27-12-2020, 12:52 PM
जेठानी -बड़ी भाभी
भाभी के गाल देवर के हाथों में थे और कुछ अपने हाथ में लगे रंग से , कुछ गालों में लगे रंग से अनुज रगड़ रहा था
मैं आगे बढ़ी पर कम्मो ने इशारे से मुझे रोक दिया ,
मैं समझ गयी उसकी बात। कुछ देर जेठानी जी भी नए माल का मजा ले लें।
पार पांच दस मिनट बाद मैं कम्मो ने एक साथ , ...
मैंने आंगन में रखी बाल्टी लेकर सीधे देवर के पिछवाड़े , पूरी तपाक से
छपाक ,
और दूसरी बाल्टी सीधे सर पे ,
बस कम्मो को मौका मिल गए उसे पीछे से दबोचने का
और मुझे देवर ननद के साथ जो काम सबसे अच्छा लगता था , मैं उसमें लग गयी ,
शर्ट के बटन खुले , ... और जेठानी जी ने आँख से मना कर दिया , वरना मेरा मन था
उस एक शर्ट के कम से कम दस पांच टुकड़े करने का ,
पर बनियान तो मैंने चीथड़े चीथड़े कर ही और देवर जी टॉपलेस हो गए , बंटवारे में यही हिस्सा मुझे मिला था तो मैं एक एक इंच
और बीच बीच में उस के मेल निप्स को फ्लिक करती , पिंच करती , बेल्ट कमर के ऊपर थी , इसलिए वो मेरे हिस्से में आयी और वो मैंने उतार कर फेंक दी ,
कहीं होली खेलने में चुभ वुभ जाए तो ,
बस
कम्मो ने जींस की बटन खोल दीं ,
जेठानी अपना हरबा हथियार इकठ्ठा करने , कुछ देर के लिए हट गयी
बस अब देवर जी के चिकने मक्खन मालपूआ ऐसे गालों पर मेरे हाथों का कब्जा हो गया ,
जैसे कॉलेज से लेकर कालेज तक हर साल होली में, ' बिग बी ' वाली टाइटल पर मेरा ही कब्ज़ा रहता था उसी तरह मैं श्योर थी इस चिकने को होली में जरूर , ' है शुकर की तू है लड़का ' वाली टाइटल जरूर मिलती होगी।
नहीं मैंने कस के उन गालों को नहीं दबोचा , इत्ते मस्त मुलायम , मेरी रंग लगी उँगलियाँ कभी , बस होंठों को छू के हट जातीं , तो कभी गालों को हलके से रगड़ देतीं
जल्दी किसे थी , मेरी और कम्मो की पकड़ से निकलने की तो ये सोच भी नहीं सकता था ,
कभी हथेली का लाल रंग उसके गालों को सहलाते हुए तो कभी उँगलियाँ , होंठों को हटा के सीधे दांतों पर , तो कभी नाक और कान के पीछे ,
जैसे कुछ भौंरे ऐसे बगिया में पहुँच जाए जहाँ कलियाँ ही कलिया हों , वही हालत मेरी उँगलियों , हाथ की हो रही थी , ... छू रगड़ मैं रही थी लेकिन काम के उनचासो पवन भी मेरे देह में चल रहे थे ,
पर उसकी हालत देख कर मैं समझ रही थी की उस चिकने को भी मेरी हर छुअन , मेरा हलका सा स्पर्श , ... सैकड़ों बिच्छूओं के डंक की तरह लग रहा होगा , उसकी कुँवारी देह पर एक नयी ब्याही के हाथ का बस छू जाना ही
पर
उन बिच्छुओं के डंक की तड़पन कुछ नहीं थी उस सांप की पकड़ के आगे , किसी भी देवर की फंतासी , ...
कम्मो की उँगलियाँ ,
जींस की बेल्ट तो मैंने उतार फेंकी थीं , बटन उसने खोल दी थी , बस अब सीधे चड्ढी के अंदर हाथ डाल के ,
जैसे अजगर की पकड़ हो वैसे फागुन में भौजाई के हाथ की काम से धधकती उँगलियों की पकड़
और कम्मो की उँगलियाँ तो और , पहले हलके हलके सहलाती रही सिर्फ , कभी छूतीं कभी दूर हो जातीं ,
जैसे जवानी की दहलीज पर चढ़ती , लेकिन बचपन के खेल खेलती लड़कियों के साथ छुपा छुपाई खेलते हर लड़का ये सोचता है की काश ये मेरे साथ छिपे तो कुछ नहीं तो , ... छू तो लूंगा ही ,
बस उसी छुअन की तरह , कम्मो की उँगलियों की छुअन और आग भड़का रही थी , और जैसे आसमान में उड़ती चील की तरह एक झप्पट्टे में ,...
देवरों के लिए कम्मो चील ही तो थी , ...
और खूंटा कम्मो की मुट्ठी में , लेकिन अभी भी कस के दबा रही थी ,कभी ऊँगली खोल दे रही थी
भाभी के गाल देवर के हाथों में थे और कुछ अपने हाथ में लगे रंग से , कुछ गालों में लगे रंग से अनुज रगड़ रहा था
मैं आगे बढ़ी पर कम्मो ने इशारे से मुझे रोक दिया ,
मैं समझ गयी उसकी बात। कुछ देर जेठानी जी भी नए माल का मजा ले लें।
पार पांच दस मिनट बाद मैं कम्मो ने एक साथ , ...
मैंने आंगन में रखी बाल्टी लेकर सीधे देवर के पिछवाड़े , पूरी तपाक से
छपाक ,
और दूसरी बाल्टी सीधे सर पे ,
बस कम्मो को मौका मिल गए उसे पीछे से दबोचने का
और मुझे देवर ननद के साथ जो काम सबसे अच्छा लगता था , मैं उसमें लग गयी ,
शर्ट के बटन खुले , ... और जेठानी जी ने आँख से मना कर दिया , वरना मेरा मन था
उस एक शर्ट के कम से कम दस पांच टुकड़े करने का ,
पर बनियान तो मैंने चीथड़े चीथड़े कर ही और देवर जी टॉपलेस हो गए , बंटवारे में यही हिस्सा मुझे मिला था तो मैं एक एक इंच
और बीच बीच में उस के मेल निप्स को फ्लिक करती , पिंच करती , बेल्ट कमर के ऊपर थी , इसलिए वो मेरे हिस्से में आयी और वो मैंने उतार कर फेंक दी ,
कहीं होली खेलने में चुभ वुभ जाए तो ,
बस
कम्मो ने जींस की बटन खोल दीं ,
जेठानी अपना हरबा हथियार इकठ्ठा करने , कुछ देर के लिए हट गयी
बस अब देवर जी के चिकने मक्खन मालपूआ ऐसे गालों पर मेरे हाथों का कब्जा हो गया ,
जैसे कॉलेज से लेकर कालेज तक हर साल होली में, ' बिग बी ' वाली टाइटल पर मेरा ही कब्ज़ा रहता था उसी तरह मैं श्योर थी इस चिकने को होली में जरूर , ' है शुकर की तू है लड़का ' वाली टाइटल जरूर मिलती होगी।
नहीं मैंने कस के उन गालों को नहीं दबोचा , इत्ते मस्त मुलायम , मेरी रंग लगी उँगलियाँ कभी , बस होंठों को छू के हट जातीं , तो कभी गालों को हलके से रगड़ देतीं
जल्दी किसे थी , मेरी और कम्मो की पकड़ से निकलने की तो ये सोच भी नहीं सकता था ,
कभी हथेली का लाल रंग उसके गालों को सहलाते हुए तो कभी उँगलियाँ , होंठों को हटा के सीधे दांतों पर , तो कभी नाक और कान के पीछे ,
जैसे कुछ भौंरे ऐसे बगिया में पहुँच जाए जहाँ कलियाँ ही कलिया हों , वही हालत मेरी उँगलियों , हाथ की हो रही थी , ... छू रगड़ मैं रही थी लेकिन काम के उनचासो पवन भी मेरे देह में चल रहे थे ,
पर उसकी हालत देख कर मैं समझ रही थी की उस चिकने को भी मेरी हर छुअन , मेरा हलका सा स्पर्श , ... सैकड़ों बिच्छूओं के डंक की तरह लग रहा होगा , उसकी कुँवारी देह पर एक नयी ब्याही के हाथ का बस छू जाना ही
पर
उन बिच्छुओं के डंक की तड़पन कुछ नहीं थी उस सांप की पकड़ के आगे , किसी भी देवर की फंतासी , ...
कम्मो की उँगलियाँ ,
जींस की बेल्ट तो मैंने उतार फेंकी थीं , बटन उसने खोल दी थी , बस अब सीधे चड्ढी के अंदर हाथ डाल के ,
जैसे अजगर की पकड़ हो वैसे फागुन में भौजाई के हाथ की काम से धधकती उँगलियों की पकड़
और कम्मो की उँगलियाँ तो और , पहले हलके हलके सहलाती रही सिर्फ , कभी छूतीं कभी दूर हो जातीं ,
जैसे जवानी की दहलीज पर चढ़ती , लेकिन बचपन के खेल खेलती लड़कियों के साथ छुपा छुपाई खेलते हर लड़का ये सोचता है की काश ये मेरे साथ छिपे तो कुछ नहीं तो , ... छू तो लूंगा ही ,
बस उसी छुअन की तरह , कम्मो की उँगलियों की छुअन और आग भड़का रही थी , और जैसे आसमान में उड़ती चील की तरह एक झप्पट्टे में ,...
देवरों के लिए कम्मो चील ही तो थी , ...
और खूंटा कम्मो की मुट्ठी में , लेकिन अभी भी कस के दबा रही थी ,कभी ऊँगली खोल दे रही थी