06-12-2020, 12:06 PM
भाभी ने एक नज़र प्रीतम पर डाली और बोली- अभी फ़ुर्सत नही है मेरी ढेर सारा काम पड़ा है अब कुछ लोगो की तरह फालतू तो हूँ नही मैं .
प्रीतम- रहने दे मनीष , चाय का मूड भी नही है मेरा पर तू रात को आ जाना तुझे दूध पिलाउन्गी .
प्रीतम ने जिस अंदाज मे बात कही थी अनिता भाभी को बहुत गुस्सा आ गया था वैसे ही वो पहले से ही प्रीतम को यहाँ देख कर नाराज़ थी मैं समझ गया था.
भाभी- देवर जी, इस से कह दो कि अभी के अभी यहाँ से चली जाए वरना ठीक नही रहेगा इसके लिए.
प्रीतम- चलती हूँ मनीष, आज कल कुछ लोगो की सुलग बहुत रही है .
प्रीतम मेरे पास आई और कान मे बोली- आज कल इसकी नही ले रहा क्या तू जो ये इतना उछल रही है तबीयत से पेल इसको थोड़े नखरे कम हो जाएँगे.
प्रीतम के जाने के बाद मैं और गीता कुर्सियो पर बैठ गये.
मैं- भाभी क्या बात है क्या ज़रूरत थी प्रीतम से झगड़ने की .
भाभी- हिम्म्त कैसे हुई उस कुतिया को यहाँ पर लाने की मूह ही मारना है तो बाहर हज़ार जगह है यहाँ ये सब नही चलेगा.
मैं- क्या बोल रही हो भाभी, दोस्त है वो मेरी.
भाभी- और मैं मैं क्या हूँ, कितना तड़प रही हूँ तुम्हारे करीब आने को दो घड़ी तुम्हारे साथ बाते करने को पर तुम हो कि बाहर मूह मार रहे हो आख़िर मुझ मे अब क्या कमी लगने लगी तुम्हे .
मैं- मैने बोला तो था ना कि थोड़ी फ़ुर्सत आने दो.
भाभी- मेरे लिए फ़ुर्सत नही है और जनाब यहाँ रंडियो को चोद रहे हो.
मैं- तमीज़ से भाभी प्रीतम भी मेरे लिए बहुत अज़ीज़ है .
भाभी- होगी ही, मैं अब लगती भी क्या हूँ तुम्हारी. अब जब नयी नयी मिलने लगी तो मेरे पास क्यो आना है तुम्हे.
मैं- भाभी प्रीतम के बारे मे तो बहुत पहले से पता है आपको और आपकी उस से नही बनती तो मैं क्या कर सकता हूँ.
भाभी- मुझे कुछ नही सुन ना . तुम तो साहब लोग हो बड़े लोग हो जो जी मे आए करो , मेरी किसको पड़ी है .
मैं- ज़्यादा ड्रामा हो रहा है भाभी.
भाभी- अब तो ड्रामा ही लगेगा एक दौर था जब मेरे बिना एक पल नही कट ता था और आज देखो .
तभी गीता अंदर आ गयी तो हम चुप हो गये.
गीता- अनिता , मैं चलती हूँ फिर कभी आउन्गि.
भाभी- चाय तो पीकर जाना, बस बन ही गयी है.
भाभी ने कप्स मे चाय डाली और हम पीने लगे. गीता ने अपन कप रखा और जाने के लिए तैयार हो गयी.
मैं- मैं भी चलता हूँ कयि दिन हो गये खेतो की तरफ नही गया.
मेरी बात सुनते ही गीता की आँखो मे चमक आ गयी और हम प्लॉट से बाहर निकल कर गाँव से बाहर की तरफ जाने वाले रास्ते पर चल दिए.
गीता- सही तो कह रही थी अनिता , अब तुम पहले वाले नही रहे कब आते हो कब जाते हो हमे तो मालूम ही नही पड़ता है. और ज़िंदगी मे आगे बढ़ना ज़रूरी होता है पर पुराने बन्धनो को भी थाम कर चलना ज़्यादा ज़रूरी होता है.
मैं- तुम भी भाभी की तरह बात करने लगी मेरा भी मन करता है पर मेरी मजबूरी है जो मैं उसके पास नही जा सकता मेरी ताई को पहले से ही हमारी सेट्टिंग के बारे मे मालूम है , बीच मे भी वो मुझे टोका करती थी और अब तो उन्होने खुल्ला कह दिया है कि अगर मेरी बहू के साथ कुछ भी किया या उसके करीब आने की कॉसिश भी कि तो पूरे कुनबे के सामने वो बता देंगी . जानती हो फिर इस से क्या होगा.
सबसे पहले तो मेरे और रवि का रिश्ता खराब होगा और फिर बाकी बाते भी खुल जाएँगी.मैं अपने मज़े के लिए परिवार तो बर्बाद नही कर सकता ना.
गीता- तो अनिता को सॉफ बोल क्यो नही देते कि ये बात है.
मैं- वो नही समझेगी, फिर वो ताई के साथ पंगा करेगी और फिर भी सब बर्बाद हो जाएगा तो अच्छा है ना कि मैं ही बुरा बन लू.
गीता- खैर जाने दो. मुझे तो लगा था कि अब तुम भूल गये मुझे.
मैं- तुम्हे भूल कर कहाँ जाना है वो तो निशा साथ आई हुई थी तो थोड़ी फ़ुर्सत सी नही हो रही थी फिर प्रीतम से मुलाकात हो गयी. मैं सोच रहा था कि जाने से पहले तुमसे मिल कर जाउन्गा.
गीता- चलो किसी ने तो सोचा मेरे बारे मे.
बाते करते हुए हम दोनो उसके घर आ गये. मैने देखा आस पास और भी घर बन गये थे.
मैं- बस्ती सी बन गयी है इस तरफ तो.
गीता- हाँ, आजकल लोग खेतो मे ही मकान बनाने लगे हैं तो इस तरफ भी बसावट हो गयी है.
मैं- अच्छा ही हैं .
गीता- सो तो है.
मैं- काम ठीक चल रहा है तुम्हारा.
गीता- मौज है, अब खेती कम करती हूँ डेरी खोल ली है तो दूध--दही मे ही खूब कमाई हो जाती है कुछ मजदूर भी रख लिए है.
मैं- बढ़िया है .
गीता ने घर का ताला खोला और हम अंदर आए.
गीता- क्या पियोगे दूध या चाय.
मैं- तुम्हारे होंठो का रस.
गीता- अब कहाँ रस बचा हैं , अब तो बूढ़ी हो गयी हूँ बाल देखो आधे से ज़्यादा सफेद हो चुके है.
मैं गीता के पास गया और उसकी चुचियो को मसल्ते हुए बोला- पर देह तो पहले से ज़्यादा गदरा गयी है गीता रानी . आज भी बोबो मे वैसी ही कठोरता है.
गीता- झूठी बाते ना बनाया करो.
मैं-झूठ कहाँ है रानी , झूठ तो तब हो जब तेरी तारीफ ना करू.
मैने गीता के ब्लाउज को खोल दिया ब्रा उसने डाली हुई नही थी. उसकी चुचिया पहले से काफ़ी बड़ी हो चुकी थी .
मैं- देख कितना फूल गयी है और तू कहती है कि.
गीता- उमर बढ़ने के साथ परिबर्तन तो होता ही हैं ना
मैने गीता की छातियो को दबाना शुरू किया तो वो अपनी गान्ड मेरे लंड पर रगड़ने लगी.
गीता- आज रात मेरे पास ही रुकोगे ना.
मैं- हाँ, आज तेरी चूत के रस को जो चखना है.
गीता- चख लो . तुम्हारे लिए ही तो है ये तन-बदन आज मुझको भी थोड़ा सुकून आ जाएगा.
गीता ने अपने घाघरे का नाडा खोल दिया और बस एक पैंटी मे मेरी बाहों मे झूलने लगी. मैं उसकी चुचियो से खेलता रहा.
गीता ने अपने घाघरे का नाडा खोल दिया और बस एक पैंटी मे मेरी बाहों मे झूलने लगी. मैं उसकी चुचियो से खेलता रहा.
गीता- ड्यूटी पे रहते हो तो कभी मेरी याद आती है.
मैं- याद तो आएगी ना ले देकर कुछ ही तो खास लोग है मेरी ज़िंदगी मे.
गीता अपना हाथ पीछे ले गयी और मेरी पॅंट को खोल दिया मेरे लंड को अपनी मुट्ठी मे भर लिया. उसके छुने भर से मेरे बदन मे जादू सा होने लगा मैं मस्ती मे भरने लगा और गीता के कंधो पर चूमने लगा. खाने लगा गीता के बदन मे शोले भरने लगे थे. फूली हुई चुचियो के काले अंगूरी निप्पल्स कड़क होने लगे थे. गीता का हाथ अब तेज तेज मेरे लंड पर चलने लगा था .
मेरी जीभ उसके गोरे गालो पर चलने लगी थी. तभी गीता पलट जाती है और अपने तपते होंठ मेरे होंठो पर रख देती है. मैं उसकी भारी भरकम गान्ड को मसल्ते हुए उसके होंठो का रस चूसने लगता हूँ.सर्दी के इस मौसम मे गीता का तपता जिस्म मेरे जिस्म से चिपका हुआ था. पागलो की तरह हमारा चुंबन चालू था . मेरे हाथ उसकी गान्ड की लचक को नाप रहे थे. गीता की चूत का गीलापन अब मेरी जाँघो पर आने लगा था.
एक के बाद एक काई किस करने के बाद गीता घुटनो के बल बैठ गयी और मेरे लंड की खाल को पीछे सरकाते हुए अपनी जीभ मेरे सुपाडे पर फिराने लगी और मैं अपनी आहों पर काबू नही रख पाया. उसकी लिज़लीज़ी जीभ मेरे बदन मे कंपन पैदा कर रही थी . गीता मुझे अहसास करवा रही थी कि उमर बढ़ बेशक गयी थी पर आग अभी भी दाहक रही थी.
उपर से नीचे तक पूरे लंड पर उसकी जीभ घूम रही थी मैने उसके सर पर अपने हाथो का दवाब बढ़ाया तो उसने मूह खोला और मेरे लगभग आधे लंड को अपने मूह मे ले लिया और उसे चूसने लगी. मैं उसके सर को सहलाते हुए मुख मैथुन का मज़ा लेने लगा.
“ओह गीता रानी कसम से आग ही लगा दी तूने . थोड़ा और ले मूह मे अंदर तक ले जा . हाँ ऐसे ही ऐसे ही बस बस आहह ” मैं अपनी आहो पर बिल्कुल काबू नही रख पा रहा था मज़ा जो इतना मिल रहा था.
गीता बड़ी तल्लीनता से मेरा लंड चूस रही थी पर मैं उसकी चूत मे झड़ना चाहता था इसलिए मैने उसके मूह से लंड निकाल लिया. गीता बिस्तर पर अपनी टांगे फैलाते हुए लेट गयी और उसका भोसड़ा मेरी आँखो के सामने था काली फांको वाली उसकी लाल लाल चूत जो गहरी झान्टो मे धकि हुई थी . उसकी चूत के होंठ काँप रहे थे और तड़प रहे थे कि कब कोई लंड उन से रगड़ खाते हुए चूत के अंदर बाहर हो.
चूँकि गीता ने कयि दिनो से चुदवाया नही था तो वो भी बुरी तरह से चुदने के लिए मचल रही थी . वैसे तो मेरा मन उसकी चूत चूसने का था पर मैने सोचा कि पहले एक बार इसकी कसी हुई चूत को खुराक दे दूं. तो मैने बिना ज्यदा देर किए गीता की चूत पर अपने थूक से साने हुए लंड को टिकाया और एक धक्का लगाते हुए सुपाडे को उसकी चूत के अंदर धकेल दिया.
“सीईईईईईईईईईईईईईईईई , धीरे धीरे मेरे राजा धीरे से, बहुत दिनो मे आज लंड ले रही हूँ तो थोड़ा आराम से.”
“गीली तो पड़ी हो फिर भी ” मैने एक धक्का और लगाते हुए कहा.
गीता- तुम्हारे सिवा कौन लेता है मेरी तो इतने दिनो बाद चुदुन्गि तो थोड़ी तकलीफ़ होती है ना.
मैं- मज़ा ले मेरी रानी बस मज़ा ले. आज तेरी प्यास को बुझा दूँगा. आज पूरी रात तेरी चूत मे मेरे लंड के पानी की बारिश होती रहेगी.
“आहह मरी रे” गीता अपने पैरो को टाइट करते हुए बोली.
मेरा पूरा लंड चूत के अंदर गायब हो चुका था और मैने धीरे धीरे गीता को चोदना शुरू किया तो वो भी अब रंग मे आने लगी.
गीता- कुछ देर बस ऐसे ही मेरे उपर लेटे रहो ना, मैं तुम्हारे लंड को अपने अंदर महसूस करना चाहती हूँ.
मैं- पर तेरी चूत इतनी गरम है कि कही मेरे लंड का पानी ना गिरवा दे.
गीता- तो गिरने दो ना , मैं भी तरस रही हूँ
मैं- गिराना तो है पर सलीके से मेरी रानी.
मैने गीता के निचले होंठ को अपने होंठ मे दबा लिया और उसको चूस्टे हुए धीरे धीरे धक्के लगाने लगा. 44-45 साल की होने के बावजूद गीता के बदन की कसावट कमाल की थी ऐसा लगता ही नही था कि किसी बूढ़ी को चोद रहे हो उसके जिस्म मे एक नशा सा था क्योंकि उसके बदन की बनावट ही इतनी सॉलिड थी उपर से दिन भर वो काम करती थी तो जान बहुत थी.
फॅक फॅक की आवाज़ गीता की चूत से आ रही थी क्योंकि अब मैं तेज तेज धक्के लगा रहा था और गीता भी अपने चूतड़ उछाल उछाल कर चुदाई का भरपूर मज़ा ले रही थी .
मैं- सच मे आज भी ऐसे लगता है कि पहली बार ले रहा हूँ तेरी.
गीता- झूठ कितना बोलते हो तुम.
मैं- मत मान पर तेरी चूत आज भी उतनी ही लाजवाब है जितना तब थी जब मैने पहली बार तेरी ली थी.
गीता- तब तो बस मुझे बहका ही दिया था. आह गाल पे निशान पड़ जाएगा मेरे.
मैं- तब भी तू मस्त थी और आज भी जबरदस्त है.
मैने गीता को टेढ़ी करके लिटा दिया और उसकी एक टाँग को मोडते हुए अपने लंड को चूत पर फिर से लगा दिया गीता ने अपने चूतड़ पीछे को किए और मैने एक हाथ साइड से ले जाते हुए उसकी चुचि को पकड़ के फिर से उसको चोदना शुरू किया . गीता की रस से भरी चूत मे मेरा लंड तेज़ी से अंदर बाहर हो रहा था .सर्दी की उस शाम मे हम दोनो पसीने से तरबतर हुए बिस्तर पर धमा चौकड़ी मचा रहे थे.
कुछ देर बाद मैं उसी तरह उसकी लेता रहा फिर मैने उसे औंधी लिटा दिया और पीछे से उसके उपर चढ़ कर चोदने लगा गीता के चूतड़ बुरी तरह से हिल रहे थे ओर उसके बदन मे कंपन ज़्यादा होने लगा था तो मैं समझ गया था कि वो झड़ने वाली है मैने अपने हाथ उसकी साइड से दोनो चुचियो पर पहकुअ दिए और दबाते हुए उसकी लेने लगा.
करीब दो चार मिनिट बाद ही मुझे भी महसूस होने लगा कि मैं झड़ने वाला हू तो मैं तेज तेज घस्से लगाने लगा और गीता भी बार बार अपनी चूत को टाइट करने लगी . और फिर गीता के मूह से आहे फूटने लगी अपनी चूत को कसते हुए वो झड़ने लगी उसके चुतड़ों का थिरकना कुछ पलों के लिए शांत सा हो गया और मैं तेज़ी से उसको चोदते हुए अपने झड़ने की तरफ बढ़ने लगा.
उसके झड़ने के कुछ देर बाद ही मैने उसकी प्यासी चूत मे अपने वीर्य की धारा छोड़ दी और जब तक अंतिम बूँद उसकी चूत मे ना समा गयी मैं धक्के लगाता ही रहा. झड़ने के बाद मैने पास पड़ी रज़ाई हम दोनो पर डाल ली और गीता के पास लेट गया. वो वैसे ही पड़ी रही.
गीता- जान ही निकाल दी .
मैं- मज़ा आया कि नही.
गीता- इस मज़े की बहुत ज़रूरत थी मुझे.
मैं- आज रात तेरे पास ही रहूँगा.
गीता- सच कह रहे हो .
मैं- तेरी कसम.
गीता- आज खूब खातिर दारी करूँगी तुम्हारी.
थोड़ी देर बाद गीता उठी और अपनी चूत से टपकते मेरे वीर्य को साफ करने के बाद उसने वापिस अपना लेहना पहन लिया . मैने भी कचा पहन लिया और बाहर आकर सस्यू वग़ैरा किया. मैने घड़ी मे टाइम देखा साढ़े 6 हो रहे थे और चारो तरफ अंधेरा हो चुका था. आस पास के घरो मे बल्ब जल चुके थे.
गीता- खाने मे क्या बनाऊ
मैं- जो तेरा दिल करे.
गीता- खीर और चुरमा बनाती हूँ.
मैं- बना ले.
जब तक उसने खाना बनाया मैं बिस्तर मे लेटा टीवी देखता रहा पर असली खेल तो खाना खाने के बाद शुरू होना था. गीता मेरे लिए दूध का गिलास लेके आई तो मैने अपने लंड को गिलास मे डुबोया और गीता की तरफ देखा तो गीता समझ गयी कि मैं क्या चाहता हूँ. मैं बार बार अपने लंड गिलास मे डुबाता और गीता तुरंत मेरे लंड को अपने मूह मे भर लेती. इस तरीके से उसको लंड चुसवाने मे बहुत मज़ा आ रहा था. गीता ऐसे ही चुस्ती रही जब तक कि सारा दूध ख़तम नही हो गया. फिर मैने उसे घोड़ी बना दिया और अपने होंठ उसकी चूत पर लगा दिए.
“सीईईईईईईईई” गीता कसमसा उठी लंबे समय से उसने अपनी चूत पर ऐसा अहसास नही पाया था . मैने चूत पर जीभ फेरनी शुरू की तो गीता के चूतड़ ज़ोर ज़ोर से हिलने लगे. सुर्र्रर सुर्र्र्र्र्रर्प प़ मेरी जीभ उसकी पूरी चूत पर उपर नीचे हो रही थी , घोड़ी बनी हुई गीता की चूत का नशा रस बन कर बह रहा था और वो पागल हुए जा रही थी.
“कितना तडपाएगा जालिम, ठंडी क्यो नही करता मुझे” गीता लगभग चीखते हुए बोली . पर किसे परवाह थी औरत जितना मस्ती मे आके तड़पति है उतना ही मज़ा वो देती है और मैं तो आज गीता को पूरी तरह से पागल कर देना चाहता था. मैं उसके नशीले शबाब को आज बाकी बची रात मे चखना चाहता था पर मेरी उस इच्छा को मेरे फोन की रिंगटोन ने तोड़ दिया.
मैने देखा चाची का फोन आ रहा था ,एक नज़र मैने अपनी कलाई पर बँधी घड़ी पर डाली और फिर फोन को कान से लगा दिया.
चाची- मनीष अभी घर आ.
मैं- आता हूँ पर क्या हुआ.
चाची- तू बस घर आ जा.
चाची ने बस इतना बोलके फोन काट दिया तो मुझे टेन्षन सी लगी.
गीता- क्या हुआ.
मैं- चाची का फोन था अभी घर बुलाया है.
गीता- इस वक़्त,
मैं- पता नही क्या बात है पर कुछ तो गड़बड़ है, मुझे अभी जाना होगा मैं बाद मे आउन्गा.
गीता- इस समय अकेले जाना ठीक नही होगा मैं चलता हूँ.
मैं- नही, और फिर तुम आओगी तो घरवालो को क्या कहूँगा कि मैं तुम्हारे साथ था.
गीता- तो फिर आराम से जाना.
मैने अपने कपड़े पहने और फिर गीता के घर से बाहर चल दिया आस पास खेत होने की वजह से ठंड कुछ ज्यदा सी थी और पैदल पैदल चलने से मुझे कुछ टाइम लग गया जब मैं घर पहुचा तो देखा कि चाची दरवाजे पर ही खड़ी थी.
मैं- क्या हुआ चाची ऐसे क्यो फोन किया मुझे.
चाची- अनिता……..
मैं- क्या किया भाभी ने.
चाची- अनिता, गुस्से मे घर से चली गयी है रवि से झगड़ा किया उसने .
मैं- ये भाभी भी ना पता नही क्या सूझता रहता है अब इतनी रात को क्या ज़रूरत थी पंगा करने की. रवि कहाँ है.
चाची- सब लोग उसको ही ढूँढ रहे है बड़ी जेठानी कह रही थी कि अनिता बोलके गयी है की आज किसी कुवे या जोहद मे डूबके जान दे देगी, मुझे तो बड़ी टेन्षन हो रही है, ये बहू भी ना पता नही क्या दिमाग़ है इसका पिछले कुछ दिनो से काबू मे ही नही है.
मैं- जान देना क्या आसान है जब गुस्सा शांत होगा तो आ जाएगी अपने आप.
हम बात कर ही रहे थे कि रवि भाभी को ले आया .
मैं- भाभी ये क्या तरीका है इतनी रात को सबको परेशान करने का.
भाभी- तुम अपने काम से काम रखो तुम्हे मेरे मामले मे पड़ने की ज़रूरत नही है.
रवि- चुप कर जा वरना मेरा हाथ उठ जाएगा.
मैं- रवि, कोई बात नही गुस्से मे है . होता है.
भाभी-हां हूँ गुस्से मे तो किसी को क्या है जब इस घर मे मेरी कोई हसियत ही नही है तो क्यो रहूं मैं यहाँ पर. सारा दिन बस गुलामी करती रहूं कभी पशुओ का तो कभी खेतो का बस मेरी ज़िंदगी इसी मे जा रही है.
मैं- तो मत करो , काम की दिक्कत है तो मत करो. पर इस बात के लिए कलेश क्यो करना.
रवि- मनीष बात काम की नही है , इसको होड़ करनी है निशा से इसको लगता है कि निशा के आने से घर मे इसकी चोधराहत कम हो गयी है सब लोग निशा को ज़्यादा प्यार करते है और निशा के आगे ये फीकी पड़ जाती है .
रवि की बात सुनकर मैं और चाची हैरान रह गये.
चाची- पर ये तो ग़लत बात हैं ना बेटा, निशा इस घर की खास मेहमान है और मनीष की सबसे प्यारी दोस्त, अनिता ये बिल्कुल ग़लत तुम अच्छी तरह से जानती हो कि निशा और मनीष साथ रहते है और जल्दी ही शादी भी करेंगे , अपनी देवरानी से कैसी जलन
भाभी- मैं क्यो रीस करूँगी उस से, भला उसकी और मेरी क्या तुलना.
मैं- भाभी सही कहा आपने, आप अपनी जगह हो और वो अपनी , आप इस घर की बड़ी बहू हो पर आपका फ़र्ज़ बनता है कि घर को एक धागे मे बाँध के चले आपके मन मे ऐसी छोटी बात आई यकीन नही होता.
भाभी- कुछ बातों का यकीन मुझे भी नही होता देवेर जी.
भाभी की ये बात अंदर तक जाकर लगी.
मैं- भाभी, आप आप ही रहोगे, निशा क्या कोई भी आपकी जगह नही ले पाएगा पर निशा भी अब इस घर की सदस्या है जितना हक आपका है उतना ही उसका भी इस घर पर है.
ताई जी- बिल्कुल सही कहा तुमने, और अनिता तुझे इस घर मे रहना है जाना है वो तेरी मर्ज़ी है पर कालेश नही होना चाहिए, शूकर है निशा यहाँ नही है वरना वो क्या सोचती और क्या इज़्ज़त रह जाती हमारी. मैने कभी बेटी और बहू मे कोई भेद नही रखा पर पता नही आजकल इसके दिमाग़ मे कहाँ से ये बाते आ रही हैं .
चाची- सही कहा जीजी आपने , अनिता तुम अभी जाकर आराम करो और ठंडे दिमाग़ से सोचना कि इस घर के प्रति तुम्हारी क्या ज़िम्मेदारिया है और रवि तुम भी शांत हो जाओ बाकी बाते सुबह होंगी . इस घर की शक्ति इसके एक होने मे है और मैं कह रही हूँ कि जो भी मत-भेद हो इतने गहरे ना हो कि इस घर की नीव को हिला दे. सो जाओ सब लोग और किसी बुरे सपने की तरह इस झगड़े को भूलने की कॉसिश करना .
धीरे धीरे सब लोग चले गये पर मैं हॉल मे ही सोफे पर बैठ गया और सोचने लगा कि आख़िर अनिता भाभी के दिमाग़ मे ये बात आई कहाँ से.
उस रात नींद नही आई बस दिल परेशान सा होता रहा अनिता भाभी ने जिस तरह से आज ये ओछी हरकत की थी मुझे बहुत ठेस लगी थी . मैने कभी ऐसी उम्मीद नही की थी कि भाभी अपने मन मे ऐसा कुछ पाले हुए है. दिल किया कि निशा को फोन कर लूँ पर समय देख कर किया नही वो रात भी कुछ बहुत ज़्यादा लंबी सी लगी मुझे.
अगले दिन मम्मी- पापा आने वाले थे उनको मालूम होता कि रात को क्या तमाशा हुआ तो उनको भी बुरा लगता ही पर मैने अनिता भाभी से खुल क बात करने का सोचा ,
प्रीतम- रहने दे मनीष , चाय का मूड भी नही है मेरा पर तू रात को आ जाना तुझे दूध पिलाउन्गी .
प्रीतम ने जिस अंदाज मे बात कही थी अनिता भाभी को बहुत गुस्सा आ गया था वैसे ही वो पहले से ही प्रीतम को यहाँ देख कर नाराज़ थी मैं समझ गया था.
भाभी- देवर जी, इस से कह दो कि अभी के अभी यहाँ से चली जाए वरना ठीक नही रहेगा इसके लिए.
प्रीतम- चलती हूँ मनीष, आज कल कुछ लोगो की सुलग बहुत रही है .
प्रीतम मेरे पास आई और कान मे बोली- आज कल इसकी नही ले रहा क्या तू जो ये इतना उछल रही है तबीयत से पेल इसको थोड़े नखरे कम हो जाएँगे.
प्रीतम के जाने के बाद मैं और गीता कुर्सियो पर बैठ गये.
मैं- भाभी क्या बात है क्या ज़रूरत थी प्रीतम से झगड़ने की .
भाभी- हिम्म्त कैसे हुई उस कुतिया को यहाँ पर लाने की मूह ही मारना है तो बाहर हज़ार जगह है यहाँ ये सब नही चलेगा.
मैं- क्या बोल रही हो भाभी, दोस्त है वो मेरी.
भाभी- और मैं मैं क्या हूँ, कितना तड़प रही हूँ तुम्हारे करीब आने को दो घड़ी तुम्हारे साथ बाते करने को पर तुम हो कि बाहर मूह मार रहे हो आख़िर मुझ मे अब क्या कमी लगने लगी तुम्हे .
मैं- मैने बोला तो था ना कि थोड़ी फ़ुर्सत आने दो.
भाभी- मेरे लिए फ़ुर्सत नही है और जनाब यहाँ रंडियो को चोद रहे हो.
मैं- तमीज़ से भाभी प्रीतम भी मेरे लिए बहुत अज़ीज़ है .
भाभी- होगी ही, मैं अब लगती भी क्या हूँ तुम्हारी. अब जब नयी नयी मिलने लगी तो मेरे पास क्यो आना है तुम्हे.
मैं- भाभी प्रीतम के बारे मे तो बहुत पहले से पता है आपको और आपकी उस से नही बनती तो मैं क्या कर सकता हूँ.
भाभी- मुझे कुछ नही सुन ना . तुम तो साहब लोग हो बड़े लोग हो जो जी मे आए करो , मेरी किसको पड़ी है .
मैं- ज़्यादा ड्रामा हो रहा है भाभी.
भाभी- अब तो ड्रामा ही लगेगा एक दौर था जब मेरे बिना एक पल नही कट ता था और आज देखो .
तभी गीता अंदर आ गयी तो हम चुप हो गये.
गीता- अनिता , मैं चलती हूँ फिर कभी आउन्गि.
भाभी- चाय तो पीकर जाना, बस बन ही गयी है.
भाभी ने कप्स मे चाय डाली और हम पीने लगे. गीता ने अपन कप रखा और जाने के लिए तैयार हो गयी.
मैं- मैं भी चलता हूँ कयि दिन हो गये खेतो की तरफ नही गया.
मेरी बात सुनते ही गीता की आँखो मे चमक आ गयी और हम प्लॉट से बाहर निकल कर गाँव से बाहर की तरफ जाने वाले रास्ते पर चल दिए.
गीता- सही तो कह रही थी अनिता , अब तुम पहले वाले नही रहे कब आते हो कब जाते हो हमे तो मालूम ही नही पड़ता है. और ज़िंदगी मे आगे बढ़ना ज़रूरी होता है पर पुराने बन्धनो को भी थाम कर चलना ज़्यादा ज़रूरी होता है.
मैं- तुम भी भाभी की तरह बात करने लगी मेरा भी मन करता है पर मेरी मजबूरी है जो मैं उसके पास नही जा सकता मेरी ताई को पहले से ही हमारी सेट्टिंग के बारे मे मालूम है , बीच मे भी वो मुझे टोका करती थी और अब तो उन्होने खुल्ला कह दिया है कि अगर मेरी बहू के साथ कुछ भी किया या उसके करीब आने की कॉसिश भी कि तो पूरे कुनबे के सामने वो बता देंगी . जानती हो फिर इस से क्या होगा.
सबसे पहले तो मेरे और रवि का रिश्ता खराब होगा और फिर बाकी बाते भी खुल जाएँगी.मैं अपने मज़े के लिए परिवार तो बर्बाद नही कर सकता ना.
गीता- तो अनिता को सॉफ बोल क्यो नही देते कि ये बात है.
मैं- वो नही समझेगी, फिर वो ताई के साथ पंगा करेगी और फिर भी सब बर्बाद हो जाएगा तो अच्छा है ना कि मैं ही बुरा बन लू.
गीता- खैर जाने दो. मुझे तो लगा था कि अब तुम भूल गये मुझे.
मैं- तुम्हे भूल कर कहाँ जाना है वो तो निशा साथ आई हुई थी तो थोड़ी फ़ुर्सत सी नही हो रही थी फिर प्रीतम से मुलाकात हो गयी. मैं सोच रहा था कि जाने से पहले तुमसे मिल कर जाउन्गा.
गीता- चलो किसी ने तो सोचा मेरे बारे मे.
बाते करते हुए हम दोनो उसके घर आ गये. मैने देखा आस पास और भी घर बन गये थे.
मैं- बस्ती सी बन गयी है इस तरफ तो.
गीता- हाँ, आजकल लोग खेतो मे ही मकान बनाने लगे हैं तो इस तरफ भी बसावट हो गयी है.
मैं- अच्छा ही हैं .
गीता- सो तो है.
मैं- काम ठीक चल रहा है तुम्हारा.
गीता- मौज है, अब खेती कम करती हूँ डेरी खोल ली है तो दूध--दही मे ही खूब कमाई हो जाती है कुछ मजदूर भी रख लिए है.
मैं- बढ़िया है .
गीता ने घर का ताला खोला और हम अंदर आए.
गीता- क्या पियोगे दूध या चाय.
मैं- तुम्हारे होंठो का रस.
गीता- अब कहाँ रस बचा हैं , अब तो बूढ़ी हो गयी हूँ बाल देखो आधे से ज़्यादा सफेद हो चुके है.
मैं गीता के पास गया और उसकी चुचियो को मसल्ते हुए बोला- पर देह तो पहले से ज़्यादा गदरा गयी है गीता रानी . आज भी बोबो मे वैसी ही कठोरता है.
गीता- झूठी बाते ना बनाया करो.
मैं-झूठ कहाँ है रानी , झूठ तो तब हो जब तेरी तारीफ ना करू.
मैने गीता के ब्लाउज को खोल दिया ब्रा उसने डाली हुई नही थी. उसकी चुचिया पहले से काफ़ी बड़ी हो चुकी थी .
मैं- देख कितना फूल गयी है और तू कहती है कि.
गीता- उमर बढ़ने के साथ परिबर्तन तो होता ही हैं ना
मैने गीता की छातियो को दबाना शुरू किया तो वो अपनी गान्ड मेरे लंड पर रगड़ने लगी.
गीता- आज रात मेरे पास ही रुकोगे ना.
मैं- हाँ, आज तेरी चूत के रस को जो चखना है.
गीता- चख लो . तुम्हारे लिए ही तो है ये तन-बदन आज मुझको भी थोड़ा सुकून आ जाएगा.
गीता ने अपने घाघरे का नाडा खोल दिया और बस एक पैंटी मे मेरी बाहों मे झूलने लगी. मैं उसकी चुचियो से खेलता रहा.
गीता ने अपने घाघरे का नाडा खोल दिया और बस एक पैंटी मे मेरी बाहों मे झूलने लगी. मैं उसकी चुचियो से खेलता रहा.
गीता- ड्यूटी पे रहते हो तो कभी मेरी याद आती है.
मैं- याद तो आएगी ना ले देकर कुछ ही तो खास लोग है मेरी ज़िंदगी मे.
गीता अपना हाथ पीछे ले गयी और मेरी पॅंट को खोल दिया मेरे लंड को अपनी मुट्ठी मे भर लिया. उसके छुने भर से मेरे बदन मे जादू सा होने लगा मैं मस्ती मे भरने लगा और गीता के कंधो पर चूमने लगा. खाने लगा गीता के बदन मे शोले भरने लगे थे. फूली हुई चुचियो के काले अंगूरी निप्पल्स कड़क होने लगे थे. गीता का हाथ अब तेज तेज मेरे लंड पर चलने लगा था .
मेरी जीभ उसके गोरे गालो पर चलने लगी थी. तभी गीता पलट जाती है और अपने तपते होंठ मेरे होंठो पर रख देती है. मैं उसकी भारी भरकम गान्ड को मसल्ते हुए उसके होंठो का रस चूसने लगता हूँ.सर्दी के इस मौसम मे गीता का तपता जिस्म मेरे जिस्म से चिपका हुआ था. पागलो की तरह हमारा चुंबन चालू था . मेरे हाथ उसकी गान्ड की लचक को नाप रहे थे. गीता की चूत का गीलापन अब मेरी जाँघो पर आने लगा था.
एक के बाद एक काई किस करने के बाद गीता घुटनो के बल बैठ गयी और मेरे लंड की खाल को पीछे सरकाते हुए अपनी जीभ मेरे सुपाडे पर फिराने लगी और मैं अपनी आहों पर काबू नही रख पाया. उसकी लिज़लीज़ी जीभ मेरे बदन मे कंपन पैदा कर रही थी . गीता मुझे अहसास करवा रही थी कि उमर बढ़ बेशक गयी थी पर आग अभी भी दाहक रही थी.
उपर से नीचे तक पूरे लंड पर उसकी जीभ घूम रही थी मैने उसके सर पर अपने हाथो का दवाब बढ़ाया तो उसने मूह खोला और मेरे लगभग आधे लंड को अपने मूह मे ले लिया और उसे चूसने लगी. मैं उसके सर को सहलाते हुए मुख मैथुन का मज़ा लेने लगा.
“ओह गीता रानी कसम से आग ही लगा दी तूने . थोड़ा और ले मूह मे अंदर तक ले जा . हाँ ऐसे ही ऐसे ही बस बस आहह ” मैं अपनी आहो पर बिल्कुल काबू नही रख पा रहा था मज़ा जो इतना मिल रहा था.
गीता बड़ी तल्लीनता से मेरा लंड चूस रही थी पर मैं उसकी चूत मे झड़ना चाहता था इसलिए मैने उसके मूह से लंड निकाल लिया. गीता बिस्तर पर अपनी टांगे फैलाते हुए लेट गयी और उसका भोसड़ा मेरी आँखो के सामने था काली फांको वाली उसकी लाल लाल चूत जो गहरी झान्टो मे धकि हुई थी . उसकी चूत के होंठ काँप रहे थे और तड़प रहे थे कि कब कोई लंड उन से रगड़ खाते हुए चूत के अंदर बाहर हो.
चूँकि गीता ने कयि दिनो से चुदवाया नही था तो वो भी बुरी तरह से चुदने के लिए मचल रही थी . वैसे तो मेरा मन उसकी चूत चूसने का था पर मैने सोचा कि पहले एक बार इसकी कसी हुई चूत को खुराक दे दूं. तो मैने बिना ज्यदा देर किए गीता की चूत पर अपने थूक से साने हुए लंड को टिकाया और एक धक्का लगाते हुए सुपाडे को उसकी चूत के अंदर धकेल दिया.
“सीईईईईईईईईईईईईईईईई , धीरे धीरे मेरे राजा धीरे से, बहुत दिनो मे आज लंड ले रही हूँ तो थोड़ा आराम से.”
“गीली तो पड़ी हो फिर भी ” मैने एक धक्का और लगाते हुए कहा.
गीता- तुम्हारे सिवा कौन लेता है मेरी तो इतने दिनो बाद चुदुन्गि तो थोड़ी तकलीफ़ होती है ना.
मैं- मज़ा ले मेरी रानी बस मज़ा ले. आज तेरी प्यास को बुझा दूँगा. आज पूरी रात तेरी चूत मे मेरे लंड के पानी की बारिश होती रहेगी.
“आहह मरी रे” गीता अपने पैरो को टाइट करते हुए बोली.
मेरा पूरा लंड चूत के अंदर गायब हो चुका था और मैने धीरे धीरे गीता को चोदना शुरू किया तो वो भी अब रंग मे आने लगी.
गीता- कुछ देर बस ऐसे ही मेरे उपर लेटे रहो ना, मैं तुम्हारे लंड को अपने अंदर महसूस करना चाहती हूँ.
मैं- पर तेरी चूत इतनी गरम है कि कही मेरे लंड का पानी ना गिरवा दे.
गीता- तो गिरने दो ना , मैं भी तरस रही हूँ
मैं- गिराना तो है पर सलीके से मेरी रानी.
मैने गीता के निचले होंठ को अपने होंठ मे दबा लिया और उसको चूस्टे हुए धीरे धीरे धक्के लगाने लगा. 44-45 साल की होने के बावजूद गीता के बदन की कसावट कमाल की थी ऐसा लगता ही नही था कि किसी बूढ़ी को चोद रहे हो उसके जिस्म मे एक नशा सा था क्योंकि उसके बदन की बनावट ही इतनी सॉलिड थी उपर से दिन भर वो काम करती थी तो जान बहुत थी.
फॅक फॅक की आवाज़ गीता की चूत से आ रही थी क्योंकि अब मैं तेज तेज धक्के लगा रहा था और गीता भी अपने चूतड़ उछाल उछाल कर चुदाई का भरपूर मज़ा ले रही थी .
मैं- सच मे आज भी ऐसे लगता है कि पहली बार ले रहा हूँ तेरी.
गीता- झूठ कितना बोलते हो तुम.
मैं- मत मान पर तेरी चूत आज भी उतनी ही लाजवाब है जितना तब थी जब मैने पहली बार तेरी ली थी.
गीता- तब तो बस मुझे बहका ही दिया था. आह गाल पे निशान पड़ जाएगा मेरे.
मैं- तब भी तू मस्त थी और आज भी जबरदस्त है.
मैने गीता को टेढ़ी करके लिटा दिया और उसकी एक टाँग को मोडते हुए अपने लंड को चूत पर फिर से लगा दिया गीता ने अपने चूतड़ पीछे को किए और मैने एक हाथ साइड से ले जाते हुए उसकी चुचि को पकड़ के फिर से उसको चोदना शुरू किया . गीता की रस से भरी चूत मे मेरा लंड तेज़ी से अंदर बाहर हो रहा था .सर्दी की उस शाम मे हम दोनो पसीने से तरबतर हुए बिस्तर पर धमा चौकड़ी मचा रहे थे.
कुछ देर बाद मैं उसी तरह उसकी लेता रहा फिर मैने उसे औंधी लिटा दिया और पीछे से उसके उपर चढ़ कर चोदने लगा गीता के चूतड़ बुरी तरह से हिल रहे थे ओर उसके बदन मे कंपन ज़्यादा होने लगा था तो मैं समझ गया था कि वो झड़ने वाली है मैने अपने हाथ उसकी साइड से दोनो चुचियो पर पहकुअ दिए और दबाते हुए उसकी लेने लगा.
करीब दो चार मिनिट बाद ही मुझे भी महसूस होने लगा कि मैं झड़ने वाला हू तो मैं तेज तेज घस्से लगाने लगा और गीता भी बार बार अपनी चूत को टाइट करने लगी . और फिर गीता के मूह से आहे फूटने लगी अपनी चूत को कसते हुए वो झड़ने लगी उसके चुतड़ों का थिरकना कुछ पलों के लिए शांत सा हो गया और मैं तेज़ी से उसको चोदते हुए अपने झड़ने की तरफ बढ़ने लगा.
उसके झड़ने के कुछ देर बाद ही मैने उसकी प्यासी चूत मे अपने वीर्य की धारा छोड़ दी और जब तक अंतिम बूँद उसकी चूत मे ना समा गयी मैं धक्के लगाता ही रहा. झड़ने के बाद मैने पास पड़ी रज़ाई हम दोनो पर डाल ली और गीता के पास लेट गया. वो वैसे ही पड़ी रही.
गीता- जान ही निकाल दी .
मैं- मज़ा आया कि नही.
गीता- इस मज़े की बहुत ज़रूरत थी मुझे.
मैं- आज रात तेरे पास ही रहूँगा.
गीता- सच कह रहे हो .
मैं- तेरी कसम.
गीता- आज खूब खातिर दारी करूँगी तुम्हारी.
थोड़ी देर बाद गीता उठी और अपनी चूत से टपकते मेरे वीर्य को साफ करने के बाद उसने वापिस अपना लेहना पहन लिया . मैने भी कचा पहन लिया और बाहर आकर सस्यू वग़ैरा किया. मैने घड़ी मे टाइम देखा साढ़े 6 हो रहे थे और चारो तरफ अंधेरा हो चुका था. आस पास के घरो मे बल्ब जल चुके थे.
गीता- खाने मे क्या बनाऊ
मैं- जो तेरा दिल करे.
गीता- खीर और चुरमा बनाती हूँ.
मैं- बना ले.
जब तक उसने खाना बनाया मैं बिस्तर मे लेटा टीवी देखता रहा पर असली खेल तो खाना खाने के बाद शुरू होना था. गीता मेरे लिए दूध का गिलास लेके आई तो मैने अपने लंड को गिलास मे डुबोया और गीता की तरफ देखा तो गीता समझ गयी कि मैं क्या चाहता हूँ. मैं बार बार अपने लंड गिलास मे डुबाता और गीता तुरंत मेरे लंड को अपने मूह मे भर लेती. इस तरीके से उसको लंड चुसवाने मे बहुत मज़ा आ रहा था. गीता ऐसे ही चुस्ती रही जब तक कि सारा दूध ख़तम नही हो गया. फिर मैने उसे घोड़ी बना दिया और अपने होंठ उसकी चूत पर लगा दिए.
“सीईईईईईईईई” गीता कसमसा उठी लंबे समय से उसने अपनी चूत पर ऐसा अहसास नही पाया था . मैने चूत पर जीभ फेरनी शुरू की तो गीता के चूतड़ ज़ोर ज़ोर से हिलने लगे. सुर्र्रर सुर्र्र्र्र्रर्प प़ मेरी जीभ उसकी पूरी चूत पर उपर नीचे हो रही थी , घोड़ी बनी हुई गीता की चूत का नशा रस बन कर बह रहा था और वो पागल हुए जा रही थी.
“कितना तडपाएगा जालिम, ठंडी क्यो नही करता मुझे” गीता लगभग चीखते हुए बोली . पर किसे परवाह थी औरत जितना मस्ती मे आके तड़पति है उतना ही मज़ा वो देती है और मैं तो आज गीता को पूरी तरह से पागल कर देना चाहता था. मैं उसके नशीले शबाब को आज बाकी बची रात मे चखना चाहता था पर मेरी उस इच्छा को मेरे फोन की रिंगटोन ने तोड़ दिया.
मैने देखा चाची का फोन आ रहा था ,एक नज़र मैने अपनी कलाई पर बँधी घड़ी पर डाली और फिर फोन को कान से लगा दिया.
चाची- मनीष अभी घर आ.
मैं- आता हूँ पर क्या हुआ.
चाची- तू बस घर आ जा.
चाची ने बस इतना बोलके फोन काट दिया तो मुझे टेन्षन सी लगी.
गीता- क्या हुआ.
मैं- चाची का फोन था अभी घर बुलाया है.
गीता- इस वक़्त,
मैं- पता नही क्या बात है पर कुछ तो गड़बड़ है, मुझे अभी जाना होगा मैं बाद मे आउन्गा.
गीता- इस समय अकेले जाना ठीक नही होगा मैं चलता हूँ.
मैं- नही, और फिर तुम आओगी तो घरवालो को क्या कहूँगा कि मैं तुम्हारे साथ था.
गीता- तो फिर आराम से जाना.
मैने अपने कपड़े पहने और फिर गीता के घर से बाहर चल दिया आस पास खेत होने की वजह से ठंड कुछ ज्यदा सी थी और पैदल पैदल चलने से मुझे कुछ टाइम लग गया जब मैं घर पहुचा तो देखा कि चाची दरवाजे पर ही खड़ी थी.
मैं- क्या हुआ चाची ऐसे क्यो फोन किया मुझे.
चाची- अनिता……..
मैं- क्या किया भाभी ने.
चाची- अनिता, गुस्से मे घर से चली गयी है रवि से झगड़ा किया उसने .
मैं- ये भाभी भी ना पता नही क्या सूझता रहता है अब इतनी रात को क्या ज़रूरत थी पंगा करने की. रवि कहाँ है.
चाची- सब लोग उसको ही ढूँढ रहे है बड़ी जेठानी कह रही थी कि अनिता बोलके गयी है की आज किसी कुवे या जोहद मे डूबके जान दे देगी, मुझे तो बड़ी टेन्षन हो रही है, ये बहू भी ना पता नही क्या दिमाग़ है इसका पिछले कुछ दिनो से काबू मे ही नही है.
मैं- जान देना क्या आसान है जब गुस्सा शांत होगा तो आ जाएगी अपने आप.
हम बात कर ही रहे थे कि रवि भाभी को ले आया .
मैं- भाभी ये क्या तरीका है इतनी रात को सबको परेशान करने का.
भाभी- तुम अपने काम से काम रखो तुम्हे मेरे मामले मे पड़ने की ज़रूरत नही है.
रवि- चुप कर जा वरना मेरा हाथ उठ जाएगा.
मैं- रवि, कोई बात नही गुस्से मे है . होता है.
भाभी-हां हूँ गुस्से मे तो किसी को क्या है जब इस घर मे मेरी कोई हसियत ही नही है तो क्यो रहूं मैं यहाँ पर. सारा दिन बस गुलामी करती रहूं कभी पशुओ का तो कभी खेतो का बस मेरी ज़िंदगी इसी मे जा रही है.
मैं- तो मत करो , काम की दिक्कत है तो मत करो. पर इस बात के लिए कलेश क्यो करना.
रवि- मनीष बात काम की नही है , इसको होड़ करनी है निशा से इसको लगता है कि निशा के आने से घर मे इसकी चोधराहत कम हो गयी है सब लोग निशा को ज़्यादा प्यार करते है और निशा के आगे ये फीकी पड़ जाती है .
रवि की बात सुनकर मैं और चाची हैरान रह गये.
चाची- पर ये तो ग़लत बात हैं ना बेटा, निशा इस घर की खास मेहमान है और मनीष की सबसे प्यारी दोस्त, अनिता ये बिल्कुल ग़लत तुम अच्छी तरह से जानती हो कि निशा और मनीष साथ रहते है और जल्दी ही शादी भी करेंगे , अपनी देवरानी से कैसी जलन
भाभी- मैं क्यो रीस करूँगी उस से, भला उसकी और मेरी क्या तुलना.
मैं- भाभी सही कहा आपने, आप अपनी जगह हो और वो अपनी , आप इस घर की बड़ी बहू हो पर आपका फ़र्ज़ बनता है कि घर को एक धागे मे बाँध के चले आपके मन मे ऐसी छोटी बात आई यकीन नही होता.
भाभी- कुछ बातों का यकीन मुझे भी नही होता देवेर जी.
भाभी की ये बात अंदर तक जाकर लगी.
मैं- भाभी, आप आप ही रहोगे, निशा क्या कोई भी आपकी जगह नही ले पाएगा पर निशा भी अब इस घर की सदस्या है जितना हक आपका है उतना ही उसका भी इस घर पर है.
ताई जी- बिल्कुल सही कहा तुमने, और अनिता तुझे इस घर मे रहना है जाना है वो तेरी मर्ज़ी है पर कालेश नही होना चाहिए, शूकर है निशा यहाँ नही है वरना वो क्या सोचती और क्या इज़्ज़त रह जाती हमारी. मैने कभी बेटी और बहू मे कोई भेद नही रखा पर पता नही आजकल इसके दिमाग़ मे कहाँ से ये बाते आ रही हैं .
चाची- सही कहा जीजी आपने , अनिता तुम अभी जाकर आराम करो और ठंडे दिमाग़ से सोचना कि इस घर के प्रति तुम्हारी क्या ज़िम्मेदारिया है और रवि तुम भी शांत हो जाओ बाकी बाते सुबह होंगी . इस घर की शक्ति इसके एक होने मे है और मैं कह रही हूँ कि जो भी मत-भेद हो इतने गहरे ना हो कि इस घर की नीव को हिला दे. सो जाओ सब लोग और किसी बुरे सपने की तरह इस झगड़े को भूलने की कॉसिश करना .
धीरे धीरे सब लोग चले गये पर मैं हॉल मे ही सोफे पर बैठ गया और सोचने लगा कि आख़िर अनिता भाभी के दिमाग़ मे ये बात आई कहाँ से.
उस रात नींद नही आई बस दिल परेशान सा होता रहा अनिता भाभी ने जिस तरह से आज ये ओछी हरकत की थी मुझे बहुत ठेस लगी थी . मैने कभी ऐसी उम्मीद नही की थी कि भाभी अपने मन मे ऐसा कुछ पाले हुए है. दिल किया कि निशा को फोन कर लूँ पर समय देख कर किया नही वो रात भी कुछ बहुत ज़्यादा लंबी सी लगी मुझे.
अगले दिन मम्मी- पापा आने वाले थे उनको मालूम होता कि रात को क्या तमाशा हुआ तो उनको भी बुरा लगता ही पर मैने अनिता भाभी से खुल क बात करने का सोचा ,