08-01-2021, 11:06 PM
रचना की बुर पूरी गीली हो चुकी थी और उसका हाथ अपने आप ही अपनी बुर को दबाने लगा। जब शशी ने मुँह हटाया तो उसके पापा का लौड़ा अब मुरझाने लगा था। इस अवस्था में भी बहुत सेक्सी लग रहा था। कितना मोटा और लम्बा सा लटका हुआ और नीचे बड़े बड़े बॉल्ज़ भी बहुत ही कामुक लग रहे थे। रचना की आँखें अपने पापा के लौड़े से जैसे हटने का नाम ही नहीं ले रही थी। अब अचानक राज की नज़र खिड़की पर पड़ी और उसकी आँखें रचना की आँखों से टकरा गयीं। रचना को तो काटो ख़ून नहीं, वह वहाँ से भागकर अपने कमरे में आ गयी। उसकी छाती ऊपर नीचे हो रही थीं। उसकी बुर में भी जैसे आग लगी हुई थी। उसकी आँख के सामने बार बार पापा का मदमस्त लौड़ा आ रहा था और फिर उसे अपने पापा की आँखें याद आयीं जिन्होंने उसको झाँकते हुए देख लिया था। वह अपनी बुर में ऊँगली करने लगी।
उधर राज भी रचना को उनकी चुदाई देखते हुए देखकर हड़बड़ा गया। उसे बड़ी शर्म आयी कि रचना ने उसे शशी के साथ इस अवस्था में देख लिया। पर उसे एक बात की हैरानी थी कि वह उसके लौड़े को इतनी प्यासी निगाहों से क्यों देख रही थी। आख़िर वो शादी शुदा थी और उसके पति का लौड़ा उसे मज़ा देता ही होगा। वो थोड़ी सी उलझन में पड़ गया था। पता नहीं अपनी बेटी से नज़रें कैसे मिलूँगा, वह सोचा। शशी भी थोड़ी परेशान थी। राज ने कहा: शशी मैं सम्भाल लूँगा , तुम परेशान मत हो।
शशी सिर हिलाकर किचन में जाकर अपने काम में लग गयी।क़रीब एक घंटे के बाद राज ड्रॉइंग रूम में सोफ़े पर बैठा और चाय माँगा। तभी जय बाहर आया और चाय माँगा। दोनो बाप बेटे चाय पी रहे थे। जय: पापा , दीदी अभी तक नहीं उठी? मैं उसे उठाता हूँ।
राज: ठीक है जाओ उठा दो।
जय रचना के कमरे में जाकर सोई हुई दीदी को उठाने अंदर पहुँचा। रचना अपनी बुर झाड़कर फिर से सो गयी थी। वो करवट में सो रही थी और उसकी बड़ी सी गाँड़ देखकर जय के लौड़े में हलचल होने लगी। वह सामने से आकर बोला: दीदी, उठो ना सुबह हो गयी है। रचना ने एक क़ातिल अंगड़ाई ली और उसके बड़े बड़े बूब्ज़ जैसे नायटी से बाहर आने को मचल से गए। अब उसके आधे नंगे बूब्ज़ नायटी से बाहर आकर राज को पागल कर दिए। उसका लौड़ा पूरा खड़ा हो गया। वह अपने लौड़े को छुपाकर बोला: चलिए अब उठिए, पापा इंतज़ार कर रहे हैं।
रचना: आऽऽऽऽह अच्छा आती हूँ। तू चल।
जय अपने लौड़े को छुपाकर जैसे तैसे बाहर आया और सोफ़े में बैठकर चाय पीने लगा। उसे अपने आप पर ग्लानि हो रही थी कि वह अपनी दीदी के बदन को ऐसी नज़र से देखा । तभी रचना आयी और शशी उसे भी चाय दे गयी। शशी रचना से आँखें नहीं मिला पा रही थी। राज ने भी रचना को देखा और बोला: (झेंप कर) गुड मॉर्निंग बेटा ।
रचना ने ऐसा दिखाया जैसे कुछ हुआ ही नहीं, और बोली: गुड मोर्निंग पापा।
फिर सब चाय पीने लगे और शादी की डिटेल्ज़ डिस्कस करने लगे। फिर जय तैयार होकर दुकान चला गया। शशी भी खाना बना कर चली गयी।
राज: बेटी, ज़ेवरों को आज सुनार के यहाँ पोलिश करने देना है। चलो ज़ेवर पसंद कर लो, जो तुम पहनोगी।
रचना पापा के साथ उनके कमरे में पहुँची और राज ने तिजोरी खोलकर गहने निकाले और रचना उनमें से कुछ पसंद की और अपनी मम्मी को याद करके रोने लगी। राज ने उसके कंधे पर हाथ रखा और उसे चुप कराने लगा।
रचना: पापा इन गहनों को देखकर मम्मी की याद आ गयी। पापा, आपको उनकी याद नहीं आती?
राज: ऐसा क्यों बोल रही हो बेटी, उसकी याद तो हमेशा आती है।
रचना: इसलिए आज आप शशी के साथ वो सब कर रहे थे?
राज थोड़ा परेशान होकर बोला: बेटी, तुम्हारी मम्मी को याद करता हूँ, मिस भी करता हूँ। पर बेटी, ये शरीर भी तो बहुत कुछ माँगता है , उसका क्या करूँ ?
रचना: पर पापा, वो एक नौकशशी है, आपको बीमारी दे सकती है, पता नहीं किस किस के साथ करवाती होगी?
राज: नहीं बेटी, शशी बहुत अच्छी लड़की है, वो मेरे सिवाय सिर अपने पति से ही चुद– मतलब करवाती है। इस शरीर की प्यास बुझाने के लिए मैं रँडी के पास तो नहीं गया।
रचना: आपको कैसे पता? हो सकता है वो झूठ बोल रही हो।
राज: बेटी, अब तुमसे क्या छुपाना? दरअसल उसका पति उसको माँ नहीं बना पा रहा था तो मैंने उसे वादा किया कि मैं उसे एक महीने में ही गारण्टी से मॉ बना दूँगा। इसीलिए वो मेरे साथ करवाने के लिए राज़ी हुई।
रचना: ओह, तो क्या वो प्रेगनेंट हो गयी?
राज: हाँ बेटी, वादे के अनुसार एक महीने में ही वो प्रेगनेंट हो गयी। वो अब जल्दी ही माँ बनेगी।
रचना की आँखों के सामने पापा का बड़ा सा लौड़ा और बड़े बड़े बॉल्ज़ घूम गए। वह सोचने लगी कि इतना मर्दाना हथियार और ऐसे बड़े बॉल्ज़ की चुदाई से बच्चा तो होगा ही।
रचना: ओह, पर उसके मर्द को तो शक नहीं होगा ना?
राज : उसे कैसे शक होगा क्योंकि वह तो उसको हफ़्ते में एक दो बार चो- मतलब कर ही रहा था ना। वो तो यही सोचेगा ना कि उसकी चुदा- मतलब उसका ही बच्चा है वो।
रचना देख रही थी कि पापा चुदायी और चोदने जैसे शब्द का उपयोग करने की कोशिश कर रहे थे। वह अब उत्तेजित होने लगी थी।
तभी राज ने एक अजीब बात बोली: एक बात और शशी के पति का हथियार बहुत छोटा और कमज़ोर है और वह उसे बिस्तर पर संतुष्ट भी नहीं कर पाता।
रचना की बुर अब गीली होने लगी थी। बातें अब अश्लीलता की हद पार कर रहीं थीं। वह बोली: ओह । और शर्म से लाल हो गयी। उसकी आँख अब अचानक पापा की लूँगी पर गयी तो वहाँ एक तंबू देखकर वह बहुत हैरान रह गयी। वह समझ गयी कि पापा भी उत्तेजित हो चले हैं। उसे बड़ा अजीब लग रहा था कि बाप बेटी की बातें अब इतनी बेशर्म हो गयीं थीं कि वह दोनों उत्तेजित हो चुके थे।
रचना ने बात बदलने का सोचा और बोली: ओह अच्छा चलिए मैं ये ज़ेवर पहनूँगी , इसे ही पोलिश करवा लेती हूँ।
राज : ठीक है बेटी। पर तुम मुझसे नाराज़ तो नहीं हो? मेरे और शशी के बारे में जान कर।
रचना : पापा आप बड़े हैं और अपना अच्छा बुरा समझ सकते हैं। इसलिए आपको जो सही लगता है वह करो। पर एक बात है डॉली के इस घर में आने के बाद यह सब कैसे करेंगे शशी के साथ?
राज : बेटी सब मैनिज हो जाएगा। तब की तब देखेंगे।
तभी कॉल बेल बजी। रचना ने दरवाज़ा खोला । सामने शशी खड़ी थी।
रचना: अरे तुम वापस आ गयी? क्या हुआ?
शशी: दीदी मेरा मोबाइल यहीं रह गया है।
रचना: ओह ठीक है ले लो। वह अब सोफ़े पर बैठ गयी।
शशी किचन में जाकर मोबाइल खोजी पर उसे नहीं मिला। उसने रचना से कहा: दीदी आप मिस्ड कॉल दो ना । फिर उसने नम्बर बोला।
रचना ने कॉल किया और घंटी पापा के कमरे में बजी। शशी थोड़ा सा डरकर राज के कमरे में पहुँची।
रचना दौड़कर दरवाज़े के पीछे खड़ी होकर उनकी बातें सुनने लगी।
राज: अरे शशी क्या हुआ? तुम्हारे फ़ोन की घंटी यहाँ बजी अभी।
शशी: मेरा फ़ोन यहाँ आपके कमरे में ही गिर गया है। फिर वह बिस्तर में खोजी तो उसे तकिए के नीचे मिल गया।
शशी: दीदी ने कुछ कहा क्या आपसे हमारी चुदाई के बारे में? और ये आपका फिर से खड़ा क्यों है? वह लूँगी के तंबू को देखकर बोली।
राज अपने लौड़े को मसल कर बोला: वो रचना से तुम्हारी चुदाई की बातें कर रहा था तो खड़ा हो गया।
शशी: अपनी बेटी से हमारी चुदाई की बातें कर रहे थे? हे भगवान, कितने कमीने आदमी हो आप?
राज: अरे वो भी तो बड़े मज़े से सब पूछ रही थी।
शशी: तो अब क्या हमारी चुदाई बंद?
राज: अरे नहीं मेरी जान, उसे कोई इतराजीवनहीं है। चल अब तू आइ है तो मेरा लौड़ा चूस दे अभी।
शशी हँसती हुई नीचे बैठी और उसकी लूँगी हटाई और उसके मोटे लौड़े पर नाक लगाकर सूंघी और बोली: आऽऽह क्या मस्त गंध है आपकी। फिर वह अपनी जीभ से उसके सुपाडे को चाटने लगी और बोली: म्म्म्म्म्म्म क्या स्वाद है। म्म्म्म्म।
अब रचना से रहा नहीं गया और वह फिर से खिड़की से झाँकने लगी। अंदर का दृश्य देखकर उसकी बुर गीली होने लगी। शशी की जीभ अभी भी उसके सुपाडे पर थी। फिर वह उसके बॉल्ज़ को सूँघने लगी और फिर चाटी। रचना को लगा कि वह अभी झड़ जाएगी। फिर शशी ने ज़ोर ज़ोर से उसके लौड़े को चूसना शुरू किया। रचना ने देखा कि वह डीप थ्रोट दे रही थी। लगता है पापा ने उसे मस्त ट्रेन कर दिया है। क़रीब दस मिनट की चुसाई के बाद वह उसके मुँह में झड़ने लगा। उसके मुँह के साइड से गाढ़ा सा सफ़ेद रस गिर रहा था। रचना की ऊँगली अपने बुर पर चली गयी और वह अपने पापा के लौड़े को एकटक देखती रही जो अब उसके मुँह से बाहर आ कर अभी भी हवा में झूल रहा था।
अब रचना अपने कमरे में आकर अपनी नायटी उठायी और तीन ऊँगली डालकर अपनी बुर को रगड़ने लगी और जल्दी ही उओओइइइइइइइ कहकर झड़ गयी।
शशी के जाने के बाद राज तैयार होकर रचना से बोला: बेटी, चलो सुनार के यहाँ चलते हैं और एक बार होटेल का चक्कर भी मार लेते हैं। देखें मैनेजर को अभी भी कुछ समझना तो नहीं है।
रचना: ठीक है पापा , मैं अभी तैयार होकर आती हूँ।
रचना ने सोचा कि उसके सेक्सी पापा को आज अपना सेक्सी रूप दिखा ही देती हूँ। वह जब तैयार होकर आयी तो राज की आँखें जैसे फटी सी ही रह गयीं। रचना ने एक छोटा सा पारदर्शी टॉप पहना था जिसमें से उसकी ब्रा भी नज़र आ रही थी। उसके आधे बूब्ज़ नंगे ही थे। उसके पेट और कमर का हिस्सा बहुत गोरा और चिकना सा नज़र आ रहा था। नीचे उसने एक मिनी स्कर्ट पहनी थी जिसमें से उसकी गदराई हुई गोल गोल चिकनी जाँघें घुटनो से भी काफ़ी ऊपर तक नज़र आ रही थीं।
राज: बेटी, आज लगता है अमेरिकन कपड़े पहन ली हो।
रचना: जी पापा, सोचा आज कुछ नया पहनूँ। कैसी लग रही हूँ?
राज को अपना गला सूखता सा महसूस हुआ। वह बोला: बहुत प्यारी लग रही हो।
रचना हँसते हुए: सिर्फ़ प्यारी सेक्सी नहीं?
राज: अरे हाँ सेक्सी भी लग रही हो। अब चलें।
रचना: चलिए । कहकर आगे चलने लगी। पीछे से राज उसके उभारों को देखकर अपने खड़े होते लौड़े को ऐडजस्ट करते हुए चल पड़ा।
राज कार लेकर गरॉज़ से बाहर लाया और जब रचना उसकी बग़ल की सीट में बैठने के लिए अपना एक पैर उठाकर अंदर की तब राज को अपनी प्यारी बेटी की गुलाबी क़च्छी नज़र आ गयी। उसकी छोटी सी क़च्छी बस उसकी बुर को ही ढाँक रही थी। अब तो उसका लौड़ा जैसे क़ाबू के बाहर ही होने लगा। उसकी क़च्छी से उसकी बुर की फाँकें भी साफ़ दिखाई दी। अपने लौड़े को दबाके वह कार आगे बढ़ाया। रचना भी अपने पापा के पैंट के उभार को देखकर बिलकुल मस्त होकर सोची कि पापा को आख़िर उसने अपने जाल में फँसाने की तैयारी शुरू कर ही दी। वह सफल भी हो रही थी। वैसे उसकी भी पैंटी थोड़ी गीली हो चली थी, पापा का तंबू देखकर।
सुनार के यहाँ काम ख़त्म करके वो दोनों होटेल में पहुँचे जहाँ शादी की पूरी फ़ंक्शन होने वाली थी। होटेल में सब लोग ख़ूबसूरत औरत को देखे जा रहे थे। राज ने ध्यान से देखा कि क्या जवान क्या अधेड़ सभी उसको वासना भरी निगाहों से देखे जा रहे थे। अब वो दोनों रेस्तराँ के एक कोने में बैठे और मैनेजर को बुलाया । अब वो सब फ़ाइनल तैयारियों के बारे में डिस्कस करने लगे। राज ने देखा कि मैनेजर भी रचना की छातियों को घूरे जा रहा था। राज को अचानक जलन सी होने लगी। फिर राज का हाथ मोबाइल से टकराया और वह नीचे गिर गया। वह झुक कर उसे उठाने लगा तभी उसकी नज़र टेबल के नीचे से रचना की फैली हुई जाँघों पर पड़ीं। वहाँ उसे उसकी क़च्छी दिखाई दी जो कि एक तरफ़ खिसक गयी थी और उसकी बुर एक साइड से दिख रही थी। बुर की एक फाँक दिख रही थी। वहाँ थोड़े से काले बाल भी दिखाई दे रहे थे। उसकी इच्छा हुई कि उस सुंदर सी बुर की पप्पी ले ले। पर अपने को संभाल कर वो उठा।
रचना ने शैतानी मुस्कुराहट से पूछा: पापा कुछ दिखा?
राज सकपका कर बोला: हाँ मोबाइल मिल गया। वो गिर गया था ना।
रचना मुस्कुराई: अच्छा दिख गया ना ? फिर वह उठी और बोली: चलो पापा चलते हैं।
अब वो दोनों घर की ओर चले गए।
रचना मन ही मन मुस्कुरा रही थी। राज की आँखों के सामने रचना की बुर की एक फाँक आ रही थी।
दोनों अपने अपने ख़यालों में गुम से थे।
शादी में अब ३ दिन बचे थे। रिश्तेदार भी आने शुरू हो गए थे। दूर और पास के भाई चचेरा, ममेरा और मौसी और ना जाने कौन कौन आए थे। अब तो किसी को भी फ़ुर्सत नहीं थी। जय, रचना, शशी और राज सभी बहुत व्यस्त हो गए थे ।किसी को चुदाई की याद भी नहीं आ रही थी। शाम तक सभी बहुत थक जाते थे और सो जाते थे। यही हाल रश्मि , अमित और डॉली का भी था। घर मेहमानो से पट गया था।
ख़ैर शादी का दिन भी आ ही गया। रश्मि अपने परिवार के साथ होटेल में शिफ़्ट हो चुकी थी। वह सब तैयार होकर दूल्हे और बारात के आने का इंतज़ार करने लगे। डॉली भी आज बहुत सुंदर लग रही थी,शादी के लाल जोड़े में।
उधर बारात नाचते हुए होटेल के पास आइ और जय के दोस्त और रिश्तेदार भी बहुत ज़ोर से नाचने लगे। जय फूलों से लदी कार में बैठा था । उसके सामने सभी नाच रहे थे। राज सिक्के बरसा रहा था। रचना भी भारी साड़ी में मस्ती से नाच रही थी। उसकी चिकनी बग़लें मर्दों को बहुत आकर्षित कर रही थीं। बार बार उसका पल्लू खिसक जाती थी और उसकी भारी छातियाँ देखकर मर्द लौड़े मसल रहे थे। कई लोग नाचने के बहाने उसकी गाँड़ पर हाथ भी फेर चुके थे।
जब बारात बिलकुल होटेल के सामने पहुँची तो सब ज़ोर से नाचने लगे। अब राज भी नाचने लगा क्योंकि रचना उसको खींच लायी थी । रचना पसीने से भीगी हुई थी। उसकी बग़ल की ख़ुशबू राज के नथुनों में घुसी और साथ ही उसके बड़े दूध जो नाचने से हिल रहे थे , उसे मस्त कर गए थे। फिर उसे याद आया कि उसे और भी काम हैं, तो वह आगे बढ़कर दुल्हन के परिवार से मिला। उसने रश्मि को देखा तो देखता ही रह गया। क्या जँच रही थी वह आज। फिर शादी हो गयी और रात भर चली । सुबह के ५ बजे फेरे ख़त्म हुए। और जय रोती हुई दुल्हन लेकर अपने घर आ गया।
कई मेहमान तो उसी दिन चले गए। दिन भर रचना ने डॉली का बहुत ख़याल रखा और डॉली ने दिन में रचना के कमरे में ही आराम किया। शाम तक सभी मेहमान चले गए थे। राज और रचना ने चैन की साँस ली। जय और डॉली दोपहर में आराम किए थे सो फ़्रेश थे।
रचना ने एक फ़ोन लगाया और होटेल से एक आदमी आया और जय के कमरे को फूलों और मोमबतीयों से सजाया । सुहाग की सेज तैयार थी और रचना ने ख़ुद उसे सजवाया था अपने भाई और भाभी के लिए। रात को खाना खाकर राज ने जय को एक हीरे की अँगूठी दी और बोला: बेटा , ये अँगूठी बहू को मुँह दिखाई में दे देना। फिर वह अपने कमरे में चले गया। रचना डॉली को लेकर जय के कमरे में ले गयी और डॉली ये सजावट देखकर बहुत शर्मा गयी । रचना: चलो भाभी अब मेरे भाई के साथ सुहाग रात मनाओ। ख़ूब मज़े करो। मैं चलती हूँ, ये दूध रखा है पी लेना दोनों। ठीक है ना?
डॉली ने उसका हाथ पकड़ लिया और बोली: दीदी रुकिए ना, मुझे डर लग रहा है।
रचना: अरे पगली , इसमें काहे का डरना। आज की रात तो मज़े की रात है। आज तुम दोनों एक हो जाओगे। ख़ूब प्यार करो एक दूसरे को। अब जाऊँ?
डॉली शर्माकर हाँ में सिर हिला दी। अब रचना बाहर आइ और जय को बोली: जाओ अपनी दुल्हन से मिलो और दोनों एक दूसरे के हो जाओ। बेस्ट ओफ़ लक। मेरी बात याद है कि नहीं?
जय: जी दीदी याद है। कोशिश करूँगा कि नर्वस ना होऊँ। थोड़ा अजीब तो लग रहा है।
रचना ने उसकी पीठ पर एक धौल मारी और बोली: अरे सब बढ़िया होगा, भाई मेरे,अब जाओ। और हँसती हुई अपने कमरे में चली गयी।
जय अब अपने कमरे में गया और वहाँ की सजावट देखकर वह भी दंग रह गया। बहुत ही रोमांटिक माहोल बना रखा था दीदी ने । उसने देखा कि डॉली बिस्तर पर बैठी उसका इंतज़ार कर रही थी। उसने साड़ी के पल्लू से घूँघट सा भी बना रखा था। बिलकुल फ़िल्मी अन्दाज़ में ।
वह बिस्तर पर बैठा और जेब से वो हीरे की अँगूठी निकाली और फिर प्यार से बोला: डॉली, मेरी जान मुखड़ा तो दिखाओ। ये कहते हुए उसने घूँघट उठा दिया और उसके सामने डॉली का गोरा चाँद सा मुखड़ा था। वो उसे मंत्रमुग्ध सा देखता रह गया और फिर उसने उसे अँगूठी पहनाई। वह बहुत ख़ुश हुई और थैंक्स बोली।
जय: अब तुम बताओ तुम मुझे क्या गिफ़्ट दोगी ?
डॉली: मैंने आपका घूँघट थोड़े उठाया है जो मैं आपको गिफ़्ट दूँ। यह कहकर वह मुस्कुराई । जय भी हँसने लगा।
अब जय उसे देखते हुए बोला: डॉली, वैसे एक गिफ़्ट तो दे ही सकती हो?
डॉली: वो क्या?
जय ने अपने होंठों पर ऊँगली रखी और बोला: एक पप्पी अपने कोमल होठों की।
डॉली शरारत से मुस्कुराकर बोली: पहली बात कि आपको कैसे पता कि मेरे होंठ कोमल हैं? और फिर क्या सिर्फ़ एक पप्पी लेंगे? वो भी सुहाग रात में?
दोनों ज़ोर से हँसने लगे। अब जय ने डॉली को पकड़ा और ख़ुद बिस्तर पर लुढ़क गया और साथ में उसे भी अपने ऊपर लिटा लिया। अब दोनों के होंठ आमने सामने थे।
अब जय ने डॉली के होंठ का एक हल्के से चुम्बन लिया। डॉली हँसकर बोली: चलो हो गया आज का कोटा और मेरी रिटर्न गिफ़्ट भी आपको मिल गयी। यह कहकर वह पलटी और उसके बग़ल में लेट गयी। अब जय ने उसको अपनी बाहों में भरा और उसको अपने से चिपका लिया।
फिर दोनों ने ख़ूब सारी बातें की। कॉलेज , कॉलेज , दोस्तों और रिश्तेदारों के बारे में भी एक दूसरे से बहुत कुछ शेयर किया। इस बीच में दोनों एक दूसरे के बदन पर हाथ भी फेर रहे थे। जय के हाथ उसकी नरम कलाइयों और पीठ पर थे। डॉली के हाथ जय की बाहों की मछलियों पर और उसकी छाती पर थे।
बातें करते हुए ११ बज गए और डॉली ने एक उबासी ली। जय: नींद आ रही है जानू?
डॉली: आ रही है तो क्या सोने दोगे?
जय: सोना चाहोगी तो ज़रूर सोने दूँगा।
डॉली: और सुबह सब पूछेंगे कि सुहागरत कैसी रही तो क्या बोलेंगे?
जय : कह देंगे मस्त रही और क्या?
डॉली: याने कि झूठ बोलेंगे?
जय: इसमें झूठ क्या है। मुझे तो तुमसे बात करके बहुत मज़ा आया। तुम्हारी तुम जानो।
डॉली: मुझे भी बहुत अच्छा लगा। फिर वह आँखें मटका कर के बोली: वैसे अभी नींद नहीं आ रही है। आप चाहो तो कल आपको झूठ नहीं बोलना पड़ेगा।
जय हंस पड़ा और उसको अपनी बाहों में भर कर उसके गाल चूम लिया। वह भी अब मज़े के मूड में आ चुकी थी सो उसने भी उसके गाल चूम लिए। अब जय उसके गाल, आँखें, और नाक भी चूमा। फिर उसने अपने होंठ उसके होंठ पर रखे और चूमने लगा। जल्दी ही दोनों गरम होने लगे। अब उसने डॉली की गरदन भी चुमी और नीचे आकर उसके पल्लू को हटाया और ब्लाउस में कसे उसके कबूतरों के बाहर निकले हुए हिस्से को चूमने लगा।
डॉली भी मस्ती से उसके गरदन को चूम रही थी। अब उसे अपनी जाँघ पर उसका डंडा गड़ रहा था। उसकी बुर गीली होने लगी और ब्रा के अंदर उसके निपल तन कर खड़े हो गए। वह अब उससे ज़ोर से चिपकने लगी। अब जय बोला: जानू, ब्लाउस उतार दूँ।
डॉली हँसकर: अगर नहीं कहूँगी तो नहीं उतारेंगे?
जय हँसते हुए उसके ब्लाउस का हुक खोला। और अब ब्रा में कसे हुए दूध उसके सामने थे । वह उनको चूमता चला गया। उधर डॉली उसकी क़मीज़ के बटन खोल रही थी। अब उसके हाथ उसकी बालों से भारी मर्दानी छाती को सहला रहे थे। जय उठा और अपनी क़मीज़ उतार दिया। फिर वह उसकी साड़ी को पेट के पास से ढीला किया और डॉली ने अपनी कमर उठाकर उसको साड़ी निकालने में मदद की। अब वह सिर्फ़ पेटिकोट और ब्रा में थी। उसका दूधिया गोरा जवान बदन हल्की रौशनी में चमक रहा था। अब जय उसके पेट को चूमने हुए उसकी कमर तक आया और फिर उसने उसके पेटिकोट का भी नाड़ा खोल दिया।अब फिर से डॉली ने अपनी कमर उठाई और पेटिकोट भी उतर गया। अब डॉली की गोरी गदराई हुई मस्त गोल भरी हुई जाँघें उसकी आँखों के सामने थे। उफ़ क्या चिकनी जाँघें थीं। उनके बीच में पतली सी गुलाबी पैंटी जैसे ग़ज़ब ढा रही थी। पैंटी में से उसकी फूली हुई बुर बहुत मस्त नज़र आ रही थी। अब जय बिस्तर से उठकर नीचे आया और अपनी पैंट भी उतार दिया। चड्डी में उसका फूला हुआ लौड़ा बहुत ही बड़ा और एक तरफ़ को डंडे की तरह अकड़ा हुआ दिख रहा था। डॉली अब उसे देखकर डर भी गयी थी और उत्तेजित भी हो रही थी।
जय अब फिर से उसके ऊपर आया और उसके होंठ चूमने लगा। तभी उसे याद आया कि मंगेश कैसे नर्गिस के मुँह में अपनी जीभ डाल रहा था। उसने भी अपनी जीभ डॉली के मुँह में डाली और डॉली को भी अपनी मम्मी की याद आयी कि कैसे वो ताऊजी की जीभ चूस रही थीं। वह भी वैसे ही जय की जीभ चूसने लगी। अब जय ने अपना मुँह खोला। डॉली समझ गई कि वह उसकी जीभ माँग रहा है। उसने थोड़ा सा झिझकते हुए अपनी जीभ उसके मुँह में दे दी और जय उसकी जीभ चूसने लगा। उफफफफ क्या फ़ीलिंग़स थी। डॉली पूरी गीली हो चुकी थी।
अब जय ने उसकी ब्रा खोलने की कोशिश की, पर खोल नहीं पाया। वह बोला: ये कैसे खुलता है? मुझसे तो खुल ही नहीं रहा है।
डॉली मुस्कुराती हुई बोली: सीख जाएँगे आप जल्दी ही। चलिए मैं खोल देती हूँ। फिर वह अपना हाथ पीछे लेज़ाकर ब्रा खोली और लेट गयी। अभी भी ब्रा उसकी छातियों पर ही थीं। जय बे ब्रा हटाया और उसकी चूचियों की सुंदरता देखकर जैसे मुग्ध सा रह गया। आऽऽऽहहह क्या चूचियाँ थीं। बिलकुल बड़े अनारों की तरह सख़्त और नरम भी। निपल्ज़ एकदम तने हुए। एकदम गोरे बड़े बड़े तने हुए दूध उफ़्फ़्फ़्फ़्फ़।
जय उनको पंजों में दबाकर बोला: उफफफफ जानू क्या मस्त चूचियाँ हैं। आऽऽऽह क्या बड़ी बड़ी हैं।
डॉली हँसकर बोली: आऽऽऽह बस आपके लिए ही इतने दिन सम्भाल के रखे हैं और इतने बड़े किए हैं।
जय मुस्कुराकर: थैंक्स जानू, आह क्या मस्त चूचियाँ हैं। मज़ा आ रहा है दबाने में। अब चूसने का मन कर रहा है।
डॉली: आऽऽऽह चूसिए ना , आपका माल है, जो करना है करिए। हाऽऽय्यय मस्त लग रहा है जी।
अब जय एक चूची दबा रहा था और एक मुँह में लेकर चूस रहा था। डॉली अब खुलकर आऽऽह चिल्ला रही थी।
जय भी मस्ती से बारी बारी से चूचि चूसे जा रहा था। अब वो अपना लौड़ा चड्डी के ऊपर से उसकी जाँघ से रगड़ रहा था। डॉली के हाथ उसकी पीठ पर थे। अब जय उसके पेट को चूमते हुए उसकी गहरी नाभि में जीभ घुमाने लगा। फिर नीचे जाकर उसकी पैंटी को धीरे से नीचे खिसकाने लगा। डॉली की चिकनी फूली हुई बुर उसके सामने थी और अब डॉली ने भी अपनी कमर उठाकर जय को पैंटी निकालने में सहायता की। जय बुर को पास से देखते हुए वहाँ हथेली रखकर सहलाने लगा। बुर पनियायी हुई थी। यह उसकी ज़िन्दगी की पहली बुर थी जिसे वो सहला रहा था।
जय ने उसकी फाँकों को अलग किया और अंदर की गुलाबी बुर देखकर मस्त हो गया और बोला : आऽऽह क्या मस्त बुर है जानू तुम्हारी। फिर वह झुककर एक पप्पी ले लिया उसके बुर की। डॉली सिहर उठी।वह नीचे झुक कर जय को देखी जो उसकी बुर को चूम रहा था। अब जय ने उसकी बुर में ऊँगली डाली और डॉली का पूरा बदन सिहर उठा। वह उइइइइइइ कर उठी। अब जय उठा और अपनी चड्डी भी उतारकर अपना लौड़ा सहलाया। डॉली की आँखें उसको देखकर फट सी गयीं थीं। बाप रे कितना मोटा और लम्बा है -वो सोची। अब जय ने उसका हाथ पकड़ा और अपना लौड़ा उसके हाथ में दे दिया। डॉली चुपचाप उसको पकड़कर सहलाने लगी। उफफफ कितना गरम और कड़ा था वो- उसने सोचा। डॉली ने अपनी ज़िन्दगी में पहली बार लौड़ा पकड़ा था। उसे बहुत अच्छा लगा। जय भी अब उसे लिटा कर उसकी जाँघें फैलाकर उनके बीच में आकर बैठा और अपना लौड़ा उसकी बुर में दबाने लगा। वह उइइइइइइ माँआऽऽऽ कह उठी। वह लौड़े को हाथ में लेकर उसकी बुर के ऊपर रगड़ने लगा। वह उफ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़ कर उठी। अब जय ने उसकी फाँकों को फैलाया और उसने अपना मोटा सुपाड़ा फंसा दिया और अब हल्के से एक धक्का मारा। लौड़ा उसकी बुर की झिल्ली फाड़ता हुआ अंदर धँस गया।
डॉली चीख़ उठी: हाय्य्य्य्य मरीइइइइइइइ।
जय ने फिर से धक्का मारा और अबके आधे से भी ज़्यादा लौड़ा अंदर चला गया। अब डॉली चिल्लाई: हाऽऽऽऽऽय निकाआऽऽऽऽऽऽलो प्लीज़ निकाऽऽऽऽऽऽलो।
जय उसके ऊपर आकर उसके होंठ चूसने लगा और उसकी चूचियाँ भी दबाने लगा। अभी वो रुका हुआ था और उसका थोड़ा सा ही लौड़ा बाहर था बाक़ी अंदर जा चुका था। जब डॉली थोड़ा शांत हुई और मज़े में आने लगी। तब जय ने आख़री धक्के से अपना पूरा लौड़ा पेल दिया। डॉली फिर से चिहूंक उठी: उइइइइइइइइ आऽऽहहह।
जय अब हल्के हल्के धक्के मारने लगा जैसा उसने मंगेश को करते हुए देखा था नर्गिस के साथ। जल्दी ही डॉली भी मस्ती में आ गयी और उन्न्न्न्न्न्न्न उन्न्न्न्न करके अपनी ख़ुशी का इजहार करने लगी। जय अभी भी उसके निपल और दूध को प्यार किए जा रहा था।
अब डॉली भी अपनी टाँगे उठाकर जय के चूतरों के ऊपर रख दी और पूरे मज़े से चुदाई का आनंद लेने लगी। क़रीब आधे घंटे की चुदाई के बाद डॉली चिल्लाई: उइइइइइइइ मैं तोओओओओओओओओ गयीइइइइइइइइइ। अब जय भी ह्म्म्म्म्म्म कहकर झड़ने लगा। दोनों अब भी एक दूसरे से चिपके हुए थे। जय अभी भी डॉली को चूमे जा रहा था। वह भी उसके चुम्बन का बराबरी से जवाब दे रही थी। फिर डॉली उठी और अपनी बुर को ध्यान से देखकर बोली: देखिए फाड़ ही दी आपने मेरी।
जय उठकर उसकी बुर का मुआयना किया और बोला: मेरी जान, थोड़ा सा ही ख़ून निकला है। अभी ठीक हो जाएगा। चलो बाथरूम में ,में साफ़ कर देता हूँ।
डॉली: वाह पहले फाड़ेंगे, फिर इलाज करेंगे। मैं ख़ुद साफ़ कर लूँगी। यह कह कर वो बाथरूम गयी और सफ़ाई करके वापस आ गयी। फिर जय भी फ़्रेश होकर आया और डॉली ने उसके लटके हुए लौड़े को पकड़कर कहा: बाप रे कितना बड़ा है। पूरी फाड़ दी इसने तो मेरी।
जय: बेचारे ने तुम्हारी इतनी सेवा की और तुम इसे प्यार ही नहीं कर रही हो।
डॉली को याद आया कि उसकी मम्मी कैसे ताऊजी का लौड़ा चूस रही थीं। वो जय के लौड़े को देखी और झुककर उसकी एक पप्पी ले ली। फिर उसने उसके सुपाडे को भी चूम लिया। जय का पूरा बदन जैसे सिहर उठा। आह क्या मस्त लगा था। उसे दीदी की कही हुई बात याद आ गयी कि ओरल सेक्स तो लड़का और लड़की की मर्ज़ी पर निर्भर करता है। यहाँ तो लगता है कि इसमें कोई दिक़्क़त नहीं होगी। थोड़ी देर आराम करने के बाद वो दोनों एक दूसरे से नंगे ही चिपके रहे। डॉली ने शर्म के मारे चद्दर ढाक ली थी। जय के हाथ अब उसके चूतरों पर फिर रहे थे।
वह बोला: आह कितने मस्त चिकने चूतड़ हैं तुम्हारे? दबाने में बहुत मज़ा आ रहा है।
डॉली: आप उनको दबा रहे हो या आटा गूंद रहे हो? वो हँसने लगी।
जय: आह कितने बड़े हैं और मस्त चिकने हैं। उसकी उँगलियाँ अब चूतरों के दरार में जाने लगीं। अब जय उसकी गाँड़ और बुर के छेद को सहलाए जा रहा था। वह भी आऽऽहहह कहे जा रही थी । अब वह भी उसका लौड़ा सहलाने लगी। उसका लौड़ा उसके हाथ में बड़ा ही हुए जा रहा था। अब वह अपने अंगूठे से उसके चिकने सुपाडे को सहला कर मस्ती से भर उठी। जय का मुँह अब उसकी चूचियों को चूसने में व्यस्त थे। शीघ्र ही वह फिर से उसके ऊपर आकर उसके बुर में अपना लौड़ा डालकर उसकी चुदाई करने लगा। अब डॉली की भी शर्म थोड़ी सी कम हो गयी थी। वह भी अब मज़े से उउउउउम्मम उम्म्म्म्म्म करके चुदवाने लगी।
जय: जानू, फ़िल्मों में लड़कियाँ अपनी कमर उठाकर चुदवाती है। तुम भी नीचे से उठाकर धक्का मारो ना।
डॉली मस्त होकर अपनी गाँड़ उचकाइ और बोली: ऐसे?
जय: हाँ जानू ऐसे ही। लगातार उछालो ना।
डॉली ने अब अपनी कमर उछाल कर चुदवाना शुरू किया। जय: मज़ा आ रहा है जानू?
डॉली: हाँ जी बहुत मज़ा आ रहा है। और ज़ोर से करिए।
जय: क्या करूँ? बोलो ना?
डॉली हँसकर: वही जो कर रहे हो।
जय: बोलो ना ज़ोर से चोदो।
डॉली: मुझसे गंदी बात क्यों बुलवा रहे हैं आप?
जय: इसमें गंदा क्या है? चुदाई को चुदाई ही तो कहेंगे ना?
डॉली: ठीक है आप चाहते हो तो यही सही। अब वह अपनी गाँड़ और ज़ोर से उछालके चुदवाने लगी और बड़बड़ाने लगी: आऽऽऽऽऽहहह और ज़ोर से चोदिए ।हाय्य्य्य्य्य कितना अच्छा लग रहा है उइओइइइइइइइ माँआऽऽऽऽ । अब वह ज़ोर ज़ोर से बड़बड़ाने लगी: उम्म्म्म्म्म्म मैं गईइइइइइइइ। अब जय भी ह्न्म्म्म्म्म कहकर झड़ने लगा।
जब दोनों फ़्रेश होकर लेटे थे तब जय बोला: जानू तुम्हें प्रेगनैन्सी का तो डर नहीं है? वरना पिल्ज़ वगेरह लेना पड़ेगा।
डॉली: मुझे बच्चे बहुत पसंद हैं , भगवान अगर देंगे तो मुझे बहुत ख़ुशी होगी। आपका क्या ख़याल है?
जय: जानू जो तुमको पसंद है वो मुझे भी पसंद है। फिर वह उसे चूम लिया।
डॉली: अब मैं कपड़े पहन लूँ? नींद आ रही है।
जय: एक राउंड और नहीं करोगी?
डॉली: जी नीचे बहुत दुःख रहा है। आज अब रहने दीजिए।
जय: मैं दवाई लगा दूँ वहाँ नीचे। वैसे उस जगह को बुर बोलते हैं। और इसे लौड़ा कहते हैं। उसने अपना लौड़ा दिखाकर कहा।
डॉली: आपका ये बहुत बड़ा है ना, इसीलिए इतना दुखा है मुझे। चलिए अभी सो जाते हैं।
दिर दोनों ने कपड़े पहने और एक दूसरे को किस करके सो गए।
अगले दिन सुबह रचना उठी और शशी के लिए दरवाज़ा खोली। शशी रचना के लिए चाय बनाकर लाई और रचना चाय पीने लगी। फिर शशी चाय लेकर राज के कमरे में गयी। पता नहीं रचना को क्या सूझा कि वह खिड़की के पास आकर परदे के पीछे से झाँकने लगी। उसने देखा कि शशी राज को उठा रही थी। राज करवट लेकर सोया हुआ था। तभी वह सीधा लेटा पीठ के बल और उसका मोर्निंग इरेक्शन शशी और रचना के सामने था। उसकी लूँगी का टेण्ट साफ़ दिखाई दे रहा था। अब शशी हँसी और उसके टेण्ट को मूठ्ठी में पकड़ ली और बोली: सपने में किसे चोद रहे थे? जो इतना बड़ा हो गया है यह ?
राज: अरे तुम्हारे सिवाय और किसकी बुर का सोचूँगा। तुम्हें सपने में चोद रहा था।
शशी: चलो झूठ मत बोलो। आपको तो सपने में रश्मि दिखी होंगी और क्या पता रचना दीदी को ही चोद रहे होगे।
उधर राज भी रचना को उनकी चुदाई देखते हुए देखकर हड़बड़ा गया। उसे बड़ी शर्म आयी कि रचना ने उसे शशी के साथ इस अवस्था में देख लिया। पर उसे एक बात की हैरानी थी कि वह उसके लौड़े को इतनी प्यासी निगाहों से क्यों देख रही थी। आख़िर वो शादी शुदा थी और उसके पति का लौड़ा उसे मज़ा देता ही होगा। वो थोड़ी सी उलझन में पड़ गया था। पता नहीं अपनी बेटी से नज़रें कैसे मिलूँगा, वह सोचा। शशी भी थोड़ी परेशान थी। राज ने कहा: शशी मैं सम्भाल लूँगा , तुम परेशान मत हो।
शशी सिर हिलाकर किचन में जाकर अपने काम में लग गयी।क़रीब एक घंटे के बाद राज ड्रॉइंग रूम में सोफ़े पर बैठा और चाय माँगा। तभी जय बाहर आया और चाय माँगा। दोनो बाप बेटे चाय पी रहे थे। जय: पापा , दीदी अभी तक नहीं उठी? मैं उसे उठाता हूँ।
राज: ठीक है जाओ उठा दो।
जय रचना के कमरे में जाकर सोई हुई दीदी को उठाने अंदर पहुँचा। रचना अपनी बुर झाड़कर फिर से सो गयी थी। वो करवट में सो रही थी और उसकी बड़ी सी गाँड़ देखकर जय के लौड़े में हलचल होने लगी। वह सामने से आकर बोला: दीदी, उठो ना सुबह हो गयी है। रचना ने एक क़ातिल अंगड़ाई ली और उसके बड़े बड़े बूब्ज़ जैसे नायटी से बाहर आने को मचल से गए। अब उसके आधे नंगे बूब्ज़ नायटी से बाहर आकर राज को पागल कर दिए। उसका लौड़ा पूरा खड़ा हो गया। वह अपने लौड़े को छुपाकर बोला: चलिए अब उठिए, पापा इंतज़ार कर रहे हैं।
रचना: आऽऽऽऽह अच्छा आती हूँ। तू चल।
जय अपने लौड़े को छुपाकर जैसे तैसे बाहर आया और सोफ़े में बैठकर चाय पीने लगा। उसे अपने आप पर ग्लानि हो रही थी कि वह अपनी दीदी के बदन को ऐसी नज़र से देखा । तभी रचना आयी और शशी उसे भी चाय दे गयी। शशी रचना से आँखें नहीं मिला पा रही थी। राज ने भी रचना को देखा और बोला: (झेंप कर) गुड मॉर्निंग बेटा ।
रचना ने ऐसा दिखाया जैसे कुछ हुआ ही नहीं, और बोली: गुड मोर्निंग पापा।
फिर सब चाय पीने लगे और शादी की डिटेल्ज़ डिस्कस करने लगे। फिर जय तैयार होकर दुकान चला गया। शशी भी खाना बना कर चली गयी।
राज: बेटी, ज़ेवरों को आज सुनार के यहाँ पोलिश करने देना है। चलो ज़ेवर पसंद कर लो, जो तुम पहनोगी।
रचना पापा के साथ उनके कमरे में पहुँची और राज ने तिजोरी खोलकर गहने निकाले और रचना उनमें से कुछ पसंद की और अपनी मम्मी को याद करके रोने लगी। राज ने उसके कंधे पर हाथ रखा और उसे चुप कराने लगा।
रचना: पापा इन गहनों को देखकर मम्मी की याद आ गयी। पापा, आपको उनकी याद नहीं आती?
राज: ऐसा क्यों बोल रही हो बेटी, उसकी याद तो हमेशा आती है।
रचना: इसलिए आज आप शशी के साथ वो सब कर रहे थे?
राज थोड़ा परेशान होकर बोला: बेटी, तुम्हारी मम्मी को याद करता हूँ, मिस भी करता हूँ। पर बेटी, ये शरीर भी तो बहुत कुछ माँगता है , उसका क्या करूँ ?
रचना: पर पापा, वो एक नौकशशी है, आपको बीमारी दे सकती है, पता नहीं किस किस के साथ करवाती होगी?
राज: नहीं बेटी, शशी बहुत अच्छी लड़की है, वो मेरे सिवाय सिर अपने पति से ही चुद– मतलब करवाती है। इस शरीर की प्यास बुझाने के लिए मैं रँडी के पास तो नहीं गया।
रचना: आपको कैसे पता? हो सकता है वो झूठ बोल रही हो।
राज: बेटी, अब तुमसे क्या छुपाना? दरअसल उसका पति उसको माँ नहीं बना पा रहा था तो मैंने उसे वादा किया कि मैं उसे एक महीने में ही गारण्टी से मॉ बना दूँगा। इसीलिए वो मेरे साथ करवाने के लिए राज़ी हुई।
रचना: ओह, तो क्या वो प्रेगनेंट हो गयी?
राज: हाँ बेटी, वादे के अनुसार एक महीने में ही वो प्रेगनेंट हो गयी। वो अब जल्दी ही माँ बनेगी।
रचना की आँखों के सामने पापा का बड़ा सा लौड़ा और बड़े बड़े बॉल्ज़ घूम गए। वह सोचने लगी कि इतना मर्दाना हथियार और ऐसे बड़े बॉल्ज़ की चुदाई से बच्चा तो होगा ही।
रचना: ओह, पर उसके मर्द को तो शक नहीं होगा ना?
राज : उसे कैसे शक होगा क्योंकि वह तो उसको हफ़्ते में एक दो बार चो- मतलब कर ही रहा था ना। वो तो यही सोचेगा ना कि उसकी चुदा- मतलब उसका ही बच्चा है वो।
रचना देख रही थी कि पापा चुदायी और चोदने जैसे शब्द का उपयोग करने की कोशिश कर रहे थे। वह अब उत्तेजित होने लगी थी।
तभी राज ने एक अजीब बात बोली: एक बात और शशी के पति का हथियार बहुत छोटा और कमज़ोर है और वह उसे बिस्तर पर संतुष्ट भी नहीं कर पाता।
रचना की बुर अब गीली होने लगी थी। बातें अब अश्लीलता की हद पार कर रहीं थीं। वह बोली: ओह । और शर्म से लाल हो गयी। उसकी आँख अब अचानक पापा की लूँगी पर गयी तो वहाँ एक तंबू देखकर वह बहुत हैरान रह गयी। वह समझ गयी कि पापा भी उत्तेजित हो चले हैं। उसे बड़ा अजीब लग रहा था कि बाप बेटी की बातें अब इतनी बेशर्म हो गयीं थीं कि वह दोनों उत्तेजित हो चुके थे।
रचना ने बात बदलने का सोचा और बोली: ओह अच्छा चलिए मैं ये ज़ेवर पहनूँगी , इसे ही पोलिश करवा लेती हूँ।
राज : ठीक है बेटी। पर तुम मुझसे नाराज़ तो नहीं हो? मेरे और शशी के बारे में जान कर।
रचना : पापा आप बड़े हैं और अपना अच्छा बुरा समझ सकते हैं। इसलिए आपको जो सही लगता है वह करो। पर एक बात है डॉली के इस घर में आने के बाद यह सब कैसे करेंगे शशी के साथ?
राज : बेटी सब मैनिज हो जाएगा। तब की तब देखेंगे।
तभी कॉल बेल बजी। रचना ने दरवाज़ा खोला । सामने शशी खड़ी थी।
रचना: अरे तुम वापस आ गयी? क्या हुआ?
शशी: दीदी मेरा मोबाइल यहीं रह गया है।
रचना: ओह ठीक है ले लो। वह अब सोफ़े पर बैठ गयी।
शशी किचन में जाकर मोबाइल खोजी पर उसे नहीं मिला। उसने रचना से कहा: दीदी आप मिस्ड कॉल दो ना । फिर उसने नम्बर बोला।
रचना ने कॉल किया और घंटी पापा के कमरे में बजी। शशी थोड़ा सा डरकर राज के कमरे में पहुँची।
रचना दौड़कर दरवाज़े के पीछे खड़ी होकर उनकी बातें सुनने लगी।
राज: अरे शशी क्या हुआ? तुम्हारे फ़ोन की घंटी यहाँ बजी अभी।
शशी: मेरा फ़ोन यहाँ आपके कमरे में ही गिर गया है। फिर वह बिस्तर में खोजी तो उसे तकिए के नीचे मिल गया।
शशी: दीदी ने कुछ कहा क्या आपसे हमारी चुदाई के बारे में? और ये आपका फिर से खड़ा क्यों है? वह लूँगी के तंबू को देखकर बोली।
राज अपने लौड़े को मसल कर बोला: वो रचना से तुम्हारी चुदाई की बातें कर रहा था तो खड़ा हो गया।
शशी: अपनी बेटी से हमारी चुदाई की बातें कर रहे थे? हे भगवान, कितने कमीने आदमी हो आप?
राज: अरे वो भी तो बड़े मज़े से सब पूछ रही थी।
शशी: तो अब क्या हमारी चुदाई बंद?
राज: अरे नहीं मेरी जान, उसे कोई इतराजीवनहीं है। चल अब तू आइ है तो मेरा लौड़ा चूस दे अभी।
शशी हँसती हुई नीचे बैठी और उसकी लूँगी हटाई और उसके मोटे लौड़े पर नाक लगाकर सूंघी और बोली: आऽऽह क्या मस्त गंध है आपकी। फिर वह अपनी जीभ से उसके सुपाडे को चाटने लगी और बोली: म्म्म्म्म्म्म क्या स्वाद है। म्म्म्म्म।
अब रचना से रहा नहीं गया और वह फिर से खिड़की से झाँकने लगी। अंदर का दृश्य देखकर उसकी बुर गीली होने लगी। शशी की जीभ अभी भी उसके सुपाडे पर थी। फिर वह उसके बॉल्ज़ को सूँघने लगी और फिर चाटी। रचना को लगा कि वह अभी झड़ जाएगी। फिर शशी ने ज़ोर ज़ोर से उसके लौड़े को चूसना शुरू किया। रचना ने देखा कि वह डीप थ्रोट दे रही थी। लगता है पापा ने उसे मस्त ट्रेन कर दिया है। क़रीब दस मिनट की चुसाई के बाद वह उसके मुँह में झड़ने लगा। उसके मुँह के साइड से गाढ़ा सा सफ़ेद रस गिर रहा था। रचना की ऊँगली अपने बुर पर चली गयी और वह अपने पापा के लौड़े को एकटक देखती रही जो अब उसके मुँह से बाहर आ कर अभी भी हवा में झूल रहा था।
अब रचना अपने कमरे में आकर अपनी नायटी उठायी और तीन ऊँगली डालकर अपनी बुर को रगड़ने लगी और जल्दी ही उओओइइइइइइइ कहकर झड़ गयी।
शशी के जाने के बाद राज तैयार होकर रचना से बोला: बेटी, चलो सुनार के यहाँ चलते हैं और एक बार होटेल का चक्कर भी मार लेते हैं। देखें मैनेजर को अभी भी कुछ समझना तो नहीं है।
रचना: ठीक है पापा , मैं अभी तैयार होकर आती हूँ।
रचना ने सोचा कि उसके सेक्सी पापा को आज अपना सेक्सी रूप दिखा ही देती हूँ। वह जब तैयार होकर आयी तो राज की आँखें जैसे फटी सी ही रह गयीं। रचना ने एक छोटा सा पारदर्शी टॉप पहना था जिसमें से उसकी ब्रा भी नज़र आ रही थी। उसके आधे बूब्ज़ नंगे ही थे। उसके पेट और कमर का हिस्सा बहुत गोरा और चिकना सा नज़र आ रहा था। नीचे उसने एक मिनी स्कर्ट पहनी थी जिसमें से उसकी गदराई हुई गोल गोल चिकनी जाँघें घुटनो से भी काफ़ी ऊपर तक नज़र आ रही थीं।
राज: बेटी, आज लगता है अमेरिकन कपड़े पहन ली हो।
रचना: जी पापा, सोचा आज कुछ नया पहनूँ। कैसी लग रही हूँ?
राज को अपना गला सूखता सा महसूस हुआ। वह बोला: बहुत प्यारी लग रही हो।
रचना हँसते हुए: सिर्फ़ प्यारी सेक्सी नहीं?
राज: अरे हाँ सेक्सी भी लग रही हो। अब चलें।
रचना: चलिए । कहकर आगे चलने लगी। पीछे से राज उसके उभारों को देखकर अपने खड़े होते लौड़े को ऐडजस्ट करते हुए चल पड़ा।
राज कार लेकर गरॉज़ से बाहर लाया और जब रचना उसकी बग़ल की सीट में बैठने के लिए अपना एक पैर उठाकर अंदर की तब राज को अपनी प्यारी बेटी की गुलाबी क़च्छी नज़र आ गयी। उसकी छोटी सी क़च्छी बस उसकी बुर को ही ढाँक रही थी। अब तो उसका लौड़ा जैसे क़ाबू के बाहर ही होने लगा। उसकी क़च्छी से उसकी बुर की फाँकें भी साफ़ दिखाई दी। अपने लौड़े को दबाके वह कार आगे बढ़ाया। रचना भी अपने पापा के पैंट के उभार को देखकर बिलकुल मस्त होकर सोची कि पापा को आख़िर उसने अपने जाल में फँसाने की तैयारी शुरू कर ही दी। वह सफल भी हो रही थी। वैसे उसकी भी पैंटी थोड़ी गीली हो चली थी, पापा का तंबू देखकर।
सुनार के यहाँ काम ख़त्म करके वो दोनों होटेल में पहुँचे जहाँ शादी की पूरी फ़ंक्शन होने वाली थी। होटेल में सब लोग ख़ूबसूरत औरत को देखे जा रहे थे। राज ने ध्यान से देखा कि क्या जवान क्या अधेड़ सभी उसको वासना भरी निगाहों से देखे जा रहे थे। अब वो दोनों रेस्तराँ के एक कोने में बैठे और मैनेजर को बुलाया । अब वो सब फ़ाइनल तैयारियों के बारे में डिस्कस करने लगे। राज ने देखा कि मैनेजर भी रचना की छातियों को घूरे जा रहा था। राज को अचानक जलन सी होने लगी। फिर राज का हाथ मोबाइल से टकराया और वह नीचे गिर गया। वह झुक कर उसे उठाने लगा तभी उसकी नज़र टेबल के नीचे से रचना की फैली हुई जाँघों पर पड़ीं। वहाँ उसे उसकी क़च्छी दिखाई दी जो कि एक तरफ़ खिसक गयी थी और उसकी बुर एक साइड से दिख रही थी। बुर की एक फाँक दिख रही थी। वहाँ थोड़े से काले बाल भी दिखाई दे रहे थे। उसकी इच्छा हुई कि उस सुंदर सी बुर की पप्पी ले ले। पर अपने को संभाल कर वो उठा।
रचना ने शैतानी मुस्कुराहट से पूछा: पापा कुछ दिखा?
राज सकपका कर बोला: हाँ मोबाइल मिल गया। वो गिर गया था ना।
रचना मुस्कुराई: अच्छा दिख गया ना ? फिर वह उठी और बोली: चलो पापा चलते हैं।
अब वो दोनों घर की ओर चले गए।
रचना मन ही मन मुस्कुरा रही थी। राज की आँखों के सामने रचना की बुर की एक फाँक आ रही थी।
दोनों अपने अपने ख़यालों में गुम से थे।
शादी में अब ३ दिन बचे थे। रिश्तेदार भी आने शुरू हो गए थे। दूर और पास के भाई चचेरा, ममेरा और मौसी और ना जाने कौन कौन आए थे। अब तो किसी को भी फ़ुर्सत नहीं थी। जय, रचना, शशी और राज सभी बहुत व्यस्त हो गए थे ।किसी को चुदाई की याद भी नहीं आ रही थी। शाम तक सभी बहुत थक जाते थे और सो जाते थे। यही हाल रश्मि , अमित और डॉली का भी था। घर मेहमानो से पट गया था।
ख़ैर शादी का दिन भी आ ही गया। रश्मि अपने परिवार के साथ होटेल में शिफ़्ट हो चुकी थी। वह सब तैयार होकर दूल्हे और बारात के आने का इंतज़ार करने लगे। डॉली भी आज बहुत सुंदर लग रही थी,शादी के लाल जोड़े में।
उधर बारात नाचते हुए होटेल के पास आइ और जय के दोस्त और रिश्तेदार भी बहुत ज़ोर से नाचने लगे। जय फूलों से लदी कार में बैठा था । उसके सामने सभी नाच रहे थे। राज सिक्के बरसा रहा था। रचना भी भारी साड़ी में मस्ती से नाच रही थी। उसकी चिकनी बग़लें मर्दों को बहुत आकर्षित कर रही थीं। बार बार उसका पल्लू खिसक जाती थी और उसकी भारी छातियाँ देखकर मर्द लौड़े मसल रहे थे। कई लोग नाचने के बहाने उसकी गाँड़ पर हाथ भी फेर चुके थे।
जब बारात बिलकुल होटेल के सामने पहुँची तो सब ज़ोर से नाचने लगे। अब राज भी नाचने लगा क्योंकि रचना उसको खींच लायी थी । रचना पसीने से भीगी हुई थी। उसकी बग़ल की ख़ुशबू राज के नथुनों में घुसी और साथ ही उसके बड़े दूध जो नाचने से हिल रहे थे , उसे मस्त कर गए थे। फिर उसे याद आया कि उसे और भी काम हैं, तो वह आगे बढ़कर दुल्हन के परिवार से मिला। उसने रश्मि को देखा तो देखता ही रह गया। क्या जँच रही थी वह आज। फिर शादी हो गयी और रात भर चली । सुबह के ५ बजे फेरे ख़त्म हुए। और जय रोती हुई दुल्हन लेकर अपने घर आ गया।
कई मेहमान तो उसी दिन चले गए। दिन भर रचना ने डॉली का बहुत ख़याल रखा और डॉली ने दिन में रचना के कमरे में ही आराम किया। शाम तक सभी मेहमान चले गए थे। राज और रचना ने चैन की साँस ली। जय और डॉली दोपहर में आराम किए थे सो फ़्रेश थे।
रचना ने एक फ़ोन लगाया और होटेल से एक आदमी आया और जय के कमरे को फूलों और मोमबतीयों से सजाया । सुहाग की सेज तैयार थी और रचना ने ख़ुद उसे सजवाया था अपने भाई और भाभी के लिए। रात को खाना खाकर राज ने जय को एक हीरे की अँगूठी दी और बोला: बेटा , ये अँगूठी बहू को मुँह दिखाई में दे देना। फिर वह अपने कमरे में चले गया। रचना डॉली को लेकर जय के कमरे में ले गयी और डॉली ये सजावट देखकर बहुत शर्मा गयी । रचना: चलो भाभी अब मेरे भाई के साथ सुहाग रात मनाओ। ख़ूब मज़े करो। मैं चलती हूँ, ये दूध रखा है पी लेना दोनों। ठीक है ना?
डॉली ने उसका हाथ पकड़ लिया और बोली: दीदी रुकिए ना, मुझे डर लग रहा है।
रचना: अरे पगली , इसमें काहे का डरना। आज की रात तो मज़े की रात है। आज तुम दोनों एक हो जाओगे। ख़ूब प्यार करो एक दूसरे को। अब जाऊँ?
डॉली शर्माकर हाँ में सिर हिला दी। अब रचना बाहर आइ और जय को बोली: जाओ अपनी दुल्हन से मिलो और दोनों एक दूसरे के हो जाओ। बेस्ट ओफ़ लक। मेरी बात याद है कि नहीं?
जय: जी दीदी याद है। कोशिश करूँगा कि नर्वस ना होऊँ। थोड़ा अजीब तो लग रहा है।
रचना ने उसकी पीठ पर एक धौल मारी और बोली: अरे सब बढ़िया होगा, भाई मेरे,अब जाओ। और हँसती हुई अपने कमरे में चली गयी।
जय अब अपने कमरे में गया और वहाँ की सजावट देखकर वह भी दंग रह गया। बहुत ही रोमांटिक माहोल बना रखा था दीदी ने । उसने देखा कि डॉली बिस्तर पर बैठी उसका इंतज़ार कर रही थी। उसने साड़ी के पल्लू से घूँघट सा भी बना रखा था। बिलकुल फ़िल्मी अन्दाज़ में ।
वह बिस्तर पर बैठा और जेब से वो हीरे की अँगूठी निकाली और फिर प्यार से बोला: डॉली, मेरी जान मुखड़ा तो दिखाओ। ये कहते हुए उसने घूँघट उठा दिया और उसके सामने डॉली का गोरा चाँद सा मुखड़ा था। वो उसे मंत्रमुग्ध सा देखता रह गया और फिर उसने उसे अँगूठी पहनाई। वह बहुत ख़ुश हुई और थैंक्स बोली।
जय: अब तुम बताओ तुम मुझे क्या गिफ़्ट दोगी ?
डॉली: मैंने आपका घूँघट थोड़े उठाया है जो मैं आपको गिफ़्ट दूँ। यह कहकर वह मुस्कुराई । जय भी हँसने लगा।
अब जय उसे देखते हुए बोला: डॉली, वैसे एक गिफ़्ट तो दे ही सकती हो?
डॉली: वो क्या?
जय ने अपने होंठों पर ऊँगली रखी और बोला: एक पप्पी अपने कोमल होठों की।
डॉली शरारत से मुस्कुराकर बोली: पहली बात कि आपको कैसे पता कि मेरे होंठ कोमल हैं? और फिर क्या सिर्फ़ एक पप्पी लेंगे? वो भी सुहाग रात में?
दोनों ज़ोर से हँसने लगे। अब जय ने डॉली को पकड़ा और ख़ुद बिस्तर पर लुढ़क गया और साथ में उसे भी अपने ऊपर लिटा लिया। अब दोनों के होंठ आमने सामने थे।
अब जय ने डॉली के होंठ का एक हल्के से चुम्बन लिया। डॉली हँसकर बोली: चलो हो गया आज का कोटा और मेरी रिटर्न गिफ़्ट भी आपको मिल गयी। यह कहकर वह पलटी और उसके बग़ल में लेट गयी। अब जय ने उसको अपनी बाहों में भरा और उसको अपने से चिपका लिया।
फिर दोनों ने ख़ूब सारी बातें की। कॉलेज , कॉलेज , दोस्तों और रिश्तेदारों के बारे में भी एक दूसरे से बहुत कुछ शेयर किया। इस बीच में दोनों एक दूसरे के बदन पर हाथ भी फेर रहे थे। जय के हाथ उसकी नरम कलाइयों और पीठ पर थे। डॉली के हाथ जय की बाहों की मछलियों पर और उसकी छाती पर थे।
बातें करते हुए ११ बज गए और डॉली ने एक उबासी ली। जय: नींद आ रही है जानू?
डॉली: आ रही है तो क्या सोने दोगे?
जय: सोना चाहोगी तो ज़रूर सोने दूँगा।
डॉली: और सुबह सब पूछेंगे कि सुहागरत कैसी रही तो क्या बोलेंगे?
जय : कह देंगे मस्त रही और क्या?
डॉली: याने कि झूठ बोलेंगे?
जय: इसमें झूठ क्या है। मुझे तो तुमसे बात करके बहुत मज़ा आया। तुम्हारी तुम जानो।
डॉली: मुझे भी बहुत अच्छा लगा। फिर वह आँखें मटका कर के बोली: वैसे अभी नींद नहीं आ रही है। आप चाहो तो कल आपको झूठ नहीं बोलना पड़ेगा।
जय हंस पड़ा और उसको अपनी बाहों में भर कर उसके गाल चूम लिया। वह भी अब मज़े के मूड में आ चुकी थी सो उसने भी उसके गाल चूम लिए। अब जय उसके गाल, आँखें, और नाक भी चूमा। फिर उसने अपने होंठ उसके होंठ पर रखे और चूमने लगा। जल्दी ही दोनों गरम होने लगे। अब उसने डॉली की गरदन भी चुमी और नीचे आकर उसके पल्लू को हटाया और ब्लाउस में कसे उसके कबूतरों के बाहर निकले हुए हिस्से को चूमने लगा।
डॉली भी मस्ती से उसके गरदन को चूम रही थी। अब उसे अपनी जाँघ पर उसका डंडा गड़ रहा था। उसकी बुर गीली होने लगी और ब्रा के अंदर उसके निपल तन कर खड़े हो गए। वह अब उससे ज़ोर से चिपकने लगी। अब जय बोला: जानू, ब्लाउस उतार दूँ।
डॉली हँसकर: अगर नहीं कहूँगी तो नहीं उतारेंगे?
जय हँसते हुए उसके ब्लाउस का हुक खोला। और अब ब्रा में कसे हुए दूध उसके सामने थे । वह उनको चूमता चला गया। उधर डॉली उसकी क़मीज़ के बटन खोल रही थी। अब उसके हाथ उसकी बालों से भारी मर्दानी छाती को सहला रहे थे। जय उठा और अपनी क़मीज़ उतार दिया। फिर वह उसकी साड़ी को पेट के पास से ढीला किया और डॉली ने अपनी कमर उठाकर उसको साड़ी निकालने में मदद की। अब वह सिर्फ़ पेटिकोट और ब्रा में थी। उसका दूधिया गोरा जवान बदन हल्की रौशनी में चमक रहा था। अब जय उसके पेट को चूमने हुए उसकी कमर तक आया और फिर उसने उसके पेटिकोट का भी नाड़ा खोल दिया।अब फिर से डॉली ने अपनी कमर उठाई और पेटिकोट भी उतर गया। अब डॉली की गोरी गदराई हुई मस्त गोल भरी हुई जाँघें उसकी आँखों के सामने थे। उफ़ क्या चिकनी जाँघें थीं। उनके बीच में पतली सी गुलाबी पैंटी जैसे ग़ज़ब ढा रही थी। पैंटी में से उसकी फूली हुई बुर बहुत मस्त नज़र आ रही थी। अब जय बिस्तर से उठकर नीचे आया और अपनी पैंट भी उतार दिया। चड्डी में उसका फूला हुआ लौड़ा बहुत ही बड़ा और एक तरफ़ को डंडे की तरह अकड़ा हुआ दिख रहा था। डॉली अब उसे देखकर डर भी गयी थी और उत्तेजित भी हो रही थी।
जय अब फिर से उसके ऊपर आया और उसके होंठ चूमने लगा। तभी उसे याद आया कि मंगेश कैसे नर्गिस के मुँह में अपनी जीभ डाल रहा था। उसने भी अपनी जीभ डॉली के मुँह में डाली और डॉली को भी अपनी मम्मी की याद आयी कि कैसे वो ताऊजी की जीभ चूस रही थीं। वह भी वैसे ही जय की जीभ चूसने लगी। अब जय ने अपना मुँह खोला। डॉली समझ गई कि वह उसकी जीभ माँग रहा है। उसने थोड़ा सा झिझकते हुए अपनी जीभ उसके मुँह में दे दी और जय उसकी जीभ चूसने लगा। उफफफफ क्या फ़ीलिंग़स थी। डॉली पूरी गीली हो चुकी थी।
अब जय ने उसकी ब्रा खोलने की कोशिश की, पर खोल नहीं पाया। वह बोला: ये कैसे खुलता है? मुझसे तो खुल ही नहीं रहा है।
डॉली मुस्कुराती हुई बोली: सीख जाएँगे आप जल्दी ही। चलिए मैं खोल देती हूँ। फिर वह अपना हाथ पीछे लेज़ाकर ब्रा खोली और लेट गयी। अभी भी ब्रा उसकी छातियों पर ही थीं। जय बे ब्रा हटाया और उसकी चूचियों की सुंदरता देखकर जैसे मुग्ध सा रह गया। आऽऽऽहहह क्या चूचियाँ थीं। बिलकुल बड़े अनारों की तरह सख़्त और नरम भी। निपल्ज़ एकदम तने हुए। एकदम गोरे बड़े बड़े तने हुए दूध उफ़्फ़्फ़्फ़्फ़।
जय उनको पंजों में दबाकर बोला: उफफफफ जानू क्या मस्त चूचियाँ हैं। आऽऽऽह क्या बड़ी बड़ी हैं।
डॉली हँसकर बोली: आऽऽऽह बस आपके लिए ही इतने दिन सम्भाल के रखे हैं और इतने बड़े किए हैं।
जय मुस्कुराकर: थैंक्स जानू, आह क्या मस्त चूचियाँ हैं। मज़ा आ रहा है दबाने में। अब चूसने का मन कर रहा है।
डॉली: आऽऽऽह चूसिए ना , आपका माल है, जो करना है करिए। हाऽऽय्यय मस्त लग रहा है जी।
अब जय एक चूची दबा रहा था और एक मुँह में लेकर चूस रहा था। डॉली अब खुलकर आऽऽह चिल्ला रही थी।
जय भी मस्ती से बारी बारी से चूचि चूसे जा रहा था। अब वो अपना लौड़ा चड्डी के ऊपर से उसकी जाँघ से रगड़ रहा था। डॉली के हाथ उसकी पीठ पर थे। अब जय उसके पेट को चूमते हुए उसकी गहरी नाभि में जीभ घुमाने लगा। फिर नीचे जाकर उसकी पैंटी को धीरे से नीचे खिसकाने लगा। डॉली की चिकनी फूली हुई बुर उसके सामने थी और अब डॉली ने भी अपनी कमर उठाकर जय को पैंटी निकालने में सहायता की। जय बुर को पास से देखते हुए वहाँ हथेली रखकर सहलाने लगा। बुर पनियायी हुई थी। यह उसकी ज़िन्दगी की पहली बुर थी जिसे वो सहला रहा था।
जय ने उसकी फाँकों को अलग किया और अंदर की गुलाबी बुर देखकर मस्त हो गया और बोला : आऽऽह क्या मस्त बुर है जानू तुम्हारी। फिर वह झुककर एक पप्पी ले लिया उसके बुर की। डॉली सिहर उठी।वह नीचे झुक कर जय को देखी जो उसकी बुर को चूम रहा था। अब जय ने उसकी बुर में ऊँगली डाली और डॉली का पूरा बदन सिहर उठा। वह उइइइइइइ कर उठी। अब जय उठा और अपनी चड्डी भी उतारकर अपना लौड़ा सहलाया। डॉली की आँखें उसको देखकर फट सी गयीं थीं। बाप रे कितना मोटा और लम्बा है -वो सोची। अब जय ने उसका हाथ पकड़ा और अपना लौड़ा उसके हाथ में दे दिया। डॉली चुपचाप उसको पकड़कर सहलाने लगी। उफफफ कितना गरम और कड़ा था वो- उसने सोचा। डॉली ने अपनी ज़िन्दगी में पहली बार लौड़ा पकड़ा था। उसे बहुत अच्छा लगा। जय भी अब उसे लिटा कर उसकी जाँघें फैलाकर उनके बीच में आकर बैठा और अपना लौड़ा उसकी बुर में दबाने लगा। वह उइइइइइइ माँआऽऽऽ कह उठी। वह लौड़े को हाथ में लेकर उसकी बुर के ऊपर रगड़ने लगा। वह उफ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़ कर उठी। अब जय ने उसकी फाँकों को फैलाया और उसने अपना मोटा सुपाड़ा फंसा दिया और अब हल्के से एक धक्का मारा। लौड़ा उसकी बुर की झिल्ली फाड़ता हुआ अंदर धँस गया।
डॉली चीख़ उठी: हाय्य्य्य्य मरीइइइइइइइ।
जय ने फिर से धक्का मारा और अबके आधे से भी ज़्यादा लौड़ा अंदर चला गया। अब डॉली चिल्लाई: हाऽऽऽऽऽय निकाआऽऽऽऽऽऽलो प्लीज़ निकाऽऽऽऽऽऽलो।
जय उसके ऊपर आकर उसके होंठ चूसने लगा और उसकी चूचियाँ भी दबाने लगा। अभी वो रुका हुआ था और उसका थोड़ा सा ही लौड़ा बाहर था बाक़ी अंदर जा चुका था। जब डॉली थोड़ा शांत हुई और मज़े में आने लगी। तब जय ने आख़री धक्के से अपना पूरा लौड़ा पेल दिया। डॉली फिर से चिहूंक उठी: उइइइइइइइइ आऽऽहहह।
जय अब हल्के हल्के धक्के मारने लगा जैसा उसने मंगेश को करते हुए देखा था नर्गिस के साथ। जल्दी ही डॉली भी मस्ती में आ गयी और उन्न्न्न्न्न्न्न उन्न्न्न्न करके अपनी ख़ुशी का इजहार करने लगी। जय अभी भी उसके निपल और दूध को प्यार किए जा रहा था।
अब डॉली भी अपनी टाँगे उठाकर जय के चूतरों के ऊपर रख दी और पूरे मज़े से चुदाई का आनंद लेने लगी। क़रीब आधे घंटे की चुदाई के बाद डॉली चिल्लाई: उइइइइइइइ मैं तोओओओओओओओओ गयीइइइइइइइइइ। अब जय भी ह्म्म्म्म्म्म कहकर झड़ने लगा। दोनों अब भी एक दूसरे से चिपके हुए थे। जय अभी भी डॉली को चूमे जा रहा था। वह भी उसके चुम्बन का बराबरी से जवाब दे रही थी। फिर डॉली उठी और अपनी बुर को ध्यान से देखकर बोली: देखिए फाड़ ही दी आपने मेरी।
जय उठकर उसकी बुर का मुआयना किया और बोला: मेरी जान, थोड़ा सा ही ख़ून निकला है। अभी ठीक हो जाएगा। चलो बाथरूम में ,में साफ़ कर देता हूँ।
डॉली: वाह पहले फाड़ेंगे, फिर इलाज करेंगे। मैं ख़ुद साफ़ कर लूँगी। यह कह कर वो बाथरूम गयी और सफ़ाई करके वापस आ गयी। फिर जय भी फ़्रेश होकर आया और डॉली ने उसके लटके हुए लौड़े को पकड़कर कहा: बाप रे कितना बड़ा है। पूरी फाड़ दी इसने तो मेरी।
जय: बेचारे ने तुम्हारी इतनी सेवा की और तुम इसे प्यार ही नहीं कर रही हो।
डॉली को याद आया कि उसकी मम्मी कैसे ताऊजी का लौड़ा चूस रही थीं। वो जय के लौड़े को देखी और झुककर उसकी एक पप्पी ले ली। फिर उसने उसके सुपाडे को भी चूम लिया। जय का पूरा बदन जैसे सिहर उठा। आह क्या मस्त लगा था। उसे दीदी की कही हुई बात याद आ गयी कि ओरल सेक्स तो लड़का और लड़की की मर्ज़ी पर निर्भर करता है। यहाँ तो लगता है कि इसमें कोई दिक़्क़त नहीं होगी। थोड़ी देर आराम करने के बाद वो दोनों एक दूसरे से नंगे ही चिपके रहे। डॉली ने शर्म के मारे चद्दर ढाक ली थी। जय के हाथ अब उसके चूतरों पर फिर रहे थे।
वह बोला: आह कितने मस्त चिकने चूतड़ हैं तुम्हारे? दबाने में बहुत मज़ा आ रहा है।
डॉली: आप उनको दबा रहे हो या आटा गूंद रहे हो? वो हँसने लगी।
जय: आह कितने बड़े हैं और मस्त चिकने हैं। उसकी उँगलियाँ अब चूतरों के दरार में जाने लगीं। अब जय उसकी गाँड़ और बुर के छेद को सहलाए जा रहा था। वह भी आऽऽहहह कहे जा रही थी । अब वह भी उसका लौड़ा सहलाने लगी। उसका लौड़ा उसके हाथ में बड़ा ही हुए जा रहा था। अब वह अपने अंगूठे से उसके चिकने सुपाडे को सहला कर मस्ती से भर उठी। जय का मुँह अब उसकी चूचियों को चूसने में व्यस्त थे। शीघ्र ही वह फिर से उसके ऊपर आकर उसके बुर में अपना लौड़ा डालकर उसकी चुदाई करने लगा। अब डॉली की भी शर्म थोड़ी सी कम हो गयी थी। वह भी अब मज़े से उउउउउम्मम उम्म्म्म्म्म करके चुदवाने लगी।
जय: जानू, फ़िल्मों में लड़कियाँ अपनी कमर उठाकर चुदवाती है। तुम भी नीचे से उठाकर धक्का मारो ना।
डॉली मस्त होकर अपनी गाँड़ उचकाइ और बोली: ऐसे?
जय: हाँ जानू ऐसे ही। लगातार उछालो ना।
डॉली ने अब अपनी कमर उछाल कर चुदवाना शुरू किया। जय: मज़ा आ रहा है जानू?
डॉली: हाँ जी बहुत मज़ा आ रहा है। और ज़ोर से करिए।
जय: क्या करूँ? बोलो ना?
डॉली हँसकर: वही जो कर रहे हो।
जय: बोलो ना ज़ोर से चोदो।
डॉली: मुझसे गंदी बात क्यों बुलवा रहे हैं आप?
जय: इसमें गंदा क्या है? चुदाई को चुदाई ही तो कहेंगे ना?
डॉली: ठीक है आप चाहते हो तो यही सही। अब वह अपनी गाँड़ और ज़ोर से उछालके चुदवाने लगी और बड़बड़ाने लगी: आऽऽऽऽऽहहह और ज़ोर से चोदिए ।हाय्य्य्य्य्य कितना अच्छा लग रहा है उइओइइइइइइइ माँआऽऽऽऽ । अब वह ज़ोर ज़ोर से बड़बड़ाने लगी: उम्म्म्म्म्म्म मैं गईइइइइइइइ। अब जय भी ह्न्म्म्म्म्म कहकर झड़ने लगा।
जब दोनों फ़्रेश होकर लेटे थे तब जय बोला: जानू तुम्हें प्रेगनैन्सी का तो डर नहीं है? वरना पिल्ज़ वगेरह लेना पड़ेगा।
डॉली: मुझे बच्चे बहुत पसंद हैं , भगवान अगर देंगे तो मुझे बहुत ख़ुशी होगी। आपका क्या ख़याल है?
जय: जानू जो तुमको पसंद है वो मुझे भी पसंद है। फिर वह उसे चूम लिया।
डॉली: अब मैं कपड़े पहन लूँ? नींद आ रही है।
जय: एक राउंड और नहीं करोगी?
डॉली: जी नीचे बहुत दुःख रहा है। आज अब रहने दीजिए।
जय: मैं दवाई लगा दूँ वहाँ नीचे। वैसे उस जगह को बुर बोलते हैं। और इसे लौड़ा कहते हैं। उसने अपना लौड़ा दिखाकर कहा।
डॉली: आपका ये बहुत बड़ा है ना, इसीलिए इतना दुखा है मुझे। चलिए अभी सो जाते हैं।
दिर दोनों ने कपड़े पहने और एक दूसरे को किस करके सो गए।
अगले दिन सुबह रचना उठी और शशी के लिए दरवाज़ा खोली। शशी रचना के लिए चाय बनाकर लाई और रचना चाय पीने लगी। फिर शशी चाय लेकर राज के कमरे में गयी। पता नहीं रचना को क्या सूझा कि वह खिड़की के पास आकर परदे के पीछे से झाँकने लगी। उसने देखा कि शशी राज को उठा रही थी। राज करवट लेकर सोया हुआ था। तभी वह सीधा लेटा पीठ के बल और उसका मोर्निंग इरेक्शन शशी और रचना के सामने था। उसकी लूँगी का टेण्ट साफ़ दिखाई दे रहा था। अब शशी हँसी और उसके टेण्ट को मूठ्ठी में पकड़ ली और बोली: सपने में किसे चोद रहे थे? जो इतना बड़ा हो गया है यह ?
राज: अरे तुम्हारे सिवाय और किसकी बुर का सोचूँगा। तुम्हें सपने में चोद रहा था।
शशी: चलो झूठ मत बोलो। आपको तो सपने में रश्मि दिखी होंगी और क्या पता रचना दीदी को ही चोद रहे होगे।