11-12-2020, 09:13 AM
लेकिन गलती मेरी भी थी , कुर्ता एकदम टाइट था , दुपट्टा गले से चिपका जान बूझ के अपने उभार दिखा के मैं इन्हे ललचा रही थी ,
फिर कसी सलवार में चूतड़ मटका के इन्हे ललचाते उकसाते , चिढाया
" किसी को कुछ चाहिए क्या "
बस वहीँ किचेन की पट्टी पर निहुरा के ,
एक हाथ से उन्होंने मेरी शलवार का नाड़ा खोला और दूसरे से कुर्ता उठाया ,
किचेन में चिकनाई की कोई कमी तो होती नहीं , कड़वे तेल की शीशी थी बस वही थोड़ा सा अपने खूंटे पर लगाया और
गच्चाक
और सुपाड़ा अंदर ,
और शादी के पहले दो तीन दिन में ही मैं समझ गयी थी , एक बार इनका मोटा सुपाड़ा घुस गया न तो बस
लाख चूतड़ पटको , चीखो चिल्लाओ , चुदने के अलावा कोई और चारा नहीं है , ...
बस वही हुआ ,
मैंने कनखियों से अपनी जेठानी साड़ी देखी पर वो भी , ... उन्हें अंदाजा लग गया था और वो दबे पांव वापस चली गयीं
( हालाँकि बाद में उन्होंने मुझे बहुत छेड़ा )
सासू जी की पलंग पर भी एक दिन , सासू जी कहीं गयीं थी , जेठानी जी दोपहर को सो रही थीं
घर का कोई कोना बचा नहीं था , ...
पर आंगन में आज पहली बार ,
और वो भी ऐसे तूफानी धक्के और मैं क्यों छोड़ती उन्हें
कभी उनकी कम्मो भौजी का नाम लेकर छेड़ती कभी आंगन में बहता रंग उन्हें लगाती
वो आंगन से रंग उठा उठा के मेरे जोबन पर लगाते , और वो रंग मेरे जोबन से उनकी छाती पर
और उसके बाद भी उस लड़के ने मुझे कपडे नहीं पहनने दिए ,
वैसे ही मैंने किचेन में खाना बनाया और वैसे ही हम दोनों ने खाना खाया , ...
ये कहने की बात नहीं किचेन में एक राउंड और खाना खाते समय भी उन्होने मेरी नहीं ली हो ,
और वैसी होली शुरू हुयी , १२ दिन बाद हम लोगों को इनकी ससुराल जाना था , होली के तीन दिन पहले हम लोगों को वहां पहुंचना था ,
कोई दिन नागा नहीं गया , जब आंगन में रंग न बरसा हो
इनकी तो दिन में तीन चार बार रगड़ाई हो जाती थी , दो दो भौजाइयां
लेकिन मैं भी,
ननदें थी , अगले दिन ज्योति फिर आयी , कालोनी की तीन चार और। /
पर मैं तो अपने देवर के पीछे पड़ी थी , और कौन वही चिकना अनुज