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Adultery हार तरफ चुत हि चुत (BIG & HOT STORY)
#77
मामी ने अपनी चूत को टाइट कर लिया अपनी जाँघो को आपस मे चिपका कर तो मैं भी तेज तेज स्टॉक लगाने लगा मैं भी चाहता था कि उसके साथ ही झड जाउ ताकि उसके पानी को फील कर सकूँ


अगले कुछ मिनिट बस मैं बेरहमी से धक्के लगाता रहा और फिर मामी की चूत जैस ही अपना रस बहाने लगी मैने भी अपना वीर्य छोड़ दिया और मामी के उपर ही ढह गया

करीब दस पंद्रह मिनिट हम दोनो एक दूसरे से लिपटे पड़े रहे फिर मामी उठी और कोने मे जाकर मूतने लगी चूत से जो सुर्र्र्ररर सुर्र्र्र्र्र्ररर की आवाज़ आ रही थी बड़ी मस्त लग रही थी मैने पास रखे जग से थोड़ा पानी पिया और फिर मैं भी मूतने चला गया

तब तक मामी भी चूत सॉफ करके वापिस बिस्तर पर आ गयी थी मैं आते ही उसके पास लेट गया और बाते करने लगे


मामी- तूने बड़ी मामी के साथ कर लिया


मैं- कहाँ , आप सीधा यहाँ जो ले आई


वो- तो क्या करती, मुझे पता है एक बार उसकी चूत ले ली तो फिर तुम उसके पीछे ही घुमोगे


मैं- ऐसी बात नही है डार्लिंग, वैसे कहो तो तुम दोनो को साथ चोद दूं


वो- ना, अकेले मे मस्त लगता है


मैं- तो अकेले मे चुद लो मेरी रानी आज की रात तो अपनी ही है आज तुम्हारे दोनो छेद चौड़े कर दूँगा

वो- गंदी बाते करना सीख गये हो तुम


मैं- तुमसे ही सीखाया है मेरी रानी


मैने मामी की चुचि चूसना शुरू किया और बारी बारी दोनो चुचियो का मज़ा लेने लगा मामी आहे भरने लगी जल्दी ही मामी की चुचिया कठोर होने लगी और मामी के चेहरे का रंग बदलने लगा


बहुत देर तक मैने उसकी चुचिया चूसी मामी की आँखो मे फिर से हवस के लाल डोरे तैरने लगे थे मैने मामी को बिस्तर पर औंधी लिटा दिया और उसके चुतड़ों को थोड़ा सा फैलाया जिस से उसकी गान्ड का छेद सामने हो गया


मैने ढेर सारा थूक लगाया उसकी गान्ड पर फिर अपना लंड अंदर डालने लगा मामी की गान्ड काफ़ी खुली हुई थी तो ज़्यादा परेशानी नही हुई मुझे धीरे धीरे करके मैने पूरा लंड अंदर डाल दिया


मेरी गोलिया मामी के चुतड़ों से टकरा रही थी कुछ देर मैं उसके उपर ऐसे ही पड़ा रहा फिर मैने मामी की गान्ड मारनी शुरू की साथ ही मैं उसके गोरे गालो को चूम ने लगा मामी की गान्ड अंदर से बहुत ही गरम थी और मेरे लंड पर काफ़ी टाइट हो रही थी


मामी के उपर मेरा पूरा बोझ पड़ रहा था पर मामी एक्सपर्ट थी गान्ड मरवाने मे जल्दी ही वो भी अपने चूतड़ पटकने लगी और पूरी मस्ती मे आकर मज़ा लेने लगी हम दोनो पसीना पसीना हो रहे थे


काफ़ी देर तक हम ऐसे ही करते रहे फिर मैने मामी को टेढ़ी किया और पीछे से उसकी गान्ड मारने लगा मैं अपने हाथ से उसकी चुचि दबा रहा था उसको किस कर रहा था और मामी भी मेरा पूरा साथ दे रही थी


करीब आधे घंटे तक उसकी गान्ड मारी मैने तब कही जाके मेरा पानी छूटा, उसके बाद हम ने एक राउंड और लिया और फिर सो गये, सुबह मैं जल्दी ही उठ गया तो थोड़ा खेतो की तरफ घूमने निकल गया तो रास्ते मे मुझे सरोज मिल गयी


सरोज- अरे तुम बड़े दिनो बाद रुख़ किया इस तरफ का


मैं- टाइम नही मिलता आपको तो पता है लाइफ चेंज हो गयी है


वो- फिर भी पुराने लोगो से मिलते रहना चाहिए


मैं मुस्कुरा दिया , सरोज को भी खूब पेला था पुरानी सेट्टिंग थी मैं उसके हाव भाव से ही जान गया था कि तैयार है पर मैने उसको कहा की जल्दी ही मिलूँगा उस से घूम फिर के आया नहाने धोने मे ही दोपहर हो गयी थी

रामअवतार मामा यानी कौसहल्या मामी के पति भी आ गये थे तो वो थोड़ा सा शांत थी, हम सब बैठे थे कि मम्मी पापा भी आ गये मैं पापा से मिला पर मम्मी ने बात नही की बस निशा से ही बात की


पापा- और फ़ौज़ी क्या चल रहा है


मैं- कुछ नही पापा


वो- कितने दिन की छुट्टी है


मैं- है थोड़े दिन


वो- घर चल फिर


मैं- आपको तो पता है पापा


वो- वो कल भी तेरा घर था और हमेशा रहेगा और किस घर मे आपस मे बोल-चाल नही होती बाकी तेरी मर्ज़ी है हम कितने दिन जियेंगे
मैं- ऐसा क्यो कहते हो


वो- और नही तो क्या वहाँ तू दुखी यहाँ हम दुखी कैसे चलेगा बता
मामी- जीजाजी, बाते तो होती रहेंगे आओ कुछ चाय-नाश्ता करते है फिर बाकी बाते होती रहेंगी


बस प्रोग्राम मे दो दिन ही थे तो मेहमान आने ही थे तो तभी पता चला कि बड़े मामा भी छुट्टी आ गये है तो अब सबसे ही दुआ सलाम होनी थी ऐसे ही शाम हो गयी बड़ी मामी से नज़रे भी मिली पर उनकी तरफ से कुछ रेस्पॉन्स नही आया मुझे

शाम को मैं उनके कमरे मे गया तो वो साड़ी बदल रही थी


वो- मैं कपड़े पहन रही हूँ दिखा नही क्या


मैं- मुझ से कैसा परदा मेरी प्यारी मामी मैने तो आपके अंग अंग को देखा है


मामी- अब तुम बड़े हो गये हो देखो मैं भी बूढ़ी हो गयी हूँ जो बीत गया उसको भूलो और आगे बढ़ो अब क्या फ़ायदा इन बातों का और नही ये बाते अब शोभा देती है


मैं- हाँ, मामी टाइम बदल गया है लोग बदल गये है और आप भी देखो ना कितनी आसानी से बोल दिया


मामी- तू समझा कर


मैं- हां, समझ तो रहा हूँ पर मैं कौन सा रोज आपके पास पड़ा रहता हूँ कितने दिन बाद मिल रहे है ऐसे मे एक बार दे दोगि तो क्या घट जाएगा आपका


मामी- तूने नही सुधरना तेरे मामा आज ही आए है तो वो भी लिपतेंगे मुझसे पर करती हूँ कुछ तेरा चल अब ये बुरा सा मूड ना बना जैसे ही मौका लगता है इशारा करती हूँ


मैने मामी को किस किया और निकल लिया वहाँ से मामी के पास से आया तो देखा कि मम्मी और निशा बड़ी हंस हंस के बाते कर रही थी तो मैने सोचा कि क्या बात कर रही होंगी मैं भी एक साइड मे जाके बैठ गया कुछ और जान-पहचान वाले थे तो उनसे बाते होने लगी


आज रात दोनो मामिया बिज़ी रहने वाली थी तो अपने को ऐसे ही रात गुजारनी थी रात के खाने के बाद भी बहुत देर तक ऐसे ही बाते चलती रही फिर निशा ने मुझे इशारा किया तो मैं उसके पास गया

निशा- मम्मी से बात करो


मैं- ना

वो- सुनो तो सही


मैं- कहा ना नही उसको बेटा नही चाहिए क्या वो नही बोल सकती

वो- ईगो पे मत लो यार आख़िर सब अपन ही तो है तुम एक स्टेप आगे लोगे तो क्या हो जाएगा


मैं- निशा अभी टाइम ठीक नही है जब टाइम होगा तो देखेंगे


वो- चलो तुम्हारी मर्ज़ी मुझे ना चाय पीनी है तुम आओगे


मैं- हाँ, पर तुम्हे बना नी होगी


मैं और निशा रसोई मे आ गयी उसने चाय का पानी रखा गॅस पर रखा मैं बस उसे ही देखे जा रहा था


वो- ऐसे ना देखा करो तुम


मैं- अब क्या पाबंदी लगाओगी


वो- ना पर तुम्हारी नज़रें बाँध लेती है मुझे


मैं – तो बँध जाओ ना


वो-क्यो भला


मैं- तुम अंजान तो नही


वो- हां पर काबिल भी तो नही अभी तक


मैं- बहुत सताती हो आजकल तुम


वो- और जो तुम तडपाते हो उसका क्या


मैने उसका हाथ पकड़ा और उसको खीच लिया


वो- क्या करते हो कोई आ जाएगा


मैं- आने दो


वो- छोड़ो ना

मैं- कभी कभी तो तुम मुझे पागल ही कर देती हो


वो- सच मे


मैं उसके बालो को सूंघते हुए- निशा


वो-हूंम्म


मैं- मैं बहक रहा हूँ


वो- बहक जाओ किसने रोका है


मेरी साँसे उसके चेहरे को छू रही थी मैने उसे थोड़ा सा और कस लिया अपने आप मे उसके होंठो और मेरे होंठों मे बस कुछ ही फासला था उसने अपनी आँखे बंद कर ली बस एक सेकण्ड की बात थी कि ……

“बेशर्मो, कहीं भी शुरू हो जाते हो ”

हम दोनो एक पल को तो चौंक ही गये थे हड़बड़ाहट मे अलग हुए तो देखा कि बड़ी मामी रसोई के दरवाजे पे खड़ी थी


मैं- मैं तो चाय पीने आया था


मामी- हाँ देख रही हूँ मैं


निशा ने सर झुका लिया


मामी- थोड़ा यहाँ वहाँ देख लिया करो मेहमानों का घर है बाकी जवान बच्चे है जो चाहे करो वैसे चाय बन रही है तो मैं भी एक कप लूँगी


मैं अपना कप लेके बाहर आया और एक कुर्सी पर बैठ गया मामी भी मेरे पास आ गयी


वो- क्या सोचा फिर तूने


मैं- किस बारे मे



वो- निशा के बारे मे


मैं- क्या सोचना है


मामी- भोला मत बन, देख सब रिश्तेदार तो आए ही हुए है तू कहे तो पंडित बुलवा के फेरे पड़वा दे


मैं- मामी अभी हम ने ऐसा सोचा नही है और वैसे भी ये सब मुझसे ना हो पाएगा मेरा जी नही करता


मामी- पर बात यहा तुम्हारी नही है बात निशा की है उसके बारे तो सोचना होगा तुम्हे


मैने मामी की तरफ देखा


मामी- देखो वो तुम्हारे साथ रहती है तुम दोनो की दोस्ती मेरे कहने का मतलब कि तुमको अगर सबसे अच्छे से कोई समझती है तो वो निशा ही है और मैं जानती हूँ कि आगे भी तुमको साथ ही रहना है तो शादी कर लो उस से


मैं जानती हूँ कि तुम्हारा मन नही करता पर दुनिया क्या कहेगी कल को अब हम तो चलो समझते है पर गाँव-बस्ती है और लोग है हम किसी का मूह तो बंद नही कर सकते ना अब सामने तो नही पीठ-पीछे तो लोग कुछ ना कुछ कहेंगे ही


दरअसल बात निशा के सम्मान की है जो तुम्हे उसे देना ही होगा हम सब चाहते है कि वो बस तुमहरि दोस्त ना रहे बल्कि हमारी बहू बन कर रहे इस से उसका फॅमिली मे भी आदर होगा


मुझे कुछ नही पता बस हमें निशा हमारी बहू के रूप मे चाहिए हम सबकी यही चाहत है अब शादी मे भीड़ भाड़ रोनक नही चाहिए तो कोई बात नही एक सिंपल सा प्रोग्राम कर लेते है जैसा तुम चाहो वैसे पर बेटे निशा को उसका हक तुम्हे देना ही होगा


मामी का कहा हर लफ्ज़ सच्चा था निशा ने कभी मुझसे कुछ माँगा नही था पर उसका ख्याल रखना मेरी ज़िम्मेदारी थी


मैं- करता हूँ कुछ मामी जल्दी ही


कल कुआँ पूजन था तो बाकी का दिन काम करने मे गया मेहमानो की खातिर दारी हलवाई को देखना कभी बाज़ार जाना मैं आया और सीधा तैयार होने के लिए चला गया

और जैसे ही मैं कमरे मे गया तो देखा कि निशा ने वो ही जोड़ा पहना हुआ है जो मैने उसके लिए खरीदा था उसने मुझे देखा तो बोली- पहन कर देख रही थी

जब मैने उसे उस जोड़े मे देखा तो दिल मे गड़गाहट सी हो गयी निशा उस जोड़े मे इतनी खूबसूरत लग रही थी उसके कमर तक आते खुले हुए बाल उसके बदन से वो पर्फ्यूम की हल्की सी जो खुसबु आ रही थी उसने अपने माथे पर जो माँग टीका लगाया था


कसम से मैं जैसे हो सा ही गया था उसकी वो डोरियो वाली चोली मैं बस उसके पास गया और बोला- बहुत खूबसूरत लग रही हो तुम

वो मुस्कुराइ


उसने हाथो मे जो चूड़िया पहनी थी पूरी कलाईयों को भर लिया था उसने मेरा दिल जोरो से धड़क रहा था उसका तो पता नहीपर मेरा होश खोने लगा था जिंदगी मे पहली बार मैने महसूस किया कि निशा एक बदल बन जाए और बरस पड़े मुझ पर और भिगो दे मुझे किसी बंजर ज़मीन की तरह वो बस किसी बिजली की तरह गिर जाए मुझ पर और जला दे मुझे किसी आभूषण की तरफ खनकाने को तो बहुत कुछ था मेरे पास पर शायद दिल ने इजाज़त नही दी


मैने बस उसे अपने आगोश मे समेट लिया और उसके नर्म होंठो को खुद से जोड़ लिया इस से पहले वो मुझे कुछ कहती मैने जाकड़ लिया उसको ये हमारा दूसरा किस था मैं बस उसके होंठो को फील कर रहा था मैं उसकी सांसो की गहराई मे उतर जाना चाहता था उसको अपने दिल से महसूस करना चाहता था


मैने बस उसे अपने आगोश मे समेट लिया और उसके नर्म होंठो को खुद से जोड़ लिया इस से पहले वो मुझे कुछ कहती मैने जाकड़ लिया उसको ये हमारा दूसरा किस था मैं बस उसके होंठो को फील कर रहा था मैं उसकी सांसो की गहराई मे उतर जाना चाहता था उसको अपने दिल से महसूस करना चाहता था


ना जाने क्या सोच कर उसने खुद को मेरी बहो मे ढीला छोड़ दिया थोड़ी देर तक ऐसे ही चलता रहा फिर वो हट गयी


“सांस तो लेने दो मनीष ”

मैं- निशा मैं कुछ कहना चाहता हूँ


निशा- मैं जानती हूँ …….


मैं- निशा …………..


वो- मैं जानती हूँ तुम क्या कहना चाहते हो पर इतना जान लेना कि मैं तुम्हारी ज़रूरत ना बन जाऊ

“तुम मेरी ज़रूरत नही हो निशा ”

“तो कौन हूँ मैं क्या हूँ मैं क्या मैं ख्वाब हूँ या तस्सवुर हूँ या मैं कुछ भी नही ”

“पहली तो पता नही पर आज तुम मेरी ख्वाहिश हो तुम वो डर हो जहाँ मैं बार बार आना चाहूँगा , तुम हो तो मैं हूँ बस इतना जानता हूँ ”

“वो क्या करोगे मुझे अपनी ख्वाहिश बना कर जब तुम खुद किसी का ख्वाब हो और ख्वाब अक्सर आँख खोलते ही बिखर जाया करते है ”

“मैं किसी का ख्वाब नही बल्कि शतरंज के खेल का हारा हुआ राजा हूँ ”
“तुम तुम हो तो क्या तुम हुए ”
“तुम्हे तो सब पता है ना ”
“तभी तो कह रही हूँ कि मैं तुम्हारी ज़रूरत नही हूँ ”
“हाँ, तुम मेरी ज़रूरत नही हो ”
“तो क्या हूँ मैं तुम्हारी बता क्यो नही देते ”
“क्या सुन ना चाहती हो तुम निशा ”
“कुछ नही बस ढूँढ रही हूँ खुद को अंधेरी गलियों मे और रोशनी है कि कुछ दिखाई देता नही ”
“अगर मैं कहूँ मुझे तुमसे ……… ’
“मनीष, तुम बहुत कच्चे हो मैं जब भी तुम्हारे बारे मे सोचती हूँ मेरी आँखो के सामने जैसे एक बच्चा आ जाता है पर किसी पतंग की डोर की तरह उलझे हो तुम ”

“और कौन सुलझाएगा इस डोर को ”

“कोई तो होगा जिसे तुम्हारी नज़रें देख नही पा रही है ”

“मैं क्या बताऊ क्या मेरे दिल मे है आँसू भी मेरा है और दिल भी मेरा है मैं कैसे जीता हूँ निशा बस मैं जानता हूँ मेरा कोई वजूद नही उसके बिना मैं जानता हूँ कि तुम भी मेरी हो पर निशा वो भी तो ………. ”

“मैं समझती हूँ मनीष, पर जीना तो होगा ना मैने पहले भी कहा है कि तुम उसको भी दुख दे रहे हो वो क्या सोचती होगी जब तुम्हे यूँ देखती होगी मैं जानती हूँ कि तुम कभी उसको नही भूल पाओगे और उसको भूल जाना भी नही पर मैं फस गयी हूँ ”

“तुम ही तो हो मेरे पास ”

“कुछ बातों को तुम नही समझते हो ”

“तुम समझाती भी तो नही हो ना ”

“इतने नासमझ भी नही हो तुम ”

“निशा मैं इशारे नही समझ पाता हूँ ”

“ तुम मुझे भी कहाँ समझ पाते हो ”ये बोल कर वो नीचे चली गयी मुझे छोड़ गयी अब कैसे कहे हम हाल-ए-दिल अपना सनम से जब उसको हमारी धड़कने सुनाई देती हो

वो मेरी ज़रूरत नही थी सच कहा था उसने पर मेरी ख्वाहिश भी तो नही थी मुझे बहुत गुस्सा आता था कभी कभी कि क्यो छोड़ गयी मुझे वो इस बीच राह मे मंदिर- मस्जिद जहाँ भी मैने सर झुकाया बस एक दुआ माँगी कि जी सकूँ उसके साथ उसकी बाहों मे सोना चाहता था – उसके साथ हसना उसके साथ रोना चाहता था


कोई बहुत बड़ी चीज़ नही माँगी थी मैने दुआ मे और ऐसी भी ना थी कि जो पूरी ना होसके फिर क्या कमी रही मेरी मुहब्बत मे या मेरी दुआ मे जो किसी ने भी कबूल नही किया मैं दोष नही दे रहा किसी को पर साला अजीब लगता है जब खुद को अपनो के बीच अकेला पाता हूँ कहने को तो मेरे होंठो पर एक मुस्कान है फिर क्यो मेरे सीने मे आग लगी है
मितलेश मेरा नूर थी तो निशा मेरी परछाई थी उसका कहना कुछ भी ग़लत नही था पर हम करे तो क्या करे वो भी अपनी और दर्द भी अपना वो लाख कोशिश करती थी मेरे दिल पर मरहम लगाने की पर मैं खुद कुरेदता था अपने जख़्मो को
खैर, नीचे आया तो रोनक लगी थी महफ़िल सजी थी आज तो जम के धमाल होना था तभी मैने देखा कि रुक्मणी भी आई थी ओह उसको तो आना ही था
मैं उस से मिला
रुक्मणी- मनीष, कैसे हो तुम हमें तो भूल ही गये हो कितना टाइम हुआ ना कोई फोन ना कुछ
मैं- थोड़ा सा बिज़ी था अब तुम्हे तो सब पता ही है
वो- एक मिनिट किसी से मिलावाती हूँ
मैं- कौन
वो- आओ तो सही इनसे मिलो मेरे हब्बी सुधीर
हम ने हेलो किया कुछ बाते हुई अच्छा इंसान लगा मुझे
मैं- तुमने शादी कब की
वो- तुम कॉंटॅक्ट रखो तो कुछ पता चले तुम्हे
मैं- वैसे अच्छा ही है लाइफ मे सेट्ल तो होना ही है
वो- हाँ पर तुम कब सेट्ल हो रहे हो
मैं- जल्दी ही हो जाउन्गा और बताओ
वो- बस बढ़िया जयपुर मे हूँ अभी
मैं- क्या बात कर रही हो मैं अभी तो आया जयपुर से
वो- कब
मैं- जस्ट कुछ दिन पहले
वो- तो फिर आओ हम सिविल लाइन्स मे रहते है
मैं- पक्का
तभी निशा भी आ गई
रुक्मणी- कौन है
मैं- दोस्त है
वो- गर्लफ्रेंड
मैं- उस से ज़्यादा
वो- वाउ मनीष तुम तो छुपे रुस्तम निकले
मैने निशा को रुक्मणी से मिलवाया
तभी निशा को मामी ने बुला लिया
रुक्मणी- चूक मत शादी कर ले
मैं- सोच तो रहा हूँ
वो- सोच मत पगले कब तक भागता रहेगा अपने आप से अब तो रुक जा
मैं- डर लगता है
वो- डर कैसा
मैं- पता नही
वो- कुछ ना होता अच्छा मैं मिलती हूँ थोड़ा कपड़े वग़ैरा चेंज कर लूँ
मैं-ओके
उसके बाद मैं बड़े लोगो के कमरे मे गया पेग सेग लग रहे थे तो मैने भी एक बॉटल उठा ली और बाहर आ गया
मामी- शुरू हो गया तुम लोगो का
मैं- वो तो किसी को देनी थी
वो- रहने दे सब समझती हूँ मैं
मैं- भाई कहाँ है
वो- होगा यही कही
मैं- मिले तो बोलना मैं उधर हूँ
मैं एक कुर्सी पर बैठ गया और गिलास मे थोड़ी दारू डाली और पीने लगा तभी पापा आ निकले उस साइड तो मेरे लिए थोड़ी शर्मिंदगी हो गयी मैने बॉटल को छुपाया तो बोले- रहने दे बेटा शरम तो आँखो की होती है फ़ौजी पेग नही लगाएग तो कौन लगाएगा चल मेरा भी मूड है एक मेरा भी बना
मैने उनको सीप दिया
पापा- आज कल दारू भी पहले जैसी नही रही
मैं हुम्म
वो-यार एक बात बोलनी थी तुझसे बुरा ना माने तो बोलू
मैं- जी
वो- यार तेरे बिना ना घर मे रोनक नही लगती
मैं- मैं, जानता हूँ आप क्या कहना चाहते है , मैं हर चीज़ समझता हूँ , वहाँ से घर जाते ही मैं मम्मी से बात करूँगा और पूरी कोशिश करूँगा कि सब ठीक हो जाए.

पापा- मेरी भी ये ही चाहत है.

रत करीब दो बजे मैं निशा के साथ चौबारे की छत पर लेटा हुआ था. आँखो मे नींद का नामो निशान नही था. दिल निशा से कुछ कहना चाहता था पर समझ नही आ रहा था कि कैसे कहूँ, क्या कहूँ क्योंकि हमारी हर बात आजकल अधूरी ही रह जाती थी

निशा- नींद नही आ रही क्या

मैं- तुम भी तो नही सोई

निशा- मेरा क्या है और वैसे भी नींद पर किसी का ज़ोर तो है नही, ये तो जब आए तब आए.

मैं- सुबह होते ही हम गाँव के लिए निकल रहे है.



निशा मेरे थोड़ा पास आते हुए – मैने सोचा तुम और रुकोगे यहाँ.

मैं- नही, अभी चलते है दो तीन दिन गाँव रुक कर फिर देल्ही निकल लेंगे.

निशा- कभी कभी मैं तुमको समझ नही पाती हूँ.

मैं- मैं भी.

मैने निशा के माथे पर एक किस किया और बोला- सो जा निशा.

उसने अपना सर मेरे सीने पर रखा और आँखो को बंद कर लिया , चाँदनी रात मे निशा आज कुछ अलग सी ही लग रही थी , क्या ये जिस्म की ज़रूरत थी या मैं सच मे ही उसकी ओर खींचा चला जा रहा था , पर जो भी था अब निशा के सिवा मेरा और था भी तो कौन. कुछ ठंड सी लग रही थी तो मैने एक चादर हम दोनो के उपर डाल ली और सो गया.

सुबह हम तैयार हो चुके थे, तो मैं बस सबको बाइ बोल रहा था कि अशोक भाई और रीना भाभी मेरे पास आए .

भाभी- मनीष, उस बात पे गौर करना जो मैने तुमसे कही थी.

मैं- किस बारे मे भाभी.

भाभी- निशा के बारे मे , स्टुपिड. तुम चाहे मानो या ना मानो पर मैं जानती हूँ निशा ही वो लड़की है जो तुम्हे थाम सकेगी, क्योंकि उस से बेहतर तुम्हे कोई नही समझता , जैसे तुम्हे महसूस कर लेती है वो और सबसे बड़ी बात तुमसे प्यार करती है वो.

भाई- देखो, कुछ चीज़ो से हम लाख कॉसिश कर ले लेकिन भाग नही सकते हमे बस जीना होता है , वैसे तो हम फ़ौज़ियो की ज़िंदगी की डोर का कुछ पता नही पर जितना भी जीने को मिले राज़ी खुशी जी लो यार, चलो अपना मत सोचो पर जब भी तुम्हारी रूह मिथ्लेश से मिलेगी वो बस तुमसे एक सवाल पूछेगी- कि मैं तो अपनी तमाम मुस्कुराहटें तुम्हे सौंप गयी थी , तब क्या कहोगे उस से. नियती से कब तक भगॉगे और फिर निशा जैसी सुलझी हुई लड़की तुम्हे कहाँ मिलेगी, बाकी करो जो करना है हम होते ही कौन है .

मैं- ऐसा क्यो कहते हो भाई, मैं कोशिश तो कर रहा हूँ ना.

भाई- एक बार निशा के दिल को टटोल कर देखो, तुम्हे कोशिश नही करनी पड़ेगी.

भाई और भाभी बहुत देर तक मुझे समझाते रहे, वो ये भी चाहते थे कि मैं कुछ दिन और रुक जाउ पर मुझे तो जाना ही था तो सब लोगो से विदा लेकर मैं और निशा गाँव के लिए चल दिए. पहुचते पहुचते शाम हो गयी थी. चाय-नाश्ता किया निशा घर पर ही रुक गयी और मैं चाची के साथ खेतो की तरफ आ गया.
चाची ने कमरे का ताला खोला और चारपाई बाहर निकाल ली.

मैं- टाइम कितना बदल गया ना.

चाची- हाँ, ऐसे लगता है जैसे बस कल ही की बात है. जैसे कल तक तुम ऐसे ही बेफ़िक्रे इन खेत खलिहानो मे घुमा करते थे, शराराते किया करते थे.

मैं- हाँ, चाची मुझे सब की बहुत याद आती है, अब अपने पैरो पे खड़ा तो हो गया हूँ पर फिर भी सच कहूँ तो काश एक बार फिर वो वक़्त आ जाए तो , मैं एक बार फिर से उसी वक़्त को , उसी अंदाज को , उसी बेफकरी मे जीना चाहता हूँ.

चाची- वक़्त बदल गया है मनीष अब कुछ नही पहले जैसा यहाँ तक कि हम भी तो बदल गये है, खैर मैं कुछ काम निपटा लूँ, तुम चाहो तो थोड़ा आराम करो या फिर आस पास घूम लो .

मैं भी उठ कर थोड़ा आगे को चल दिया, जैसे एक मुद्दत ही हो गयी थी मैं इस तरफ आया ही नही था. हमारे खेतो से थोड़ा आगे सेर मे एक बड़ा सा नीम का पेड़ होता था जिस की छाया मे बहुत समय गुज़रा था मेरा, एक बार फिर से उस नीम को देख कर बहुत अच्छा लगा मुझे. पास ही एक पानी की टंकी होती थी जो अब नही थी, शायद रोड को पक्का करने मे उसे यहाँ से हटा दिया गया था. ऐसा लगता था कि जैसे जमाना एक तेज रफ़्तार से आगे बढ़ गया था और मैं आज भी अपनी उसी बारहवी क्लास वाले साल मे अटका हुआ था.

वो दिन भी क्या दिन थे, मेरा अतीत मुझ पर हावी होने लगा था. मेरे अंदर का जो आवारापन था , जैसे मैं कोई बंजारा था जो बस भटक रहा था इधर उधर. पर मैने सोचा कि एक बार फिर अपने पुराने दिनो की याद को ताज़ा करना है, मैने सोचा कि कल सुबह ही निशा को लेकर निकल जाउन्गा और पूरा दिन बस घूमना है, तमाम उन चीज़ो को एक बार फिर से देखना है जो आज भी मेरा इंतज़ार कर रही थी.

उसके बाद मैं वापिस कुँए पर आ गया. चाची मेरा इंतज़ार कर रही थी.

चाची- कहाँ चले गये थे.

मैं- बस थोड़ा आगे तक.

मैं- चाची, एक बात कहूँ.

चाची- हाँ,

मैं- दोगि क्या.
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RE: हार तरफ चुत हि चुत (BIG & HOT STORY) - by Pagol premi - 06-12-2020, 11:42 AM



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