23-03-2019, 11:17 AM
नाश्ता करने के बाद मनीष कुछ देर के लिए हरिया काका के साथ मार्किट चला गया ..कारपेंटर और वाइट वश वालों से बात करने के लिए …दिव्या सोचने लगी कि काश हरिया काका को छोड़कर गया होता मनीष, शायद सुबह कि बात को याद करते हुए वो कुछ करने कि सोच बैठती उनके साथ ..
अभी मनीष और काका को गए आधा घंटा ही हुआ था कि बाहर कि बेल बजी और वो भागती हुई नीचे उतर आयी ..
सामने देखा तो हर्षित खड़ा था ..दोनों एक दूसरे को देखकर मुस्कुराये ..
दिव्या साईड में हो गयी ..और हर्षित अंदर आ गया ..
और आते हुए उसने दरवाजा फिर से बंद कर दिया ..
दिव्या : "मनीष तो मार्किट गए हैं अभी …”
हर्षित : "मुझे पता है, मैंने उसे अभी हरिया काका के साथ जाते हुए देखा …"
दिव्या : "अच्छा जी …फिर भी यहाँ चले आये …"
हर्षित : "हाँ …क्योंकि मुझे आपसे बात करनी थी ..”
दिव्या (मंद – २ मुस्कुराते हुए ) : "मुझसे !!? मुझसे क्या बात करनी है ..”
हर्षित : " कल रात के बारे में ..!"
दिव्या का दिल धक् से रह गया …वो बोली : "कल रात के बारे में क्या .."
हर्षित : "कल आप नदी किनारे गयी थी .."
दिव्या : "हाँ ..तो …"
हर्षित : "आपको शायद पता नहीं है ..कल शायद नदी में तैरते हुए आप बेहोश हो गयी थी ..और मैंने आपको बचाया था ..”
उसने अपने दोस्तों का तो नाम भी नहीं लिया ..
दिव्या : "ओहो …तो आप थे ..दरअसल मुझे तैरना नहीं आता ..पर कल वहाँ का पानी देखकर ना जाने मेरे मन में आया कि मैं बिना कुछ सोचे समझे नदी में उतर गयी ..और डूबने लगी ..और बेहोश हो गयी ..और जब मुझे होश आया तो मैं किनारे पर पड़ी थी ..”
हर्षित : "हाँ ..आप बीच नदी में एक चट्टान के के सहारे पड़ी थी ..मैंने आपको निकालकर किनारे पर लिटाया था .."
दिव्या शर्माने का नाटक करते हुए : "ओहो ….यानि …कल ..तुमने …मुझे ..बिना कपड़ों के देख लिया …”
हर्षित उसके बिलकुल पास आ गया, इतने पास कि उनके बीच सिर्फ कुछ इंच का फांसला रह गया .
हर्षित : "मुझे तो लगा था कि तुम थैंक यू बोलोगी …”
दिव्या : "हूँ …..थेंक्स …”
वो बहुत धीरे से बोली ..
हर्षित : "पर एक बात जरुर कहना चाहूंगा मैं …आप हो बहुत सुन्दर ..”
दिव्या तो शर्म से गड़ी जा रही थी जमीन में ..उसकी साँसे तेजी से चलने लगी ..और जैसे ही हर्षित ने उसकी तारीफ कि वो झट से पलटी और शरमाकर ऊपर अपने कमरे कि तरफ भाग ली ..
हर्षित पीछे खड़ा हुआ उसकी उछलती हुई गांड देखता रह गया ..
ऊपर पहुंचकर दिव्या थोड़ी देर के लिए रुकी, और उसने पलटकर हर्षित कि तरफ देखा ..और मुस्कुरायी ..और फिर अंदर भाग गयी अपने कमरे में ..
हर्षित समझ गया कि दिव्या क्या चाहती है ..वो भी जल्दी से ऊपर कि तरफ भागा ..
ऊपर पहुंचकर उसने देखा कि दरवाजा तो बंद है ..हर्षित ने धीरे से दरवाजा खड़काया और बोला : "खोलो न ..दरवाजा क्यों बंद कर लिया …खोलो प्लीज …”
दिव्या दरवाजे के साथ पीठ लगा कर खड़ी थी ..अपनी उखड़ी हुई साँसों पर काबू करते हुए वो बोली : "नहीं …मुझे शर्म आ रही है ..”
हर्षित : "अब क्यों शरमा रही हो ..कल तो मैंने सब देख ही लिया है ..अब शर्माने का क्या फायेदा ..”
दिव्या : "पर ये गलत है …तुम्हे मुझे उस अवस्था में नहीं देखना चाहिए था ..”
हर्षित : "तो अब तुम मुझे देख लो वैसे …जैसी तुम थी कल वहाँ ..बिना कपड़ों के ..”
हर्षित ने बड़ी चालाकी से बात को आगे बढ़ाया ..
दिव्या कुछ ना बोली ..वैसे भी कल रात को उनके लंड देखकर और आज सुबह हरिया काका के बारे में सोचकर वो अपनी सुध बुध खो बैठी थी ..
हर्षित ने उसकी चुप्पी को हाँ समझा और बोला : "ठीक है …मैं कपडे उतार रहा हु ..तुम चाहो तो देख सकती हो ..”
दिव्या कि साँसे फिर से रेलगाड़ी कि तरह भागने लगी ..
अभी मनीष और काका को गए आधा घंटा ही हुआ था कि बाहर कि बेल बजी और वो भागती हुई नीचे उतर आयी ..
सामने देखा तो हर्षित खड़ा था ..दोनों एक दूसरे को देखकर मुस्कुराये ..
दिव्या साईड में हो गयी ..और हर्षित अंदर आ गया ..
और आते हुए उसने दरवाजा फिर से बंद कर दिया ..
दिव्या : "मनीष तो मार्किट गए हैं अभी …”
हर्षित : "मुझे पता है, मैंने उसे अभी हरिया काका के साथ जाते हुए देखा …"
दिव्या : "अच्छा जी …फिर भी यहाँ चले आये …"
हर्षित : "हाँ …क्योंकि मुझे आपसे बात करनी थी ..”
दिव्या (मंद – २ मुस्कुराते हुए ) : "मुझसे !!? मुझसे क्या बात करनी है ..”
हर्षित : " कल रात के बारे में ..!"
दिव्या का दिल धक् से रह गया …वो बोली : "कल रात के बारे में क्या .."
हर्षित : "कल आप नदी किनारे गयी थी .."
दिव्या : "हाँ ..तो …"
हर्षित : "आपको शायद पता नहीं है ..कल शायद नदी में तैरते हुए आप बेहोश हो गयी थी ..और मैंने आपको बचाया था ..”
उसने अपने दोस्तों का तो नाम भी नहीं लिया ..
दिव्या : "ओहो …तो आप थे ..दरअसल मुझे तैरना नहीं आता ..पर कल वहाँ का पानी देखकर ना जाने मेरे मन में आया कि मैं बिना कुछ सोचे समझे नदी में उतर गयी ..और डूबने लगी ..और बेहोश हो गयी ..और जब मुझे होश आया तो मैं किनारे पर पड़ी थी ..”
हर्षित : "हाँ ..आप बीच नदी में एक चट्टान के के सहारे पड़ी थी ..मैंने आपको निकालकर किनारे पर लिटाया था .."
दिव्या शर्माने का नाटक करते हुए : "ओहो ….यानि …कल ..तुमने …मुझे ..बिना कपड़ों के देख लिया …”
हर्षित उसके बिलकुल पास आ गया, इतने पास कि उनके बीच सिर्फ कुछ इंच का फांसला रह गया .
हर्षित : "मुझे तो लगा था कि तुम थैंक यू बोलोगी …”
दिव्या : "हूँ …..थेंक्स …”
वो बहुत धीरे से बोली ..
हर्षित : "पर एक बात जरुर कहना चाहूंगा मैं …आप हो बहुत सुन्दर ..”
दिव्या तो शर्म से गड़ी जा रही थी जमीन में ..उसकी साँसे तेजी से चलने लगी ..और जैसे ही हर्षित ने उसकी तारीफ कि वो झट से पलटी और शरमाकर ऊपर अपने कमरे कि तरफ भाग ली ..
हर्षित पीछे खड़ा हुआ उसकी उछलती हुई गांड देखता रह गया ..
ऊपर पहुंचकर दिव्या थोड़ी देर के लिए रुकी, और उसने पलटकर हर्षित कि तरफ देखा ..और मुस्कुरायी ..और फिर अंदर भाग गयी अपने कमरे में ..
हर्षित समझ गया कि दिव्या क्या चाहती है ..वो भी जल्दी से ऊपर कि तरफ भागा ..
ऊपर पहुंचकर उसने देखा कि दरवाजा तो बंद है ..हर्षित ने धीरे से दरवाजा खड़काया और बोला : "खोलो न ..दरवाजा क्यों बंद कर लिया …खोलो प्लीज …”
दिव्या दरवाजे के साथ पीठ लगा कर खड़ी थी ..अपनी उखड़ी हुई साँसों पर काबू करते हुए वो बोली : "नहीं …मुझे शर्म आ रही है ..”
हर्षित : "अब क्यों शरमा रही हो ..कल तो मैंने सब देख ही लिया है ..अब शर्माने का क्या फायेदा ..”
दिव्या : "पर ये गलत है …तुम्हे मुझे उस अवस्था में नहीं देखना चाहिए था ..”
हर्षित : "तो अब तुम मुझे देख लो वैसे …जैसी तुम थी कल वहाँ ..बिना कपड़ों के ..”
हर्षित ने बड़ी चालाकी से बात को आगे बढ़ाया ..
दिव्या कुछ ना बोली ..वैसे भी कल रात को उनके लंड देखकर और आज सुबह हरिया काका के बारे में सोचकर वो अपनी सुध बुध खो बैठी थी ..
हर्षित ने उसकी चुप्पी को हाँ समझा और बोला : "ठीक है …मैं कपडे उतार रहा हु ..तुम चाहो तो देख सकती हो ..”
दिव्या कि साँसे फिर से रेलगाड़ी कि तरह भागने लगी ..