21-03-2019, 08:47 AM
विनया
भाभी ने अपनी बड़ी-बड़ी पलकें उठाकर इशारे से पूछा- किसका फोन है?
मैंने बताया- “विनया का…”
विनया उनकी मुझसे भी ज्यादा पक्की ननद थी, एकदम उनकी बिरादरी की, दोनों मिलके कबसे मेरी फड़वाने के चक्कर में पड़ी थीं। भाभी का चेहरा एकदम खिल गया, इशारे से ही वो बोलीं-
“स्पीकर फोन आन कर दो…”
फोन जैसे ही आन हुआ, गालियों की बौछार, बिना रुके कम से कम दो मिनट तक…
विनया थी ही ऐसी, उसके फोन के बीच में बोलना मुश्किल था।
विनया-
“तू भी न, किससे गाण्ड मरवा रही थी, फोन उठाने की फुर्सत नहीं थी तुझे। इत्ते मेसेज किये। अपने यारों से कहीं चूची मिजवा रही थी? किसकी मोटी पिचकारी पिचका रही? तेरी तो मैं फाड़ के दम लूंगी। भोंसड़ी की…”
उसकी गालियां और देर तक चालू रहती अगर भाभी बीच में न बोलतीं-
“विनया, तेरी बात आधी सही है। तेरी ये कोरी सहेली गाण्ड नहीं मरवा रही थी, लेकिन बुर चुदवा रही थी,
लण्ड घोंट रही थी गपागप, अब ये मेरी और तेरी कैटेगरी में आ गई है।
इसकी भी फट गई है, हाँ भोसड़ी वाली नहीं बनी है, लेकिन अगली होली के पहले ये मेरी और तेरी जिम्मेदारी है…”
विनया ने फिर बात काट दी, वो खुशी से खिलखिला रही थी, खुशी उससे रोके नहीं पड़ रही थी। बोली-
“अरे भाभी, ये तो आपने बहुत अच्छी खबर सुनाई। लेकिन एक बार से किसी चिरैया का पेट भरता थोड़ी है?
और ऊपर से ये आपकी छुईमुई टाइप ननद. कल कहे की गलती हो गई, और फिर अपनी जाँघें सिकोड़ ले।
मैं इसको इसीलिए बार-बार मैसेज कर रही थी की तीन बजे मेरे यहां आ जाये। मेरे जीजू आने वाले हैं अभी।
अपने सामने आज उसकी ओखली में मोटा मूसल चलवाऊँगी, तीन-चार बार से कम नहीं।
एक बार मेरे सामने मेरे जीजू से चुद जाएगी न फिर साल्ली नौटंकी उसकी बंद हो जायेगी,
और चूतड़ उचका-उचका के घोंटेगी। वैसे भी उसके मस्त चूतड़ों ने पूरे शहर में आग लगा रखी है…”
अब बात मैं नहीं, भाभी और विनया कर रहे थे, मैं सिर्फ फोन पकड़े थी।
भाभी बोलीं-
“एकदम, ये तो बहुत अच्छी खबर सुनाई तूने। अरे ये जरा भी नखड़ा करेगी न…
तो मैं इसके चूतड़ पे लात मार के भेज दूंगी तेरे यहाँ। होली के दिन जीजू के साथ मस्ती, अगर जरा भी नखड़ा करे न
, तो हाथ पैर बाँध के…”
विनया ने फिर बात काटी-
“एकदम भाभी, अरे लौटेगी तो आप उंगली डालकर चेक कर लीजिएगा इसकी चुनमुनिया। सड़का टपकता जाएगा,
यहां से आपके घर तक। हैप्पी होली भाभी…”
उसके फोन रखने के पहले भाभी ने भी हैप्पी होली बोल दिया, लेकिन मुझे कुछ नहीं बोलने दिया।
ऊप्स मैंने विनया के बारे में तो बताया ही नहीं।
खैर, आप सोच लीजिए।
एक ग्यारहवीं में पढ़ने वाली गोरी किशोरी, रंग जैसे दूध में इंगूर डाल दें, खूब गोरी गुलाबी, गाल भरे-भरे और उभार मुझसे बीस नहीं तो उन्नीस भी नहीं थी। मेरी पक्की सहेली क्लास 8वीं से। उसका घर मेरा घर।
बस एक बात का फरक था, देने में वो कंजूसी नहीं करती थी, उसने किसको किसको दिया? कब दिया?
जब उसे नहीं याद रहता था तो मुझे कहाँ से याद रहेगा। हाँ देने के बाद मुझे बताती जरूर थी।
और मेरी भाभी से भी उसका कोई राज नहीं छुपा था।
लेकिन उसकी सबसे पहले ली थी उसके जीजू ने, थे भी वो कुछ ज्यादा ही बोल्ड।
कोहबर में जब जूते चुराए गए, उसी समय, और मैं भी थी वहां, वो बोले-
“तुमलोग जो भी कहोगी मैं दे दूंगा, लेकिन मैं भी कुछ मांगूगा तो मना मत करना…”
जीजू की निगाह सीधे विनया के कच्चे टिकोरों से चिपकी थी। कोहबर में घुसते हुए वो उसे रगड़ते दरेरते घुसे।
विनया शर्म से गुलाल हो गई। कोहबर से निकलते समय, जब सब लोग रसम में लगे थे,
उन्होंने फिर हल्के से विनया से कहा- “साली जी मैंने कुछ पूछा था?”
खिलखिलाते हुए विनया बोली-
“अरे वो साली क्या जो मेरे ऐसे हैंडसम प्यारे-प्यारे जीजू को मना कर दे?
और वो जीजू क्या, जो साली के मना करने पर मान जाएं?”
उसी दिन शाम को रिशेप्शन में, विनया की दीदी के पहले, विनया का नंबर लग गया।
और अब हर महीने बीस दिन पर उसके जीजू आ जाते थे, फिर तो न वो दिन देखते थे न रात,
और अगले दिन, विनया जब तक मुझे पूरा किस्सा नहीं सुना लेती थी उसे चैन नहीं पड़ता था।
फोन रखने के पहले मैं कुछ बोलने वाली थी।
पर मैं कुछ बोलती उसके पहले भाभी ने सीधे खीर की कटोरी मेरे मुँह में लगा दी। बोलीं-
“अरे इतनी अच्छी खबर, मुँह तो मीठा करना बनता है यार। देख मैं तुझसे कह रही थी होली के दिन,
जीजू का, ये होली का परसाद है, होलिका देबी का आशीर्बाद है और कितना जल्दी असर हुआ।
मैंने बोला था न अब तुझे इतने मोटे-मोटे लण्ड मिलेंगे, और देख आज ही, विनया के जीजू का देखो,
आज देखना कैसे जम के रगड़ाई होती है तेरी…”
कटोरी हटने के साथ मैं बोलीं-
“ठीक है भाभी, होगी रगड़ाई जम के तो हो जाय, फिर होली है, जैसे विनया के जीजू वैसे मेरे जीजू।
लेकिन आपका मुँह भी तो मीठा करा दूँ…”
“मैं खुद कर लुंगी…”
वो बोली और सीधे उनके होंठ मेरे होंठों पे, पहले तो वहां लगी खीर का रस चाटती रहीं वो,
फिर सीधे होंठ रस और कुछ देर बाद उनकी जीभ मेरे मुँह के अंदर थी।
खाने के बाद हम लोग थोड़ी देर लेट लिए। अभी भी डेढ़ घंटे से ऊपर टाइम था तीन बजने में, भाभी ने ऊपर से पौने तीन बजे का अलार्म भी लगा दिया।
भाभी ने अपनी बड़ी-बड़ी पलकें उठाकर इशारे से पूछा- किसका फोन है?
मैंने बताया- “विनया का…”
विनया उनकी मुझसे भी ज्यादा पक्की ननद थी, एकदम उनकी बिरादरी की, दोनों मिलके कबसे मेरी फड़वाने के चक्कर में पड़ी थीं। भाभी का चेहरा एकदम खिल गया, इशारे से ही वो बोलीं-
“स्पीकर फोन आन कर दो…”
फोन जैसे ही आन हुआ, गालियों की बौछार, बिना रुके कम से कम दो मिनट तक…
विनया थी ही ऐसी, उसके फोन के बीच में बोलना मुश्किल था।
विनया-
“तू भी न, किससे गाण्ड मरवा रही थी, फोन उठाने की फुर्सत नहीं थी तुझे। इत्ते मेसेज किये। अपने यारों से कहीं चूची मिजवा रही थी? किसकी मोटी पिचकारी पिचका रही? तेरी तो मैं फाड़ के दम लूंगी। भोंसड़ी की…”
उसकी गालियां और देर तक चालू रहती अगर भाभी बीच में न बोलतीं-
“विनया, तेरी बात आधी सही है। तेरी ये कोरी सहेली गाण्ड नहीं मरवा रही थी, लेकिन बुर चुदवा रही थी,
लण्ड घोंट रही थी गपागप, अब ये मेरी और तेरी कैटेगरी में आ गई है।
इसकी भी फट गई है, हाँ भोसड़ी वाली नहीं बनी है, लेकिन अगली होली के पहले ये मेरी और तेरी जिम्मेदारी है…”
विनया ने फिर बात काट दी, वो खुशी से खिलखिला रही थी, खुशी उससे रोके नहीं पड़ रही थी। बोली-
“अरे भाभी, ये तो आपने बहुत अच्छी खबर सुनाई। लेकिन एक बार से किसी चिरैया का पेट भरता थोड़ी है?
और ऊपर से ये आपकी छुईमुई टाइप ननद. कल कहे की गलती हो गई, और फिर अपनी जाँघें सिकोड़ ले।
मैं इसको इसीलिए बार-बार मैसेज कर रही थी की तीन बजे मेरे यहां आ जाये। मेरे जीजू आने वाले हैं अभी।
अपने सामने आज उसकी ओखली में मोटा मूसल चलवाऊँगी, तीन-चार बार से कम नहीं।
एक बार मेरे सामने मेरे जीजू से चुद जाएगी न फिर साल्ली नौटंकी उसकी बंद हो जायेगी,
और चूतड़ उचका-उचका के घोंटेगी। वैसे भी उसके मस्त चूतड़ों ने पूरे शहर में आग लगा रखी है…”
अब बात मैं नहीं, भाभी और विनया कर रहे थे, मैं सिर्फ फोन पकड़े थी।
भाभी बोलीं-
“एकदम, ये तो बहुत अच्छी खबर सुनाई तूने। अरे ये जरा भी नखड़ा करेगी न…
तो मैं इसके चूतड़ पे लात मार के भेज दूंगी तेरे यहाँ। होली के दिन जीजू के साथ मस्ती, अगर जरा भी नखड़ा करे न
, तो हाथ पैर बाँध के…”
विनया ने फिर बात काटी-
“एकदम भाभी, अरे लौटेगी तो आप उंगली डालकर चेक कर लीजिएगा इसकी चुनमुनिया। सड़का टपकता जाएगा,
यहां से आपके घर तक। हैप्पी होली भाभी…”
उसके फोन रखने के पहले भाभी ने भी हैप्पी होली बोल दिया, लेकिन मुझे कुछ नहीं बोलने दिया।
ऊप्स मैंने विनया के बारे में तो बताया ही नहीं।
खैर, आप सोच लीजिए।
एक ग्यारहवीं में पढ़ने वाली गोरी किशोरी, रंग जैसे दूध में इंगूर डाल दें, खूब गोरी गुलाबी, गाल भरे-भरे और उभार मुझसे बीस नहीं तो उन्नीस भी नहीं थी। मेरी पक्की सहेली क्लास 8वीं से। उसका घर मेरा घर।
बस एक बात का फरक था, देने में वो कंजूसी नहीं करती थी, उसने किसको किसको दिया? कब दिया?
जब उसे नहीं याद रहता था तो मुझे कहाँ से याद रहेगा। हाँ देने के बाद मुझे बताती जरूर थी।
और मेरी भाभी से भी उसका कोई राज नहीं छुपा था।
लेकिन उसकी सबसे पहले ली थी उसके जीजू ने, थे भी वो कुछ ज्यादा ही बोल्ड।
कोहबर में जब जूते चुराए गए, उसी समय, और मैं भी थी वहां, वो बोले-
“तुमलोग जो भी कहोगी मैं दे दूंगा, लेकिन मैं भी कुछ मांगूगा तो मना मत करना…”
जीजू की निगाह सीधे विनया के कच्चे टिकोरों से चिपकी थी। कोहबर में घुसते हुए वो उसे रगड़ते दरेरते घुसे।
विनया शर्म से गुलाल हो गई। कोहबर से निकलते समय, जब सब लोग रसम में लगे थे,
उन्होंने फिर हल्के से विनया से कहा- “साली जी मैंने कुछ पूछा था?”
खिलखिलाते हुए विनया बोली-
“अरे वो साली क्या जो मेरे ऐसे हैंडसम प्यारे-प्यारे जीजू को मना कर दे?
और वो जीजू क्या, जो साली के मना करने पर मान जाएं?”
उसी दिन शाम को रिशेप्शन में, विनया की दीदी के पहले, विनया का नंबर लग गया।
और अब हर महीने बीस दिन पर उसके जीजू आ जाते थे, फिर तो न वो दिन देखते थे न रात,
और अगले दिन, विनया जब तक मुझे पूरा किस्सा नहीं सुना लेती थी उसे चैन नहीं पड़ता था।
फोन रखने के पहले मैं कुछ बोलने वाली थी।
पर मैं कुछ बोलती उसके पहले भाभी ने सीधे खीर की कटोरी मेरे मुँह में लगा दी। बोलीं-
“अरे इतनी अच्छी खबर, मुँह तो मीठा करना बनता है यार। देख मैं तुझसे कह रही थी होली के दिन,
जीजू का, ये होली का परसाद है, होलिका देबी का आशीर्बाद है और कितना जल्दी असर हुआ।
मैंने बोला था न अब तुझे इतने मोटे-मोटे लण्ड मिलेंगे, और देख आज ही, विनया के जीजू का देखो,
आज देखना कैसे जम के रगड़ाई होती है तेरी…”
कटोरी हटने के साथ मैं बोलीं-
“ठीक है भाभी, होगी रगड़ाई जम के तो हो जाय, फिर होली है, जैसे विनया के जीजू वैसे मेरे जीजू।
लेकिन आपका मुँह भी तो मीठा करा दूँ…”
“मैं खुद कर लुंगी…”
वो बोली और सीधे उनके होंठ मेरे होंठों पे, पहले तो वहां लगी खीर का रस चाटती रहीं वो,
फिर सीधे होंठ रस और कुछ देर बाद उनकी जीभ मेरे मुँह के अंदर थी।
खाने के बाद हम लोग थोड़ी देर लेट लिए। अभी भी डेढ़ घंटे से ऊपर टाइम था तीन बजने में, भाभी ने ऊपर से पौने तीन बजे का अलार्म भी लगा दिया।