09-01-2021, 06:19 PM
फिर उनका इस फ्लैट से किसी वजह से जाना तय हो गया तो मैंने उन्हें अपने लौड़े के लिए कोई इंतजाम के लिए कहा तो भाभी ने कमरा छोड़ते वक्त मुझे बताया कि मकान मालकिन तेज है और प्यार को तड़फ रही है। इसलिए अब मैंने अपना सारा ध्यान मकान मालकिन की तरफ लगाना शुरू कर दिया।
इस बार किराया देने मैं उसके घर गया। उसने अपने बालों में मेहंदी लगा रखी थी इसलिए बाहर बरामदे में बैठी
थी। उनके पास जाने का रास्ता कमरे के अन्दर से जाता था।
मैंने आवाज दी तो बोली- “यहाँ बरामदे में आ जाओ...” उसने सलवार-सूट पहना हुआ था। उम्र कोई 45 साल की होगी। पर 35 साल से ऊपर की नहीं लग रही थी।
उसका गठीला बदन था और भरी-पूरी जवानी थी, उसके पति की मृत्यु हो चुकी थी और उसके साथ उसका एक लड़का और एक लड़की थे। दोनों इस समय कालेज गए हुए थे।
मैं- भाभी अन्दर आ जाऊँ?
मकान मालकिन क्यों रे... तुझे मैं भाभी नजर आ रही हूँ?
मैं- भाभी को भाभी ना कहूँ तो क्या कहूँ?
मालकिन- मेरी उम्र का तो ख्याल कर जरा?
मैं- “क्यों 30 साल की ही तो लग रही हो...” मैंने झूठ बोला।
मालकिन- अच्छा, झूठ मत बोल।
मैं- नहीं भाभी, झूठ नहीं बोल रहा हूँ। आप तो इस उमर में भी हर मामले में जवान लड़कियों को फेल कर दोगी।
वो भी हँसने लगी।
मालकिन- “बोल, क्यों आया है?”
मैं- भाभी किराया देना था।
मालकिन- ठीक है, वहाँ सामने टेबल पर रख दे। मैं बाद में उठा लूंगी। अभी मैं जरा अपने बाल सुखा हूँ।
मैंने भी पैसे टेबल पर रख दिए और चलने लगा- “अच्छा भाभी चलता हूँ। मैंने आपको भाभी कहा आपको बुरा तो नहीं लगा?”
मालकिन- नहीं, बुरा क्यों मानूंगी। चल अब जा।
फिर मैं किसी ना किसी बहाने से उसके घर जाने लगा। धीरे-धीरे हमारी बोलचाल बढ़ गई और हम आपस में । मजाक भी करने लगे। जिसका वो बुरा नहीं मानती थी। मेरी बातचीत में अब ‘आप’ की जगह 'तुम' ने स्थान ले लिया था। एक दिन मैंने कहा- “तुम चाय तो पिलाती नहीं। कभी मेरे कमरे में आओ, मैं तुम्हें चाय पिलाऊँगा...”
मालकिन- अच्छा ठीक है, कब आऊँ बता?
मैं- “तुम्हारा अपना मकान है। जब चाहो आओ, सुबह, दोपहर, शाम, रात, आधी रात, तुमको कौन रोकने वाला है...” यह कहकर मैं हँसने लगा।
मालकिन- “चलो, कल सुबह आऊँगी..” अब वो धीरे-धीरे मेरे कमरे में आने लगी और चाय पीकर जाने लगी। इस बीच, हम मजाक के बीच में आपस में छेड़खानी भी करने लगे। जिसमें उसे बहुत मजा आता था।
मुझे लगने लगा था कि अब इसकी चुदाई के दिन नजदीक आने वाले हैं और यह जल्दी ही मेरे लण्ड के नीचे । होगी। एक बार मेरा दोस्त एक हफ्ते के लिए गाँव गया था। जिसके बारे में मैं उसे बातों-बातों में बता चुका था। एक दिन मैं शाम को अकेला था, सारे पड़ोसी पार्क में घूमने गए थे।
वो आई और बोली- राज क्या कर रहे हो?
मैं- कुछ नहीं भाभी, अकेला बैठा बोर हो रहा हूँ, आओ चाय पीकर जाओ।
मालकिन- नहीं, बच्चे टयूशन गए हैं अभी एक घण्टे में वापस आ जाएंगे। मैं भी चलती हैं।
मैं- चाय बनने में घण्टा थोड़े ही लगता है। सिर्फ 5 मिनट की बात है। आ जाओ ना।
वो मान गई और चारपाई पर बैठ गई।
मैंने चाय बनाकर दी और उनके बगल में बैठकर चाय पीने लगा। उन्हें बगल में देखकर मेरा लण्ड खड़ा हो रहा था। पर उन्हें चोदने का उपाय मेरे दिमाग में नहीं आ रहा था। फिर भी मैंने बात शुरू की। शायद आज पट ही जाए। मैंने कहा- “भाभी एक बात पूछू, बुरा तो नहीं मानोगी?
मालकिन- पूछो... क्यों बुरा मानूंगी भला?
मैं- भाभी, तुम दिन पर दिन जवान और खूबसूरत होती जा रही हो। इसका क्या राज है?
वो शर्माने लगी- “नहीं तो। ऐसी कोई बात नहीं। ऐसा तुम्हें लगता है?”
मैं- “नहीं भाभी, मैं सच बोल रहा हूँ। अब तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो। जी करता है कि....”
मालकिन ने मेरी तरफ मस्ती से देखते हुए कहा- क्या जी करता है तेरा राज?
मैं- “कि तुमको बाँहों में भरकर तेरे लबों को चूम लँ..”
मालकिन- राज, तुझे ऐसी बातें करते शरम नहीं आती? तू जरूर मार खाएगा आज।
मैं- अरे भाभी, जो मन में था, वो बोल दिया। अगर सच कहने में मार पड़ती है तो वो भी मंजूर है। पर मारना तुम ही।
मालकिन- साले, तू बड़ा बदमाश हो गया है। बस अब मैं चलती हूँ।
मेरा तो दिमाग खराब हो गया। अपने से तो कुछ हुआ नहीं। इसलिए मन ही मन ऊपर वाले से दुआ माँगी कि कुछ ऐसा कर दे कि ये खुद मेरे लण्ड के नीचे आ जाए। कहते है ना कि सच्चे मन से किसी की लेनी हो तो वो मिलती ही है।
वो जैसे ही उठने को हुई। पता नहीं कहाँ से उनके सूट के अन्दर चींटी घुस गई। उन्होंने उसे निकालने के लिए अपना हाथ सूट के अन्दर डाला तो चींटी पीछे को चली गई।
मालकिन- राज कोई कीड़ा मेरे सूट के अन्दर चला गया है और मेरी पीठ पर रेंग रहा है। उसे निकाल दो प्लीज।
मैं- भाभी, उसके लिए मुझे अपना हाथ तुम्हारी पीठ पर लगाना होगा। तुम कहीं नाराज ना हो जाओ।
मालकिन- राज मजाक नहीं करो। उसे जल्दी निकालो। कहीं वो मुझे काट ना ले।
मैं उनके ठीक सामने खड़ा हो गया और हाथ को उनके सूट के अन्दर डालकर उनकी पीठ पर फिराने लगा। बड़ा अजीब सा मजा आ रहा था। कितने सालों के बाद उन्हें भी मर्द का हाथ मिल रहा था। उन्हें भी अच्छा लग रहा
था।
मालकिन- राज कुछ मिला?
मैं- “नहीं भाभी। ढूँढ़ रहा हूँ...”
तभी चींटी ने उनकी पीठ पर काट लिया। वो मुझसे चिपक गई- “उई.. राज, उसने मुझे काट लिया। प्लीज... जल्दी बाहर निकालो उसे...”
मैं- “पर भाभी, वो मिल नहीं रही है..” मैंने हाथ फेरना चालू रखा। मेरी साँसें उनकी साँसों से टकरा रही थीं।
मालकिन- राज, वो आगे की तरफ रेंग रही है। जल्दी कुछ करो।।
मैं- भाभी, तब तो तुम सूट उतारकर उसे एक बार अच्छी तरह से झाड़ लो कहीं ज्यादा ना हों।
मालकिन- तुम्हारे सामने कैसे?
मैं- तो क्या हुआ? मैं दरवाजा बंद कर लेता हूँ और मुँह फेर लेता हूँ।
मालकिन- ठीक है तुम मुँह उधर फेर लो।
मैंने दरवाजा बंद किया और मुँह फेरकर खड़ा हो गया। नीचे फर्श पर देखा तो चीनी का डब्बा खुला होने के कारण बहुत सारी चींटियां जमीन पर घूम रही थीं। मुझे अपना काम बनाने की एक तरकीब सूझी, मैंने चार-पांच चींटियां उठाई और मुट्ठी में बंद कर लीं।
मालकिन उसमें तो कुछ भी नहीं है।
मैं- भाभी यहाँ देखो बहुत सारी चींटियां हैं शायद सलवार के सहारे चढ़ गई हों। आप मुँह फेर लो मैं देख लेता हूँ।
वो मुँह फेरकर खड़ी हो गई तो मैंने चेक करने के बहाने पीछे से उनकी सलवार को थोड़ा सा खींचा और मुठ्ठी में दबाई हुई चींटियां उसके अन्दर डाल दीं। जो जल्दी ही अन्दर घुस गईं।
मैं- भाभी, तुम्हारी कमर पर और पीठ पर चींटी ने काटा है। पीठ लाल हो गई है। तुम कहो तो तेल लगा दें। दर्द कम हो जाएगा।
उनके ‘हाँ' कहते ही मैंने तेल लगाने के बहाने उनकी पीठ और कमर को सहलाना शुरू कर दिया। उन्हें भी अच्छा लग रहा था।
मैं- “भाभी, तुम्हारी ब्रा को पीछे से खोलना पड़ेगा। नहीं तो उसमें सारा तेल लग जाएगा। तुम आगे से उसे हाथ से पकड़ लो। मैं पीछे से इसे खोल रहा हूँ...”
“ठीक है...” वो बोली।
मैंने उनकी ब्रा खोल दी। जिसे उन्होंने आगे से हाथ लगाकर संभाल लिया। मैं पूरी पीठ पर और कमर पर आराम से तेल लगा रहा था। जिससे उन्हें आराम मिल रहा था। तभी नीचे सलवार में डाली चींटियों ने काम करना शुरू कर दिया। वो दोनों टाँगों से बाहर आने का रास्ता ढूँढने लगीं।
मालकिन- हाय राम... लगता है चींटियां सलवार के अन्दर भी हैं। वो पूरी टांगों पे रेंग रही हैं।
मेरा काम बनने लगा था। मैंने कहा- भाभी, तब तो तुम जल्दी से सलवार भी उतारकर झाड़ लो। कहीं गलत जगह काट लिया तो... तुमको दर्द के कारण अभी डाक्टर के पास भी जाना पड़ सकता है।
मालकिन- “मैं इस वक्त डाक्टर के पास नहीं जाना चाहती। वैसे भी कुछ देर में बच्चे आ जायेंगे। सलवार ही उतारनी पड़ेगी। पर कैसे? मैंने तो अपने हाथों से ब्रा पकड़ रखी है..." ।
मैं- “भाभी, तुम चिन्ता ना करो। मैं तुम्हारी मदद करता हूँ..” मैंने उनकी सलवार का नाड़ा खोल दिया। सलवार फिसल कर नीचे गिर गई। उनकी लाल पैन्टी दिखाई देने लगी। मैं पैन्टी को ही देखे जा रहा था और सोच रहा
था कि अभी कितनी देर और लगेगी... इसे उतरने में। कब इनकी चूत के दर्शन होंगे।
मकान मालकिन- राज क्या देख रहे हो? जल्दी से मेरी सलवार झाड़ो और मुझे पहनाओ।
मैंने उनके पैरों से सलवार निकाली और उसे तीन-चार बार झाड़ा। मैंने सोचा ऐसे तो काम बनेगा नहीं। मुझे ही कुछ करना पड़ेगा। नहीं तो हाथ आई चूत बिना दर्शन के ही वापस जा सकती है। मैं चिल्लाया- “भाभी, दो चींटियां तुम्हारी पैन्टी के अन्दर घुस रही हैं। कहीं तुमको ‘उधर' काट ना लें..”
मकान मालकिन- राज, उन्हें जल्दी से हटाओ नहीं तो वो मुझे काट लेंगी। पर खबरदार पैन्टी मत खोलना।
मैं- “ठीक है भाभी..” मैंने जल्दी से सलवार एक तरफ फेंकी और उनके पीछे जाकर अपने हाथ उनके आगे लेजाकर उनकी चूत को पैन्टी के ऊपर से ही सहलाने लगा।
मालकिन- ओह्ह... राज, यह क्या कर रहे हो तुम?
मैं- भाभी, तुमने ही तो बोला था कि पैन्टी मत खोलना। चींटियां तो दिख नहीं रही हैं। इसलिए बाहर से ही मसल रहा हूँ। ताकि उससे अन्दर गई चींटियां मर जाएँ। तुम थोड़ा धैर्य तो रखो।
मालकिन- ठीक है, करो फिर।
मैं एक हाथ से उनकी टाँगों के बीच सहला रहा था। दूसरे हाथ से उनकी कमर पकड़े था। ताकि बीच में भाग ना जाएं। धीरे-धीरे मैं उनकी पैन्टी के किनारे से हाथ डालकर उनकी चूत सहलाने लगा।
उन्हें भी मर्द का हाथ आनन्द दे रहा था इसलिए वे कुछ नहीं बोलीं। थोड़ी ही देर में वो रगड़ाई से गरम हो गई
और अपनी पैन्टी गीली कर बैठीं। मैं समझ गया कि माल अब गरम है, मैंने अपना लण्ड उनकी गाण्ड से सटा दिया और उनकी चूत में उंगली डालकर अन्दर-बाहर करने लगा।
भाभी को मेरे इरादे का पता चल गया, वो बोली- “ओह... राज... ये क्या कर रहा है तू। अगर किसी को पता चल गया तो मैं बदनाम हो जाऊँगी.”
मैं- भाभी, तुम किसी को बताओगी क्या?
मालकिन- मैं क्यों बताऊँगी।
मैं- मैं तो बताने से रहा। तुम नहीं बताओगी तो किसी को पता कैसे चलेगा। वैसे भी तुम्हारा भी मन है ही ये सब करने को। तभी तो तुम्हारी पैन्टी गीली हो गई है। अब शर्माओ मत और खुलकर मेरा साथ दो। जिससे तुमको दुगुना मजा आएगा।
अब मकान-मालकिन ने भी शरम उतार फेंकी और दोनों हाथ ब्रा से हटा दिए। हाथ हटाते ही उनके कबूतर पिंजरे से आजाद हो गए। मैंने भी उनकी पैन्टी उनके जिश्म से अलग कर दी।
मैं- वाह भाभी क्या जिश्म है तुम्हारा देखते ही मजा आ गया।
मालकिन- राज, तुमने मेरा सब कुछ देख लिया है। मुझे भी तो अपना दिखाओ ना। कितने सालों से उसके दर्शन नहीं हुए हैं। मैं देखने को मरी जा रही हूँ, जल्दी से कपड़े उतारो।
मैंने फटाफट कपड़े उतार दिए। मेरा हथियार अब उनके सामने था।
मालकिन- राज, मैं इसे हाथ में पकड़कर चूम लँ?
मैं- भाभी, तुम्हारी अमानत है। जो मर्जी है वो करो।
उन्होंने फटाफट उसे लपक लिया और पागलों की तरह उसे चूमने लगीं।
मैं- भाभी इसे पूरा मुँह में ले लो और मजा आएगा।
उन्होंने लौड़े को अपने मुँह में ले लिया और चूसने लगीं। मुझे बड़ा मजा आ रहा था। क्योंकी पहली भाभी ने लण्ड चुसवाने की आदत डाल दी थी। मुझे लण्ड चुसवाने में बड़ा मजा आता है। आज बहुत दिनों बाद कोई लण्ड चूस रहा था। वह बड़े तरीके से लण्ड चूस रही थी जिसमें वो माहिर थी। लौड़े को चाट और चूसकर उन्होंने मेरा बुरा हाल कर दिया। तो मैं भी उनके सर को पकड़कर उनके मुँह में लण्ड को अन्दर-बाहर करने लगा। मेरा माल निकलने वाला था। वो मस्त होकर चूस रही थी।
उनका सारा ध्यान लण्ड चूसने में था। मैं जोर-जोर से उनके सर को लण्ड पर दबाने लगा। थोड़ी ही देर में सातआठ पिचकारी मेरे लण्ड से निकलीं। जो सीधे उनके गले के अन्दर चली गईं। उन्होंने सर हटाना चाहा। पर जब तक वह पूरा माल निगल नहीं गईं, मैंने लण्ड निकालने नहीं दिया। इसलिए उन्हें सारा माल पीना ही पड़ा। तब मैंने लण्ड बाहर निकाला।
मैं- भाभी, कैसा लगा मर्द का मक्खन।
मालकिन- राज, मुझे बता तो देते। मैं इसके लिए तैयार नहीं थी। पर जो भी किया, अच्छा किया। तेरा बहुत गाढ़ा मक्खन था। पीने में बड़ा मजा आया।
मैं- चलो भाभी, अब मैं तुम्हें मजा देता हूँ। तुम चारपाई पर टांगें चौड़ी करके बैठ जाओ।
वो बैठ गई। चूत बिल्कुल ही चिकनी थी जैसे आजकल में ही सारे बाल बनाए हों।
मैं- भाभी तुम्हारी चूत के बाल तो बिल्कुल साफ हैं। ऐसा लगता है तुम चुदने ही आई थीं। फिर नखरे क्यों कर रही थीं?
मालकिन- राज, जब से तुम मुझ पर डोरे डाल रहे थे। तब से मैं समझ गई कि तुम मुझे चोदना चाहते हो। तभी से मेरी चूत भी बहुत खुजला रही थी। पर अपने बेटे से डरती थी कि उसे पता ना चल जाए। पर एक हफ्ते से रहा ही नहीं जा रहा था। कितनी उंगली कर ली, पर निगोड़ी चूत की खुजली मिट ही नहीं रही थी। आज इसकी सारी खुजली मिटा दो।
मैंने उनकी चूत पर मुँह लगाया और जीभ अन्दर सरका दी और दाने को रगड़ना शुरू कर दिया। उन्हें मजा आने लगा। उन्होंने मेरे सर को अपनी चूत पर दबा दिया। मैंने एक उंगली चूत में डाल दी और जीभ से चूत चाटने । लगा। वो मजे ले-लेकर चूत चुसवाए जा रही थीं। उनकी चूत पूरी गीली हो गई।
मालकिन- राज, बस अब और मत तड़फाओ। अपना लण्ड मेरी चूत में डाल दो और मुझे चोद डालो।
मैंने भी देरी करना ठीक नहीं समझा और अपना लण्ड उनकी गीली चूत पर टिका दिया। जैसे ही धक्का दिया उनकी “आहह.' निकल गई।
मालकिन- राज आराम से। सालों बाद चुदवा रही हूँ। दर्द हो रहा है।
उनकी चूत सच में टाइट थी। मैंने जैसे ही दूसरा धक्का मारा, उनकी चीख निकल गई।
मालकिन- राज, ओह्ह.. निकालो उसे बाहर। मुझे नहीं चुदवाना। तुम तो मेरी चूत फाड़ ही डालोगे। कोई ऐसा करता है भला?
मैं- “भाभी, बस हो गया। अब तुम्हें मजा ही मजा मिलेगा। आओ तुम्हें जन्नत की सैर करवाता हूँ। वो भी अपने लण्ड से...” मेरा पूरा लण्ड उनकी चूत में जा चुका था। मैंने धीरे-धीरे धक्के लगाने शुरू किए।
धीरे-धीरे उन्हें भी आराम मिलने लगा। उन्होंने मुझे कसकर पकड़ लिया। फिर बोली- “राज, आहह... अब तेजतेज करो। ओहह... फाड़ डालो मेरी चूत... साली ने बहुत तड़पाया है... आज निकाल दो इसकी सारी अकड़... ओहह... दिखा दो तुममें कितना दम है। चोद मेरी जान...”
मैंने उनकी कमर को दोनों हाथों से पकड़ लिया और पूरी ताकत से धक्के लगाने लगा।
उनकी ‘आहे' निकलने लगीं- “आह्ह.. आह... ओह... स्स्स्स्स
... उफ्फ... आह... आह...”
मैं पेले जा रहा था।
मालकिन- आहह... और जोर से। मजा आ गया राज।
धीरे-धीरे हम दोनों पसीने से तर हो गए। पर दोनों में से कोई भी हार मानने को तैयार नहीं था। मैं तड़ातड़ उनकी चूत पर लण्ड से वार किए जा रहा था।
आखिर वो कब तक सहन करती। अन्त में उनका पानी निकल ही गया। बोली- “राज, प्लीज थोड़ा रूको। मुझे अब दर्द हो रहा है...”
मैंने लण्ड को चूत में ही रहने दिया और उनकी चूचियां मसलने लगा। थोड़ी देर में जब वो थोड़ा नार्मल हो गई। तो मैंने लण्ड को चूत की दीवारों पर रगड़ना शुरू कर दिया। जल्दी ही वो फिर से गरम हो गई और बिस्तर पर फिर तूफान आ गया। अब भाभी गाण्ड उठा-उठाकर मेरा साथ दे रही थीं।
मैं- भाभी कहाँ गिराऊँ? मेरा होने वाला है।
मालकिन- राज, तेज-तेज धक्के मारो... मेरा भी होने वाला है और सारा रस चूत में ही गिराना। सालों से प्यासी है... तर कर दो उसे। तुम चिन्ता मत करो मेरा आपरेशन हो चुका है।
अब मैंने रफ़्तार पकड़ी और कुछ ही देर में सारा माल उनकी चूत में भर दिया, और उन्हीं के ऊपर लेट गया।
मालकिन- राज अब उठो भी। मुझे घर भी जाना है।
मैं- ठीक है भाभी, पर ये तो बताओ कैसा लगा? आपको मेरे लण्ड पर जन्नत की सैर करके?
मालकिन- बहुत मजा आया राज। तुमने मेरी चूत की सारी खुजली भी मिटा दी और सालों से प्यासी चूत को पानी से लबालब भर भी दिया। देखो अब भी पानी छलक रहा है।
मैंने देखा तो हम दोनों का माल उनकी चूत से निकलकर उनकी टाँगों से चिपककर नीचे आ रहा है। मतलब समझकर हम दोनों हँसने लगे, फिर वो फटाफट कपड़े पहनने लगी और जाने लगी।
मैं- “भाभी, जिसने तुम्हें इतना मजा दिया उसे थोड़ा प्यार करके तो जाओ...” और मैंने अपना मुरझाया लण्ड उनके आगे कर दिया।
भाभी ने एक बार उसे पूरा अपने मुँह में ले लिया। थोड़ी देर चूसा, आगे से जड़ तक चाटा। फिर सुपाड़े पर एक प्यारी सी चुम्मी दी और चली गईं।
उसके बाद जब तक उनके बेटे की शादी नहीं हो गई। तब तक मैंने उन्हें बहुत बार चोदा। उनकी बहू घर पर ही रहती थी। इसलिए मैंने उनसे मिलने से मना कर दिया। ताकि वो फैंस ना जाएं। वो समझ गई। उसके बाद ना वो कभी कमरे में आई, ना ही मैं उनसे मिलने गया। पर जब तक साथ रहा तब तक दोनों ने खूब मजे किए।
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इस बार किराया देने मैं उसके घर गया। उसने अपने बालों में मेहंदी लगा रखी थी इसलिए बाहर बरामदे में बैठी
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मैंने आवाज दी तो बोली- “यहाँ बरामदे में आ जाओ...” उसने सलवार-सूट पहना हुआ था। उम्र कोई 45 साल की होगी। पर 35 साल से ऊपर की नहीं लग रही थी।
उसका गठीला बदन था और भरी-पूरी जवानी थी, उसके पति की मृत्यु हो चुकी थी और उसके साथ उसका एक लड़का और एक लड़की थे। दोनों इस समय कालेज गए हुए थे।
मैं- भाभी अन्दर आ जाऊँ?
मकान मालकिन क्यों रे... तुझे मैं भाभी नजर आ रही हूँ?
मैं- भाभी को भाभी ना कहूँ तो क्या कहूँ?
मालकिन- मेरी उम्र का तो ख्याल कर जरा?
मैं- “क्यों 30 साल की ही तो लग रही हो...” मैंने झूठ बोला।
मालकिन- अच्छा, झूठ मत बोल।
मैं- नहीं भाभी, झूठ नहीं बोल रहा हूँ। आप तो इस उमर में भी हर मामले में जवान लड़कियों को फेल कर दोगी।
वो भी हँसने लगी।
मालकिन- “बोल, क्यों आया है?”
मैं- भाभी किराया देना था।
मालकिन- ठीक है, वहाँ सामने टेबल पर रख दे। मैं बाद में उठा लूंगी। अभी मैं जरा अपने बाल सुखा हूँ।
मैंने भी पैसे टेबल पर रख दिए और चलने लगा- “अच्छा भाभी चलता हूँ। मैंने आपको भाभी कहा आपको बुरा तो नहीं लगा?”
मालकिन- नहीं, बुरा क्यों मानूंगी। चल अब जा।
फिर मैं किसी ना किसी बहाने से उसके घर जाने लगा। धीरे-धीरे हमारी बोलचाल बढ़ गई और हम आपस में । मजाक भी करने लगे। जिसका वो बुरा नहीं मानती थी। मेरी बातचीत में अब ‘आप’ की जगह 'तुम' ने स्थान ले लिया था। एक दिन मैंने कहा- “तुम चाय तो पिलाती नहीं। कभी मेरे कमरे में आओ, मैं तुम्हें चाय पिलाऊँगा...”
मालकिन- अच्छा ठीक है, कब आऊँ बता?
मैं- “तुम्हारा अपना मकान है। जब चाहो आओ, सुबह, दोपहर, शाम, रात, आधी रात, तुमको कौन रोकने वाला है...” यह कहकर मैं हँसने लगा।
मालकिन- “चलो, कल सुबह आऊँगी..” अब वो धीरे-धीरे मेरे कमरे में आने लगी और चाय पीकर जाने लगी। इस बीच, हम मजाक के बीच में आपस में छेड़खानी भी करने लगे। जिसमें उसे बहुत मजा आता था।
मुझे लगने लगा था कि अब इसकी चुदाई के दिन नजदीक आने वाले हैं और यह जल्दी ही मेरे लण्ड के नीचे । होगी। एक बार मेरा दोस्त एक हफ्ते के लिए गाँव गया था। जिसके बारे में मैं उसे बातों-बातों में बता चुका था। एक दिन मैं शाम को अकेला था, सारे पड़ोसी पार्क में घूमने गए थे।
वो आई और बोली- राज क्या कर रहे हो?
मैं- कुछ नहीं भाभी, अकेला बैठा बोर हो रहा हूँ, आओ चाय पीकर जाओ।
मालकिन- नहीं, बच्चे टयूशन गए हैं अभी एक घण्टे में वापस आ जाएंगे। मैं भी चलती हैं।
मैं- चाय बनने में घण्टा थोड़े ही लगता है। सिर्फ 5 मिनट की बात है। आ जाओ ना।
वो मान गई और चारपाई पर बैठ गई।
मैंने चाय बनाकर दी और उनके बगल में बैठकर चाय पीने लगा। उन्हें बगल में देखकर मेरा लण्ड खड़ा हो रहा था। पर उन्हें चोदने का उपाय मेरे दिमाग में नहीं आ रहा था। फिर भी मैंने बात शुरू की। शायद आज पट ही जाए। मैंने कहा- “भाभी एक बात पूछू, बुरा तो नहीं मानोगी?
मालकिन- पूछो... क्यों बुरा मानूंगी भला?
मैं- भाभी, तुम दिन पर दिन जवान और खूबसूरत होती जा रही हो। इसका क्या राज है?
वो शर्माने लगी- “नहीं तो। ऐसी कोई बात नहीं। ऐसा तुम्हें लगता है?”
मैं- “नहीं भाभी, मैं सच बोल रहा हूँ। अब तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो। जी करता है कि....”
मालकिन ने मेरी तरफ मस्ती से देखते हुए कहा- क्या जी करता है तेरा राज?
मैं- “कि तुमको बाँहों में भरकर तेरे लबों को चूम लँ..”
मालकिन- राज, तुझे ऐसी बातें करते शरम नहीं आती? तू जरूर मार खाएगा आज।
मैं- अरे भाभी, जो मन में था, वो बोल दिया। अगर सच कहने में मार पड़ती है तो वो भी मंजूर है। पर मारना तुम ही।
मालकिन- साले, तू बड़ा बदमाश हो गया है। बस अब मैं चलती हूँ।
मेरा तो दिमाग खराब हो गया। अपने से तो कुछ हुआ नहीं। इसलिए मन ही मन ऊपर वाले से दुआ माँगी कि कुछ ऐसा कर दे कि ये खुद मेरे लण्ड के नीचे आ जाए। कहते है ना कि सच्चे मन से किसी की लेनी हो तो वो मिलती ही है।
वो जैसे ही उठने को हुई। पता नहीं कहाँ से उनके सूट के अन्दर चींटी घुस गई। उन्होंने उसे निकालने के लिए अपना हाथ सूट के अन्दर डाला तो चींटी पीछे को चली गई।
मालकिन- राज कोई कीड़ा मेरे सूट के अन्दर चला गया है और मेरी पीठ पर रेंग रहा है। उसे निकाल दो प्लीज।
मैं- भाभी, उसके लिए मुझे अपना हाथ तुम्हारी पीठ पर लगाना होगा। तुम कहीं नाराज ना हो जाओ।
मालकिन- राज मजाक नहीं करो। उसे जल्दी निकालो। कहीं वो मुझे काट ना ले।
मैं उनके ठीक सामने खड़ा हो गया और हाथ को उनके सूट के अन्दर डालकर उनकी पीठ पर फिराने लगा। बड़ा अजीब सा मजा आ रहा था। कितने सालों के बाद उन्हें भी मर्द का हाथ मिल रहा था। उन्हें भी अच्छा लग रहा
था।
मालकिन- राज कुछ मिला?
मैं- “नहीं भाभी। ढूँढ़ रहा हूँ...”
तभी चींटी ने उनकी पीठ पर काट लिया। वो मुझसे चिपक गई- “उई.. राज, उसने मुझे काट लिया। प्लीज... जल्दी बाहर निकालो उसे...”
मैं- “पर भाभी, वो मिल नहीं रही है..” मैंने हाथ फेरना चालू रखा। मेरी साँसें उनकी साँसों से टकरा रही थीं।
मालकिन- राज, वो आगे की तरफ रेंग रही है। जल्दी कुछ करो।।
मैं- भाभी, तब तो तुम सूट उतारकर उसे एक बार अच्छी तरह से झाड़ लो कहीं ज्यादा ना हों।
मालकिन- तुम्हारे सामने कैसे?
मैं- तो क्या हुआ? मैं दरवाजा बंद कर लेता हूँ और मुँह फेर लेता हूँ।
मालकिन- ठीक है तुम मुँह उधर फेर लो।
मैंने दरवाजा बंद किया और मुँह फेरकर खड़ा हो गया। नीचे फर्श पर देखा तो चीनी का डब्बा खुला होने के कारण बहुत सारी चींटियां जमीन पर घूम रही थीं। मुझे अपना काम बनाने की एक तरकीब सूझी, मैंने चार-पांच चींटियां उठाई और मुट्ठी में बंद कर लीं।
मालकिन उसमें तो कुछ भी नहीं है।
मैं- भाभी यहाँ देखो बहुत सारी चींटियां हैं शायद सलवार के सहारे चढ़ गई हों। आप मुँह फेर लो मैं देख लेता हूँ।
वो मुँह फेरकर खड़ी हो गई तो मैंने चेक करने के बहाने पीछे से उनकी सलवार को थोड़ा सा खींचा और मुठ्ठी में दबाई हुई चींटियां उसके अन्दर डाल दीं। जो जल्दी ही अन्दर घुस गईं।
मैं- भाभी, तुम्हारी कमर पर और पीठ पर चींटी ने काटा है। पीठ लाल हो गई है। तुम कहो तो तेल लगा दें। दर्द कम हो जाएगा।
उनके ‘हाँ' कहते ही मैंने तेल लगाने के बहाने उनकी पीठ और कमर को सहलाना शुरू कर दिया। उन्हें भी अच्छा लग रहा था।
मैं- “भाभी, तुम्हारी ब्रा को पीछे से खोलना पड़ेगा। नहीं तो उसमें सारा तेल लग जाएगा। तुम आगे से उसे हाथ से पकड़ लो। मैं पीछे से इसे खोल रहा हूँ...”
“ठीक है...” वो बोली।
मैंने उनकी ब्रा खोल दी। जिसे उन्होंने आगे से हाथ लगाकर संभाल लिया। मैं पूरी पीठ पर और कमर पर आराम से तेल लगा रहा था। जिससे उन्हें आराम मिल रहा था। तभी नीचे सलवार में डाली चींटियों ने काम करना शुरू कर दिया। वो दोनों टाँगों से बाहर आने का रास्ता ढूँढने लगीं।
मालकिन- हाय राम... लगता है चींटियां सलवार के अन्दर भी हैं। वो पूरी टांगों पे रेंग रही हैं।
मेरा काम बनने लगा था। मैंने कहा- भाभी, तब तो तुम जल्दी से सलवार भी उतारकर झाड़ लो। कहीं गलत जगह काट लिया तो... तुमको दर्द के कारण अभी डाक्टर के पास भी जाना पड़ सकता है।
मालकिन- “मैं इस वक्त डाक्टर के पास नहीं जाना चाहती। वैसे भी कुछ देर में बच्चे आ जायेंगे। सलवार ही उतारनी पड़ेगी। पर कैसे? मैंने तो अपने हाथों से ब्रा पकड़ रखी है..." ।
मैं- “भाभी, तुम चिन्ता ना करो। मैं तुम्हारी मदद करता हूँ..” मैंने उनकी सलवार का नाड़ा खोल दिया। सलवार फिसल कर नीचे गिर गई। उनकी लाल पैन्टी दिखाई देने लगी। मैं पैन्टी को ही देखे जा रहा था और सोच रहा
था कि अभी कितनी देर और लगेगी... इसे उतरने में। कब इनकी चूत के दर्शन होंगे।
मकान मालकिन- राज क्या देख रहे हो? जल्दी से मेरी सलवार झाड़ो और मुझे पहनाओ।
मैंने उनके पैरों से सलवार निकाली और उसे तीन-चार बार झाड़ा। मैंने सोचा ऐसे तो काम बनेगा नहीं। मुझे ही कुछ करना पड़ेगा। नहीं तो हाथ आई चूत बिना दर्शन के ही वापस जा सकती है। मैं चिल्लाया- “भाभी, दो चींटियां तुम्हारी पैन्टी के अन्दर घुस रही हैं। कहीं तुमको ‘उधर' काट ना लें..”
मकान मालकिन- राज, उन्हें जल्दी से हटाओ नहीं तो वो मुझे काट लेंगी। पर खबरदार पैन्टी मत खोलना।
मैं- “ठीक है भाभी..” मैंने जल्दी से सलवार एक तरफ फेंकी और उनके पीछे जाकर अपने हाथ उनके आगे लेजाकर उनकी चूत को पैन्टी के ऊपर से ही सहलाने लगा।
मालकिन- ओह्ह... राज, यह क्या कर रहे हो तुम?
मैं- भाभी, तुमने ही तो बोला था कि पैन्टी मत खोलना। चींटियां तो दिख नहीं रही हैं। इसलिए बाहर से ही मसल रहा हूँ। ताकि उससे अन्दर गई चींटियां मर जाएँ। तुम थोड़ा धैर्य तो रखो।
मालकिन- ठीक है, करो फिर।
मैं एक हाथ से उनकी टाँगों के बीच सहला रहा था। दूसरे हाथ से उनकी कमर पकड़े था। ताकि बीच में भाग ना जाएं। धीरे-धीरे मैं उनकी पैन्टी के किनारे से हाथ डालकर उनकी चूत सहलाने लगा।
उन्हें भी मर्द का हाथ आनन्द दे रहा था इसलिए वे कुछ नहीं बोलीं। थोड़ी ही देर में वो रगड़ाई से गरम हो गई
और अपनी पैन्टी गीली कर बैठीं। मैं समझ गया कि माल अब गरम है, मैंने अपना लण्ड उनकी गाण्ड से सटा दिया और उनकी चूत में उंगली डालकर अन्दर-बाहर करने लगा।
भाभी को मेरे इरादे का पता चल गया, वो बोली- “ओह... राज... ये क्या कर रहा है तू। अगर किसी को पता चल गया तो मैं बदनाम हो जाऊँगी.”
मैं- भाभी, तुम किसी को बताओगी क्या?
मालकिन- मैं क्यों बताऊँगी।
मैं- मैं तो बताने से रहा। तुम नहीं बताओगी तो किसी को पता कैसे चलेगा। वैसे भी तुम्हारा भी मन है ही ये सब करने को। तभी तो तुम्हारी पैन्टी गीली हो गई है। अब शर्माओ मत और खुलकर मेरा साथ दो। जिससे तुमको दुगुना मजा आएगा।
अब मकान-मालकिन ने भी शरम उतार फेंकी और दोनों हाथ ब्रा से हटा दिए। हाथ हटाते ही उनके कबूतर पिंजरे से आजाद हो गए। मैंने भी उनकी पैन्टी उनके जिश्म से अलग कर दी।
मैं- वाह भाभी क्या जिश्म है तुम्हारा देखते ही मजा आ गया।
मालकिन- राज, तुमने मेरा सब कुछ देख लिया है। मुझे भी तो अपना दिखाओ ना। कितने सालों से उसके दर्शन नहीं हुए हैं। मैं देखने को मरी जा रही हूँ, जल्दी से कपड़े उतारो।
मैंने फटाफट कपड़े उतार दिए। मेरा हथियार अब उनके सामने था।
मालकिन- राज, मैं इसे हाथ में पकड़कर चूम लँ?
मैं- भाभी, तुम्हारी अमानत है। जो मर्जी है वो करो।
उन्होंने फटाफट उसे लपक लिया और पागलों की तरह उसे चूमने लगीं।
मैं- भाभी इसे पूरा मुँह में ले लो और मजा आएगा।
उन्होंने लौड़े को अपने मुँह में ले लिया और चूसने लगीं। मुझे बड़ा मजा आ रहा था। क्योंकी पहली भाभी ने लण्ड चुसवाने की आदत डाल दी थी। मुझे लण्ड चुसवाने में बड़ा मजा आता है। आज बहुत दिनों बाद कोई लण्ड चूस रहा था। वह बड़े तरीके से लण्ड चूस रही थी जिसमें वो माहिर थी। लौड़े को चाट और चूसकर उन्होंने मेरा बुरा हाल कर दिया। तो मैं भी उनके सर को पकड़कर उनके मुँह में लण्ड को अन्दर-बाहर करने लगा। मेरा माल निकलने वाला था। वो मस्त होकर चूस रही थी।
उनका सारा ध्यान लण्ड चूसने में था। मैं जोर-जोर से उनके सर को लण्ड पर दबाने लगा। थोड़ी ही देर में सातआठ पिचकारी मेरे लण्ड से निकलीं। जो सीधे उनके गले के अन्दर चली गईं। उन्होंने सर हटाना चाहा। पर जब तक वह पूरा माल निगल नहीं गईं, मैंने लण्ड निकालने नहीं दिया। इसलिए उन्हें सारा माल पीना ही पड़ा। तब मैंने लण्ड बाहर निकाला।
मैं- भाभी, कैसा लगा मर्द का मक्खन।
मालकिन- राज, मुझे बता तो देते। मैं इसके लिए तैयार नहीं थी। पर जो भी किया, अच्छा किया। तेरा बहुत गाढ़ा मक्खन था। पीने में बड़ा मजा आया।
मैं- चलो भाभी, अब मैं तुम्हें मजा देता हूँ। तुम चारपाई पर टांगें चौड़ी करके बैठ जाओ।
वो बैठ गई। चूत बिल्कुल ही चिकनी थी जैसे आजकल में ही सारे बाल बनाए हों।
मैं- भाभी तुम्हारी चूत के बाल तो बिल्कुल साफ हैं। ऐसा लगता है तुम चुदने ही आई थीं। फिर नखरे क्यों कर रही थीं?
मालकिन- राज, जब से तुम मुझ पर डोरे डाल रहे थे। तब से मैं समझ गई कि तुम मुझे चोदना चाहते हो। तभी से मेरी चूत भी बहुत खुजला रही थी। पर अपने बेटे से डरती थी कि उसे पता ना चल जाए। पर एक हफ्ते से रहा ही नहीं जा रहा था। कितनी उंगली कर ली, पर निगोड़ी चूत की खुजली मिट ही नहीं रही थी। आज इसकी सारी खुजली मिटा दो।
मैंने उनकी चूत पर मुँह लगाया और जीभ अन्दर सरका दी और दाने को रगड़ना शुरू कर दिया। उन्हें मजा आने लगा। उन्होंने मेरे सर को अपनी चूत पर दबा दिया। मैंने एक उंगली चूत में डाल दी और जीभ से चूत चाटने । लगा। वो मजे ले-लेकर चूत चुसवाए जा रही थीं। उनकी चूत पूरी गीली हो गई।
मालकिन- राज, बस अब और मत तड़फाओ। अपना लण्ड मेरी चूत में डाल दो और मुझे चोद डालो।
मैंने भी देरी करना ठीक नहीं समझा और अपना लण्ड उनकी गीली चूत पर टिका दिया। जैसे ही धक्का दिया उनकी “आहह.' निकल गई।
मालकिन- राज आराम से। सालों बाद चुदवा रही हूँ। दर्द हो रहा है।
उनकी चूत सच में टाइट थी। मैंने जैसे ही दूसरा धक्का मारा, उनकी चीख निकल गई।
मालकिन- राज, ओह्ह.. निकालो उसे बाहर। मुझे नहीं चुदवाना। तुम तो मेरी चूत फाड़ ही डालोगे। कोई ऐसा करता है भला?
मैं- “भाभी, बस हो गया। अब तुम्हें मजा ही मजा मिलेगा। आओ तुम्हें जन्नत की सैर करवाता हूँ। वो भी अपने लण्ड से...” मेरा पूरा लण्ड उनकी चूत में जा चुका था। मैंने धीरे-धीरे धक्के लगाने शुरू किए।
धीरे-धीरे उन्हें भी आराम मिलने लगा। उन्होंने मुझे कसकर पकड़ लिया। फिर बोली- “राज, आहह... अब तेजतेज करो। ओहह... फाड़ डालो मेरी चूत... साली ने बहुत तड़पाया है... आज निकाल दो इसकी सारी अकड़... ओहह... दिखा दो तुममें कितना दम है। चोद मेरी जान...”
मैंने उनकी कमर को दोनों हाथों से पकड़ लिया और पूरी ताकत से धक्के लगाने लगा।
उनकी ‘आहे' निकलने लगीं- “आह्ह.. आह... ओह... स्स्स्स्स
... उफ्फ... आह... आह...”
मैं पेले जा रहा था।
मालकिन- आहह... और जोर से। मजा आ गया राज।
धीरे-धीरे हम दोनों पसीने से तर हो गए। पर दोनों में से कोई भी हार मानने को तैयार नहीं था। मैं तड़ातड़ उनकी चूत पर लण्ड से वार किए जा रहा था।
आखिर वो कब तक सहन करती। अन्त में उनका पानी निकल ही गया। बोली- “राज, प्लीज थोड़ा रूको। मुझे अब दर्द हो रहा है...”
मैंने लण्ड को चूत में ही रहने दिया और उनकी चूचियां मसलने लगा। थोड़ी देर में जब वो थोड़ा नार्मल हो गई। तो मैंने लण्ड को चूत की दीवारों पर रगड़ना शुरू कर दिया। जल्दी ही वो फिर से गरम हो गई और बिस्तर पर फिर तूफान आ गया। अब भाभी गाण्ड उठा-उठाकर मेरा साथ दे रही थीं।
मैं- भाभी कहाँ गिराऊँ? मेरा होने वाला है।
मालकिन- राज, तेज-तेज धक्के मारो... मेरा भी होने वाला है और सारा रस चूत में ही गिराना। सालों से प्यासी है... तर कर दो उसे। तुम चिन्ता मत करो मेरा आपरेशन हो चुका है।
अब मैंने रफ़्तार पकड़ी और कुछ ही देर में सारा माल उनकी चूत में भर दिया, और उन्हीं के ऊपर लेट गया।
मालकिन- राज अब उठो भी। मुझे घर भी जाना है।
मैं- ठीक है भाभी, पर ये तो बताओ कैसा लगा? आपको मेरे लण्ड पर जन्नत की सैर करके?
मालकिन- बहुत मजा आया राज। तुमने मेरी चूत की सारी खुजली भी मिटा दी और सालों से प्यासी चूत को पानी से लबालब भर भी दिया। देखो अब भी पानी छलक रहा है।
मैंने देखा तो हम दोनों का माल उनकी चूत से निकलकर उनकी टाँगों से चिपककर नीचे आ रहा है। मतलब समझकर हम दोनों हँसने लगे, फिर वो फटाफट कपड़े पहनने लगी और जाने लगी।
मैं- “भाभी, जिसने तुम्हें इतना मजा दिया उसे थोड़ा प्यार करके तो जाओ...” और मैंने अपना मुरझाया लण्ड उनके आगे कर दिया।
भाभी ने एक बार उसे पूरा अपने मुँह में ले लिया। थोड़ी देर चूसा, आगे से जड़ तक चाटा। फिर सुपाड़े पर एक प्यारी सी चुम्मी दी और चली गईं।
उसके बाद जब तक उनके बेटे की शादी नहीं हो गई। तब तक मैंने उन्हें बहुत बार चोदा। उनकी बहू घर पर ही रहती थी। इसलिए मैंने उनसे मिलने से मना कर दिया। ताकि वो फैंस ना जाएं। वो समझ गई। उसके बाद ना वो कभी कमरे में आई, ना ही मैं उनसे मिलने गया। पर जब तक साथ रहा तब तक दोनों ने खूब मजे किए।
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