06-12-2020, 06:43 PM
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यह कहानी, हिमालय की वादियों में बसे एक राज्य कामपुर की है..
यह कहानी जब शुरू हुई, जब राजा लिंगवर्मा ने अपने पड़ोसी राज्य योनपुर के राजा की बेटी से अपने विवाह की प्रस्ताव रखा और राजकुमारी ने राजा से विवाह करने से इनकार कर दिया.. मगर, राजकुमारी के पिता ने राजकुमारी का विवाह राजा लिंगवर्मा से ही करने का तय किया और फिर राजकुमारी ने राजा के पास, अपनी एक दासी भेजी जो यह निवेदन लेकर गई की राजा राजकुमारी से विवाह करने से इनकार कर दे.. क्यूंकी, राजकुमारी किसी और से प्यार करती है.. मगर, जब दासी कामपुर के राजा के पास यह निवेदन लेकर पहुँची तो वो शराब के नशे में चूर था और उसने जब यह समाचार सुना तो वो गुस्से से आग बाबूला हो गया और उसने दासी के साथ, बलात्कार कर दिया.. मगर, सुबह जब राजा को होश आया तो उसने दासी को समझा कर तथा काफ़ी प्रलोभन दिया.. जिससे, दासी उसकी बात मान गई और उसने किसी भी तरह राजा का विवाह, वक्षकुमारी से करने का वादा किया..
अब आगे –
जैसे ही, राजकुमारी ने यह बात सुनी की राजा लिंगवर्मा उस से विवाह ना करने के लिए तैयार हो गया है.. वो ख़ुशी से, फूली नहीं समा रही थी और इस ख़ुशी में उसने अपनी दासी जिसका नाम “रूपाली” था, उसे कई उपहार दे दिए..
मगर, दासी ने उन उपहार को लेने से मना कर दिया और बोली – राजकुमारी, यह तो मेरा फ़र्ज़ था और मैं तो सिर्फ़ आपका निवेदन लेकर गई थी और यह तो कामपुर के महाराज का उदार चरित्रा था की उन्होंने आपका निवेदन स्वीकार कर लिया… !!
मगर, राजकुमारी बहुत खुश थी… !! इसलिए, उन्होंने दासी को एक अनमोल हार भेंट किया और दासी से कहा – हम जानते हैं की यह कामपुर के महाराज का उदारता थी… !! मगर, यह काम को सफल बनाने में आपका बहुत बड़ा योगदान है इसलिए, हम आपको यह हार भेट स्वरूप देना चाहते हैं… !! मना ना करें… !! इसे, स्वीकार करें… !!
दासी ने, राजकुमारी से हार ले लिया और उसके कक्ष से बाहर आ गई.. मगर, दासी के दिमाग़ में अभी तक यह विचार चल रहा था की वो ऐसा क्या करे की राजकुमारी का विवाह, राजा लिंगवर्मा से हो जाए..
वहाँ दूसरी ओर, राजा लिंगवर्मा बस यही सोच रहे थे की क्या रूपाली उनका विवाह राजकुमारी से करने के लिए कोई खेल खेल पाएँगी की नहीं… !!
और, जब राजा सोच सोच कर हार गये तो उन्होंने स्वयं ही योनपुर जाकर, रूपाली से मिलने का विचार बनाया और तुरंत अपना भेष बदल कर एक गुप्तचर के भाँति अपने घोड़े पे बैठ रवाना हो गये..
वहाँ दूसरी ओर योनपुर में, दासी रूपाली सोच सोच कर थक चूकि थी.. मगर, कोई भी विचार, उसके दिमाग़ में ऐसा नहीं आ रहा था की जिससे राजकुमारी का विवाह बिना किसी दिक्कत के लिंगवर्मा से हो जाए..
अब आधी रात्रि भी हो चुकी थी तो रूपाली ने सोचा की वह प्रातः काल ही कुछ सोचेगी और यह सोचकर वो लेट गई और लेटने के तुरंत बाद उसे नींद आ गई और वो दिया बुझाना ही भूल गई।
तभी आधी रात के समय, राजा लिंगवर्मा योनपुर में पहुँचा.. मगर, तब उसे याद आया की वो रूपाली का घर तो जानता ही नहीं..
तब उसने सोचा की ज़्यादातर महल में काम करने वाले सेवक, महल के पास ही रहते हैं.. सो, वो महल के पास पहुँचे..
महल में कड़ा पहरा था और आधी रात में अगर कोई पहरेदार, राजा लिंगवर्मा को ऐसे देख लेता तो वो शायद उन्हें डाकू या चोर समझ सकता था.. इसलिए, उन्होंने महल के पहरेदारों की नज़रों में आए बिना, चुप चुप कर सेवक के घर जहाँ थे, वहाँ पहुँचे..
मस्त कहानियाँ हैं, मेरी सेक्स स्टोरी डॉट कॉम पर !!! !!
मगर, अब दिक्कत ये थी की रूपाली का घर कौन सा है..
यह सोच कर, राजा परेशान हो गये की तभी उन्होंने देखा की एक घर का दिया, इतनी रात में भी जल रहा था.. उन्होंने, सोचा की शायद वहाँ कोई जाग रहा हो तो वो दासी रूपाली का पता बता दे और वो जब घर के करीब गये तो उन्होंने देखा की घर की खिड़की भी खुल रही है..
उन्होंने उस खिड़की में से झाँका तो सामने खटिया पर, रूपाली सो रही थी।
वो खुश हो गये की उन्हें रूपाली को ढूँढने की ज़्यादा कोशिश नहीं करनी पड़ी।
फिर, वो खिड़की के रास्ते घर में प्रवेश हो गये और रूपाली के खटिया के पास जाकर, रूपाली को दबे स्वर में आवाज़ देकर उठाने की कोशिश करने लग गये.. मगर, वो तो बहुत थक गई थी और पिछले दिन तो बेचारी ने नींद भी कहाँ की थी.. पूरी रात चुदवाती रही थी, राजा से.. इसलिए, वो बहुत गहरी नींद में सोती रही..
जब कुछ देर तक, वो ना उठी तो… !! … !!
जल्द ही, इस कहानी का अगला भाग..
यह कहानी, हिमालय की वादियों में बसे एक राज्य कामपुर की है..
यह कहानी जब शुरू हुई, जब राजा लिंगवर्मा ने अपने पड़ोसी राज्य योनपुर के राजा की बेटी से अपने विवाह की प्रस्ताव रखा और राजकुमारी ने राजा से विवाह करने से इनकार कर दिया.. मगर, राजकुमारी के पिता ने राजकुमारी का विवाह राजा लिंगवर्मा से ही करने का तय किया और फिर राजकुमारी ने राजा के पास, अपनी एक दासी भेजी जो यह निवेदन लेकर गई की राजा राजकुमारी से विवाह करने से इनकार कर दे.. क्यूंकी, राजकुमारी किसी और से प्यार करती है.. मगर, जब दासी कामपुर के राजा के पास यह निवेदन लेकर पहुँची तो वो शराब के नशे में चूर था और उसने जब यह समाचार सुना तो वो गुस्से से आग बाबूला हो गया और उसने दासी के साथ, बलात्कार कर दिया.. मगर, सुबह जब राजा को होश आया तो उसने दासी को समझा कर तथा काफ़ी प्रलोभन दिया.. जिससे, दासी उसकी बात मान गई और उसने किसी भी तरह राजा का विवाह, वक्षकुमारी से करने का वादा किया..
अब आगे –
जैसे ही, राजकुमारी ने यह बात सुनी की राजा लिंगवर्मा उस से विवाह ना करने के लिए तैयार हो गया है.. वो ख़ुशी से, फूली नहीं समा रही थी और इस ख़ुशी में उसने अपनी दासी जिसका नाम “रूपाली” था, उसे कई उपहार दे दिए..
मगर, दासी ने उन उपहार को लेने से मना कर दिया और बोली – राजकुमारी, यह तो मेरा फ़र्ज़ था और मैं तो सिर्फ़ आपका निवेदन लेकर गई थी और यह तो कामपुर के महाराज का उदार चरित्रा था की उन्होंने आपका निवेदन स्वीकार कर लिया… !!
मगर, राजकुमारी बहुत खुश थी… !! इसलिए, उन्होंने दासी को एक अनमोल हार भेंट किया और दासी से कहा – हम जानते हैं की यह कामपुर के महाराज का उदारता थी… !! मगर, यह काम को सफल बनाने में आपका बहुत बड़ा योगदान है इसलिए, हम आपको यह हार भेट स्वरूप देना चाहते हैं… !! मना ना करें… !! इसे, स्वीकार करें… !!
दासी ने, राजकुमारी से हार ले लिया और उसके कक्ष से बाहर आ गई.. मगर, दासी के दिमाग़ में अभी तक यह विचार चल रहा था की वो ऐसा क्या करे की राजकुमारी का विवाह, राजा लिंगवर्मा से हो जाए..
वहाँ दूसरी ओर, राजा लिंगवर्मा बस यही सोच रहे थे की क्या रूपाली उनका विवाह राजकुमारी से करने के लिए कोई खेल खेल पाएँगी की नहीं… !!
और, जब राजा सोच सोच कर हार गये तो उन्होंने स्वयं ही योनपुर जाकर, रूपाली से मिलने का विचार बनाया और तुरंत अपना भेष बदल कर एक गुप्तचर के भाँति अपने घोड़े पे बैठ रवाना हो गये..
वहाँ दूसरी ओर योनपुर में, दासी रूपाली सोच सोच कर थक चूकि थी.. मगर, कोई भी विचार, उसके दिमाग़ में ऐसा नहीं आ रहा था की जिससे राजकुमारी का विवाह बिना किसी दिक्कत के लिंगवर्मा से हो जाए..
अब आधी रात्रि भी हो चुकी थी तो रूपाली ने सोचा की वह प्रातः काल ही कुछ सोचेगी और यह सोचकर वो लेट गई और लेटने के तुरंत बाद उसे नींद आ गई और वो दिया बुझाना ही भूल गई।
तभी आधी रात के समय, राजा लिंगवर्मा योनपुर में पहुँचा.. मगर, तब उसे याद आया की वो रूपाली का घर तो जानता ही नहीं..
तब उसने सोचा की ज़्यादातर महल में काम करने वाले सेवक, महल के पास ही रहते हैं.. सो, वो महल के पास पहुँचे..
महल में कड़ा पहरा था और आधी रात में अगर कोई पहरेदार, राजा लिंगवर्मा को ऐसे देख लेता तो वो शायद उन्हें डाकू या चोर समझ सकता था.. इसलिए, उन्होंने महल के पहरेदारों की नज़रों में आए बिना, चुप चुप कर सेवक के घर जहाँ थे, वहाँ पहुँचे..
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मगर, अब दिक्कत ये थी की रूपाली का घर कौन सा है..
यह सोच कर, राजा परेशान हो गये की तभी उन्होंने देखा की एक घर का दिया, इतनी रात में भी जल रहा था.. उन्होंने, सोचा की शायद वहाँ कोई जाग रहा हो तो वो दासी रूपाली का पता बता दे और वो जब घर के करीब गये तो उन्होंने देखा की घर की खिड़की भी खुल रही है..
उन्होंने उस खिड़की में से झाँका तो सामने खटिया पर, रूपाली सो रही थी।
वो खुश हो गये की उन्हें रूपाली को ढूँढने की ज़्यादा कोशिश नहीं करनी पड़ी।
फिर, वो खिड़की के रास्ते घर में प्रवेश हो गये और रूपाली के खटिया के पास जाकर, रूपाली को दबे स्वर में आवाज़ देकर उठाने की कोशिश करने लग गये.. मगर, वो तो बहुत थक गई थी और पिछले दिन तो बेचारी ने नींद भी कहाँ की थी.. पूरी रात चुदवाती रही थी, राजा से.. इसलिए, वो बहुत गहरी नींद में सोती रही..
जब कुछ देर तक, वो ना उठी तो… !! … !!
जल्द ही, इस कहानी का अगला भाग..