12-01-2021, 05:32 PM
अभी कुछ दिनों पहले मुझे कानपुर से झांसी जाना था. मैं वैसे तो हमेशा बस से जाता हूँ, पर इस बार एक दोस्त मिल गया.
वो बोला- ट्रेन से चलो.
मैंने कहा- ठीक है.
हम लोग अगले दिन सुबह 8 बजे निकल गए. झांसी तक के लिए जनरल टिकट ले ली और लगेज वाले बोगी में चढ़ गए, क्योंकि उसमें भीड़ कम थी.
इस डिब्बे में कुछ ही लोग थे. एक औरत भी थी, जिस पर मेरी नज़र बाद में पड़ी. जब मैं आराम से बैठ गया, तब मेरी उस महिला पर नजर पड़ी. वो देखने में कुछ खास नहीं थी या फिर सफर की वजह से कोई ज्यादा सजी धजी नहीं थी. पर जो भी हो, वो एक मस्त औरत थी और मुझे उसे देखने में मज़ा आ रहा था.
हालांकि मैं उसे उतनी गौर से नहीं देख पा रहा था क्योंकि मुझे डर था कि कहीं इसका पति इसके साथ न हो. पर ये मेरा डर कुछ ही देर में खत्म हो गया क्योंकि उसके साथ एक लड़का और बच्चा ही था.
जब धीरे धीरे लोग आने वाले छोटे छोटे स्टॉप पर उतरते चले गए. तब मुझे उसे देखने का अवसर मिलने लगा.
अब डिब्बे में मेरे अलावा मेरा दोस्त, वो, उसके साथ का लड़का और कुछ लोग ही रह गए थे. वे सब अपने अपने में मस्त थे.
मैं उसको देखता रहा और अपना लंड मसलता रहा, पर जब वो मेरी तरफ देखती, तो मैं मुस्कुरा देता.
वो बोला- ट्रेन से चलो.
मैंने कहा- ठीक है.
हम लोग अगले दिन सुबह 8 बजे निकल गए. झांसी तक के लिए जनरल टिकट ले ली और लगेज वाले बोगी में चढ़ गए, क्योंकि उसमें भीड़ कम थी.
इस डिब्बे में कुछ ही लोग थे. एक औरत भी थी, जिस पर मेरी नज़र बाद में पड़ी. जब मैं आराम से बैठ गया, तब मेरी उस महिला पर नजर पड़ी. वो देखने में कुछ खास नहीं थी या फिर सफर की वजह से कोई ज्यादा सजी धजी नहीं थी. पर जो भी हो, वो एक मस्त औरत थी और मुझे उसे देखने में मज़ा आ रहा था.
हालांकि मैं उसे उतनी गौर से नहीं देख पा रहा था क्योंकि मुझे डर था कि कहीं इसका पति इसके साथ न हो. पर ये मेरा डर कुछ ही देर में खत्म हो गया क्योंकि उसके साथ एक लड़का और बच्चा ही था.
जब धीरे धीरे लोग आने वाले छोटे छोटे स्टॉप पर उतरते चले गए. तब मुझे उसे देखने का अवसर मिलने लगा.
अब डिब्बे में मेरे अलावा मेरा दोस्त, वो, उसके साथ का लड़का और कुछ लोग ही रह गए थे. वे सब अपने अपने में मस्त थे.
मैं उसको देखता रहा और अपना लंड मसलता रहा, पर जब वो मेरी तरफ देखती, तो मैं मुस्कुरा देता.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.