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Adultery कामया बहू से कामयानी देवी
#24
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वो अपने जीवन का वो लम्हा सब कुछ भूलकर बहू की जांघों और टांगों को समर्पित कर चुका था। उसे नहीं पता था की इस तरह से वो बहू को जगा भी सकता था। पर वो मजबूर था और अपने को ना रोक पाकर ही वो इस हरकत पर उतर आया था। उसकी जीभ भी अब बहू की जांघों को चाट-चाट कर गीलाकर रही थी और होंठों पर इतनी कोमल और चिकनी काया का स्पर्श उसे जन्नत का वो सुख दे रहे थे, जिसकी की उसने कभी भी कल्पना भी नहीं की थी।

वो अपने मन से बहू की तारीफ करते हुए धीरे-धीरे अपने काम में लगा था, और अपने हाथों की उंगलियों को ऊपर-नीचे करते हुए बहू की जांघों पर घुमा रहा था उसकी उंगलियां बहू की जांघों के बीच में भी कभी-कभी चली जाती थी। वो अपने काम में लगा था की अचानक ही उसे महसूस हुआ की बहू की जांघों और और टांगों पर जब वो अपने हाथ फेर रहा था तो उनपर थोड़ा सा खिंचाव भी होता था, और बहू के मुँह से सांसों का जोर थोड़ा सा बढ़ गया था। वो चौंक कर थोड़ा सा रुका कहीं बहू जाग तो नहीं गई? और अगर जाग गई थी तो कहीं वो चिल्ला ना पड़े।

वो थोड़ा सा रुका पर बहू के शरीर पर कोई हरकत ना देखकर वो धीरे से उठा और बहू की कमर के पास आ गया, और अपने हाथों को वो उसकी कमर के चारों ओर घुमाने लगा था, और एक हाथ से वो बहू की पीठ को भी सहलाने लगा था। वो आज अच्छे से बहू को देखना चाहता था, और उसके हर उसे भाग को छूकर भी देखना चाहता था, जिससे वो अब तक ठीक से देख नहीं पाया था। शायद हर पुरुष की यही इच्छा होती है, जिस चीज को भोग भी चुका हो उसे फिर से देखने की और महसूस करने की इच्छा हमेशा ही उसके अंदर पनपती रहती है। वही हाल भीमा का भी था।

उसके हाथ अब बहू की पीठ और, कमर पर घूम रहे थे और हल्के-हल्के वो उसकी चूचियों की ओर भी चले जाते थे। पर बहू जिस तरह से सोई हुई थी वो अपने हाथों को उसकी चूची तक अच्छी तरह से नहीं पहुँचा पा रहा था। पर फिर भी साइड से ही वो उसकी नर्मी का एहसास अपने हाथों को दे रहा था। लेकिन एक डर अब भी उसके जेहन में था कि कहीं बहू उठ ना जाए? पर अपने को रोक ना पाने की वजह से वो आगे और आगे चलता जा रहा था।

और उधर कामया जो की अब पूरी तरह से जागी हुई थी। जैसे ही भीमा चाचा उसके कमरे में घुसे थे, तभी वो जाग गई थी और बिल्कुल बिना हिले-डुले वैसे ही लेटी रही। उसके तन में जो आग लगी थी भीमा चाचा के कमरे में घुसते ही वो चार गुना हो गई थी। वो अपनी सांसों को कंट्रोल करके किसी तरह से लेटी हुई थी, और आगे की आने वाले घटनाक्रम को झेलने की तैयारी कर रही थी। वो सुनने की कोशिश कर रही थी की भीमा चाचा कहां हैं? पर उनके पदचाप उसे नहीं सुनाई दिए। हाँ… उसके नथुनों में जब एक महक ने जगह ली तो वो समझ गई थी की भीमा चाचा अब उसके बिल्कुल पास हैं। वो उस मर्दाना महक को पहचानती थी, उसने उस पशीने की खुशबू को अपने अंदर इससे पहले भी महसूस किया था।

उसके शरीर में उठने वाली तरंगें अब एक विकराल रूप ले चुकी थीं, वो चाहते हुए भी अपने को उस हालत से निकालने में असमर्थ थी। वो उसे सागर में गोते लगाने के लिए तैयार थी, बल्की कहिए वो तो चाह ही रही थी की आज उसके शरीर को कोई इतना रौंदे की उसकी जान ही निकल जाए। पर वो अपने आपसे नहीं जीत पाई थी, इसलिए वो चुपचाप सोने की कोशिश करने लगी थी। पर जैसे ही भीमा चाचा आए, वो सब कुछ भूल गई थी, और अपने शरीर को सेक्स की आग में धकेल दिया था।

वो अपने शरीर में उठ रही लहर को किसी तरह रोके हुए भीमा चाचा की हर हरकत को महसूस कर रही थी, और अपने अंदर उठ रही सेक्स की आग में डूबती जा रही थी। उसे भीमा चाचा के छूने का अंदाज बहुत अच्छा लग रहा था। वो अपने को समेटे हुए उन हरकतों का मजा लूट रही थी। उसे कोई चिंता नहीं थी, वो अपने को एक सुखद अनुभूति के दलदल में धकेलती हुई अपने जीवन का आनंद लेती जा रही थी। जब भी चाचा के हाथ उसके पैरों से उठते हुए जांघों तक आते थे, उसकी योनि में ढेर सारा चिपचिपापन सा हो जाता था, और चूचियां अपने ब्लाउज़ के अंदर जगह बनाने की कोशिश कर रही थीं। कामया अपने को किसी तरह से अपने शरीर में उठ रहे ज्वार को संभाले हुए थी, पर धीरे-धीरे वो अपना नियंत्रण खोती जा रही थी।

भीमा चाचा अब उसकी कमर के पास, बहुत पास बैठे हुए थे और उनके शरीर की गर्मी को वो महसूस कर रही थी। उसका पूरा शरीर गरम था और पूरा ध्यान भीमा चाचा के हाथों पर था। भीमा चाचा उसकी पीठ को सहलाते हुए जब उसकी चूचियों की ओर आते थे तो वो अपने को तकिये से अलग करके उनके हाथ को भर देना चाहती थी, पर कर ना पाई। भीमा चाचा अब उसके पेट से लेकर पीठ और फिर से जब वो उसकी चूची तक पहुँचने की कोशिश की तो कामया से नहीं रहा गया, वो थोड़ा सा अपने तकिये को ढीला छोड़ दी और भीमा चाचा के हाथों को अपनी चूचियों तक पहुँचने में मदद की।

भीमा के हाथ जैसे ही बहू की चूचियों तक पहुँचे, वो थोड़ा सा चौंका, अपने हाथों को अपनी जगह पर ही रोके हुए उसने एक बार फिर से आहट लेने की कोशिश की। पर बहू की ओर से कोई गतिविधि होते ना देखकर वो निश्चिंत हो गया, और अपने आपको उस खेल में धकेल दिया, जहां सिर्फ मजा ही मजा है और कुछ नहीं। वो अपने हाथों से बहू की चूचियों को धीरे-धीरे दबाते हुए उसकी पीठ को भी सहला रहा था और अपने हाथों को उसके नितम्बों तक ले जाता था। वो बहू के नथुनों से निकलने वाली सांसों को भी गिन रहा था, जो की अब धीरे-धीरे कुछ तेज हो रही थीं।

पर उसका ध्यान इस तरफ काम और अपने हाथों की अनुभूति की ओर ज्यादा था। वो अपने को कहीं भी रोकने की कोशिश नहीं कर रहा था। वो अपने मन से और दिल के हाथों मजबूर था। वो अपने हाथ में आई उस सुंदर चीज को कहीं से भी छोड़ने को तैयार नहीं था। अब धीरे-धीरे भीमा चाचा की हरकतों में तेजी भी आती जा रही थी। उसके हाथों का दबाब भी बढ़ने लगा था। उसके हाथों में आई बहू की चूची अब धीरे-धीरे दबाते हुए उसके हाथ कब उन्हें मसलने लगे थे, उसे पता नहीं चला था।

पर हाँ… बहू के मुँह से निकलती हुई आअह्ह उसे फिर से वास्तविकता में ले आई थी। वो थोड़ा सा ढीला पड़ा पर बहू की ओर से कोई हरकत नहीं होते देखकर उसके हाथ अब तो जैसे पागल हो गये थे। वो अब बहू के ब्लाउज़ के हुक की ओर बढ़ चले थे। वो अब जल्दी से उन्हें आजाद करना चाहता था, पर बहुत ही धीरे-धीरे से वो बढ़ रहा था पर उसे बहू के होंठों से निकलने वाली सिसकारी भी अब ज्यादा तेज सुनाई दे रही थी। जब तक वो बहू के ब्लाउज़ को खोलता, तब तक बहू के होंठों पर से आअह्ह और भी तेज हो चुकी थी।

वो अब समझ चुका था की बहू जाग गई है, पर वो कहां रुकने वाला था। उसके हाथों में जो चीज आई थी वो तो उसे मसलने में लग गया था, और पीछे से हाथ लेजाकर उसने बहू की चूचियों को भी उसकी ब्रा से आजाद कर दिया था। वो अपने हाथों का जोर उसकी चूचियों पर बढ़ाता ही जा रहा था और दूसरे हाथ से उसकी पीठ को भी सहलाता जा रहा था। वो बहू के मुँह से सिसकारी सुनकर और भी पागल हो रहा था। उसे पता था की बहू के जागने के बाद भी जब उसने कोई हरकत नहीं की तो उसे यह सब अच्छा लग रहा था।

वो और भी निडर हो गया और धीरे से बहू को अपनी ओर पलटा लिया और अपने होंठों को बहू की चूचियों पर लगा दिया और जोर-जोर से चूसने लगा। उसके हाथों में आई बहू की दोनों चूचियां अब भीमा चाचा के रहमो करम पर थीं। वो अपने होंठों को उसकी एक चूची पर रखे हुए उन्हें चूस रहा था, और दूसरे हाथ से उसकी एक चूची को जोर-जोर से मसल रहा था, इतना की कामया के मुँह से एक लम्बी सी सिसकारी निकली और निरंतर निकलने लगी थी।

कामया के हाथों ने अब भीमा चाचा के सिर को कसकर पकड़ लिया था और अपनी चूचियों की ओर जोर लगाकर खींचने लगी थी। वो अब और सह नहीं पा रही थी और अपने आपको भीमा चाचा की चाहत के सामने समर्पित कर दिया था। वो अपने आपको भीमा चाचा के पास और पास ले जाने को लालायित थी। वो अपने शरीर को भीमा चाचा के शरीर से सटाने को लालायित थी। वो अपनी जांघों को ऊपर करके और अपना पूरा दम लगाके भीमा चाचा को अपने ऊपर खींचने लगी थी।

भीमा जो की अब तक बहू की चूचियों को अपने मुँह में लिए हुए उन्हें चूस रहा था, अचानक ही अपने सिर पर बहू के हाथों के दबाब के पाते ही और जंगली हो गया। वो अब उनपर जैसे टूट पड़ा था। वो दोनों हाथों से एक चूची को दबाता और होंठों से उन्हें चूसता और कभी दूसरे पर मुँह रखता और दूसरे को दबाता वो अपने होंठों को भी कामया के शरीर पर घुमाता जा रहा था, और नीचे फँसी हुई पेटीकोट को भी उतारने लगा था। जब उसका नाड़ा खुल गया तो एक ही झटके में उसने उसे उतार दिया, पैंटी और, पेटीकोट भी। और देखकर आश्चर्य भी हुआ की बहू ने अपनी कमर को उठाकर उसका साथ दिया था।

वो जान गया था की बहू को कोई आपत्ति नहीं है। वो भी अपने एक हाथ से अपने कपड़ों से उतारने लगा था और अपने एक हाथ और होंठों से बहू को एंगेज किए हुए था। बहू जो की अब एक जल बिन मछली की भांति बिस्तर पर पड़ी हुई तड़प रही थी, वो अब उसे शांत करना चाहता था। वो धीरे से अपने कपड़ों से बाहर आया और बहू के ऊपर लेट गया। अब भी उसके होंठों पर बहू के निप्पलस थे और हाथों को उसके पूरे शरीर पर घुमाकर हर उंचाई और गहराई को नाप रहा था।

तभी उसने अपने होंठों को उसकी चूचियों से अलग किया और बहू की ओर देखने लगा जो की पूरी तरह से नंगी उसके नीचे पड़ी हुई थी। वो बहू की सुंदरता को अपने दिल में या कहिए अपने जेहन में उतारने में लगा था। पर तभी कामया को जो सूनापन लगा तो उसने अपनी आँखें खोल ली, और दोनों की आँखें चार हुईं।
भीमा बहू की सुंदर और गहरी आँखों में खो गया, और धीरे से नीचे होता हुआ उसके होंठों को अपने होंठों से दबा लिया।

कामया को अचानक ही कुछ मिल गया था, तो वो भी अपने दोनों हाथों को भीमा चाचा की कमर के चारों ओर घेरते हुए अपने होंठों को भीमा चाचा के रहमो-करम पर छोड़ दिया और अपनी जीभ को भी उनसे मिलने की कोशिश करने लगी थी। उसके हाथ भी अब भीमा चाचा के बलिष्ठ शरीर का पूरा जाएजा लेने में लगे थे। खुरदुरे और बहुत से उतार चढ़ाव लिए हुए बालों से भरे हुए उसके शरीर की गंध अब कामया के शरीर का एक हिस्सा सा बन गये थे। उसके नथुनों में उनकी गंध ने एक अजीब सा नशा भर दिया था, जो की एक मर्द के शरीर से ही निकल सकती थी। वो अपने को भूलकर भीमा चाचा से कसकर लिपट गई और अपनी जांघों को पूरा खोलकर चाचा को उसके बीच में फँसा लिया। उसकी योनि में आग लगी हुई थी और वो अपनी कमर को उठाकर भीमा चाचा के लिंग पर अपने आपको घिसने लगी थी।
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RE: कामया बहू से कामयानी देवी - by jaunpur - 21-03-2019, 10:21 PM



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