07-12-2020, 06:42 AM
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पहले, धीरे धीरे और फिर तेज तेज… !! और रूपाली भी मदहोश सी हो गई और अपनी चुदाई का आनंद उठाने लगी… !! जो उसने, उस रात ना उठाया था… !!
उसकी सिसकारियों में, आज दर्द के जगह उतेजना थी और राजा उसकी सिसकारियों से और उतेज़ित हो रहा था और उसकी चूचियों को बुरी तरह मसल रहा था.. तभी, रूपाली झड़ गई और थोड़ी देर बाद ही, राजा उसकी चूत में झड़ गया..
रूपाली, राजा से लिपट गई और राजा ने भी उसे दूर नहीं हटाया।
उसका लंड ढीला पड़ चुका था.. मगर, फिर भी रूपाली की चूत में ही था..
पूरे दिन, राजा ने रूपाली को कई बार चोदा और फिर रात के अंधेरे में, राजा कामपुर के लिए निकलने लगा।
उसने रूपाली को अपनी बाहों में ले लिया और फिर उसके होठों को चूमा और फिर उसके घर से विदाई ली और आधी रात्रि के बाद, वो वापस कामपुर आ गया और अपने कक्ष में जाकर उसने थोड़ी देर आराम किया।
Ab aage
प्रातः काल ही, उसने अपना एक गुप्तचर बुलाया और उससे सारी योजना समझाई और फिर उसने उससे कहा की यह कार्य, आपको ही करना है… !! आपको इसके लिए, जो सैनिक चाहिए, आप अपने आप चुन सकते हैं… !! मगर, इस योजना की जानकारी, सिर्फ़ आपको ही होनी चाहिए… !! इसकी खबर कामपुर और योनपुर में किसी को नहीं चलनी चाहिए… !! अगर, किसी स्थिति में योजना विफल हो जाए और आप सब पकड़े जाएँ तो भी आप लोग हमारा नाम नहीं लेंगे… !! इसके बदले, हम आप के परिवार की हम पूरी जिम्मेदारी लेंगे और उनका पूरा ध्यान रखेंगे और अगर, यह योजना सफल होगी तो हम आप सब को सोने में तोल देंगे… !!
गुप्तचर ने कहा – महाराज, आप चिंता ना करें… !! मैं कसम लेता हूँ की मैं किसी भी तरह, इस योजना को विफल नहीं होने दूँगा और अगर, होती भी है तो इसमें आपका नाम कही नहीं आएगा… !!
यह सुन, राजा बड़ा खुश हुआ।
उसने गुप्तचर से कहा की वहाँ पर एक दासी है, रूपाली… !! जो राजकुमारी की प्रमुख दासी है और वो ही आपको जानकारी देगी की आपको राजकुमारी का अपरहण कब और कहाँ से करना होगा… !!
गुप्तचर बोला – जी, ठीक है… !! महाराज, अब मुझे आज्ञा दें… !! अब मुझे इस योजना के लिए, आदमियों का चयन करने जाना है… !!
राजा बोला – हाँ, आप जाइए और आपको जो सही लगे वो सैनिक चुन लीजिए… !!
गुप्तचर ने कहा – महाराज, मैं इस क्रिया के लिए सैनिक नहीं चाहता… !! मुझे कृपया कर, वो चार डाकू चाहिए जो बंदीग्रह में बंदी हैं… !!
राजा, थोड़ी सोच में पड़ गया।
फिर, उसने बोला की आपको उन पर पूरा भरोसा तो है ना… !!
गुप्तचर बोला – हाँ महाराज… !! मैं उन्हें जानता हूँ… !! वो धन के लिए, कुछ भी कर सकते हैं और कितने भी बड़े कार्य को आसानी से कर सकते हैं… !!
राजा बोला – ठीक है… !! आपको, उन पर भरोसा है तो उनको चुन सकते हैं… !! मगर, ध्यान रहे इसमें राजकुमारी को कुछ नहीं होना चाहिए… !! उनका अपरहण करते समय, उन्हें कोई चोट या उनके साथ कोई ग़लत हरकत नहीं होनी चाहिए… !! समझे आप… !!
गुप्तचर बोला – आप निश्चिंत रहें, महाराज… !! इस बात का, मैं पूरा ध्यान रखूँगा… !!
फिर गुप्तचर, उस दिन रात को उन चार डाकू के साथ योनपुर के लिए रवाना हो गया और सुबह होते ही, वो लोग योनपुर में पहुँच गये।
फिर राजा ने जैसा गुप्तचर को बताया था की रूपाली से संपर्क करे, वैसा ही उसने किया।
सुबह, जब गुप्तचर रूपाली के घर पहुँचा तो रूपाली महल के लिए रवाना हो ही रही थी।
गुप्तचर ने रूपाली से मिलकर, उसे राजा लिंगवर्मा की सारी योजना बताई।
रूपाली ने गुप्तचर को कहा की वो जब संध्या को महल से लौटेगी, तब उसे वक्षकुमारी का अपरहण, कब किया जा सकता है यह बताएगी… !! और फिर जब शाम को रूपाली वापस आई तो उसने गुप्तचर को कहा की कल रात्रि काल में, वक्षकुमारी का आसानी से अपरहण हो सकता है… !! क्यूंकी, कल नगर में योनपुर के राजा के चचेरे भाई के जनमदिन का उत्सव है और सारे पहरेदार उस उत्सव की देख रेख में रहेंगे और वक्षकुमारी भी उस उत्सव के लिए अपने महल से बाहर आएँगी… !! बस, तुम्हें वक्षकुमारी के दो निजी अंगरक्षकों को संभालना होगा… !! बाकी सिपाहियों का ध्यान, मैं भटका लूँगी… !!
गुप्तचर बोला – उनकी चिंता, आप ना करें… !! कल, उनकी जगह (उसने डाकुओं की तरफ इशारा करते हुए) यह जायेंगें… !! बस आप मुझे बताएँ, वो दो अंगरक्षक दिखते कैसे हैं और वो लोग रहते कहाँ हैं… !!
रूपाली ने गुप्तचर को उन दोनों का पूरा हुलिया बताया और साथ ही, वो कहाँ रहते हैं यह बताया।
गुप्तचर और चारों डाकुओं ने जाकर, उन दोनों अंगरक्षकों को उन्हीं के घर में बंदी बना दिया और फिर गुप्तचर ने चारों डाकुओं में से, दो उन दोनों अंगरक्षक के लगभग समान कद के डाकू चुने और उन्हें बिलकुल उन दोनों अंगरक्षकों के समान तैयार कर, सुबह सुबह ही महल के लिए रवाना कर दिया और फिर वो दोनों डाकू वक्षकुमारी के महल पहुँच उन दोनों अंगरक्षकों की तरह जाकर तैनात हो गये।
जब रात्रि काल में, वक्षकुमारी उत्सव के लिए निकली तो दोनों डाकुओं ने जो अब अंगरक्षक थे, अपने साथियों को इशारा कर दिया।
अब बस दासी रूपाली को, वक्षकुमारी के पास से सारे पहरेदार हटाने थे और जब राजकुमारी उत्सव में पहुँची तो दासी रूपाली उनके साथ ही खड़ी हो गई और फिर उसने धीरे से एक अंगरक्षक से कहा की मैं पहरेदारों को यहाँ से हटाकर, इशारा करूँगी… !! तभी तुम, राजकुमारी का अपरहण कर लेना… !!
उसने हाँ में सिर हिला दिया और फिर, रूपाली बहाने से एक एक कर हर पहेरेदार को वहाँ से हटाती रही और फिर अंत में, जब कोई पहरेदार राजकुमारी के आस पास नहीं बचा तब रूपाली ने दोनों अंगरक्षकों को इशारा कर बता दिया की कोई पहरेदार अब रूपाली के पास नहीं है।
इशारा मिलते ही… !! … !!
जल्द ही, इस कहानी का अगला भाग..
पहले, धीरे धीरे और फिर तेज तेज… !! और रूपाली भी मदहोश सी हो गई और अपनी चुदाई का आनंद उठाने लगी… !! जो उसने, उस रात ना उठाया था… !!
उसकी सिसकारियों में, आज दर्द के जगह उतेजना थी और राजा उसकी सिसकारियों से और उतेज़ित हो रहा था और उसकी चूचियों को बुरी तरह मसल रहा था.. तभी, रूपाली झड़ गई और थोड़ी देर बाद ही, राजा उसकी चूत में झड़ गया..
रूपाली, राजा से लिपट गई और राजा ने भी उसे दूर नहीं हटाया।
उसका लंड ढीला पड़ चुका था.. मगर, फिर भी रूपाली की चूत में ही था..
पूरे दिन, राजा ने रूपाली को कई बार चोदा और फिर रात के अंधेरे में, राजा कामपुर के लिए निकलने लगा।
उसने रूपाली को अपनी बाहों में ले लिया और फिर उसके होठों को चूमा और फिर उसके घर से विदाई ली और आधी रात्रि के बाद, वो वापस कामपुर आ गया और अपने कक्ष में जाकर उसने थोड़ी देर आराम किया।
Ab aage
प्रातः काल ही, उसने अपना एक गुप्तचर बुलाया और उससे सारी योजना समझाई और फिर उसने उससे कहा की यह कार्य, आपको ही करना है… !! आपको इसके लिए, जो सैनिक चाहिए, आप अपने आप चुन सकते हैं… !! मगर, इस योजना की जानकारी, सिर्फ़ आपको ही होनी चाहिए… !! इसकी खबर कामपुर और योनपुर में किसी को नहीं चलनी चाहिए… !! अगर, किसी स्थिति में योजना विफल हो जाए और आप सब पकड़े जाएँ तो भी आप लोग हमारा नाम नहीं लेंगे… !! इसके बदले, हम आप के परिवार की हम पूरी जिम्मेदारी लेंगे और उनका पूरा ध्यान रखेंगे और अगर, यह योजना सफल होगी तो हम आप सब को सोने में तोल देंगे… !!
गुप्तचर ने कहा – महाराज, आप चिंता ना करें… !! मैं कसम लेता हूँ की मैं किसी भी तरह, इस योजना को विफल नहीं होने दूँगा और अगर, होती भी है तो इसमें आपका नाम कही नहीं आएगा… !!
यह सुन, राजा बड़ा खुश हुआ।
उसने गुप्तचर से कहा की वहाँ पर एक दासी है, रूपाली… !! जो राजकुमारी की प्रमुख दासी है और वो ही आपको जानकारी देगी की आपको राजकुमारी का अपरहण कब और कहाँ से करना होगा… !!
गुप्तचर बोला – जी, ठीक है… !! महाराज, अब मुझे आज्ञा दें… !! अब मुझे इस योजना के लिए, आदमियों का चयन करने जाना है… !!
राजा बोला – हाँ, आप जाइए और आपको जो सही लगे वो सैनिक चुन लीजिए… !!
गुप्तचर ने कहा – महाराज, मैं इस क्रिया के लिए सैनिक नहीं चाहता… !! मुझे कृपया कर, वो चार डाकू चाहिए जो बंदीग्रह में बंदी हैं… !!
राजा, थोड़ी सोच में पड़ गया।
फिर, उसने बोला की आपको उन पर पूरा भरोसा तो है ना… !!
गुप्तचर बोला – हाँ महाराज… !! मैं उन्हें जानता हूँ… !! वो धन के लिए, कुछ भी कर सकते हैं और कितने भी बड़े कार्य को आसानी से कर सकते हैं… !!
राजा बोला – ठीक है… !! आपको, उन पर भरोसा है तो उनको चुन सकते हैं… !! मगर, ध्यान रहे इसमें राजकुमारी को कुछ नहीं होना चाहिए… !! उनका अपरहण करते समय, उन्हें कोई चोट या उनके साथ कोई ग़लत हरकत नहीं होनी चाहिए… !! समझे आप… !!
गुप्तचर बोला – आप निश्चिंत रहें, महाराज… !! इस बात का, मैं पूरा ध्यान रखूँगा… !!
फिर गुप्तचर, उस दिन रात को उन चार डाकू के साथ योनपुर के लिए रवाना हो गया और सुबह होते ही, वो लोग योनपुर में पहुँच गये।
फिर राजा ने जैसा गुप्तचर को बताया था की रूपाली से संपर्क करे, वैसा ही उसने किया।
सुबह, जब गुप्तचर रूपाली के घर पहुँचा तो रूपाली महल के लिए रवाना हो ही रही थी।
गुप्तचर ने रूपाली से मिलकर, उसे राजा लिंगवर्मा की सारी योजना बताई।
रूपाली ने गुप्तचर को कहा की वो जब संध्या को महल से लौटेगी, तब उसे वक्षकुमारी का अपरहण, कब किया जा सकता है यह बताएगी… !! और फिर जब शाम को रूपाली वापस आई तो उसने गुप्तचर को कहा की कल रात्रि काल में, वक्षकुमारी का आसानी से अपरहण हो सकता है… !! क्यूंकी, कल नगर में योनपुर के राजा के चचेरे भाई के जनमदिन का उत्सव है और सारे पहरेदार उस उत्सव की देख रेख में रहेंगे और वक्षकुमारी भी उस उत्सव के लिए अपने महल से बाहर आएँगी… !! बस, तुम्हें वक्षकुमारी के दो निजी अंगरक्षकों को संभालना होगा… !! बाकी सिपाहियों का ध्यान, मैं भटका लूँगी… !!
गुप्तचर बोला – उनकी चिंता, आप ना करें… !! कल, उनकी जगह (उसने डाकुओं की तरफ इशारा करते हुए) यह जायेंगें… !! बस आप मुझे बताएँ, वो दो अंगरक्षक दिखते कैसे हैं और वो लोग रहते कहाँ हैं… !!
रूपाली ने गुप्तचर को उन दोनों का पूरा हुलिया बताया और साथ ही, वो कहाँ रहते हैं यह बताया।
गुप्तचर और चारों डाकुओं ने जाकर, उन दोनों अंगरक्षकों को उन्हीं के घर में बंदी बना दिया और फिर गुप्तचर ने चारों डाकुओं में से, दो उन दोनों अंगरक्षक के लगभग समान कद के डाकू चुने और उन्हें बिलकुल उन दोनों अंगरक्षकों के समान तैयार कर, सुबह सुबह ही महल के लिए रवाना कर दिया और फिर वो दोनों डाकू वक्षकुमारी के महल पहुँच उन दोनों अंगरक्षकों की तरह जाकर तैनात हो गये।
जब रात्रि काल में, वक्षकुमारी उत्सव के लिए निकली तो दोनों डाकुओं ने जो अब अंगरक्षक थे, अपने साथियों को इशारा कर दिया।
अब बस दासी रूपाली को, वक्षकुमारी के पास से सारे पहरेदार हटाने थे और जब राजकुमारी उत्सव में पहुँची तो दासी रूपाली उनके साथ ही खड़ी हो गई और फिर उसने धीरे से एक अंगरक्षक से कहा की मैं पहरेदारों को यहाँ से हटाकर, इशारा करूँगी… !! तभी तुम, राजकुमारी का अपरहण कर लेना… !!
उसने हाँ में सिर हिला दिया और फिर, रूपाली बहाने से एक एक कर हर पहेरेदार को वहाँ से हटाती रही और फिर अंत में, जब कोई पहरेदार राजकुमारी के आस पास नहीं बचा तब रूपाली ने दोनों अंगरक्षकों को इशारा कर बता दिया की कोई पहरेदार अब रूपाली के पास नहीं है।
इशारा मिलते ही… !! … !!
जल्द ही, इस कहानी का अगला भाग..