20-03-2019, 11:56 AM
खेर ..
कोल्ड्रिंक्स पीने के बाद राजेश ने गड्डी उठायी और उसमे से ताश निकाल ली ..
मनीष तो खुद ही कुलबुला रहा था खेलने के लिए ..
और उन्होंने अपना प्रिय खेल खेलना शुरू कर दिया ..
तीन पत्ती ..यानि फलेश .
राजेश ने पत्ते बांटे ..सभी ने बूट के पांच -२ सौ रूपए निकाल कर बीच में रख दिए ..
बिल्लू ने ब्लाइंड चली ..और एक पांच सौ का पत्ता बीच में रख दिया ..
थापा ने पत्ते देख लिए ..उसके पास एक बादशाह और दो छोटे पत्ते निकले ..उसने रिस्क लेना सही नहीं समझा और पैक कर लिया ..
राजेश ने भी ब्लाइंड खेली ..और मनीष ने भी ..
इस बार बिल्लू ने पत्ते देख लिए ..उसके पास सात का पेयर निकला ..वो खुश हो गया और उसने एक हजार कि चाल चल दी .
ये देखकर राजेश कि फट सी गयी …उसने भी पत्ते देखे ..पर सब बकवास ..एक भी पत्ता काम का नहीं था ..उसने भी पेक कर दिया ..
अब बचे थे बिल्लू और मनीष .
मनीष ने दांव बढ़ाते हुए एक हजार की ब्लाइंड खेली ..बिल्लू को तो जैसे यकीन था कि उसके पत्ते सबसे बड़े हैं ..उसने भी दो हजार कि चाल चल दी ..
अब मनीष ने भी अपने पत्ते देख लिए ..और उन्हें देखते ही उसके पुरे बदन में गर्मी सी दौड़ गयी ..
और अगले ही पल उसने चार हजार रूपए (बिल्लू कि चाल से डबल) बीच में फेंक दिए ..
सभी हैरान थे कि ऐसे कौन से पत्ते आ गए उसके पास जो वो इतना चौड़ा हो रहा है ..
अब मनीष से शो मांगने का मतलब था बिल्लू को भी चार हजार बीच में डालने पड़ते . वैसे भी अगली चाल चलने का रिस्क वो लेना नहीं चाहता था ..
पहली ही गेम में करीब दस हजार रूपए बीच में आ गए ..पर बिल्लू को जैसे अपने आप पर भरोसा था ..उसने शो मांगते हुए चार हजार बीच में फेंक दिए ..
और मनीष ने अपने पत्ते एक – २ करते हुए उसके सामने फेंके ..
पहला 5
दूसरा 5
और
तीसरा भी 5
पांच कि ट्रेल थी उसके पास …
सभी उसकी किस्मत पर रश्क सा करने लगे ..
और मनीष भी बीच में पड़े नोट बटोरता हुआ ख़ुशी से दोहरा हुआ जा रहा था ..इतनी अच्छी शुरुवात तो आज तक उसकी नहीं हुई थी ..
दीवाली आने में अभी टाइम था पर उसकी दीवाली अभी से शुरू हो चुकी थी .
और यहीं तो जुवारी फंस जाते हैं ..अगेय भी ऐसे ही जीतने का लालच उन्हें ले डूबता है .
और अगली बार के पत्ते बाँटने शुरू किये मनीष ने .
मनीष को ख़ुशी से नोट बटोरते हुए देखकर थापा ने कहा "लगता है भाभीजी ने गुड लक दिया है …तभी तो पहली गेम में ही ट्रेल आ गयी …”
मनीष कुछ ना बोला ..वो जानता था कि वो उसे छेड़ने के लिए ऐसा बोल रहा है ..
पर जल्द ही उसे थापा कि बात सच लगने लगी ..क्योंकि अगली चार बाजियां वो लगातार हारता चला गया ..
और वो लगभग बीस हजार रूपए माइनस में चला गया ….
पत्ते बांटने शुरू हुए तो थापा ने फिर से कहा : "मनीष भाई ..भाभीजी को बुला लो …गुड लक के लिए ..हा हा ”
और इस बार उसने उसकी बात का बुरा नहीं माना …बल्कि आवाज देकर उसने दिव्या को वहाँ बुला ही लिया ..जैसे वो काफी देर से यही सोच रहा था ..
सभी ये देखकर हैरान थे कि जुआ जीतने के लिए मनीष कितनी आसानी से अपने कमीने दोस्तों कि परवाह किये बिना अपनी पत्नी को उनके सामने बुला रहा है ..
दिव्या उसकी आवाज सुनकर भागती हुई चली आयी ..और मनीष ने उसे अपने पास बैठने को कहा ..
दिव्या भी फीकी सी स्माइल देकर वहीँ मनीष के पास बैठ गयी .
उसकी बांयी ब्रैस्ट साइड में से झाँक रही थी ..जिसे हर्षित बड़े ही हर्षो उल्लास के साथ देख रहा था और अपने होंठों पर जीभ फेर कर अपनी प्यास को जाहिर कर रहा था ..
पत्ते बाँटने शुरू हुए ..
हर्षित ने शुरू में ही पेक कर दिया ..
थापा ने भी एक दो ब्लाइंड चलकर अपने पत्ते देखे और पेक कर लिया …
और मनीष को तो जैसे विशवास था कि दिव्या के आने के बाद उसके पास अच्छे पत्ते ही आयें होंगे इसलिए वो ब्लाइंड पर ब्लाइंड चल रहा था ..
बिल्लू भी इस बार झुकने को तैयार नहीं था , वो भी पांच-२ सौ के नोट फेंके जा रहा था ..जल्द ही बीच में लगभग चालीस हजार रूपए आ गए ..
आखिर बिल्लू ने अपने पत्ते उठा ही लिए ..उसके चेहरे पर चिंता के भाव थे ..क्योंकि पत्ते ही ऐसे आये थे उसके पास ..एक पांच था, दूसरा नौ और तीसरा बादशाह ..
फिर भी उसने हिम्मत करते हुए शो मांग ही लिया ..
मनीष ने अपने पत्ते खोलने शुरू किये ..
पहला गुलाम था ..
दुसरा चार नंबर ..
और तीसरा खोलते हुए उसकी सच में फट रही थी ..और दिल तो दिव्या का भी धड़क रहा था ..उसकी समझ से ये गेम बाहर थी ..पर इतना तो उसकी समझ में भी आ रहा था कि मनीष का तीसरा पत्ता ही उसे बचा सकता है ..
उसने धड़कते दिल से मनीष के हाथों के ऊपर अपना हाथ रख लिया ..और मनीष ने पत्ता पलट दिया ..
वो इक्का निकला ..
यानि गेम मनीष जीत गया ..
वो ख़ुशी से चिल्ला पड़ा ..और आवेश में आकर उसने दिव्या को गले से लगा कर होंठों पर चूम लिया ..ये सब इतनी जल्दी हुआ कि दिव्या को कुछ करने या कहने का मौका भी नहीं मिला ..उसकी समझ में नहीं आया कि कैसे रिएक्ट करे ..पर सबके सामने ऐसी किस्स पाकर वो शरमा जरुर गयी ..
और दूसरी तरफ मनीष अपने दोनों हाथों से बीच में पड़े हुए नोटों को समेटने लगा ..
बाकी के तीनो दोस्त थापा को ऐसे घूरने लगे जैसे उसने मनीष को दिव्या को बुलाने का सुझाव देकर कोई गुनाह कर दिया हो ..
थापा भी बड़ा कमीना था ..वो बोला : "भाभी को बुलाने के बाद इतनी बड़ी गेम जीते हो मनीष भाई ..चूमने के बाद तो हमारी फाड़ ही डालोगे …”
उसकी बात सुनकर दिव्या का चेहरा लाल सुर्ख हो उठा ..वो वहाँ से उठकर जाने लगी तो मनीष ने रोक दिया ..और बोला : "अरे इनकी बातों का बुरा मत मानो …ये ऐसे ही बोलते हैं ..तुम यहीं बैठो ”
वो अपना गुड लक खोना नहीं चाहता था ..
वैसे ये बात सच भी है ..जुवारी के दिल में अगर कोई बात बैठ जाए कि ऐसा करने से उसकी जीत होती है तो वो तब तक वैसा करता रहता है जब तक वो बुरी तरह से हार ना जाए ..इसे वो लोग अपनी भाषा में टोटका कहते हैं ..
और अभी तो दिव्या के आने भर से ही वो 45 हजार जीत गया था ..उसे इतनी आसानी से कैसे जाने देता वो ..
और ऐसे मौके को हर्षित जैसा कमीना भी नहीं छोड़ने वाला था ..
उसने अपना पैर आगे किया और अपनी जांघ को दिव्या कि जांघ के साथ सटा दिया ..
दिव्या का पूरा शरीर करंट खा गया ..और गर्म हो उठा ..
और उसकी गर्मी को हर्षित अपनी टांग पर साफ़ महसूस कर पा रहा था ..
मनीष और दिव्या एक ही सोफे पर बैठे थे ..इसलिए दूसरी तरफ खिसकने कि जगह नहीं थी दिव्या के पास ..इसलिए साईड वाले सोफे पर बैठे हुए हर्षित को दिव्या को छेड़ने में ज्यादा तकलीफ नहीं हो रही थी .
आखिर दिव्या ने सकुचाते हुए धीरे से मनीष से कहा : "सुनिये …मैं ऊपर जाऊ क्या …मेरा यहाँ क्या काम …”
मनीष गुस्से से आग बबूला हो उठा ..और बोला : "ऊपर क्या काम है तुझे ..बोला न यहीं बैठी रह …”
इतना काफी था दिव्या को डरा कर वहाँ बिठाये रखने के लिए ..मनीष का ये रूप आज वो पहली बार देख रही थी ..
हर्षित ने भी मौके कि नजाकत को भांपते हुए अपनी सिकाई चालु रखी और दिव्या कि जांघ पर हाथ रखते हुए बोला : "अरे भाभीजी …मनीष ठीक ही कह रहा है ..आपने देखा न कि आपके आते ही वो कितने रूपए जीता एक ही बार में ..आप भी बैठो और मजे लो ..”
हर्षित का हाथ कोई और नहीं देख पा रहा था ..क्योंकि पैर टेबल के नीचे छुप गए थे ..
दिव्या का बुरा हाल हो रहा था ..क्योंकि उसका पति मनीष जैसे जान कर भी अनजान सा बना हुआ था , अपने लुच्चे दोस्तों कि खा जाने वाली नजरें क्या मनीष को नहीं दिख रही थी ..फिर भी वो सिर्फ पैसे जीतने के लिए अपनी पत्नी को उनके सामने परोस कर रखना चाहता था ..
दिव्या को भी गुस्सा आ गया ..उसने मन ही मन सोचा कि जब उसके पति को ही उसकी कोई कदर नहीं है तो वो क्यों चिंता करे ..वो भी आराम से बैठ गयी ..
पर चिंता का विषय तो था हर्षित का हाथ ..जो धीऱे -2 उसकी जांघ को सेहला रहा था ..
और उसके सहलाने का ढंग ही इतना उत्तेजक था कि गुस्से में होने के बावजूद उसके रोंगटे खड़े होने लगे ..उसके होंठ कंपकंपाने लगे ..हाथों कि उँगलियाँ भी थरथराने लगी ..
अचानक उसे अपनी चूत के अंदर हलचल सी महसूस हुई ..और वही एहसास आया जो आज सुबह पोलिस वालों के लंड चूसते हुए आया था ..यानि वो उत्तेजित हो रही थी ..अंदर से ..और उसने आँखे बंद करते हुए एक गहरी सांस ली और अपना बांया हाथ नीचे लेजाकर हर्षित के हाथ के ऊपर रख दिया ..और उसे जोर से भींच दिया ..
जैसे कह रही हो ..’देवर जी ….जरा जोर से …भींचो न …’
दिव्या के कोमल हाथों को अपने हाथ पर पाकर हर्षित के तो होश ही उड़ गए ..उसने जल्दी से चारों तरफ देखा ..किसी का भी ध्यान उनकी तरफ नहीं था …उसने तो दिव्या से ऐसी उम्मीद ही नहीं कि थी ..और उसकी तरफ से ऐसा सिग्नल मिलते ही उसे लगने लगा कि अगर वो थोड़ी और कोशिश करे तो उसे चोद भी सकता है ..
पर उसे क्या पता था कि उसकी सोच कितनी जल्दी हकीकत में बदल जायेगी ..
हर्षित ने अपना हाथ घूमा कर उल्टा कर दिया ..और दिव्या के हाथ में अपनी उँगलियाँ फंसा कर उन्हें जकड लिया ..जैसे जन्मो के बिछड़े हुए प्रेमी हो वो ..इतनी व्याकुलता और अधीरपन महसूस हो रहा था दोनों को ..
दिव्या को अपने आप पर गुस्सा आ रहा था कि वो अपनी भावनाओ को क्यों काबू में नहीं रख पा रही है …उसके साथ आज तक ऐसा नहीं हुआ था ..उसने मनीष के अलावा किसी और के बारे में सोचा भी नहीं था ..और आज सुबह के वाक्ये ने और अब हर्षित के साथ ऐसी भावनाए निकलने से वो पूरी तरह से बदल चुकी थी ..वैसे इसमें कुछ हद तक मनीष का भी हाथ था क्योंकि उसकी बेरुखी और लालच कि वजह से ही ये सब हुआ था .
अचानक दिव्या ने अपने दांतों को भींचते हुए अपनी आँखे बंद कर ली और हर्षित के हाथ को धीरे खिसकाते हुए अपनी चूत के ऊपर तक ले आयी ..और वहाँ लेजाकर उसको जोर से दबा दिया ..
हर्षित को ऐसा महसूस हुआ कि उसका हाथ किसी भट्टी के आगे रख दिया गया है ..इतनी गर्मी निकल रही थी वहाँ से ..अब तक हर्षित को भी पता चल चूका था कि दिव्या भी वही चाहती है जो उसके मन में है ..इसलिए उसने अपने पंजे को खोलकर वापिस नीचे कि तरफ किया और एक जोरदार झटके के साथ दिव्या कि चूत को अपने शिकंजे में ले लिया ..
कोल्ड्रिंक्स पीने के बाद राजेश ने गड्डी उठायी और उसमे से ताश निकाल ली ..
मनीष तो खुद ही कुलबुला रहा था खेलने के लिए ..
और उन्होंने अपना प्रिय खेल खेलना शुरू कर दिया ..
तीन पत्ती ..यानि फलेश .
राजेश ने पत्ते बांटे ..सभी ने बूट के पांच -२ सौ रूपए निकाल कर बीच में रख दिए ..
बिल्लू ने ब्लाइंड चली ..और एक पांच सौ का पत्ता बीच में रख दिया ..
थापा ने पत्ते देख लिए ..उसके पास एक बादशाह और दो छोटे पत्ते निकले ..उसने रिस्क लेना सही नहीं समझा और पैक कर लिया ..
राजेश ने भी ब्लाइंड खेली ..और मनीष ने भी ..
इस बार बिल्लू ने पत्ते देख लिए ..उसके पास सात का पेयर निकला ..वो खुश हो गया और उसने एक हजार कि चाल चल दी .
ये देखकर राजेश कि फट सी गयी …उसने भी पत्ते देखे ..पर सब बकवास ..एक भी पत्ता काम का नहीं था ..उसने भी पेक कर दिया ..
अब बचे थे बिल्लू और मनीष .
मनीष ने दांव बढ़ाते हुए एक हजार की ब्लाइंड खेली ..बिल्लू को तो जैसे यकीन था कि उसके पत्ते सबसे बड़े हैं ..उसने भी दो हजार कि चाल चल दी ..
अब मनीष ने भी अपने पत्ते देख लिए ..और उन्हें देखते ही उसके पुरे बदन में गर्मी सी दौड़ गयी ..
और अगले ही पल उसने चार हजार रूपए (बिल्लू कि चाल से डबल) बीच में फेंक दिए ..
सभी हैरान थे कि ऐसे कौन से पत्ते आ गए उसके पास जो वो इतना चौड़ा हो रहा है ..
अब मनीष से शो मांगने का मतलब था बिल्लू को भी चार हजार बीच में डालने पड़ते . वैसे भी अगली चाल चलने का रिस्क वो लेना नहीं चाहता था ..
पहली ही गेम में करीब दस हजार रूपए बीच में आ गए ..पर बिल्लू को जैसे अपने आप पर भरोसा था ..उसने शो मांगते हुए चार हजार बीच में फेंक दिए ..
और मनीष ने अपने पत्ते एक – २ करते हुए उसके सामने फेंके ..
पहला 5
दूसरा 5
और
तीसरा भी 5
पांच कि ट्रेल थी उसके पास …
सभी उसकी किस्मत पर रश्क सा करने लगे ..
और मनीष भी बीच में पड़े नोट बटोरता हुआ ख़ुशी से दोहरा हुआ जा रहा था ..इतनी अच्छी शुरुवात तो आज तक उसकी नहीं हुई थी ..
दीवाली आने में अभी टाइम था पर उसकी दीवाली अभी से शुरू हो चुकी थी .
और यहीं तो जुवारी फंस जाते हैं ..अगेय भी ऐसे ही जीतने का लालच उन्हें ले डूबता है .
और अगली बार के पत्ते बाँटने शुरू किये मनीष ने .
मनीष को ख़ुशी से नोट बटोरते हुए देखकर थापा ने कहा "लगता है भाभीजी ने गुड लक दिया है …तभी तो पहली गेम में ही ट्रेल आ गयी …”
मनीष कुछ ना बोला ..वो जानता था कि वो उसे छेड़ने के लिए ऐसा बोल रहा है ..
पर जल्द ही उसे थापा कि बात सच लगने लगी ..क्योंकि अगली चार बाजियां वो लगातार हारता चला गया ..
और वो लगभग बीस हजार रूपए माइनस में चला गया ….
पत्ते बांटने शुरू हुए तो थापा ने फिर से कहा : "मनीष भाई ..भाभीजी को बुला लो …गुड लक के लिए ..हा हा ”
और इस बार उसने उसकी बात का बुरा नहीं माना …बल्कि आवाज देकर उसने दिव्या को वहाँ बुला ही लिया ..जैसे वो काफी देर से यही सोच रहा था ..
सभी ये देखकर हैरान थे कि जुआ जीतने के लिए मनीष कितनी आसानी से अपने कमीने दोस्तों कि परवाह किये बिना अपनी पत्नी को उनके सामने बुला रहा है ..
दिव्या उसकी आवाज सुनकर भागती हुई चली आयी ..और मनीष ने उसे अपने पास बैठने को कहा ..
दिव्या भी फीकी सी स्माइल देकर वहीँ मनीष के पास बैठ गयी .
उसकी बांयी ब्रैस्ट साइड में से झाँक रही थी ..जिसे हर्षित बड़े ही हर्षो उल्लास के साथ देख रहा था और अपने होंठों पर जीभ फेर कर अपनी प्यास को जाहिर कर रहा था ..
पत्ते बाँटने शुरू हुए ..
हर्षित ने शुरू में ही पेक कर दिया ..
थापा ने भी एक दो ब्लाइंड चलकर अपने पत्ते देखे और पेक कर लिया …
और मनीष को तो जैसे विशवास था कि दिव्या के आने के बाद उसके पास अच्छे पत्ते ही आयें होंगे इसलिए वो ब्लाइंड पर ब्लाइंड चल रहा था ..
बिल्लू भी इस बार झुकने को तैयार नहीं था , वो भी पांच-२ सौ के नोट फेंके जा रहा था ..जल्द ही बीच में लगभग चालीस हजार रूपए आ गए ..
आखिर बिल्लू ने अपने पत्ते उठा ही लिए ..उसके चेहरे पर चिंता के भाव थे ..क्योंकि पत्ते ही ऐसे आये थे उसके पास ..एक पांच था, दूसरा नौ और तीसरा बादशाह ..
फिर भी उसने हिम्मत करते हुए शो मांग ही लिया ..
मनीष ने अपने पत्ते खोलने शुरू किये ..
पहला गुलाम था ..
दुसरा चार नंबर ..
और तीसरा खोलते हुए उसकी सच में फट रही थी ..और दिल तो दिव्या का भी धड़क रहा था ..उसकी समझ से ये गेम बाहर थी ..पर इतना तो उसकी समझ में भी आ रहा था कि मनीष का तीसरा पत्ता ही उसे बचा सकता है ..
उसने धड़कते दिल से मनीष के हाथों के ऊपर अपना हाथ रख लिया ..और मनीष ने पत्ता पलट दिया ..
वो इक्का निकला ..
यानि गेम मनीष जीत गया ..
वो ख़ुशी से चिल्ला पड़ा ..और आवेश में आकर उसने दिव्या को गले से लगा कर होंठों पर चूम लिया ..ये सब इतनी जल्दी हुआ कि दिव्या को कुछ करने या कहने का मौका भी नहीं मिला ..उसकी समझ में नहीं आया कि कैसे रिएक्ट करे ..पर सबके सामने ऐसी किस्स पाकर वो शरमा जरुर गयी ..
और दूसरी तरफ मनीष अपने दोनों हाथों से बीच में पड़े हुए नोटों को समेटने लगा ..
बाकी के तीनो दोस्त थापा को ऐसे घूरने लगे जैसे उसने मनीष को दिव्या को बुलाने का सुझाव देकर कोई गुनाह कर दिया हो ..
थापा भी बड़ा कमीना था ..वो बोला : "भाभी को बुलाने के बाद इतनी बड़ी गेम जीते हो मनीष भाई ..चूमने के बाद तो हमारी फाड़ ही डालोगे …”
उसकी बात सुनकर दिव्या का चेहरा लाल सुर्ख हो उठा ..वो वहाँ से उठकर जाने लगी तो मनीष ने रोक दिया ..और बोला : "अरे इनकी बातों का बुरा मत मानो …ये ऐसे ही बोलते हैं ..तुम यहीं बैठो ”
वो अपना गुड लक खोना नहीं चाहता था ..
वैसे ये बात सच भी है ..जुवारी के दिल में अगर कोई बात बैठ जाए कि ऐसा करने से उसकी जीत होती है तो वो तब तक वैसा करता रहता है जब तक वो बुरी तरह से हार ना जाए ..इसे वो लोग अपनी भाषा में टोटका कहते हैं ..
और अभी तो दिव्या के आने भर से ही वो 45 हजार जीत गया था ..उसे इतनी आसानी से कैसे जाने देता वो ..
और ऐसे मौके को हर्षित जैसा कमीना भी नहीं छोड़ने वाला था ..
उसने अपना पैर आगे किया और अपनी जांघ को दिव्या कि जांघ के साथ सटा दिया ..
दिव्या का पूरा शरीर करंट खा गया ..और गर्म हो उठा ..
और उसकी गर्मी को हर्षित अपनी टांग पर साफ़ महसूस कर पा रहा था ..
मनीष और दिव्या एक ही सोफे पर बैठे थे ..इसलिए दूसरी तरफ खिसकने कि जगह नहीं थी दिव्या के पास ..इसलिए साईड वाले सोफे पर बैठे हुए हर्षित को दिव्या को छेड़ने में ज्यादा तकलीफ नहीं हो रही थी .
आखिर दिव्या ने सकुचाते हुए धीरे से मनीष से कहा : "सुनिये …मैं ऊपर जाऊ क्या …मेरा यहाँ क्या काम …”
मनीष गुस्से से आग बबूला हो उठा ..और बोला : "ऊपर क्या काम है तुझे ..बोला न यहीं बैठी रह …”
इतना काफी था दिव्या को डरा कर वहाँ बिठाये रखने के लिए ..मनीष का ये रूप आज वो पहली बार देख रही थी ..
हर्षित ने भी मौके कि नजाकत को भांपते हुए अपनी सिकाई चालु रखी और दिव्या कि जांघ पर हाथ रखते हुए बोला : "अरे भाभीजी …मनीष ठीक ही कह रहा है ..आपने देखा न कि आपके आते ही वो कितने रूपए जीता एक ही बार में ..आप भी बैठो और मजे लो ..”
हर्षित का हाथ कोई और नहीं देख पा रहा था ..क्योंकि पैर टेबल के नीचे छुप गए थे ..
दिव्या का बुरा हाल हो रहा था ..क्योंकि उसका पति मनीष जैसे जान कर भी अनजान सा बना हुआ था , अपने लुच्चे दोस्तों कि खा जाने वाली नजरें क्या मनीष को नहीं दिख रही थी ..फिर भी वो सिर्फ पैसे जीतने के लिए अपनी पत्नी को उनके सामने परोस कर रखना चाहता था ..
दिव्या को भी गुस्सा आ गया ..उसने मन ही मन सोचा कि जब उसके पति को ही उसकी कोई कदर नहीं है तो वो क्यों चिंता करे ..वो भी आराम से बैठ गयी ..
पर चिंता का विषय तो था हर्षित का हाथ ..जो धीऱे -2 उसकी जांघ को सेहला रहा था ..
और उसके सहलाने का ढंग ही इतना उत्तेजक था कि गुस्से में होने के बावजूद उसके रोंगटे खड़े होने लगे ..उसके होंठ कंपकंपाने लगे ..हाथों कि उँगलियाँ भी थरथराने लगी ..
अचानक उसे अपनी चूत के अंदर हलचल सी महसूस हुई ..और वही एहसास आया जो आज सुबह पोलिस वालों के लंड चूसते हुए आया था ..यानि वो उत्तेजित हो रही थी ..अंदर से ..और उसने आँखे बंद करते हुए एक गहरी सांस ली और अपना बांया हाथ नीचे लेजाकर हर्षित के हाथ के ऊपर रख दिया ..और उसे जोर से भींच दिया ..
जैसे कह रही हो ..’देवर जी ….जरा जोर से …भींचो न …’
दिव्या के कोमल हाथों को अपने हाथ पर पाकर हर्षित के तो होश ही उड़ गए ..उसने जल्दी से चारों तरफ देखा ..किसी का भी ध्यान उनकी तरफ नहीं था …उसने तो दिव्या से ऐसी उम्मीद ही नहीं कि थी ..और उसकी तरफ से ऐसा सिग्नल मिलते ही उसे लगने लगा कि अगर वो थोड़ी और कोशिश करे तो उसे चोद भी सकता है ..
पर उसे क्या पता था कि उसकी सोच कितनी जल्दी हकीकत में बदल जायेगी ..
हर्षित ने अपना हाथ घूमा कर उल्टा कर दिया ..और दिव्या के हाथ में अपनी उँगलियाँ फंसा कर उन्हें जकड लिया ..जैसे जन्मो के बिछड़े हुए प्रेमी हो वो ..इतनी व्याकुलता और अधीरपन महसूस हो रहा था दोनों को ..
दिव्या को अपने आप पर गुस्सा आ रहा था कि वो अपनी भावनाओ को क्यों काबू में नहीं रख पा रही है …उसके साथ आज तक ऐसा नहीं हुआ था ..उसने मनीष के अलावा किसी और के बारे में सोचा भी नहीं था ..और आज सुबह के वाक्ये ने और अब हर्षित के साथ ऐसी भावनाए निकलने से वो पूरी तरह से बदल चुकी थी ..वैसे इसमें कुछ हद तक मनीष का भी हाथ था क्योंकि उसकी बेरुखी और लालच कि वजह से ही ये सब हुआ था .
अचानक दिव्या ने अपने दांतों को भींचते हुए अपनी आँखे बंद कर ली और हर्षित के हाथ को धीरे खिसकाते हुए अपनी चूत के ऊपर तक ले आयी ..और वहाँ लेजाकर उसको जोर से दबा दिया ..
हर्षित को ऐसा महसूस हुआ कि उसका हाथ किसी भट्टी के आगे रख दिया गया है ..इतनी गर्मी निकल रही थी वहाँ से ..अब तक हर्षित को भी पता चल चूका था कि दिव्या भी वही चाहती है जो उसके मन में है ..इसलिए उसने अपने पंजे को खोलकर वापिस नीचे कि तरफ किया और एक जोरदार झटके के साथ दिव्या कि चूत को अपने शिकंजे में ले लिया ..