14-01-2021, 05:26 PM
Update 21
गांव में जग्गू अपने और रामू के खेतों का ध्यान रख रहा था तभी उसको सामने से ज़हीर आता हुआ दिखा।
जग्गू - क्यों बे भड़वे कहां था इतने दिन ?
ज़हीर - मेरे मामू की शादी थी ना
जग्गू - ओह अच्छा और सुना तेरी बहन लुबना कैसी है ?
ज़हीर - तुझे क्या करना कैसी भी हो
जग्गू - सच बोलूं तो बड़ी चिकनी दिखती है तेरी बहन लुबना , बचपन में छुपा छुपी के खेल में मैंने उसको कसके निचोड़ा है पता नहीं उसको याद भी होगा कि नहीं
ज़हीर - ये क्या बक रहा है तू जग्गू
जग्गू - ये सब छोड़ तू ये बता तूने कोई लड़की पटाई गांव में या नहीं
ज़हीर - माल तो एक से एक हैं गांव में पर कोई भाव नहीं देता।
जग्गू मन में - हां सले तेरी बहन लुबना भी कोई कम नहीं है किसी से , साली एक बार दे दे तो मज़ा आ जायेगा
ज़हीर - क्या सोचने लगा जग्गू ?
जग्गू - कुछ नहीं , वैसे तू क्या करेगा लड़की पटाकर , तुझे तो हम जैसे लडके पसंद है
ज़हीर - हां वो बात भी है जग्गू और ऐसा कहती ही ज़हीर जग्गू क्की जांघ सहलाने लगता है
जग्गू ज़हीर की कमर पर हाथ फेरने लगता है - आज बड़ा दिल कर रहा है ज़हीर
ज़हीर - रामू का खेत पास में है अगर वो आ गया तो हम दोनों की गान्ड मार लेगा
जग्गू - वो सात दिन बाद आएगा , रामू अपनी मौसी के घर गया है
ज़हीर जग्गू की बात सुनके खुश हो जाता है फिर वो दोनों झोपडी में आ जाते हैं
ज़हीर - जल्दी करना जग्गू नहीं तो अम्मी मुझे ढूंढते हुए यहां आ जाएगी और धीरे करना बहुत दुखता है जग्गू
जग्गू - साले नाटक तो ऐसे कर रहा है जैसे तेरी बहन की चूत मांग रहा हूं
फिर जग्गू ज़हीर को अपनी तरफ खींच के झुका देता है
ज़हीर का दिल बहुत जोर से धधकने लगता है पिछले साल शुरू हुए ये खेल अब जग्गू के लिए आए दिन का खेल हो चुका था , बेला जग्गू को देने को तैयार नहीं थी तो जग्गू को ज़हीर से ही काम चलाना पड़ता था और ज़हीर था भी लड़की जैसा गोरा सा बदन , पतली सी कमर और नाजुक नाजुक हाथ
जग्गू भले ही बेला से सच्चा प्यार करता था पर जग्गू की नजर बड़े समय से ज़हीर की बहन लुबना पर भी थी जग्गू सबसे पहले ज़हीर को अपनी उंगली पर नचाना चाहता था वो जानता था कि अगर ज़हीर उसकी मुट्ठी में आ गया तो एक दिन उसकी बहन लुबना भी उसके नीचे आके पीस जाएगी , जग्गू को बेला दे नहीं रही थी इसलिए वो ज़हीर की बजाता रहता था
यहां माहौल कुछ ऐसा बन गया था
ज़हीर - आह आह जग्गू जाने दे ना अब । कोई देख लेगा आह धीरे कर उह आह
जग्गू - देखने दे कुछ नहीं होता । मेरे खेतों में कोई नहीं आता
ज़हीर - आह जग्गू बहुत दर्द होता है तेरे बहुत बड़ा है आह
जग्गू - आह साले लेते समय अपनी गान्ड तो ऐसे हिला रहा है जैसे और जम के लेना हो तुझे
जग्गू फिर जोर जोर से दस बारह धक्के लगाता है और झड़ जाता है
फिर जहीर जल्दी से अपनी पैंट पहनता है और लड़खड़ाते हुए अपने घर की तरफ चल देता है
जग्गू हस्ते हुए - अबे साले ठीक से तो चाल
ज़हीर कुछ नहीं बोलता और बोलने की हालत में भी नहीं था। ज़हीर लड़खड़ाते हुए कुछ दूर पहुंचता है कि तभी उसको गन्ने के खेत से अजीब सी आवाज आती है वो आवाज ज़हीर को जानी पहचानी सी लग रही थी इसलिए ज़हीर बिना कोई आवाज किए दबे पांव गन्ने के खेत में घुस जाता है और उस आवाज का पीछा करने लगता है
गांव में जग्गू अपने और रामू के खेतों का ध्यान रख रहा था तभी उसको सामने से ज़हीर आता हुआ दिखा।
जग्गू - क्यों बे भड़वे कहां था इतने दिन ?
ज़हीर - मेरे मामू की शादी थी ना
जग्गू - ओह अच्छा और सुना तेरी बहन लुबना कैसी है ?
ज़हीर - तुझे क्या करना कैसी भी हो
जग्गू - सच बोलूं तो बड़ी चिकनी दिखती है तेरी बहन लुबना , बचपन में छुपा छुपी के खेल में मैंने उसको कसके निचोड़ा है पता नहीं उसको याद भी होगा कि नहीं
ज़हीर - ये क्या बक रहा है तू जग्गू
जग्गू - ये सब छोड़ तू ये बता तूने कोई लड़की पटाई गांव में या नहीं
ज़हीर - माल तो एक से एक हैं गांव में पर कोई भाव नहीं देता।
जग्गू मन में - हां सले तेरी बहन लुबना भी कोई कम नहीं है किसी से , साली एक बार दे दे तो मज़ा आ जायेगा
ज़हीर - क्या सोचने लगा जग्गू ?
जग्गू - कुछ नहीं , वैसे तू क्या करेगा लड़की पटाकर , तुझे तो हम जैसे लडके पसंद है
ज़हीर - हां वो बात भी है जग्गू और ऐसा कहती ही ज़हीर जग्गू क्की जांघ सहलाने लगता है
जग्गू ज़हीर की कमर पर हाथ फेरने लगता है - आज बड़ा दिल कर रहा है ज़हीर
ज़हीर - रामू का खेत पास में है अगर वो आ गया तो हम दोनों की गान्ड मार लेगा
जग्गू - वो सात दिन बाद आएगा , रामू अपनी मौसी के घर गया है
ज़हीर जग्गू की बात सुनके खुश हो जाता है फिर वो दोनों झोपडी में आ जाते हैं
ज़हीर - जल्दी करना जग्गू नहीं तो अम्मी मुझे ढूंढते हुए यहां आ जाएगी और धीरे करना बहुत दुखता है जग्गू
जग्गू - साले नाटक तो ऐसे कर रहा है जैसे तेरी बहन की चूत मांग रहा हूं
फिर जग्गू ज़हीर को अपनी तरफ खींच के झुका देता है
ज़हीर का दिल बहुत जोर से धधकने लगता है पिछले साल शुरू हुए ये खेल अब जग्गू के लिए आए दिन का खेल हो चुका था , बेला जग्गू को देने को तैयार नहीं थी तो जग्गू को ज़हीर से ही काम चलाना पड़ता था और ज़हीर था भी लड़की जैसा गोरा सा बदन , पतली सी कमर और नाजुक नाजुक हाथ
जग्गू भले ही बेला से सच्चा प्यार करता था पर जग्गू की नजर बड़े समय से ज़हीर की बहन लुबना पर भी थी जग्गू सबसे पहले ज़हीर को अपनी उंगली पर नचाना चाहता था वो जानता था कि अगर ज़हीर उसकी मुट्ठी में आ गया तो एक दिन उसकी बहन लुबना भी उसके नीचे आके पीस जाएगी , जग्गू को बेला दे नहीं रही थी इसलिए वो ज़हीर की बजाता रहता था
यहां माहौल कुछ ऐसा बन गया था
ज़हीर - आह आह जग्गू जाने दे ना अब । कोई देख लेगा आह धीरे कर उह आह
जग्गू - देखने दे कुछ नहीं होता । मेरे खेतों में कोई नहीं आता
ज़हीर - आह जग्गू बहुत दर्द होता है तेरे बहुत बड़ा है आह
जग्गू - आह साले लेते समय अपनी गान्ड तो ऐसे हिला रहा है जैसे और जम के लेना हो तुझे
जग्गू फिर जोर जोर से दस बारह धक्के लगाता है और झड़ जाता है
फिर जहीर जल्दी से अपनी पैंट पहनता है और लड़खड़ाते हुए अपने घर की तरफ चल देता है
जग्गू हस्ते हुए - अबे साले ठीक से तो चाल
ज़हीर कुछ नहीं बोलता और बोलने की हालत में भी नहीं था। ज़हीर लड़खड़ाते हुए कुछ दूर पहुंचता है कि तभी उसको गन्ने के खेत से अजीब सी आवाज आती है वो आवाज ज़हीर को जानी पहचानी सी लग रही थी इसलिए ज़हीर बिना कोई आवाज किए दबे पांव गन्ने के खेत में घुस जाता है और उस आवाज का पीछा करने लगता है