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Adultery हार तरफ चुत हि चुत (BIG & HOT STORY)
#79
मैं- ऐसी बात नही है मेरा जो कुछ भी है उसके मैने शुरू से ही दो हिस्से रखे थे जितना मेरा दिल मिता के लिए धड़कता है उतना ही तुम्हारे लिए भी. मिटा अगर दिल है तो धड़कन तो तुम ही हो. मेरा वजूद ही नही तुम दोनो के बिना मनीष का नूर मिता है तो निशा मेरी मुस्कान है , निशा मेरी ताक़त है मेरा हौंसला है , मेरा डर कुछ ऑर है. मैं डरता हूँ कि कही उस उपर वाले की नज़र मेरी खुशियो पर ना पड़ जाए, क्योंकि वो मुझे खुश नही देख सकता . डर लगता है मुझ क्योंकि इस बार मैं संभाल नही पाउन्गा.

निशा- उसकी मर्ज़ी के आगे किसी का ज़ोर नही चलता पर अगर दुख वो देगा तो हौसला भी वो ही देगा और फिर मैं तो परछाई हूँ तुम्हारी मुझे भला क्या होगा, मैं हमेशा सुरक्षित रहूंगी तुम्हारी आड़ मे.

मैं- ये सर्द हवा जो तुम्हारे गालो को चूम कर जा रही है , ये हवा जो तुम्हारे कानो को छु कर जा रही है क्या कहती है.

निशा-- पैगाम लाई है तुम्हारी अनकही बातो के, सुनाती है तुम्हारे दिल का हाल. ये हवा मुझसे कहती है कि आगे बढ़ुँ और चूम लूँ तुम्हारे होंठो को ,ये हवा कहती है कि भर लूँ तुम्हे अपने आगोश मे और थाम लूँ इस कदर कि फिर हमे कोई जुदा ना कर सके. ये हवा कहती है कि बस ये लम्हे यू ही थम जाए और मैं इनको अपनी आँखो मे क़ैद कर लूँ हमेशा के लिए. ये हवा कहती है कि इस होली वो अपने साथ तुम्हारी मोहब्बत का रंग लाएगी और मुझे केसरिया रंग जाएगी.

“मैं तो रंग चुकी हूँ तेरे रंग मे मैने किस्से कहानियो मे ही पढ़े थे सुने थे अफ़साने पर आज मैने जाना कि इश्क़ का रंग कैसा होता है ये जो मुझमे तू महक रहा है ना मैं अब मैं नही रही तेरी प्रीत मे केसरिया रंग चुकी हूँ मैं , मैं पहले तो पता नही क्या थी पर आज मैं हूँ तो सिर्फ़ केसरिया तेरे इश्क़ का रंग केशरिया ” केसरिया कभी मिथ्लेश ने भी ये बात कही थी जैसे उसके शब्द मेरे कानो मे गूँज उठे और आँखो मे अपने आप ही आँसू आ गये.

निशा- क्या हुआ

मैं- आँख मे कुछ चला गया शायद.

निशा- कितनी बार मैने कहा है तुमसे मेरे सामने झूठ बोलने की कोशिश ना किया करो, मिता की याद आ गयी ना. और तुम्हे इन आँसुओ को छुपाने की ज़रूरत भी नही है ये सिर्फ़ आँसू नही ये मोहब्बत है , ख़ुसनसीब तो मैं इस लिए हूँ कि मुझे मौका मिला तुम्हारी ज़िंदगी का हिस्सा बन ने का पर मिता के बारे मे क्या कहूँ मैं . कुछ तो खास वो भी रही हो गी जो उसका नाम तुमसे जुड़ा.

मैं नही जानती कि हीर ने रांझे से क्या कहा, मैं नही जानती कि लैला ने मजनू से क्या कहा होगा , मैं नही जानती कि दुनिया मे किसी प्रेमिका ने प्रेमी से क्या कहा होगा पर आज भगवान के मंदिर की चौखट पे बैठ के मैं निशा तुमसे इतना कहती हूँ कि मैने तुम मे रब्ब देखा है. मेरी हर धड़कन को मैने तुम्हारे सीन से गुजरते हुए देखा. दिन के उजालो मे रात के अंधेरो मे, मेरी खुशी मे , मेरे गमो मे मैने जब भी देखा बस तुम्हे देखा, बस तुम्हे देखा.

निशा ने अपना सर मेरे कंधे पर रख दिया और कुछ देर के लिए अपनी आँखो को बंद कर लिया पर उसका कहा एक एक शब्द मेरे कानो मे गूँज रहा था , अब इस से ज़्यादा वो मुझे क्या चाहेगी और क्या साबित करेगी . मैने उसके हाथ को अपने हाथ मे थाम लिया और अपनी आँखो को मूंद लिया. कुछ देर सुसताने के बाद हम ने थोड़ा बहुत खाना खाया और फिर सांझ होते होते वापिस मूड गये.

बाज़ार मे थोड़ा बहुत समान खरीदा और घर आ गये. आते ही मैं नहाने चला गया . आया तो चाची ने मुझे चाय दी.

मैं- निशा कहाँ है.

चाची- तेरी ताई जी के पास गयी है आती ही होगी.

मैं- और बताओ क्या हाल चाल हैं.

चाची- मैं तो ठीक हूँ तू सुना, कहाँ गये थे आज दोनो और जो बात मैने कही थी उसके बारे मे सोचा क्या कुछ.

मैं- धोसी गये थे ऐसे ही घूमने को , आपकी बात का निशा को पहले से ही पता है कहने की क्या ज़रूरत .

चाची- तो शादी क्यो नही करता उस से फिर. लोग सामने से कुछ नही कहते पर पीठ पीछे तो चर्चे होते ही है और फिर निशा अपने ही गाँव की है तुम लोग तो शहर निकल जाते हो हमें तो यही रहना होता है, नही मैं ये नही कह रही कि परिवार को कोई दिक्कत है पर बेटा, अगर इस रिश्ते को कोई नाम मिलेगा तो अच्छा रहेगा ना. और फिर हमे भी ऐसी बहू पाकर गर्व है जो तुम्हारी नकेल कस सके.

मैं- सोच रहा हूँ चाची, जल्दी ही कोर्ट मे शादी कर लेंगे.

चाची- कोई चोरी है क्या जो कोर्ट मे करोगे. हमे तो बस तुम्हारी हाँ का इंतज़ार है बाकी काम हमारा . रवि की शादी को भी अरसा हो गया और फिर अपने घर से बारात निकालने का हमारा भी सपना है , कुछ हमे भी अपने मन की करने दो.

मैं- चाची, मेरे बस की नही है, ये फालतू के रीति रिवाज ये ढोल-तमाशे मेरे बस के नही है . आपको बहू चाहिए बहू मिल जानी है अब चाहे सिंपल तरीके से आए या ढिंढोरा पीट के कुछ फरक पड़ता है क्या.

चाची- तू इतना ज़िद्दी क्यो है ।

मैं- पता नही.

तभी निशा भी आ गयी और हमारी बातों मे शामिल हो गयी.

निशा- मैं कल निकल रही हूँ देल्ही के लिए तुम साथ आओगे या रुकोगे कुछ दिन .

मैं- चलता हूँ .

निशा- तो मैं पॅकिंग कर लेती हूँ

चाची- निशा, तुम्हे नौकरी करने की क्या ज़रूरत है यहाँ रहो हमारे साथ किस चीज़ की कमी है .

निशा- चाची जल्दी ही नारनौल मे ट्रान्स्फर करवा लूँगी फिर आपके पास ही रहूंगी.

मैं- हाँ, मैने बात तो की थी तुम्हारे ट्रान्स्फर की लगता है उन्हे फिर से याद दिलवाना पड़ेगा. पर निशा यहाँ तुम्हारी फिकर रहेगी मुझे.

निशा- कुछ नही होना मुझे यहाँ. अकेली थोड़ी ना हूँ पूरी फॅमिली हैं ना मेरे साथ .

मैं- अब तुमने ठान ही लिया है तो फिर ठीक है.

चाची- तू एक काम कर मैं समान लिख के देती हू बनिये की दुकान से ले आ.
मैं- अभी जाता हूँ.

थोड़ी देर बाद मैं बनिये की दुकान पर जब समान ले रहा था तो मैं उस आवाज़ को सुन कर जैसे चौंक सा गया.

“लाला मैं दोपहर को कह के गयी थी ना कि हमारा आटा पीस दियो पर अभी तक ना पीसा अब रोटिया कैसे सेकूंगी मैं”


“लाला मैं दोपहर को कह के गयी थी ना कि हमारा आटा पीस दियो पर अभी तक ना पीसा अब रोटिया कैसे सेकूंगी मैं”

मैने पलट कर देखा और मुझे जैसे यकीन ही नही हुआ. वो मेरी आँखो के सामने खड़ी थी इतने दिनो बाद मैने जो उसे देखा था तो बस देखता ही रह गया और जब उसकी नज़र मुझ पर पड़ी तो बस वो भी मुस्कुरा ही तो पड़ी.

“मनीष, यकीन नही होता ”

मैं- यकीन तो मुझे भी नही होता, कितना टाइम बीत गया ना . अब जाके मिली है तू .

“क्या करूँ तुझे तो पता है कि शादी के बाद दुनिया ही बदल जाती है और फिर मेरे वाला भी तेरी तरह फ़ौज़ी है तो बस झोला-झंडी उठाए बस घूमते ही रहते है , फिर गाँव भी कम ही आना जाना होता है भाई भी अपनी ड्यूटी मे मस्त है तो बस ऐसे ही है”

मैं- सबका यही पंगा है , वैसे पहले से ज़्यादा हट्टी-कत्ति हो गयी है तू .

“मुझे पता था तू सबसे पहले ये ही नोटीस करेगा तू सुधरा नही ना अभी तक चल आजा घर चलके बाते करते है .”

मैं- ये राशन का समान घर दे आउ फिर आता हूँ .

“लाला को बोल दे किसी के हाथ भिजवा देगा”

मैं- ठीक है तेरे साथ ही चलता हूँ.

मुझे अभी भी यकीन नही आ रहा था कि प्रीतम एक बार फिर से मुझे ऐसे मिल जाएगी . उसके ब्याह के बाद दो- तीन बार ही मैं मिला था उस से फिर मैं भी तो बिज़ी हो गया था अपने झमेलो मे पर आज , शायद इसे ही संजोग कहते है.

प्रीतम- काफ़ी तगड़ा हो गया है पहले से तू.

मैं- बस वो ही तेरे वाली बात ऐसा ही है.

प्रीतम- सही है कितने दिन की छुट्टी आया है.

मैं- कल ही जाना है

प्रीतम- ये क्या बात हुई आज मिला और कल जाने की बोल रहा , रुक जा दो - चार दिन मेरे साथ अरसा हो गया किसी अपने के साथ हुए.

मैं- तेरा कहा मैने कभी टाला है क्या तू कहे और मैं जाउ हो सकता है क्या रुक जाउन्गा पर तेरे वाला भी आया है क्या.

प्रीतम- ना रे, कश्मीर मे तैनात है आजकल. तो हम फिलहाल ससुराल मे ही जमे है , इधर तो मैं अकेली ही आई हूँ ना, ताऊ जी के पोता हुआ है तो उसी का प्रोग्राम है बच्चों को भी सास-ससुर के पास छोड़ के आना पड़ा. अब सर्दी का मौसम है उनको संभालू या प्रोग्राम को एंजाय करू.

मैं- बच्चे भी कर लिए.

प्रीतम- दुनिया का दस्तूर है तो हम ने भी दो औलादे कर ली.

मैं- सही है.

बाते करते करते हम उसके घर आ गये और एक दम से जैसे यादो का सैलाब टूट पड़ा मुझ पर इस घर मे बहुत मज़े किए थे मैने प्रीतम के साथ कुछ बेशक़ीमती पल बिताए थे मैने.

प्रीतम- हम बदल गये पर ये दीवारे आज भी वैसी ही हैं

मैं- तेरी मेरी कहानी इन दीवारो के दरमियाँ ही सिमटी हुई है कही पर.

प्रीतम- दीवानी हो गयी थी मैं तेरी .
मैं- कुछ तो हमें भी सुरूर था.

प्रीतम- वो भी क्या दिन थे ना

मैं- दौर बीत चुका है वो .

प्रीतम- पर यादो का क्या

मैं- कुछ नही.

प्रीतम- थोड़ा टाइम गुजारेगा मेरे साथ.

मैं जवाब देता उस से पहले ही निशा का फोन आ गया

मैं- हाँ.

निशा- कहाँ हो.

मैं- थोड़ी देर मे आता हूँ

निशा- हूंम्म.

मैने फोन रखा .

प्रीतम- किसका फोन था.

मैं- निशा का .

प्रीतम- वो कुम्हारो की लड़की , अभी तक तेरे साथ है वो.

मैं- मेरे घर ही हैं शादी कर रहे है हम जल्दी ही.

प्रीतम- चल झूठे,

मैं-तेरी कसम यार, एक लंबी कहानी है

प्रीतम- मैं तो तब भी बोलती थी ये लड़की तुझे दूर तक ले जाएगी .गाँव बस्ती का क्या

मैं- अब किसी की कोई औकात नही .


प्रीतम- तो कमिने मुझे ही भगा लेता मैने कौनसा सा टूट के नही चाहा था तुझे, तन मन धन सब तेरे नाम कर दिया था.

मैं- यार तू तो आज भी दिल मे है पर मैने कहा ना वो दौर बीत गया है इस छोटी सी ज़िंदगी मे बहुत कुछ घट गया है , अब बस मैं और निशा ठिकाना ढूँढ रहे है एक दूसरे के सहारे ज़िंदगी कट जाएगी.

प्रीतम- तू जो भी करेगा अच्छा ही करेगा.

उसने मेरे गालो पर किस किया और बोली- वैसे मैं आज अकेली ही हूँ.

मैं- आज नही निशा कल सुबह जा रही है तो आज मैं उसके साथ रहूँगा हाँ पर कल का दिन पक्का तेरा जाना तो मुझे उसके साथ ही था पर मैं कुछ दिन और रुकता हूँ.

प्रीतम- ठीक है मेरे राजा मैं सुबह मेरे प्लॉट मे तेरा इंतज़ार करूँगी.

मैं- दस बजे तक आता हूँ.

मैने प्रीतम को किस किया और फिर घर की तरफ चल पड़ा. मुझे अभी भी यकीन नही हो रहा था ये पगली अचानक से जो मिल गयी थी मेरा पूरा इतिहास जैसे मेरी आँखो के सामने फिर से ताज़ा हो रहा था. खैर मैं घर आया. और सीधा निशा के पास गया.

मैं- यार मैं कुछ दिन बाद आउन्गा

निशा- क्या हुआ.

मैं- एक काम आ गया है तो ………

निशा- इतना छुपाते क्यो हो मैं कुछ कह रही हूँ क्या तुम्हारा जब जी करे तब आ जाना .

मैं- थॅंक्स .

निशा- तुम भी ना.

मैं- पॅकिंग हो गयी हो तो बाहर आ जाओ बैठ ते है कुछ देर छत पर.

निशा - बियर ले आउ.

मैं- ये हुई ना बात और हाँ चाची को बोल देना कि खाने मे कुछ अच्छा बना ले.

निशा- मैने खाना बना लिया है

मैं- तो आजा फिर.

कुछ देर बाद मैं और निशा छत पर बैठे हुए थे.

निशा- तुम्हारे साथ रह रह कर पता नही कैसी हो गयी हूँ मैं

मैं- अभी से बहक गयी क्या तू.

निशा- आज थोड़ी ना बहकी हूँ मैं जबसे तुम मेरी ज़िंदगी मे आए हो तभी से बहकी हुई हूँ मैं. वैसे मैं कह रही थी कि वो मेरे ट्रान्स्फर का कुछ होगा क्या मैं थोड़ा फॅमिली के साथ रहना चाहती हूँ.

मैं- देल्ही आते ही मिनिस्ट्री से फोन करवाता हूँ .

निशा- अब तो ये नौकरी भी जंजाल लगती है , इसको पाने के लिए बहुत मेहनत की और अब देखो बोझ सी लगती है.

मैं- और नही तो क्या. पर कमाना भी तो ज़रूरी है ना.

निशा- क्या फ़ायदा यार इन रुपयो का जब इनसे खुशी मिलती ही नही है.

मैं- निशा, हम जैसे लोगो को खुशी मिलती कहाँ है.

निशा- क्या यार तुम भी सेंटी हो जाते हो, वो परमिला भुआ जी का फोन आया था
मैं- क्या कह रही थी कब आ रही है वो.

निशा- बुआ के लड़के का रिश्ता तय हो गया है. तो सगाई है बुला रही थी सबको.

मैं- क्या बात कर रही है . चिनू का रिश्ता . इतना बड़ा हो गया क्या वो कब कैसे.

निशा- अब सब अपनी तरह है क्या , चिनू टीचर लग गया है तुम्हे तो मालूम होगा नही, अब सही है रिश्ता कर लेतो.

मैं- पर ऐसे कैसे.

निशा- सबको पता होता है कि अपनी ज़िम्मेदारिया निभाने का सही समय कौन सा है और अच्छी ही बात हैं ना कि हमें भी मौका मिलेगा थोड़ा एंजाय करने का रिश्तेदारो को जान ने का .

मैं- पेंचो. एक हम ही रह गये ज़माने मे.

निशा- वैसे मनीष एक बात कहना चाहती हूँ .

मैं- जानता हूँ . तू जैसा चाहती है वैसा ही होगा.

निहा- सुन तो लो

मैं- कहा ना, तू जो चाहती है वैसा ही होगा.

निशा ने कुछ घूँट ली और बोली- कब तक आओगे देल्ही.

मैं- जल्दी ही .

निशा- मन नही लगेगा तुम्हारे बिना.

मैं- मेरा भी , वैसे मैं सोच रहा हूँ इस कोठी को तुडवा के फिर से अपने पहले जैसे घर को उसी तरह बनाया जाए.

निशा- मनीष, दुनिया आगे की तरफ बढ़ती है और तुम हो कि पीछे जाना चाहते हो.

मैं- क्या करूँ यार मेरा मन नही लगता है मुझे मेरा वो ही घर चाहिए. एक पल भी अपना पन नही लगता मुझे यहाँ पर.

निशा- घरवालो से बात करो फिर.

मैं- चाचा जब छुट्टी आएँगे तो पूछता हूँ .

निशा- हुम्म, अब जल्दी से ख़तम भी करो कितना टाइम लगाओगे खाना खाना है मुझे.


मैं- चल फिर नीचे चलते है.

मैने बोतल मुंडेर पर रखी और फिर निशा के साथ नीचे आ गया.

चाची- निशा तू भी लेती है क्या.

निशा- ना चाची, ये तो बस मनीष ज़िद कर लेता है तो कभी कभी.

मैं बस मुस्कुरा कर रह गया.


निशा खाना लगाने लगी मैं उठ कर उस कमरे मे आ गया जहाँ पर मम्मी ने मेरा पुराना समान रखा हुआ था एक टेबल पर मेरे रंग रखे थे जो मैने बरसो से नही छुए थे, मैने उन्हे उठाया और दीवार पर ही बस ऐसे ही चलाने लगा, बस ऐसे ही एक बार मैने अपनी दीवार पर मिथ्लेश की तस्वीर बनाई थी.

मितलेश जैसी कोई कभी नही हो सकती अपने आप मे अनूठी थी वो , उसके जैसा कोई नही.

उसका बस अहसास ही मेरे रोम रोम मे रूमानियत जगा देता था . जब भी मैं आँखे बंद करता तो बस उसकी ही तस्वीर मेरी आँखो के सामने आ जाती थी. इश्क़ था इश्क़ है बेशक वो मेरे पास नही थी पर उसकी रूह आज भी मुझमे ज़िंदा थी

. वो दूर होकर भी मेरे पास थी . बस उसकी तमाम यादो को याद करते हुए मेरे हाथ दीवार पर चल रहे थे और जब मैं रुका तो मेरे सामने दीवार पर मिथ्लेश मुस्कुरा रही थी . मैने उसकी वो ही तस्वीर बनाई थी जो कभी मैने बनाई थी. मेरी आँखो से आँसू निकल कर ज़मीन पर गिरने लगे. पर मैं जानता था कि इन आँसुओ की कीमत क्या है.
मुझे बहुत याद आती थी उसकी , इतनी याद कि कभी कभी लगता था कि मैं कही पागल नही हो जाउ, इतना दर्द जो दे गयी थी वो मुझे, आख़िर कसूर क्या था मेरा बस इतना ही कि मोहब्बत कर बैठा. पर कुछ कमी मुझमे ही रह गयी होगी क्योंकि वो मेरा इंतज़ार नही कर पाई और मैं बदकिस्मत मुसाफिर उसके पास होकर भी आज उस से इतना दूर था . किसी लहर की तरह वो बस आकर मुझसे टकरा तो सकती थी पर मैं किसी किनारे की तरह उसे पा नही सकता था.


एक बार फिर मुझ पर मेरी नाकामी चढ़ने लगी मेरे सर मे भयंकर दर्द होने लगा सांस लेना मुश्किल हो गया . मेरा बस एक ही तो ख्वाब था मिथ्लेश जिसके साथ मैं जीना चाहता था और उस उपर वाले ने उसे ही मुझसे छीन लिया था . कहने को तो मैं दुनिया से टकराने का हौंसला रखता था पर सच्चाई मे एक मजबूर टूटे हुए इंसान के सिवा कोई हस्ती नही थी मेरी.

रत भर मैं अकेले बैठे उस चाँद को देखता रहा दिल मे बहुत कुछ था कहने को पर लब खामोश थे. सुबह निशा देल्ही के लिए चल दी और मैं अपने प्लाट मे आ गया . और नीम के नीचे चारपाई बिछा के लेट गया . कुछ देर लेटा था कि पायल कि खनक मेरे कानो मे आ पड़ी. मैने आँखे खोल कर देखा तो प्रीतम चली आ रही थी.

मैं- आज बहुत खनक रही है तेरी पायल.

प्रीतम- बस तेरा ही असर है, पता है कल रात नींद ही नही आई. बस मैं सोचती रही अपने बारे मे.

मैं- दरवाजा बंद कर आ.

वो- कर आई हूँ पहले ही.

मैं- तो क्या सोचती रही .

वो- बताती हूँ पहले ज़रा सरक तो सही , बरसो बीत गये तेरे आगोश मे लिपटे हुए.
मैं- आ जा.

प्रीतम- बस पुरानी मस्तियो के बारे मे ही तमाम वो जगह याद करती रही जहा हम ने कुछ पलो को साथ जिया था.

मैं- कुछ भी कह तेरे और मेरी मामी जैसी कोई दूसरी आई ही नही ज़िंदगी मे. तुम दोनो कमाल हो .

प्रीतम- मामी को भी नही बक्षा तूने.

मैं- अरे बस ऐसे ही.

वो- कोई ना, ज़िंदगी मे जितना मज़ा लिया जाए ले लेना चाहिए .

मैने अपना हाथ प्रीतम के सूट के अंदर डाल दिया और ब्रा के उपर से उसकी मोटी मोटी चुचियो को दबाने लगा.

मैं- आज भी तू पहले जैसी ही है.

वो- क्या करूँ, वजन कम होता ही नही

मैं- ऐसे ही गंदास लगती है तू पहले भी इसी लिए मैं मर मिटा था तुझ पर

वो- मेरे वाले को मोटी औरते पसंद नही.

मैं- उसको क्या पता कि तू क्या चीज़ है पर उसका भी क्या दोष तुझ जैसे पीस दुनिया मे बनते ही कम है .

प्रीतम- इतनी तारीफ भी ना कर दो बच्चे पैदा करने के बाद बेडौल हो गयी हूँ मैं.

मैं- अब क्या फरक पड़ता है प्रीतम. उमर के साथ ये सब होता ही है एक दिन जवानी तो ढलेगी ही.

प्रीतम- सो तो है पर एक बार पहले किस करने दे मुझसे कंट्रोल ही नही हो रहा है क्या करूँ.

प्रीतम ने अपने लाल लिपीसटिक मे रंगे होंठो को मेरे होंठो से जोड़ दिया और पागलो की तरह हम किस करने लगे, एक बात अभी भी उसमे बाकी थी उसके होंठो का स्वाद आज भी वैसा ही था एक दम मीठा जैसे पहले था .

मैं- आज भी तेरे होंठ मीठे है .

प्रीतम- मीठा जो ज़्यादा खाती हूँ.

मैने उसके सूट को उतारना शुरू किया.

वो- यही पे.

मैं- कौन आएगा यहाँ हम दोनो ही तो है.

धीरे धीरे हम दोनो ने अपने कपड़े उतारने शुरू किया और अब बस वो गुलाबी कच्छी मे मेरे सामने थी हमेशा की तरह उसने साइज़ से छोटी कच्छी पहनी हुई थी जो उसकी भारी जाँघो पर बेहद टाइट थी.

प्रीतम- एक मिनिट रुक सूसू कर के आती हूँ.

वो अपनी गान्ड मटकाते हुए पानी के हौद के पास गयी और इठलाते हुए अपनी कच्छी उतार के मूतने बैठ गयी. सुर्र्र्र्र्र्ररर सुर्र्र्र्र्र्ररर करते हुए उसकी लाल चूत से गरम पानी की धारा धरती पर गिरने लगी इतना मदहोश कर देने वाला नज़ारा देख कर कोई भी अपने होश खो बैठता . उसकी नज़रे मुझसे मिली और मैं उसकी तरफ चल पड़ा . जैसे ही वो खड़ी हुई मैने उसे अपनी बाहों मे लिया और खींच ते हुए बाथरूम मे ले आया और फव्वारा चला दिया.

प्रीतम- ठंडा पानी है मनीष, बरफ जम जानी है.

मैं- तेरे बदन की गर्मी से भाप बन जाना है सब कुछ.

उसको अपनी बाहों मे लिए लिए ही हम फव्वारे के ठंडे पानी मे भीगते रहे.मेरा लंड प्रीतम के गोल मटोल चुतड़ों की दरार मे अपने आप सेट हो चुका था और मैं उसकी चुचियो से खेलने लगा था. हाथो मे कोहनियो तक पहनी उसकी चूड़िया गले मे मंगलसूत्र और कमर पर चाँदी की तागड़ी . हुस्न और गहनो का ऐसा संगम बहुत खूब सूरत लग रहा था .

प्रीतम- मनीष सर्दी लग रही है . कमरे मे चलते है

मैं- जैसी तेरी मर्ज़ी .

मैने उस हुस्न के प्याले को अपनी गोद मे उठाया और अंदर कमरे की तरफ बढ़ गया.


हुस्न की जो चिंगारी कुछ बरसो पहले मुझसे जुदा हो गयी थी आज वो एक भड़कता हुआ शोला बन कर मेरी बाहों मे मचल रही थी मैने प्रीतम को बिस्तर पर पटका और उसके उपर चढ़ गया. एक बार फिर हमारे होंठ आपस मे गुत्थम गुत्था हो चुके थे , हमारा थूक आपस मे मिक्स हो रहा था और बदन उस सर्दी की दोपहर मे एक आग मे पिघल रहे थे उसके बदन का नशा मुझे बिन पिए ही हो रहा था.

उत्तेजना से काँपती हुई प्रीतम ने मेरे लंड को अपनी चूत पर रखा और मुझे इशारा किया और अगले ही पल मैं उस मस्तानी औरत मे समाता चला गया उसकी चूत आज भी किसी भट्टी की तरह ही तपती थी , आज भी उसका मस्ताना पन ज़रा भी कम नही हुआ था. और मैं इस छूट का पुराना हकदार एक बार फिर से इस छलकते जाम को पीने जा रहा था . अपनी चूत मे मेरे लंड को महसूस करते ही प्रीतम के बदन मे मस्ती भर गयी और उसकी गान्ड मेरे हर धक्के के साथ उपर नीचे होने लगी.

जब जब मैं अपने लंड को बाहर की तरफ खींचता उसकी चूत की फांके रगड़ खाते हुए बाहर को खिंचती जिस से ऐसे लगता की चूत लिपट सी गयी है और यही बात उसे बाकी औरो से अलग करती थी , प्रीतम पागलो की तरह मेरी जीभ को अपने मूह मे लिए हुई थी , चारपाई बुरी तरह से चरमरा रही थी.

प्रीतम- ये खाट जाएगी आज नीचे उतार लो.

मैं- जाने दे पर तू यही चुदेगि.

प्रीतम- मैं कह रही हूँ मान लो.
मैं- कहा ना तू यही चुदेगि.

प्रीतम- तो चोद ना , थोड़ा और ज़ोर लगा तोड़ डाल आज मेरी नस नस इतना चोद मुझे, इस तरह से रगड़ कि तेरे असर मे खो जाउ मैं, महकने लगे मेरा बदन.

मैं- आज तू जैसा चाहेगी वैसे ही होगा.

मैने उसकी गर्दन पर किस करते हुए कहा . प्रीतम की बाहे मेरी पीठ पर रेंग रही थी . पल पल बीतने पर वो मुझे पूरी तरह अपने अंदर समा लेना चाहती थी किसी घायल शेरनी की तरह बेकाबू सी होने लगी थी और जब उसका खुद पर कंट्रोल नही रहा तो वो मेरे उपर आ गयी और मेरे सीने पर हाथ रख कर ज़ोर ज़ोर से मेरे लंड पर कूदन लगी. सेक्स की उसकी ये ही बेफिक्री मुझे बहुत पसंद थी . बिस्तर पर आग लगा देना जैसे उसकी आदत सी हो गयी थी.

चारपाई हम दोनो के बोझ से बुरी तरह चरमरा रही थी पर हमारी आँखो मे अब बस एक ही चमक थी , हमारे बदन उस आग मे बुरी तरह जल रहे थे अब चरम सुख की एक तेज बारिश ही इस आग को ठंडा कर सकती थी प्रीतम की चूत बस मेरे वीर्य की धार से ही ठंडी होना चाहती थी मैने उसकी मांसल गान्ड को अपने दोनो हाथो मे जकड रखा था और वो हर बाँध को तोड़ते हुए किस बलखाती नदी की तरह मुझे अपने साथ बहाए ले जा रही थी.

जैसे कोई काला बदल आसमान पर छा जाता है वैसे ही प्रीतम अब मुझ पर छा चुकी हुई थी उसके सुर्ख होंठ एक बार फिर मुझसे जुड़ चुके थे और बस अब किसी भी पल वो भी मुझ पर बरस सकती थी मैं इंतज़ार कर रहा था उन बूँदो का जो मेरे भीतर जलती इस ज्वाला को शांत करके मुझे राहत दे सकती थी. प्रीतम को भी आभस हो चला था क्योंकि उसकी साँसे अब उखाड़ने लगी थी और मैने सही समय पर पलटी खाते हुए उसे अपने नीचे लिया और उसकी चूत पर तूफ़ानी धक्को की बरसात कर दी.

प्रीतम ने अपनी आँखे बंद कर ली और खुद को मेरे हवाले कर दिया. बमुश्किल 3-4 मिनिट का समय और लिया हम ने और एक दूसरे को चूमते हुए झड गये. पर आज बस यू ही नही झडे थे हम दोनो चुदाई के इस खेल मे आज लगा कि जैसे रूह तक को सुकून मिला हो पर इस से पहले हम इस अनुभूति को और फील कर पाते कड़क की आवाज़ के साथ चारपाई का पाया टूट गया और मैं प्रीतम के साथ साथ नीचे आ गिरा.

प्रीतम- कमर तुडवा दी ना. मैं पहले ही रोई थी ये खाट जाएगी.

मैं- उठने तो दे .

प्रीतम बडबडाते हुए अलग हुई और हम दोनो उठे. प्रीतम अपने कपड़े पहन ने लगी.
मैं- अभी क्यो पहन रही है .

प्रीतम- अभी के लिए इतना ही ठीक है रात को अकेली ही हूँ आ जइयो फिर घमासान मचाएँगे.

मैं- पर रुक तो सही अभी.

वो- हाँ, रुकूंगी ना थोड़ी देर.

मैने भी अपने कपड़े पहन ने चालू किए और तभी बाहर से कोई किवाड़ पीटने लगा.

प्रीतम- अब कौन आ गया दुनिया को दो पल चैन नही है.

मैं- रुक खोलता हूँ.

मैने अपने कपड़े पहने और दरवाजा खोला तो अनिता भाभी और गीता दोनो खड़े थे . भाभी अंदर आई और आते ही प्रीतम को देखा. गीता भी पीछे पीछे आ गयी.

गीता- मनीष बहुत दिनो बाद देखा तुम्हे.

मैं- बस अब ऐसा ही है .

गीता- कितने दिन हुए आए.

मैं- थोड़े ही दिन हुए, कल परसो मे वापिस चला जाउन्गा.

गीता- बिना मुझसे मिले ही .

मैं- आने वाला था पर कुछ कामो मे उलझ जाता हूँ.

प्रीतम- मैं जा रही हूँ बाद मे मिलती हूँ.

मैं- रुक ना चाय पीते है फिर जाना. भाभी सबके लिए चाय बना लो ना.
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RE: हार तरफ चुत हि चुत (BIG & HOT STORY) - by Pagol premi - 06-12-2020, 12:00 PM



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