09-12-2020, 03:57 PM
बेचारे के 'बेचारे' की
और जैसे ही मैंने दरवाजा खोला ,
बेचारे , बेचारे के 'बेचारे' की हालत खराबी थी
चारा मिलते मिलते रह गया था ,
भौजाई ने पकड़ा मसला और अंदर लेने ही वाली थी की , ...
और उसके बाद बाथरूम के अंदर से ,
दो किशोरियों की लेस्बियन कुश्ती
और उसके बाद अपनी उन ' बहनों ' की उनकी भौजाइयों के द्वारा की गयी रगड़ाई ,...
खूंटा तो खड़ा होना ही था , और जो काम भौजाई के साथ होना था , भौजाई नहीं उनकी देवरानी ,
जानती तो मैं भी थी , और चाहती भी थी , इनकी कांफ्रेंस के चक्कर में गुलाबो का रात भर का उपवास हो गया था ,
पर सताने में तो मजा आता है , ये आंगन में पहुंचे और मैंने सीधे एक बाल्टी रंग उनके खूंटे को निशाना बना कर
लेकिन उन्हें तो सीधे देह की होली खेलनी थी ,
और घर में सिर्फ हम दोनों थे , साजन , सजनी और शाम तक किसी और को आना भी नहीं था , न उनकी माँ न भाभी
और वहीँ आंगन में मुझे लेटा कर , दोनों टाँगे उनके कंधे पर और उनकी रंगीपर
पुती , पेण्ट लगी पिचकारी सीधे मेरे अंदर ,
क्या हचक के आँगन में चोदा उन्होंने ,
ऐसी बात नहीं की ऊपर मेरे कमरे के अलावा कहीं मेरी ठुकाई नहीं हुयी शादी के सात आठ दिन बाद ही , मेहमान सब चले गए थे घर में सिर्फ ये और मेरी जेठानी थीं , और मैं किचेन में ,
और उस दिन मैं शलवार सूट पहने हुयी थी , की दिन का समय , नीचे किचन में , इनकी भाभी घर में
लेकिन गलती मेरी भी थी , कुर्ता एकदम टाइट था , दुपट्टा गले से चिपका जान बूझ के अपने उभार दिखा के मैं इन्हे ललचा रही थी , फिर कसी सलवार में चूतड़ मटका के इन्हे ललचाते उकसाते , चिढाया
" किसी को कुछ चाहिए क्या "
बस वहीँ किचेन की पट्टी पर निहुरा के ,
और जैसे ही मैंने दरवाजा खोला ,
बेचारे , बेचारे के 'बेचारे' की हालत खराबी थी
चारा मिलते मिलते रह गया था ,
भौजाई ने पकड़ा मसला और अंदर लेने ही वाली थी की , ...
और उसके बाद बाथरूम के अंदर से ,
दो किशोरियों की लेस्बियन कुश्ती
और उसके बाद अपनी उन ' बहनों ' की उनकी भौजाइयों के द्वारा की गयी रगड़ाई ,...
खूंटा तो खड़ा होना ही था , और जो काम भौजाई के साथ होना था , भौजाई नहीं उनकी देवरानी ,
जानती तो मैं भी थी , और चाहती भी थी , इनकी कांफ्रेंस के चक्कर में गुलाबो का रात भर का उपवास हो गया था ,
पर सताने में तो मजा आता है , ये आंगन में पहुंचे और मैंने सीधे एक बाल्टी रंग उनके खूंटे को निशाना बना कर
लेकिन उन्हें तो सीधे देह की होली खेलनी थी ,
और घर में सिर्फ हम दोनों थे , साजन , सजनी और शाम तक किसी और को आना भी नहीं था , न उनकी माँ न भाभी
और वहीँ आंगन में मुझे लेटा कर , दोनों टाँगे उनके कंधे पर और उनकी रंगीपर
पुती , पेण्ट लगी पिचकारी सीधे मेरे अंदर ,
क्या हचक के आँगन में चोदा उन्होंने ,
ऐसी बात नहीं की ऊपर मेरे कमरे के अलावा कहीं मेरी ठुकाई नहीं हुयी शादी के सात आठ दिन बाद ही , मेहमान सब चले गए थे घर में सिर्फ ये और मेरी जेठानी थीं , और मैं किचेन में ,
और उस दिन मैं शलवार सूट पहने हुयी थी , की दिन का समय , नीचे किचन में , इनकी भाभी घर में
लेकिन गलती मेरी भी थी , कुर्ता एकदम टाइट था , दुपट्टा गले से चिपका जान बूझ के अपने उभार दिखा के मैं इन्हे ललचा रही थी , फिर कसी सलवार में चूतड़ मटका के इन्हे ललचाते उकसाते , चिढाया
" किसी को कुछ चाहिए क्या "
बस वहीँ किचेन की पट्टी पर निहुरा के ,