता है
इधर सविता का रामू पर बिलकुल ध्यान ही नहीं था वो तो बस धन्नो से बातों में लगी हुई थी और बेला चंदा के साथ अपने कमरे में थी।
कुछ देर बाद सविता आंगन में आती है
सविता - अरे रामू तू कब आया? चल हाथ मुंह धो ले मै तेरे लिए खाना लगाती हूं
रामू - रहने दे मां मुझे भूख नहीं है मुझे अकेला छोड़ दे
सविता - क्या बात है रामू ? तू ऐसे क्यों बात कर रहा है
रामू - मां मुझे तुझसे कुछ बात करनी है।
सविता - बोल ना लल्ला क्या बात है ?
रामू - यहां नहीं। तुझे मेरे साथ छत पर चलना होगा
सविता - ऐसी क्या बात है ? जो तू मुझसे अकेले में करना चाहता है
रामू सविता का हाथ पकड़ कर छत पर ले आता है और छत का दरवाज़ा बाहर से बंद कर लेता है
सविता - क्या बात है लल्ला! दरवाज़ा क्यों बंद कर रहा है
रामू सविता की आंखों में देखते हुए - मां तू मुझसे कुछ छुपा रही है ना
सविता - क्या? ये तू क्या बोल रहा है मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा
रामू - मां मै वो राज़ जान गया हूं जो तू मुझसे आजतक छुपाती आई है
रामू की बात सुनते ही सविता की आंखें नम हो जाती हैं काटो तो खून नहीं ऐसी हालत हो गई थी।
सविता - क्या ? क्या जानता है तू लल्ला?
रामू - मां मुझे धन्नो मौसी और हरिया चाचा ने सब कुछ सच सच बता दिया
रामू के मुंह से ये बात सुनते ही सविता को चक्कर आ जाते हैं और वो बेहोश होकर गिरने ही वाली होती है कि रामू उसको संभाल लेता है और वहीं एक कुर्सी पर बैठा देता है।
सविता रोने लगती है और बोलती है - लल्ला मैंने सारी ज़िन्दगी भर अपना और तेरे बापू का वो राज़ एक राज़ ही रखा। उसके लिए मुझे माफ करदे लल्ला मै तेरी गुनहगार हूं
रामू ये बात सुनकर दहल गया।
रामू ने अभी तक वो बात बताई ही नहीं थी जो धन्नो और हरिया ने उससे बोली थी। रामू की मां सविता ने तो कोई नया ही राज़ खोल दिया था जिसे रामू अब जानना चाहता था
रामू - कोई बात नहीं मां लेकिन फिर भी वो बात मै एक बार तेरे मुंह से सुनना चाहता हूं
रामू ने ये बात को कुछ इस तरह बोला जिससे सविता को लगे कि वो सब कुछ जान गया हो।
सविता - लल्ला मै और तेरे बापू मुरली रिश्ते में भाई बहन थे लेकिन सौतेले। ये बात आज से ३० साल पहले की है। उस वक़्त मै महज़ १३ साल की थी। मेरे बापू और मुरली के बापू बहुत अच्छे दोस्त थे। एक दिन मुरली के बापू मेरी मां के साथ भाग गए। हां लल्ला मेरी मां के गैर संबंध थे मुरली के बापू के साथ। उसके बाद मेरे बापू ने मुरली की मां को संभाला और फिर मेरे बापू ने मुरली की मां से शादी कर ली। इस तरह हम रिश्ते में भाई बहन बन गए लेकिन सौतेले। उस समय तुम्हारे बापू मुरली १५ साल के थे। मुझे मुरली की मां बिलकुल भी पसंद नहीं थी और ना ही मुरली को मेरे बापू। मुरली की मां और मेरे बापू ने एक दूसरे के साथ रंगरलियां मनाने के लिए शादी की थी। इस तरह मुझे और मुरली को ही एक दूसरे का ख्याल रखना पड़ता था और ऐसे ही एक दूसरे का ख्याल रखते रखते हम एक दूसरे से प्यार कर बैठे। समय गुजरता रहा और हमारा प्यार समय के साथ और भी गहरा हो गया।
"ऐसे ही एक दिन तुम्हारे बापू मुरली मेरा हाथ पकड़कर हमारे मां बापू के कमरे की खिड़की के पास लेकर आए और उस वक़्त से हमारी ज़िन्दगी बदल गई। अंदर मेरे बापू मुरली की मां के साथ संभोग कर रहे थे और फिर संभोग का सिलसिला मेरे और तुम्हारे बापू मुरली के बीच भी शुरू हो गया। ऐसे ही एक दिन मै तुम्हारे बापू मुरली के साथ संभोग कर रही थी पता नहीं कैसे मुरली के चचेरे भाई हरिया ने हमें संभोग करते देख लिया और ये बात उसने अपनी बहन चम्पा और हमारे घर के नौकर - नौकरानी प्यारेलाल और धन्नो को भी बता दी। उस वक़्त मां बापू घर पर नहीं थे इसलिए मुरली ने सभी को पैसों का लालच देकर मुंह बंद रखने को कहा।"
"फिर एक दिन मेरे बापू और मुरली की मां एक बस दुर्घटना में मारे गए और हम अनाथ हो गए। हमारे सभी रिश्तेदारों ने हमसे मुंह मोड़ लिया था। हम दोनों ही एक दूसरे का सहारा बने। लल्ला तुम शादी से पहले ही मेरी कोख में जन्म ले चुके थे फिर एक दिन हमने एक मंदिर में शादी की और रातों रात अपना गांव छोड़कर तुम्हारे बापू मुरली के चचेरे भाई हरिया के गांव में आ गए। यहां कोई भी हमें जानता नहीं था"
अपने ज़िन्दगी के किताब के पन्ने अपने बेटे रामू के सामने खोलकर सविता फूट फूट कर रोने लगी।
रामू अपनी मां सविता की बात सुनते सुनते ज़िंदा लाश बन गया था ऐसा लग रहा था जैसे रामू दिल की धड़कन रुक गई हो। आज जो राज़ उसकी मां ने उसके सामने खोला था उसकी रामू कल्पना भी नहीं कर सकता था
रामू अपनी मां से बिना कुछ बोले छत का दरवाज़ा खोला और एक नजर अपनी मां की तरफ देखकर वहां से चला गया।