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Adultery बहू की चूत ससुर का लौडा
#15
दोनों मर्द अब मज़े से चोदने में लग गए। पलंग ज़ोर ज़ोर से हिले जा रहा था और फ़चफ़च और ठप्प ठप्प की आवाज़ भी गूँज रही थी।

अचानक रचना बोली: अंकल आप अपना रस मेरी गाँड़ में नहीं मेरी बुर में ही छोड़ना, मैं आज ही गर्भवती होना चाहती हूँ। आऽऽऽह। हाऽऽऽऽऽय्य।

सूबेदार: ठीक है बेटी, जैसा तुम कहो। और वो और ज़ोर से गाँड़ मारने लगा।

अब राज चिल्लाया: आऽऽऽऽऽऽह बेटी मैं गया। और वो झड़ने लगा। रचना भी पाऽऽऽऽऽपा मैं भी गईइइइइइइइइ। कहकर झड़ गयी। सूबेदार ने अपना लौड़ा बाहर निकाला और चादर से पोंछा और रचना के राज के ऊपर से हटने का इंतज़ार करने लगा। जब रचना उठकर लेटी तो वह उसकी टाँगें उठाकर उसकी बुर में अपना लौड़ा डाल दिया। उसकी बुर राज के वीर्य से भरी हुई थी। अब वह भी दस बारह धक्के लगाकर झड़ने लगा। उसका वीर्य भी रचना की बुर में सामने लगा।

रचना आऽऽहहहह करके लेटी रही और बोली: आऽऽऽहब आप दोनों का कितना रस मेरे अंदर भर गया है। आज तो मैं ज़रूर से प्रेगनेंट हो ही जाऊँगी।

फिर सब फ़्रेश होकर लेट कर चूमा चाटी करने लगे। क़रीब एक घंटे के बाद फिर से चुदाई शुरू हुई, बस इतना फ़र्क़ था कि उसकी गाँड़ में इस बार पापा का और बुर में अंकल का लौड़ा था। लेकिन उनका वीर्य इस बार भी उसकी बुर को ही मिला। बाद में सब नंगे ही लिपट कर सो गए।
अगली सुबह शशी आइ तो तीनों नंगे ही सो रहे थे। रचना ने गाउन पहना और दरवाज़ा खोला। उसके निपल्ज़ गाउन में से झाँक रहे थे क्योंकि उसने ब्रा नहीं पहनी थी। शशी मुस्कुरा कर बोली: रात में हंगामा हुआ क्या?

रचना: हाँ बहुत हुआ और अभी भी दोनों मर्द नंगे सोए पड़े हैं।

शशी हँसकर किचन में चली गयी और चाय बनाने लगी। रचना कमरे में आकर बोली: आप लोग उठो, शशी चाय लाएगी। कुछ पहन लो।

राज: अरे उससे क्या पर्दा? वो सब जानती है। फिर वह उठकर बाथरूम में घुसा। तभी सूबेदार भी उठ गया। फ़्रेश होकर सब सोफ़े में बैठे चाय पी रहे थे तभी अमिता भी उठ कर आइ और बोली: मुझे क्या हो गया था? मुझे कुछ याद नहीं है।

सब हँसने लगे। राज: तुम तो बेहोश हो गयी इसलिए बिचारि रचना हम दोनों को रात भर झेलती रही।

अमिता: वाह, तब तो रचना को मज़ा ही आ गया होगा।

रचना: मेरी गाँड़ बहुत दुःख रही है। मैंने इतने मोटे कभी नहीं लिए।और इन दोनों के तो साँड़ के जैसे मोटे है!

राज रचना को गोद में खींच कर उसकी गाँड़ को सहला कर बोला: बेटी, दवाई लगा दूँ क्या?

रचना: रहने दीजिए, पहले फाड़ दी और अब दवाई लगाएँगे ?

सूबेदार: अरे बेटी बहुत टाइट गाँड़ थी, लगता था कि उद्घाटन ही कर रहे हैं। लगता है दामाद बाबू का पतला सा हथियार है।

रचना: अंकल आपके सामने तो उनका बहुत पतला है। और सच में मेरी ऐसी ठुकाई कभी नहीं हुई।

राज: मतलब मज़ा आया ना हमारी बेटी को? यह कहते हुए उसने उसकी चूचि दबा दी।

रचना: जी पापा, मज़ा तो बहुत आया।

सूबेदार: यार, तूने अमिता को तो ठोका ही नहीं। दोपहर तक जो करना है कर ले, हम लोग आज वापस जाएँगे।

राज: अरे ऐसी भी क्या जल्दी है। कुछ दिन रुको ना।

सूबेदार: नहीं यार जाना ही होगा। कुछ ज़रूरी काम है।

फिर शशी ने सबको नाश्ता कराया और सूबेदार ने शशी की गाँड़ पर हाथ फेरा और बोला: यार मस्त माल है, पर इसका पेट देखकर लगता है की गर्भ से है।

रचना: पापा ने ही इसको गर्भ दिया है, इसका पति तो किसी काम का है ही नहीं।

सूबेदार: वह भाई ये तो बढ़िया है। रचना, तुम भी रात को ही प्रेगनेंट हो ही गयी होगी। अगर नहीं भी हुई होगी तो अगले ४/५ दिन में तुम्हारे पापा कर ही देंगे।
रचना: भगवान करे ऐसा ही हो।

नाश्ता करने के बाद चारों कमरे में घुस गए और इस बार अमिता को राज ने और रचना को सूबेदार ने चोदा। रचना के कहने पर राज ने भी अपना रस रचना की ही बुर में छोड़ा।
दोपहर का खाना खा कर सूबेदार और अमिता चले गए। अब राज और रचना ही थे घर पर। शशी भी चली गयी थी।

अकेले में रचना ने अपने कपड़े उतारे और नंगी होकर बिस्तर पर लेट गयी। राज हैरान हुआ, पर वह भी नंगा होकर उसके बग़ल में लेट गया। अब रचना राज से लिपट गयी और बोली: पापा, मैं माँ बन जाऊँगी ना?

राज उसे चूमते हुए बोला: हाँ बेटी, ज़रूर बनोगी। पर तुमको जल्दी से जल्दी दामाद बाबू से चुदवाना होगा वरना वह शक करेगा और बच्चे को नहीं अपनाएगा।

रचना: पापा, जय और डॉली ४/५ दिन में आ जाएँगे। तब मैं चली जाऊँगी अमेरिका और उससे चुदवा लूँगी । बस आप मुझे रोज़ २/३ बार चोद दीजिए ताकि मेरे गर्भ ठहरने में कोई शक ना रहे। मुझे बच्चा चाहिए हर हाल में।

राज उसके कमर को सहला कर बोला: बेटी, तुम्हारी इच्छा भगवान और मैं मिलकर ज़रूर पूरी करेंगे। फिर वह उसकी बुर सहलाने लगा। जल्दी ही वो उसकी चूची चूसने लगा और फिर उसके ऊपर चढ़ कर मज़े से उसे चोदने लगा। वह भी अपनी टाँगें उठाकर उसका लौड़ा अंदर तक महसूस करने लगी। लम्बी चुदाई के बाद वह उसकी बुर में गहराई तक झड़ने लगा। रचना भी अपनी बुर और बच्चेदानी में उसके वीर्य के अहसास से जैसे भर गयी थी।

अब यह रोज़ का काम था । शशी के सामने भी चुदाई होती और वह भी मज़े से उनकी चुदाई देखती। शशी लौड़ा चूसकर ही ख़ुश रहती थी। इसी तरह दिन बीते और जय और डॉली भी आ गए। रचना सबसे मिलकर अमेरिका के लिए चली गयी।

आज घर में सिर्फ़ राज, जय और डॉली ही रह गए। शशी का पेट काफ़ी फूल गया था। वह अपने समय से काम पर आती थी।

अगले दिन सुबह राज उठकर सैर पर गया और जब वापस आया तो शशी आ चुकी थी। वह चाय माँगा और तभी वह चौंक गया। डॉली ने आकर उसके पैर छुए और गुड मॉर्निंग बोली और चाय की प्याली राज को दी। राज ने देखा कि वह नहा चुकी थी और साड़ी में पूरी तरह से ढकी हुई थी। उसने उसे आशीर्वाद दिया। चाय पीते हुए वो सोचने लगा कि डॉली के रहते उसे शशी के साथ मज़ा करने में थोड़ी दिक़्क़त तो होगी। वैसे भी वह आजकल सिर्फ़ लौड़ा चूसती थी, चुदाई बंद की हुई थी, डॉक्टर के कहे अनुसार। पता नहीं उसका क्या होने वाला है।

वह जब नहा कर आया तो जय भी उठकर तैयार हो चुका था। डॉली ने नाश्ता लगाया और सबने नाश्ता किया। शशी ने डॉली की मदद की। थोड़ी देर में जय अपने कमरे में गया और डॉली भी उसके पीछे पीछे गयी। फिर वह डॉली को अपनी बाहों में लेकर चूमने लगा और वह भी उससे लिपट गयी।

डॉली: खाना खाने आओगे ना?

जय: अभी तक तो कभी नहीं आया। पापा से पूछ लूँ?

डॉली: नहीं नहीं, रहने दो। मैं खाना भिजवा दूँगी, आप नौकर भेज दीजिएगा।
जय उसको बहुत प्यार किया और फिर बाई कहकर चला गया।

डॉली ने घर की सफ़ाई शुरू की और शशी से सब समझने लगी। इस चक्कर में शशी भी राज से मिल नहीं पा रही थी ।
तभी राज ने आवाज़ लगायी अपने कमरे से : शशी आओ और यहाँ को सफ़ाई कर दो।

शशी : जी आती हूँ। ये कहकर वह झाड़ू ले जाकर उसके कमरे ने चली गयी।

राज ने उसको पकड़ लिया और उसको चूमते हुए बोला: बहुत तरसा रही हो। फिर उसकी चूचि दबाते हुए बोला : अब तो तेरी चूचियाँ बड़ी हो रही हैं। अब इनमे दूध आएगा ना बच्चा होने के बाद। मुझे भी पिलाओगी ना दूध?

शशी हँसकर बोली: अरे आपको तो पिलाऊँगी ही। आपका ही तो बेटा होगा ना।

अब राज बिस्तर पर लेटा और बोला: चलो अब चूसो मेरा लौड़ा।

शशी ने उसकी लूँगी खोली और चड्डी नीचे करके लौड़ा चूसना शुरू किया। क़रीब २० मिनट चूसने के बाद वह उसके मुँह में ही झड़ गया।

डॉली शशी का इंतज़ार करते हुए टी वी देखने लगी। शशी जब राज के कमरे से बाहर आयी तो उसका चेहरा लाल हो रहा था। डॉली को थोड़ी हैरानी हुई कि ऐसा क्या हुआ कि उसका चेहरा थोड़ा उत्तेजित सा दिख रहा था। फिर वह शशी के साथ खाना बनाने लगी।
राज के लिए डॉली की दिन भर की उपस्थिति का पहला दिन था। उसे बड़ा अजीब लग रहा था कि शायद वह अब शशी के साथ जब चाहे तब पुराने तरह से मज़े नहीं कर पाएगा।

डॉली भी दिन भर ससुर को घर में देखकर सहज नहीं हो पा रही थी। उसके साथ बात करने को एक शशी ही थी।

शशी जल्दी ही डॉली से घुल मिल गयी और पूछी: भाभी जी हनीमून कैसा रहा? भय्या ने ज़्यादा तंग तो नहीं किया? ये कहकर वो खी खी करके हँसने लगी।

तभी राज पानी लेने आया और उनकी बात सुनकर ठिठक गया और छुपकर उनकी बातें सुनने लगा।

डॉली शर्मा कर: नहीं, वो तो बहुत अच्छें हैं, मेरा पूरा ख़याल रखते हैं, वो मुझे क्यों तंग करेंगे?

शशी: मेरा मतलब बहुत ज़्यादा दर्द तो नहीं दिया आपको ?ये कहते हुए उसने आँख मार दी।

डॉली शर्मा कर बोली: धत्त , कुछ भी बोलती हो। वो मुझे बहुत प्यार करते हैं , वो मुझे तकलीफ़ में नहीं देख सकते।

शशी: तो क्या आप अभी तक कुँवारी हो? उन्होंने आपको चो– मतलब किया नहीं क्या?

डॉली: धत्त , कुछ भी बोलती हो, सब हुआ हमारे बीच, पर उन्होंने बड़े आराम से किया और थोड़ा सा ही दर्द हुआ।

शशी: ओह फिर ठीक है। मैं जब पहली बार चु- मतलब करवाई थी ना तब बहुत दुखा था। उन्होंने बड़ी बेरहमी से किया था।

डॉली: इसका मतलब आपके पति आपको प्यार नहीं करते तभी तो इतना दुःख दिया था आपको।

शशी: अरे भाभी, मेरा पति क्या दुखाएगा? उसका हथियार है ही पतला सा । मेरी सील तो जब मैं दसवीं में थी तभी कॉलेज के एक टीचर ने मुझे फँसाकर तोड़ दी थी। मैं तो दो दिन तक चल भी नहीं पा रही थी।

डॉली: ओह ये तो बहुत ख़राब बात है। आपने उसकी सिक्युरिटी में नहीं पकड़वा दिया?

शशी: अरे मैं तो अपनी मर्ज़ी से ही चु- मतलब करवाई थी तो सिक्युरिटी को क्यों बुलाती।

डॉली: ओह अब मैं क्या बोलूँ इस बारे में। तो फिर आप उनसे एक बार ही करवाई थी या बाद में भी करवाई थी?

शशी: आठ दस बार तो करवाई ही होंगी। बाद में बहुत मज़ा आता था उनसे करवाने में।

डॉली: ओह, ऐसा क्या?

शशी: उनके हथियार की याद आती है तो मेरी बुर खुजाने लगती है। ये कहते हुए उसने अपनी साड़ी के ऊपर से अपनी बुर खुजा दी।

डॉली हैरानी से देखने लगी कि वो क्या कर रही है।

डॉली के लिए ये सब नया और अजीब सा था।
फिर वह बोली: अच्छा चलो ,अब खाना बन गया ना, मैं अपने कमरे में जाती हूँ।

राज उनकी सेक्सी बातें सुनकर अपने खड़े लौड़े को दबाकर मस्ती से भर उठा। और इसके पहले कि डॉली बाहर आती वह वहाँ से निकल गया।

डॉली अपने कमरे में आकर सोचने लगी कि शशी के साथ उसने क्यों इतनी सेक्सी बातें कीं । वह इस तरह की बातें कभी भी वह किसी से नहीं करती थी। तभी जय का फ़ोन आया: कैसी हो मेरी जान? बहुत याद आ रही है तुम्हारी?

डॉली: ठीक हूँ मुझे भी आपकी याद आ रही है। आ जाओ ना अभी घर। डॉली का हाथ अपनी बुर पर चला गया और वह भी शशी की तरह अपनी बुर को साड़ी के ऊपर से खुजाने लगी।

जय: जान, बहुत ग्राहक हैं आज , शायद ही समय मिले आने के लिए। जानती हो ऐसा मन कर रहा है कितुमको अपने से चिपका लूँ और सब कुछ कर लूँ। वह अपना मोटा लौड़ा दबाकर बोला।

डॉली: मुझे भी आपसे चिपटने की इच्छा हो रही है। चलिए कोई बात नहीं आप अपना काम करिए । बाई ।

फिर वह टी वी देखने लगी।

उधर शशी घर जाने के पहले राज के कमरे में गयी तो वह उसे पकड़कर चूमा और बोला: क्या बातें कर रही थीं बहू के साथ?

शशी हँसकर बोली: बस मस्ती कर रही थी। पर सच में बहुत सीधी लड़की है आपकी बहू । आपको उसको छोड़ देना चाहिए।

राज: मैंने उसको कहाँ पकड़ा है जो छोड़ूँगा ?

शशी: मेरा मतलब है कि इस प्यारी सी लड़की पर आप बुरी नज़र मत डालो।

राज: अरे मैंने कहाँ बुरी नज़र डाली है। बहुत फ़ालतू बातें कर रही हो। ख़ुद उससे गंदी बातें कर रही थी और अपनी बुर खुजा रही थी, मैंने सब देखा है।

शशी हँसकर: मैं तो उसे टटोल रही थी कि कैसी लड़की है। सच में बहुत सीधी लड़की है।

राज: अच्छा चल अब मेरा लौड़ा चूस दे घर जाने के पहले। ये कहकर वह अपनी लूँगी उतार दिया और बिस्तर पर पलंग के सहारे बैठ गया। उसका लौड़ा अभी आधा ही खड़ा था। शशी मुस्कुराकर झुकी और लौड़े को ऊपर से नीचे तक चाटी और फिर उसको जैसे जैसे चूसने लगी वह पूरा खड़ा हो गया और वह मज़े से उसे चूसने लगी। क़रीब १५ मिनट के बाद राज ह्म्म्म्म्म कहकर उसके मुँह में झड़ गया और शशी उसका पूरा रस पी गयी। बाद में उसने लौड़े को जीभ से चाट कर साफ़ कर दिया। फिर थोड़ा सा और चूमा चाटी के बाद वह अपने घर चली गयी।

दोपहर को क़रीब एक बजे डॉली ने राज का दरवाज़ा खड़खड़ाया और बोली: पापा जी खाना लगाऊँ क्या?

राज अंदर से ही बोला: हाँ बेटी लगा दो।

डॉली ने खाना लगा दिया तभी राज लूँगी और बनियान में बाहर आया। डॉली पूरी तरह से साड़ी से ढकी हुई थी। दोनों आमने सामने बैठे और खाना खाने लगे। राज उससे इधर उधर की बातें करने लगा और शीघ्र ही वह सहज हो गयी।

राज ने खाने की भी तारीफ़ की और फिर दोनों अपने अपने कमरे ने चले गए। इसी तरह शाम की भी चाय साथ ही में पीकर दोनों थोड़ी सी बातें किए। शशी शाम को आकर चाय और डिनर बना कर चली गयी। जय दुकान बंद करके आया और डॉली की आँखें चमक उठीं। जय अपने पापा से थोड़ी सी बात किया और अपने कमरे में चला गया। डॉली भी अंदर पहुँची तब वह बाथरूम में था। जब वह बाथरूम से बाहर आया तो वह पूरा नंगा था उसका लौड़ा पूरा खड़ा होकर उसके पेट को छूने की कोशिश कर रहा था। डॉली की बुर उसे देखकर रस छोड़ने लगी । वह शर्माकर बोली: ये क्या हो रहा है? ये इतना तना हुआ और ग़ुस्से में क्यों है?

जय आकर उसको अपनी बाहों में भर लिया और होंठ चूसते हुए बोला: जान आज तो पागल हो गया हूँ , बस अभी इसे शांत कर दो प्लीज़।
डॉली: हटिए अभी कोई टाइम है क्या? डिनर कर लीजिए फिर रात को कर लीजिएगा।

जय ने उसका हाथ अपने लौड़े पर रख दिया और डॉली सिहर उठी और उसे मस्ती से सहलाने लगी। उसका रहा सहा विरोध भी समाप्त हो गया। जय ने उसके ब्लाउस के हुक खोले और उसके ब्रा में कसे आमों को दबाने लगा। डॉली आऽऽऽऽह कर उठी। फिर उसने उसकी ब्रा का हुक भी खोला और उसके कप्स को ऊपर करके उसकी नंगी चूचियों पर टूट पड़ा। उनको दबाने के बाद वह उनको खड़े खड़े ही चूसने लगा। डॉली उइइइइइइइ कर उठी।


अब उसने डॉली को बिस्तर पर लिटाया और उसकी साड़ी और पेटीकोट ऊपर करके उसकी पैंटी के ऊपर से बुर को दबाने लगा। डॉली हाऽऽऽय्यय करके अपनी कमर ऊपर उठायी। फिर उसने उसकी पैंटी उतार दी और उसकी बुर में अपना मुँह घुसेड़ दिया । अब तो डॉली की घुटी हुई सिसकियाँ निकलने लगीं। उसकी लम्बी जीभ उसकी बुर को मस्ती से भर रही थी। फिर उसने अपना लौड़ा उसकी बुर के छेद पर रखा और एक धक्के में आधा लौड़ा पेल दिया। वह चिल्ला उठी आऽऽऽऽऽह जीइइइइइइ । फिर वह उसके दूध दबाकर उसके होंठ चूसते हुए एक और धक्का मारा और पूरा लौड़ा उसकी बुर में समा गया। अब वह अपनी कमर दबाकर उसकी चुदाई करने लगा। डॉली भी अपनी गाँड़ उछालकर चुदवाने लगी। कमरे में जैसे तूफ़ान सा आ गया। दो प्यासे अपनी अपनी प्यास बुझाने में लगे थे। पलंग चूँ चूँ करने लगा। कमरा आऽऽऽऽहहह उइइइइइइ हम्म और उन्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह की आवाज़ों से भरने लगा। क़रीब दस मिनट की चुदाई के बाद दोनों झड़ने लगे और एक दूसरे से बुरी तरह चिपट गए।

थोड़ी देर चिपके रहने के बाद वो अलग हुए और डॉली जय को चूमते हुए बोली: थैंक्स , सच मुझे इसकी बहुत ज़रूरत थी।

जय शरारत से : किसकी ज़रूरत थी?

डॉली शर्मा कर उसके गीले लौड़े को दबाकर बोली: इसकी ।

जय: इसका कोई नाम है?

डॉली पास आकर उसके कान में फुसफ़सायी: आपके लौड़े की। ओ के ?

जय हँसकर: हाँ अब ठीक है। फिर उसकी बुर को सहला कर बोला: मुझे भी तुम्हारी बुर की बड़ी याद आ रही थी। दोनों फिर से लिपट गए। डॉली बोली: चलो अब डिनर करते हैं। पापा सोच रहे होंगे कि ये दोनों क्या कर रहे है अंदर कमरे में?

जय हँसक : पापा को पता है कि नई शादी का जोड़ा कमरे में क्या करता है। हा हा ।

फिर दोनों फ़्रेश होकर बाहर आए। डिनर सामान्य था। बाद में राज सोने चला गया और ये जोड़ा रात में दो बार और चुदाई करके सो गया । आज डॉली ने भी जी भर के उसका लौड़ा चूसा और उन्होंने बहुत देर तक ६९ भी किया । पूरी तरह तृप्त होकर दोनों गहरी नींद सो गए।

दिन इसी तरह गुज़रते गए। राज दिन में एक बार शशी से मज़ा ले लेता था और जय और डॉली की चुदाई रात में ही हो पाती थी। सिवाय इतवार के, जब वो दिन में भी मज़े कर लेते थे। अब डॉली की भी शर्म कम होने लगी थी। अब वह घर में सुबह गाउन पहनकर भी रहती थी और राज पूरी कोशिश करता कि वह उसके मस्त उभारो को वासना की दृष्टि से ना देखे। वह जब फ्रिज से सामान निकालने के लिए झुकती तो उसकी मस्त गाँड़ राज के लौड़े को हिला देती। पर फिर भी वह पूरी कोशिश कर रहा था कि किसी तरह वह इस सबसे बच सके और अपने कमीनेपन को क़ाबू में रख सके। और अब तक वो इसमे कामयाब भी था।

एक दिन उसने डॉली की माँ रश्मि को अमित के साथ बुलाया और एक होटेल के कमरे में उसकी ज़बरदस्त चुदाई की। शाम को अमित और रश्मि डॉली से मिलने आए। डॉली बहुत ख़ुश थी। राज ने ऐसा दिखाया जैसे वह भी अभी उनसे मिल रह रहा हो। जबकि वो सब होटेल में दिन भर साथ साथ थे।

फिर वो दोनों वापस चले गए। रात को जय , डॉली और राज डिनर करते हुए रश्मि की बातें किए और जय को अच्छा लगा की डॉली अपनी माँ से मिलकर बहुत ख़ुश थी।

दिन इसी तरह बीतते गए। सब ठीक चल रहा था कि डॉली के शांत जीवन में एक तूफ़ान आ गया।
उस दिन रोज़ की तरह जब सुबह ७ बजे डॉली उठी और किचन में गयी तो शशी चाय बना रही थी । डॉली को देख कर शशी मुस्कुराती हुई बोली : भाभी नींद आयी या भय्या ने आज भी सोने नहीं दिया ?

डॉली: आप भी बस रोज़ एक ही सवाल पूछतीं हो। सब ठीक है हम दोनों के बीच। हम मज़े भी करते हैं और आराम भी। कहते हुए वह हँसने लगी।

शशी भी मुस्कुराकर चाय का कप लेकर राज के कमरे में गयी। राज मोर्निंग वॉक से आकर अपने लोअर को उतार रहा था और फिर वह जैसे ही चड्डी निकाला वैसे ही शशी अंदर आयी और मुस्कुराकर बोली: वाह साहब , लटका हुआ भी कितना प्यारा लगता है आपका हथियार। वह चाय रखी और झुक कर उसके लौड़े को चूम लिया। राज ने उसको अपने से लिपटा लिया और उसके होंठ चूस लिए। फिर वह लूँगी पहनकर बैठ गया और चाय पीने लगा। उसकी लूँगी में एक छोटा सा तंबू तो बन ही गया था।

शशी: आजकल आप घर में चड्डी क्यों नहीं पहनते?

राज : अब घर में चड्डी पहनने की क्या ज़रूरत है। नीचे फंसा सा लगता है। ऐसे लूँगी में फ़्री सा लगता है।

शशी: अगर बहू का पिछवाड़ा देख कर आपका खड़ा हो गया तो बिना चड्डी के तो वो साफ़ ही दिख जाएगा।

राज: जान बस करो क्यों मेरी प्यारी सी बहू के बारे में गंदी बातें करती हो? तुम्हारे रहते मेरे लौड़े को किसी और की ज़रूरत है ही नहीं। ये कहते ही उसने उसकी चूतरों को मसल दिया । शशी आऽऽह करके वहाँ से भाग गयी।

डॉली ने चाय पीकर जय को उठाया और वह भी नहाकर नाश्ता करके दुकान चला गया। उसके जाने के बाद डॉली भी नहाने चली गयी। शशी भी राज के कमरे की सफ़ाई के बहाने उसके कमरे में गयी जहाँ दोनों मज़े में लग गए ।
डॉली नहा कर आइ और तैयार होकर वह किचन में गयी। वहाँ उसे सब्ज़ी काटने का चाक़ू नहीं मिला। उसने बहुत खोजा पर उसे जब नहीं मिला तो उसने सोचा कि ससुर के कमरे से शशी को बुलाकर पूछ लेती हूँ। वह ससुर के कमरे के पास जाकर आवाज़ लगाने ही वाली थी कि उसे कुछ अजीब सी आवाज़ें सुनाई पड़ी। वह रुक गयी और पास ही आधी खुली खिड़की के पास आकर सुनने की कोशिश की। अंदर से उफ़्फ़्फ़्फ़्फ़ गन्न्न्न्न्न्न्न ह्म्म्म्म्म की आवाज़ आ रही थी। वह धीरे से कांपते हुए हाथ से परदे को हटा कर अंदर को झाँकी। अंदर का दृश्य देखकर वह जैसे पथ्थर ही हो गयी। शशी बिस्तर पर घोड़ी बनी हुई थी और उसकी साड़ी ऊपर तक उठी हुई थी। पीछे उसका ससुर कमर के नीचे पूरा नंगा था और उसकी चुदाई कर रहा था। उफ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़ ये क्या हो रहा है। क्या कोई अपनी नौकशशी से भी ऐसा करता है भला! इसके पहले कि वह वहाँ से हट पाती राज चिल्लाकर ह्म्म्म्म्म्म कहकर झड़ने लगा। जब उसने अपना लौड़ा बाहर निकाला तो उसका मोटा गीला लौड़ा देखकर उसका मुँह खुला रह गया। उसे अपनी बुर में हल्का सा गीलापन सा लगा। वह उसको खुजा कर वहाँ से चुपचाप हट गयी।

अपने कमरे में आकर वह लेट गयी और उसकी आँखों के सामने बार बार शशी की चुदाई का दृश्य और पापा का मोटा लौड़ा आ रहा था। वह सोची कि बाप बेटे के लौड़े एकदम एक जैसे हैं, मोटे और लम्बे। पर जय का लौड़ा थोड़ा ज़्यादा गोरा है पापा के लौड़े से। उसे अपने आप पर शर्म आयी कि छि वो पापा के लौड़े के बारे में सोच ही क्यों रही है !!

फिर उसका ध्यान शशी पर गया और वह ग़ुस्से से भर गयी। ज़रूर उसने पापा के अकेलेपन का फ़ायदा उठाया होगा और उनको अपने जाल में फँसा लिया होगा। पापा कितने सीधे हैं, वो इस कमीनी के चक्कर में फँस गए बेचारे, वो सोचने लगी।

भला उसको क्या पता था कि हक़ीक़त इसके बिपरीत थी और असल में राज ने ही शशी को फ़ांसा थ।

वह सोची कि क्या जय को फ़ोन करके बता दूँ । फिर सोची कि नहीं वह अपने पापा को बहुत प्यार करते हैं और उनके बारे में ये जानकार वह दुःखी होगा। उसे अभी नहीं बताना चाहिए, हाँ समय आने पर वह उसे बता देगी। क़रीब आधे घंटे तक सोचने के बाद वह इस निश्चय पर पहुँची कि शशी को काम से निकालना ही इस समस्या का हल है। वो बाहर आइ तो देखा कि राज बाहर जाने के लिए तैयार था। ना चाहते हुए भी उसकी आँख राज के पैंट के अगले भाग पर चली गयी। पैंट के ऊपर से भी वहाँ एक उभार सा था। जैसे पैंट उसके बड़े से हथियार को छुपा ना पा रही हो। वह अपने पे ग़ुस्सा हुई और बोली: पापा जी कहीं जा रहे हैं क्या?

राज: हाँ बहू , बैंक जा रहा हूँ। और भी कुछ काम है १ घंटा लग जाएगा। वो कहकर चला गया।

अब डॉली ने गहरी साँस ली और शशी को आवाज़ दी। शशी आइ तो थोड़ी थकी हुई दिख रही थी।

डॉली: देखो शशी आज तुमने मुझे बहुत दुःखी किया है।

शशी: जी, मैंने आपको दुःखी किया है? मैं समझी नहीं।

डॉली: आज मैंने तुमको पापा के साथ देख लिया है। आजतक मैं सोचती थी कि तुम इतनी देर पापा के कमरे में क्या करती हो? आज मुझे इसका जवाब मिल गया है। छि तुम अपने पति को धोका कैसे दे सकती हो। पापा को फँसा कर तुमने उनका भी उपयोग किया है। अब तुम्हारे लिए इस घर में कोई ज़रूरत नहीं है। तुम्हारा मैंने हिसाब कर दिया है। लो अपने पैसे और दूसरा घर ढूँढ लो।
शशी रोने लगी और बोली: एक बार माफ़ कर दो भाभी।

डॉली: देखो ये नहीं हो सकता। अब तुम जाओ और अब काम पर नहीं आना।

ये कहकर वो वहाँ से हट गयी। शशी रोती हुई बाहर चली गयी।

राज वापस आया तो थोड़ा सा परेशान था। वो बोला: बहू , शशी का फ़ोन आया था कि तुमने उसे निकाल दिया काम से?
डॉली: जी पापा जी, वो काम अच्छा नहीं करती थी इसलिए निकाल दिया। मैंने अभी अपने पड़ोसन से बात कर ली है कल से दूसरी कामवाली बाई आ जाएगी।

राज को शशी ने सब बता दिया था कि वह क्यों निकाली गयी है, पर बहू उसके सम्मान की रक्षा कर रही थी। जहाँ उसे एक ओर खीझ सी हुई कि उसकी प्यास अब कैसे बुझेगी? वहीं उसको ये संतोष था कि उसकी बहू उसका अपमान नहीं कर रही थी। वह चुपचाप अपने कमरे में चला गया। पर उसकी खीझ अभी भी अपनी जगह थी।

उस दिन शाम की चाय और डिनर भी डॉली ने ही बनाया था। राज डॉली से आँखें नहीं मिला पा रहा था। डिनर के बाद सब अपने कमरों में चले गए। डॉली ने जय को बताया कि शशी को काम से निकाल दिया है। जय ने कहा ठीक है दूसरी रख लो। उसने कोई इंट्रेस्ट नहीं दिखाया और उसकी चूची दबाकर उसे गरम करने लगा।डॉली ने भी उसका लौड़ा पकड़ा और उसको दबाकर पापा के लौड़े से तुलना करने लगी। शायद दोनों बाप बेटे का एक सा ही था ।जल्दी ही जय चुदाई के मूड में आ गया और उसे चोदने लगा। डॉली ने भी सोचा कि इनको क्यों बताऊँ फ़ालतू में दुःखी होंगे, अपने पापा की करतूत जानकार।

चुदाई के बाद दोनों लिपट कर सो गए। पर डॉली की आँखों में अभी भी पापा का मस्त लौड़ा घूम रहा था और वह भी सो गयी।
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RE: बहू की चूत ससुर का लौडा - by Pagol premi - 08-01-2021, 11:16 PM



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