14-01-2021, 11:21 AM
रा नाम है दीपिका वर्मा, और मेरी उम्र अभी लगभग बीस साल की है। रंग तो इतना गोरा नहीं है पर नैन-नक्श कातिलाना और तीखे अंदाज हैं मेरे। और बेहतरीन और सुडौल जिस्म की मल्लिका भी हूँ मैं। इस वक़्त कॉलेज में पढ़ती हूँ। किसी लड़के की नज़र मेरे गोल-मटोल मम्मों पर न रुके, यह हो ही नहीं सकता। लड़कों ने मेरा नाम जुगाड़ डाल रखा है।
मैं शुरु से ही एक ऐसे माहौल में रही हूँ, जिससे मैं अपनी जवानी को शुरु से ही क़ाबू में नहीं कर पाई, मेरी संगत और गन्दी लड़कियों से रही। खाली समय में कक्षा में ही एक-दूसरी के मम्मे दबाना, पेन-पेन्सिल चूत में डाल कर मज़े लेना आदि। जल्दी ही पेन-पेन्सिल छोड़कर लंड भी तलाश लिया। उसके बाद कई लड़कों के साथ मैंने मज़े लूटे। वैसे मैंने बहुत चुदाई करवाई है, लेकिन आपको अपनी एक ऐसी चुदाई सुनाऊँगी जो मैं कभी नहीं भूल सकती।
मोहल्ले के ही एक लड़के के साथ मेरा चक्कर चल निकला। वह मुहल्ले का एक गुंडा टाईप लड़का था, जिससे सभी डरते हैं, कोई भी उसके साथ पंगा नहीं लेता। मुझे वह बहुत पसन्द था, इसलिए मैंने उसे बढ़ावा दिया और उसके इजहार करते ही मैंने हाँ कह डाली। हम छुप-छुप कर मिलने लगा। वो मेरे हर-एक अंग से खेल चुका था। बस जगह न मिलने के कारण उसने मुझे चोदा नहीं था। उसका मोटा लंड कई बार हाथ में लेकर सहलाया और मुठ मार चुकी थी। एक बार साईबर कैफे के केबिन में चूसा भी था।
मैं शुरु से ही एक ऐसे माहौल में रही हूँ, जिससे मैं अपनी जवानी को शुरु से ही क़ाबू में नहीं कर पाई, मेरी संगत और गन्दी लड़कियों से रही। खाली समय में कक्षा में ही एक-दूसरी के मम्मे दबाना, पेन-पेन्सिल चूत में डाल कर मज़े लेना आदि। जल्दी ही पेन-पेन्सिल छोड़कर लंड भी तलाश लिया। उसके बाद कई लड़कों के साथ मैंने मज़े लूटे। वैसे मैंने बहुत चुदाई करवाई है, लेकिन आपको अपनी एक ऐसी चुदाई सुनाऊँगी जो मैं कभी नहीं भूल सकती।
मोहल्ले के ही एक लड़के के साथ मेरा चक्कर चल निकला। वह मुहल्ले का एक गुंडा टाईप लड़का था, जिससे सभी डरते हैं, कोई भी उसके साथ पंगा नहीं लेता। मुझे वह बहुत पसन्द था, इसलिए मैंने उसे बढ़ावा दिया और उसके इजहार करते ही मैंने हाँ कह डाली। हम छुप-छुप कर मिलने लगा। वो मेरे हर-एक अंग से खेल चुका था। बस जगह न मिलने के कारण उसने मुझे चोदा नहीं था। उसका मोटा लंड कई बार हाथ में लेकर सहलाया और मुठ मार चुकी थी। एक बार साईबर कैफे के केबिन में चूसा भी था।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
