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Adultery कामया बहू से कामयानी देवी
#25
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उसकी जांघों के बीच में चाचा के लिंग की गर्मी इतनी थी की लगभग झड़ने की स्थिति में पहुँच चुकी थी। पर चाचा तो बस अब तक उसके होंठों और उसकी चूचियों के पीछे ही पड़े हुए थे। वो लगातार अपनी योनि को उसके लिंग पर घिसते हुए अपने होंठों को और जीभ को भी चाचा के अंदर तक उतार देती थी। उसकी पकड़ जो की अब तक उनकी कमर के चारों तरफ थी, अचानक ही ढीली पड़ी और एक हाथ चाचा के सिर पर पहुँच गया और एक हाथ उनके लिंग तक ले जाने की कोशिश करने लगी। बड़ी मुश्किल से उसने अपने और चाचा के बीच में जगह बनाई और लिंग को पकड़कर अपनी योनि पर रखा और वैसे ही एक झटका उसने नीचे से लगा दिया।

भीमा चाचा इस हरकत को जब तक पहचानते तब तक तो बहू के अंदर थे, और बहू की जांघों ने उन्हें कसकर जकड़ लिया था। भीमा अपने को एक इतनी सुंदर स्त्री के साथ इस तरह की आपेक्षा करते वो तो जिंदगी में नहीं सोच पाए थे। पर जैसे ही वो बहू के अंदर हुए, उसका शरीर भी अपने आप बहू के साथ-साथ ऊपर-नीचे होने लगा था। वो अब भी बहू के होंठों को चूस रहे थे और अपने हाथों से बहू की चूचियों को निचोड़ रहे थे। उनकी हर हरकत पर बहू की चीख उनके गले में ही अटक जाती थी। हर चीख के साथ भीमा और भी जंगली हो जाता था, और उसके हाथों का दबाब भी बढ़ जाता था।

वो पागलों की तरह से बहू की किस करता हुआ अपने आपको गति देता जा रहा था। वो जैसे ही बहू के होंठों को छोड़ता, बहू की सिसकियां पूरे कमरे में गूंजने लगती तो वो फौरन अपने होंठों से उन्हें सील कर देता और अपनी गति को और भी तेज कर देता। पूरे कमरे में अचानक ही एक तूफान सा आ गया था, जो की पूरे जोर पर था। कमरे में जिस बिस्तर पर भीमा बहू को भोग रहा था, वो भी झटकों के साथ अब हिलने लगा था, और कामया की जिंदगी का यह एहसास जो की अभी भी चल रहा था, एक ऐसा एहसासा था जिसे की वो पूरी तरह से भोगना चाहती थी।

वो आज इतनी गरम हो चुकी थी की भीमा के दो तीन झटकों में ही वो झड़ चुकी थी। पर भीमा के लगातार झटकों में अपने को फिर से जागते हुए पाया और अपनी जांघों की पकड़ और भी मजबूत करते हुए भीमा चाचा से लिपट गई, और हर धक्के के साथ अपने मुँह से एक जोरदार चीत्कार निकालती जा रही थी। वो उन झटकों को बिना चीत्कार के झेल भी नहीं पा रही थी। पता नहीं कहां जाकर टकराते थे। भीमा चाचा के लिंग के ऊपर की ओर सरक जाती थी और एक चीख उसके मुँह से निकल जाती थी। पर हर बार भीमा चाचा उसे अपने होंठों से दबाकर खा जाते थे।

उसको भीमा चाचा का यह अंदाज बहुत पसंद आया और वो खुलकर उनका साथ दे रही थी। शायद ही उसने अपने पति का इस तरह से साथ दिया हो। वहां तो शरम और हया का परदा जो रहता है, पर यहां तो सेक्स और सिर्फ सेक्स का ही रिश्ता था। वो खुलकर अपने शरीर की उठने वाली हर तरंग का मजा भी ले रही थी, और अपने आपको पूरी तरह से भीमा चाचा के सुपुर्द भी कर दिया था और जमकर सेक्स का मजा भी लूट रही थी। उसके पति का तिरस्कार अब उसे नहीं सता रहा था ना उनकी अपेक्षा। वो तो जिस समुंदर में डुबकी ले रही थी, वहां तो बस मजा ही मजा था।

वो भीमा चाचा को अपनी जांघों से जकड़ते हुए हर धक्के के साथ उठती और हर धक्के के साथ नीचे गिरती थी, और भीमा तो जैसे, जानवर हो गया था। अपने होंठों को बहू के होंठों से जोड़े हुए लगातार गति देते हुए अपने चरम सीमा की और बढ़ता जा रहा था। उसे कोई डर नहीं था और न ही कोई शिकायत थी। वो लगातार अपने नीचे बहू को अपने तरीके से भोग रहा था और धीरे-धीरे अपने शिकार पर पहुँच गया। हर एक धक्के के साथ वो अपने को रिलीज करता जा रहा था और हर बार नीचे से मिल रहे साथ का पूरा मजा ले रहा था।

वो अपने को और नहीं संभाल पाया और धम्म से नीचे पड़े हुए बहू के ऊपर ढेर हो गया। नीचे बहू भी झड़ चुकी थी और वो भी निश्चल सी उसके नीचे पड़ी हुई गों-गों करके सांसें ले रही थी। उसकी सांसों से भी कभी-कभी कमरा गूँज उठता था, पर थोड़ी देर में सब कुछ शांत हो गया था, बिल्कुल शांत।

भीमा अपने आपको कंट्रोल करके बहू के शरीर के ऊपर से उठा और धीरे से बिस्तर पर ही बैठ गया। बहू अब भी शांत सी पड़ी हुई थी। वो बिस्तर पर बैठे हुए ही अपने कपड़े नीचे से उठाकर पहनने लगा था, पर नजर बहू के नंगे शरीर पर थी। उसके मन में अब भी उसके तन से खेलने की इच्छा थी, पर कुछ सोचकर वो कपड़े पहनकर उठा और वहीं चद्दर से बहू को ढक कर बाहर की ओर चला गया।

कामया जो की अब शांत थी भीमा के निकलने के बाद थोड़ा सा हिली, पर ना जाने क्यों वो वैसे ही पड़ी रही और धीरे-धीरे नींद के आगोश में चली गई। शाम को ठीक 5:15 पर इंटरकाम की घंटी बजी तो वो हड़बड़ा कर उठी और कहा- “हाँ…”

भीमा- “जी वो आपको माँ जी के साथ मंदिर जाना था इसलिए।

कामया ने झट से फोन रख दिया। दूसरी तरफ भीमा चाचा थे। वो चिंतित थे की कहीं वो सोती रह जाती तो मम्मीजी के साथ वो कैसे मंदिर जाती? उसके चेहरे पर एक मुश्कान थी। वो जल्दी से उठी और बाथरूम की ओर भागी, ताकी नहा धोकर जल्दी से तैयार हो सके। लगभग 6:00 बजे से पहले वो बिल्कुल तैयार थी। साड़ी और मैचिंग ब्लाउज़ के साथ।

मम्मीजी के साथ जाना था इसलिए थोड़ा सलीके की ब्लाउज़ और साड़ी पहनी थी, पर था तो फिर भी बहुत कुछ दिखाने वाला, टाइट और बिल्कुल नाप का। साड़ी वहीं कमर के बहुत नीचे और ब्लाउज़ भी डीप नेक आगे और पीछे से। थोड़ी देर में ही बाहर एक गाड़ी आकर रुकी तो वो समझ गई थी की टैक्सी आ गई है। वो फौरन बाहर की ओर लपकी, ताकी मम्मीजी के साथ ही वो नीचे मिल सके, मम्मीजी को फोन नहीं करना पड़े।

नीचे आते ही मम्मीजी ने एक बार कामया को ऊपर से नीचे तक देखा और मुश्कुराती हुई बोली- चलें?

कामया- “जी…” और बाहर जहां गाड़ी खड़ी थी आकर बैठ गये। गाड़ी में कामया ने बड़े ही हिम्मत करके मम्मीजी को कहा- “मम्मीजी…”

मम्मीजी- “हाँ…”

कामया- “जी वो…”

मम्मीजी- बोलो।

कामया- जी वो असल में मुझे ना यह सब मजा नहीं आता तो क्या मैं वहां से जल्दी निकलकर घर आ जाऊँ।

मम्मीजी- अरे मुझे भी कहां आता है, इतनी भीड़ भाड़ में। पर क्या करें बेटा जाना तो पड़ेगा ना। तू एक काम कर, वहां पार्क है तू थोड़ा घूम आना। मैं वहां थोड़ी देर बैठूँगी और फिर दोनों घर आ जाऐंगे।

कामया- जी ठीक है। पर क्या मुझे भी वहां बैठना पड़ेगा?

मम्मीजी- तेरी मर्ज़ी। नहीं तो आस-पास घूमकर देखना और क्या?

कामया- जी ठीक है।

दोनों ने एक दूसरे की ओर मुश्कुराते हुए देखा और गाड़ी को मंदिर के रास्ते पर घूमते हुए देखते रहे। जैसे ही गाड़ी मंदिर पर रुकी, बहुत से लोग गाड़ी के पास आकर मम्मीजी के पैर पड़ने लगे। कुछ कामया को भी नमस्कार करते हुए दिखे। सभी शायद मम्मीजी को जानते थे। मम्मीजी भी सभी के साथ कामया को लेकर मंदिर की सीढ़ियों पर चढ़ने लगी थी। मंदिर के अंदर जाकर दोनों ने नमस्कार किया और अपनी जगह पर बैठ गये थे। वहां बाहर से कुछ लोग आए थे कीर्तन वाले और कुछ गीता वाचक भी थे। मंदिर का समा धीरे-धीरे जैसे भक्तिमए होने लगा था।

पर कामया का मन तो बिल्कुल नहीं लग रहा था। वो चाहकर भी वहां बैठ नहीं पा रही थी। एक तो बहुत जोर से माइक बज रहा था, और फिर लोगों की बातें उसे समझ में नहीं आ रही थीं। वो इधर उधर सभी को देख रही थी और किसी तरह वहां से निकलने की कोशिश करने लगी थी। मम्मीजी आँखें बंद किए कीर्तन की धुन पर झूम रही थी और कहीं भी ध्यान नहीं था।

कामया- “मम्मीजी…” मम्मीजी के हाथों को हिलाकर कामया ने अपनी ओर ध्यान खींचा था।

मम्मीजी- “हाँ…”

कामया- जी मैं थोड़ा बाहर घूम आऊँ?

मम्मीजी- हाँ… हाँ… जा ना मैं यही हूँ।

कामया की जान में जान आई वो लोगों की तरफ देखती हुई थोड़ा सा मुश्कुराती हुई सिर पर पल्ला लिए हुए धीरे से उठी और बाहर की ओर चलने लगी। बहुत सी आँखें उसपर थीं। पर एक आँख जो की दूर से उसे देख रही थी, कामया की नजर उसपर जम गई थी। वो भीड़ में खड़ा दूर से उसे ही निहार रहा था। वो घूमकर उसे देखती पर अपने को उस भीड़ से बचाकर जब वो बाहर निकली तो वो आँख गायब थी। वो मंदिर के बाहर सीढ़ियों पर आकर फिर से इधर उधर नजरें घुमाने लगी थी, पर कोई नहीं दिखा उसे।

पर वो ढूँढ़ क्या रही थी और किसे? शायद वो उस नजर का पीछा कर रही थी जो उसे भीड़ में दिखी थी, पर वो था कौन? उसे वो नजर कुछ पहचानी हुई सी लगी थी। पर एक झटके से उसने अपने सिर को हिलाकर अपने जेहन से वो बात को निकाल दिया की उसे यहां कौन पहचानेगा? वो आज से पहले कभी मंदिर आई ही नहीं। वो मंदिर की सीढ़ियां उतरकर बाहर बने हुए छोटे से पार्क में आ गई थी और धीरे-धीरे चहलकदमी करते हुए बार-बार इधर-उधर देखती जा रही थी।
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to be contd.
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RE: कामया बहू से कामयानी देवी - by jaunpur - 21-03-2019, 10:22 PM



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