06-12-2020, 11:27 AM
भाभी- देखो मैने भी सुबह से कुछ नही खाया है अगर तुम नही खाओगे तो मैं भी नही खाउन्गी ऐसे ही भूखी ही सो जाउन्गी अगर तुम्हारी यही ज़िद है तो मेरी भी यही ज़िद है
अब मैं क्या कहूँ उनसे मैं जानता था वो जो कर रही थी मेरे लिए ही कर रही थी पर मुझे समझे ना कोई तोड़ लिए दो चार टुकड़े उनके साथ आलू के परान्ठे मुझे हमेशा से ही बहुत पसंद थे पर सिर्फ़ मेरी मम्मी के हाथ के ही पर अब वो होना नही था और इधर मेरा जी भी नही लगता था तो मैने वापिस देल्ही जाने का सोचा
मैं सीधा अपने कमरे मे आया और अपना समान डालने लगा
“मुझे बता तो देते तो मैं भी अपनी पॅकिंग कर लेती ”
“मैने सोचा तुम कुछ दिन और रुकोगी
”
“हाँ, रुकती तो सही पर अगर तुम ने वापिस चलने का सोचा है तो फिर चलते है मैं भी पॅकिंग कर लेती हूँ
”
रात के करीब 1 बजे थे , मैं और निशा घर से निकले सब लोग सो रहे थे मैने जगाना ठीक नही समझा चुपचाप गाड़ी स्टार्ट की और चल दिए रास्ते मे वो मोड़ आया जो सीधा मिता के घर तक जाता था मैने कुछ देर के लिए गाड़ी रोक दी पर कितना रुकता मैं आँखो मे एक झलक भरी और फिर चल दिए देल्ही के लिए सब पीछे रह गया था सफ़र तो चल रहा था पर मैं उसी मोड़ पर रह गया था
मेरा गाँव मेरा परिवार मेरे अपने लोग मेरी आँखो मे कुछ आँसू थे जो अब सुख चुके थे ज़िंदगी कहती है कि खुल के जियो पर जिए तो कैसे जिए इन हालातों मे मैने निशा की तरफ़ देखा खिड़की खोल रखी थी उसने ठंडी हवा उसके गालो को चूम चूम के जा रही थी अपने सर को टिकाए सीट पर वो कुछ सोच रही थी
मैं- क्या सोच रही हो
वो- हमें ऐसे बिना बताए नही आना चाहिए था
मैं- बताने से भी क्या हो जाता
वो- अपने परिवार से दूर मत भागो तुम
मैं- वहाँ कौन है जो मुझे समझता है
वो- हम सब को फिकर है तुम्हारी
बाते करते करते देल्ही आ गये हम थोड़ा सा थक सा गया था तो सो गया आँख खुली तो देखा कि वो मेरे पास ही सो रही थी मुझसे चिपक के मेरा हाथ उसके सर के नीचे था मैने निकाला नही कही उसकी नींद ना टूट जाए एक बालो की लट जो उसके चेहरे पर आ गयी थी हौले से हटाया मैने,निशा ये कौन लगती थी मेरी सच कहूँ तो सब कुछ थी मेरी बस ऐसे ही दोस्ती की थी इस से कभी पर अब देखो वो क्या थी मेरे लिए
कुछ देर बाद वो उठी , मैने लेटे रहने को कहा उसके पास होने से अच्छा लग रहा था मुझे वो मुझसे और चिपक गयी
वो- कॉफी पियोगे
मैं- चाय
वो- बनाती हूँ
वो उठी तो मैं भी उठ गया वैसे तो दोपहर का टाइम हो रहा था पर अभी उठे थे तो चाय बनती थी निशा चाय बना रही थी तो मुझे उसकी कलाई दिखी एक दम कोरी खाली तो मुझे फिर कुछ याद आया मैं कमरे मे कुछ खोजने लगा और फिर मुझे वो चीज़ मिल ही गयी ये कंगन थे जो पद्मियनी भाभी ने मुझे दिए थे मिथ्लेश के लिए पर ऐसी मेरी किस्मत थी कहाँ
मैं वापिस गया रसोई मे- निशा ज़रा अपने हाथ आगे करो
वो- किसलिए
मैं- करो तो सही यार
जैसे ही उसने अपने हाथ आगे किए मैने वो कंगन उसे पहनाने लगा
वो- क्या कर रहे हो
मैं- एक तोहफा है तुम्हारे लिए
वो- जानते हो क्या कर रहे हो
मैं- जानता हूँ
वो- मनीष,………….
मैं- चुप रहो अब इतना तो हक है ना तुमपे कि तुमहरे लिए कुछ कर सकूँ
वो- हक … मेरा सब कुछ तुम्हारा ही है मनीष
उसकी कलाईयों मे वो कंगन देख कर दिल को सुकून सा लगा अच्छा लगा निशा ने मुझे गले से लगा लिया फिर हम ने चाय पी कुछ छोटे मोटे काम किए कल से ज़िंदगी को वापिस पटरी पे लाने की कोशिस करनी थी मुझे एजेंसी जाना था और उसे बॅंक , ज़िंदगी का एक दिन और बीत गया था ऐसे ही
अगले दिन
मैं- तुम्हे ड्रॉप कर दूं बॅंक
वो- नही मैं मेट्रो से जाती हूँ तुम कार ले जाओ
मैं- नही , तुम गाड़ी ले जाओ
रोड पे आके मैने ऑटो लिया और बताई उसको अपनी मंज़िल बॉस मुझे देख के खुश था उसने कुछ दिन डेस्कजॉब करने को ही कहा वो भी जानते थे कि अभी मैं फील्ड मे जाने लायक नही काम मे पता ही नही चला कि कब रात हो गयी तो अब चलना ही था मैं वहाँ से चला पर घर जाने का मूड नही था तो एक बॉटल ले ली और बैठ गया ऐसे ही पता ही नही चला कि कब बॉटल आधी से ज़्यादा हो गयी
“कितना पियोगे मेरे फ़ौजी मेंटल घर नही जाना क्या ”
मैने देखा वो खड़ी थी थोड़ी दूर फिर आई और मेरे पास बैठ गयी
मैं-घर है ही कहाँ मेरा
वो- कब तक नाराज़ रहोगे
मैं- अब नाराज़ भी ना रहूं , तुमने अच्छा नही किया मेरे साथ
वो- मैं कहाँ दूर हूँ तुमसे, देखो पास ही तो हूँ तुम्हारे
मैं- तो फिर क्यो चली गयी तुम दूर
वो- ताकि फिर से तुम्हारे पास आ सकूँ
मैं- मुझे दुखी देख खुशी हुई तुम्हे
वो- मैं भी कहा सुखी हूँ देखो , जब तक तुम खुश नही तो भला मैं कैसे खुश रहूंगी
मैं- तो फिर क्यो नही आ जाती वापिस
वो- आ तो गयी हूँ क्या मैं तुमहरे साथ नही हूँ
मैं- बाते ना बनाओ
वो- तुमसे ही सीखा है , मैं कुछ कहना चाहती हूँ तुमसे
मैं- कहो
वो- देखो, निशा अच्छी लड़की है बहुत प्रेम करती है तुमसे और फिर उसका कौन है तुम्हारे सिवा उसका हाथ थाम लो
मैं- पर तुम जानती हो मेरी हर सांस तुम्हारी ही है
वो- वो भी तुम्हारी ही है ज़रा एक बार देखो तो सही वो क्यो ही तुम्हारे लिए क्योंकि वो प्यार करती है तुमसे
मैं- और मैं तुमसे जो हक तुम्हारा है वो मैं कैसे उस से …..
वो- मेरी खातिर
वो मुस्कुरई अब उस क्या जवाब देता मैं क्या कहता मैं
वो- सोचो ज़रा मेरी यही इच्छा है कि तुम निशा से शादी कर लो और मुझे पूरा विशवास है तुम मेरी ये इच्छा भी पूरी करोगे
अब मैं क्या कहता उसको उसने अपना फ़ैसला सुना दिया था अब मैं कहूँ भी तो क्या उसको पर इतना ज़रूर था कि वो दूर होकर भी मेरे पास ही थी बहुत पास शायद मेरे दिल मे मेरी धड़कनो मे
मैं जब घर आया तो रात बहुत बीत गयी थी पर निशा दरवाज़ पे ही बैठी थी मेरे इंतज़ार मे मुझे देख कर उसको थोड़ी तसल्ली हुई मेरे बॅग को साइड मे रखा मैं भी उसके पास ही बैठ गया
वो- आज देर हो गयी
मैं- हाँ
वो-खाना खाओगे
मैं- तुमने खाया
वो- तुम्हारे बिना कैसे खाती
मैं- हाँ फिर ले आओ यही खाते है
कुछ देर बाद वो दो थालिया ले आई उसको अपने पास देख के मैं बहुत अच्छा फील करता था वैसे मुझे भूख नही थी पर अगर मैं नही ख़ाता तो वो भी नही खाती तो फिर मैने भी कुछ नीवाले खा लिए , उसने बर्तन समेटे मैं भी अंदर आ गया कुछ देर बाद वो मेरे पास आ बैठी
मैं- जानती हो निशा, जब तुम दूर थी मैं बहुत याद करता था तुम कहाँ हो किस हाल मे हो, मैं तुम्हे याद हूँ भी या नही
वो- तुम्हे कैसे भूल सकती थी मैं आज जो हूँ तुम्हारे कारण हूँ मैं
मैं- नही रे पगली , तेरी अपनी मेहनत है मैं क्या था एक आवारा जिसकी ना कोई मंज़िल थी ना कोई ठिकाना पर फिर तुम वो दोस्त बनकर मेरी जिंदगी मे आई जिसका हमेशा से मुझे इंतज़ार था और फिर ज़िंदगी बदल गयी कितना कुछ सीखा है तुमसे वो दिन भी क्या दिन थे बस ज़ी तो तभी ही लिए थे अब तो बस सांसो का बोझ ढो रहे है , वो छोटी छोटी बाते कितनी खुशियाँ देती थी दो रोटी थोड़ी सी सिल्वट पर पिसी हुई लाल मिर्च और एक गिलास लस्सी मे ही अपना पेट भर जाता था
और वो जलेबिया जो तुम लाया करती थी क्या महक आती थी उनमे से अब वो कहाँ , निशा जब तुम पानी भरने मंदिर के नलके पे आती थी मैं तुम्हे देखता था कसम से जैसे ही तुम्हारी इन हिरनी जैसी आँखो से आँखे मिलते ही पता नही क्या हो जाता था बस वो दो पल की मुलाकात ही होंठो को मुस्कुराने की एक वजह दे जाती थी
वो- और तुम जो अपने दोस्तो के साथ उल्जुलुल हरकते करते थे जैसे ही मैं आती कितना इतराते थे तुम कितने गंदे लगते थे तुम जब तुम अपने बालो को जेल लगाते थे और उस दिन जब तुम कीचड़ मे फिसल कर गिरे थे कितना हँसी थी मैं
मैं-वो तो मैं तुम्हे इंप्रेस करने के चक्कर मे गिर गया था पर कुछ भी कहो वो भी क्या दिन थे
वो- हाँ ये तो है
मैं- और वो तो बेस्ट था जब जयपुर मे तुम टल्ली होकर सड़क पर घूम रही थी और फिर उल्टी कर दी थी तुमने
वो- तुम्हे याद है वो
मैं- वो कोई भूलने की बात थोड़ी ना है
वो- पता है उसके बाद मैने फिर कभी नही पी
मैं- क्या बात कर रही हो
वो- कसम से
मैं- चल आज फिर आजा एक बार फिर घूमते है रोड पर टल्ली होके
वो- ना बाबा ना अब बात अलग है
मैं- क्या अलग है वो ही तुम हो वो ही मैं हूँ
वो- कही फिर टल्ली ना हो जाउ
मैं- तब भी संभाला था आज भी संभाल लूँगा
वो – एक बात पुछु
मैं- दो पूछ ले यारा
वो- चल जाने दे फिर कभी पूछूंगी मैं बॉटल लाती हूँ
मैं और निशा टुन्न हो चुके थे पूरी तरह से कभी हँस रहे थे कभी रो रहे थे जी रहे थे अपनी यादो मे , बस ये यादे ही तो थी जो अपनी थी मैने निशा की छोटी के रिब्बन को निकाल दिया हमेशा से ही मुझे लड़किया या औरते बस खुले बालो मे ही अच्छी लगती थी
वो- ये क्या किया
मैं- ऐसे ही अच्छी लगती हो तुम
वो- मनीष , तुम यार सच मे ही अजीब हो
मैं- हाँ सब तुम्हारा ही असर है
वो- अच्छा जी और मुझ पर जो ये रंग चढ़ा है ये किसका है
मैं- मुझे क्या पता
वो- तो किसे पता
मैं- तुम जानो
तभी वो थोड़ा सा लड़खड़ाई मैने उसकी कमर मे हाथ डाला और उसको अपनी बाहों मे थाम लिया उसकी छातिया आ लगी मेरे सीने से उसकी साँस मेरे चेहरे को छू गयी वो लहराने लगी मेरी बाहों मे हल्की सी जुल्फे उसके चेहरे पर आ गयी थी मैने उन लटो को सुलझाया उसकी धड़कानों को मैने अपने सीने मे महसूस किया
मैं- देख के चल अभी गिर जाती
वो- तुम जो हो संभालने के लिए
मैं- वो तो है
उसकी गरम साँसे मेरी सांसो को दहका रही थी मैने उसकी कमर को और थोड़ा सा खींच हम एक दूसरे की आँखो मे देख रहे थे उसके होंठ जैसे सूख से गये थे इस से पहले कि वो कुछ कहती मैने धीरे से अपने होंठो से उसके होंठो को छू लिया अगले ही पल उसकी आँखे बंद हो गयी सांसो से साँसे जुड़ गयी वो मेरी बाहों मे ढीली सी पड़ गयी मैं धीरे धीरे से उसको किस करने लगा कुछ देर बाद वो अलग हुई
उसकी गरम साँसे मेरी सांसो को दहका रही थी मैने उसकी कमर को और थोड़ा सा खींच हम एक दूसरे की आँखो मे देख रहे थे उसके होंठ जैसे सूख से गये थे इस से पहले कि वो कुछ कहती मैने धीरे से अपने होंठो से उसके होंठो को छू लिया अगले ही पल उसकी आँखे बंद हो गयी सांसो से साँसे जुड़ गयी वो मेरी बाहों मे ढीली सी पड़ गयी मैं धीरे धीरे से उसको किस करने लगा कुछ देर बाद वो अलग हुई
हम दोनो रोड पर ही बैठ गये, उसने मेरे हाथ को अपने हाथ मे लिया और बोली- मनीष एक बात बोलू
मैं- हूँ
वो- तुझसे ना प्यार हुआ पड़ा है आज से नही बहुत पहले से पर कभी मैं तुझे बोल नही पाई पर आज सोचा बोल ही दूं यार ऐसे मन में कब तक घुट घुट कर सहूंगी मुझे पता ही नही चला कि कब मैं तुझे इतना टूट के चाहने लगी , बस हो गया यार
मैं- मुझे पहले ही पता है निशा
वो- तो फिर तूने कहा क्यो नही
मैं- तुझे भी तो पता है ना
उसने मेरी बॉटल ली और दो चार घूंठ भरे फिर बोली- यार मैं जानती हूँ कि तेरी मिथ्लेश की जगह कोई नही भर पाएगा पर मैं बस तेरे साथ ही रहना चाहती हूँ तेरे सिवा मेरा है ही कौन
मैं- और तेरे सिवा मेरा भी कौन है
नशे से वो हल्के हल्के काँप रही थी
मैं- यार डर लगता है कहीं तू भी उसकी तरह मुझे छोड़ गयी तो
वो- मुझे कहाँ जाना है
मैं- साथ रहेगी ना
वो- मरते दम तक
वो मेरे सीने से लग गयी उसकी आँखो से दो आँसू निकल कर मेरे गालो को छू गये बड़बड़ाते हुए वो कब सो गयी कुछ होश नही मैने उसे बेड पर लिटाया और उसके पास ही सो गया दारू सच मे ही कुछ ज़्यादा हो गयी थी पर मैने आँखे मींच ली इस उम्मीद मे क्या पता आने वाला कल कुछ अच्छा हो सुबह जब मैने देखा तो मामा के लड़के की काफ़ी मिस कॉल आई हुई थी तो मैने सोचा बाद मे ही कॉल कर लूँगा
नहाने जा ही रहा था कि उसका फिर से फोन आ गया
मैं- हाँ भाई
वो- अरे यार कब से कॉल कर रहा हूँ तू फोन क्यो नही उठा रहा
मैं- सो रहा था
वो- सुन बे तू चाचा बन गया है बेटा हुआ है
मैं- ये तो बहुत ही अच्छी खबर आई भाई
वो- हाँ पर सुन तू अभी घर आजा कुँआ पूजन का प्रोग्राम जल्दी ही बन गया है तो तुझे आना ही होगा और कोई बहाना नही चलेगा
मैं- तुझे तो पता ही है यार मेरा दिल नही करता
वो- मेरे भाई , तू यार हम को अपना मानता ही नही है हमेशा ऐसी ही बात करता है अरे हमारे लिए नही तो बेटे के लिए आजा देख तू नही आएगा तो फिर मैं नाराज़ हो जाउन्गा बात नही करूँगा फिर कभी
मैं- तू समझता क्यो नही यार
वो- देख तू ही तो मेरा छोटा भाई है तेरे बिना मेरी क्या खुशी यार आजा ना
मैं- चल ठीक है यारा, कल शाम तक पहुचता हूँ
ज़िंदगी के कुछ दिन और गुजर गये थे वो अपनी तरफ से पूरी कोशिश करती थी कि मेरे होंठो पर एक मुस्कान आ जाए चाहे हल्की सी ही पर मुझे पता नही क्यो खुशी होती ही नही थी कहने को तो जी रहा था पर सांसो का कुछ अता-पता था नही ऐसा नही था कि मैं निशा के बारे मे सोचता नही था हर पल उसकी फिकर रहती थी, ले देके वोही तो थी मेरी जो मिथ्लेश के बाद समझती थी मुझे कभी सोचा नही था ज़िंदगी ऐसे मुकाम पे ले आएगी हमेशा से मेरी कोई बड़ी तम्मन्ना नही थी
बस एक छोटा सा सपना देखा था मैने कि मैं और मिथ्लेश जी सके एक साथ पर गाँव की जिन गलियों मे हम जवान हुए वहाँ पर इतनी घुटन थी कि सांस लेना भी मुश्किल था और हम तो महक उठे थे मोहब्बत की खुश्बू मे पता नही कैसा रंग था उस का वो जो मुझे रंगरेज की तरह रंग गया था उसके रंग मे प्रीत ने जो डोर लगाई थी वो उलझ ज़रूर गयी थी पर टूटी नही थी ये और बात थी कि वो मुझसे आज दूर थी पर दूर होकर भी पास थी मेरे ,
इस दिल पे बस एक ही नाम था मेरी हर सांस बस मिथ्लेश ही पुकारती थी ऐसा कोई दिन नही जब उसकी याद नही आई, वो बहुत कहती थी मुझसे कि फ़ौजी कभी तुझे मेरी याद भी आती है और मैं बस इतना ही कहता था कि यार, तू इस दिल से कभी जाए तो तेरी याद आए जितने भी पल हम ने साथ जिए बहुत कीमती थे मिथ्लेश की बात ही अलग थी और लड़कियो से बस एक गुरूर सा था उसमे उसकी वो बड़ी बड़ी सी आँखे जब वो उनको गोल गोल घुमाती थी तो कसम से दिल साला कुछ ज़ोर से धड़क ही जाता था
जितना भी लिखू मैं उसके बारे मे बस वो कम ही है , खैर, उस दिन मैं और निशा रीना के घर गये थे वो जयपुर थी उन दिनो अब बहन माना था उसको तो मना भी कैसे कर पता उसको रिश्ता ही कुछ था उस से , ये जयपुर शहर से भी अपना कुछ अजीब सा रिश्ता सा बन गया था आजकल तो मामा भी यही रहने लगे थे रीना से एक अरसे से मिला भी नही था पर सच बात तो ये थी कि उसको मना भी नही कर पाया था
निशा की इच्छा थी कि ट्रेन पकड़ ले पर मैने सोचा कि कार से ही चलते है तो हम चल पड़े जयपुर की तरफ रास्ते मे कुछ सोच कर कोटपुतली रुक गये रुक्मणी की याद जो आ गयी थी उसकी शादी पे तो जा नही पाया था तो सोचा कि मिल ही लेते है पता नही क्यो पुराने लोगो की एक कमी सी महसूस करने लगा था मैं अब मम्मी के मामा का घर था तो खूब बाते हुई रुक्मणी चाहती थी कि मैं रुकु कुछ दिन पर मैने उसको फिर मिलने का वादा दिया और रात के अंधेरे मे हम लोग जयपुर आ गये
रीना बहुत खुश थी मुझे देख कर और मैं भी उसे देख कर सबसे अच्छी बात तो ये थी कि इस रिश्ते मे कोई फ़ॉर्मलिटी नही थी बस एक भाई- बहन का प्यार और हो भी क्यो ना हमारा बचपन ही कुछ ऐसा था मैने निशा के बारे मे बताया उसको अब जिकर हुआ तो पुरानी बाते भी निकलनी थी और बातों के साथ मिथ्लेश का ज़िक्र तो होना ही था पर रीना भी समझती थी उसने बातों का रुख़ दूसरी तरफ मोड़ दिया पर वो भी जानती थी कि मिथ्लेश कभी जुदा नही होगी मुझसे
फॅमिली कहने को तो ये एक वर्ड है पर समझो तो बहुत कुछ है और अपनी तो बस यही कहानी थी अपनो ने कभी अपनाया नही कुछ लोगो ने कभी ठुकराया नही दिल से अच्छा लगा थोड़ा टाइम रीना के घर पे बिताके उसका पति भी मस्त इंसान था तगड़ी जमती थी उस से कोई तीन चार दिन वहाँ रहने के बाद हम ने विदा ली उनसे पर इस शहर से कुछ यादे जुड़ी थी जिनको ताज़ा करना था मुझे पर पहले निशा को कुछ शॉपिंग करवानी थी तो हम चांदपॉल चले गये , वैसे निशा एक सिंपल लड़की थी पर मैने फ़ॉेर्स किया तो उसने जम के खरीदारी की
इसी बहाने से उसके चेहरे पर खुशी देखी मैने , पर एक बात पे मैने गौर किया कि उस शोरुम मे निशा एक ड्रेस को बहुत गौर से देख रही थी पर उसने खरीदा नही , वो फिर आगे बढ़ गयी मैं रुक गया मैने सेल्समेन से वो ही ड्रेस देखी वो एक दुल्हन का जोड़ा था और मैं उसके मन की सारी बात समझ गया बिना उसको बताए मैने वो खरीद लिया और चुपचाप छिपा के गाड़ी मे रख दिया
मैं समझता था कि हर लल्डकी का अरमान होता है कि वो दुल्हन बने निशा की भी यही इच्छा थी मैने मन ही मन कुछ सोचा और वैसे भी क्या फरक पड़ता है अब अगर हमारी वजह से अगर एक भी इंसान को ख़ुसी मिले तो बहुत बड़ी बात है ,
मैं- निशा, बियर पिएगी
वो- ना, मुझसे कंट्रोल नही होता फिर खम्खा तमाशा हो जाना है
मैं- कैसा लगा जयपुर आके
वो- अच्छा, काफ़ी टाइम गुज़रा है यहाँ तो यादे है
मैं- हा, पर कुछ बदला बदला सा लग रहा है ना
वो- परिवर्तन तो संसार का नियम है श्रीमान मनीष कुमार जी
मैं- हां जी वो तो है
निशा- वैसे तुम्हे शायद नही अशोक भाई ने तुम्हे बुलाया था और तुम यहाँ पर घूम रहे हो वो नाराज़ हो जाएँगे
मैं- ओह तेरी यार! मैं तो भूल ही गया था
निशा- तुम भूले नही थे बल्कि तुम भाग रहे हो रिश्तो से पर कब तक भागोगे मनीष एक ना एक दिन रुकना पड़ेगा
मैं चुप रहा उसने बड़ी सफाई से मेरे मन की बात पकड़ ली
वो- देखो वो लोग तुम्हारे अपने है और खुशनसीब होते है वो लोग जिनके अपने होते है मेरी बात मानो तुम्हे जाना चाहिए लोगो की खुशियो मे शामिल होने की आदत डालो सबका अपना अपना नसीब होता है अपने मे ये है तो ये ही सही
अब मैं क्या कहूँ उनसे मैं जानता था वो जो कर रही थी मेरे लिए ही कर रही थी पर मुझे समझे ना कोई तोड़ लिए दो चार टुकड़े उनके साथ आलू के परान्ठे मुझे हमेशा से ही बहुत पसंद थे पर सिर्फ़ मेरी मम्मी के हाथ के ही पर अब वो होना नही था और इधर मेरा जी भी नही लगता था तो मैने वापिस देल्ही जाने का सोचा
मैं सीधा अपने कमरे मे आया और अपना समान डालने लगा
“मुझे बता तो देते तो मैं भी अपनी पॅकिंग कर लेती ”
“मैने सोचा तुम कुछ दिन और रुकोगी
”
“हाँ, रुकती तो सही पर अगर तुम ने वापिस चलने का सोचा है तो फिर चलते है मैं भी पॅकिंग कर लेती हूँ
”
रात के करीब 1 बजे थे , मैं और निशा घर से निकले सब लोग सो रहे थे मैने जगाना ठीक नही समझा चुपचाप गाड़ी स्टार्ट की और चल दिए रास्ते मे वो मोड़ आया जो सीधा मिता के घर तक जाता था मैने कुछ देर के लिए गाड़ी रोक दी पर कितना रुकता मैं आँखो मे एक झलक भरी और फिर चल दिए देल्ही के लिए सब पीछे रह गया था सफ़र तो चल रहा था पर मैं उसी मोड़ पर रह गया था
मेरा गाँव मेरा परिवार मेरे अपने लोग मेरी आँखो मे कुछ आँसू थे जो अब सुख चुके थे ज़िंदगी कहती है कि खुल के जियो पर जिए तो कैसे जिए इन हालातों मे मैने निशा की तरफ़ देखा खिड़की खोल रखी थी उसने ठंडी हवा उसके गालो को चूम चूम के जा रही थी अपने सर को टिकाए सीट पर वो कुछ सोच रही थी
मैं- क्या सोच रही हो
वो- हमें ऐसे बिना बताए नही आना चाहिए था
मैं- बताने से भी क्या हो जाता
वो- अपने परिवार से दूर मत भागो तुम
मैं- वहाँ कौन है जो मुझे समझता है
वो- हम सब को फिकर है तुम्हारी
बाते करते करते देल्ही आ गये हम थोड़ा सा थक सा गया था तो सो गया आँख खुली तो देखा कि वो मेरे पास ही सो रही थी मुझसे चिपक के मेरा हाथ उसके सर के नीचे था मैने निकाला नही कही उसकी नींद ना टूट जाए एक बालो की लट जो उसके चेहरे पर आ गयी थी हौले से हटाया मैने,निशा ये कौन लगती थी मेरी सच कहूँ तो सब कुछ थी मेरी बस ऐसे ही दोस्ती की थी इस से कभी पर अब देखो वो क्या थी मेरे लिए
कुछ देर बाद वो उठी , मैने लेटे रहने को कहा उसके पास होने से अच्छा लग रहा था मुझे वो मुझसे और चिपक गयी
वो- कॉफी पियोगे
मैं- चाय
वो- बनाती हूँ
वो उठी तो मैं भी उठ गया वैसे तो दोपहर का टाइम हो रहा था पर अभी उठे थे तो चाय बनती थी निशा चाय बना रही थी तो मुझे उसकी कलाई दिखी एक दम कोरी खाली तो मुझे फिर कुछ याद आया मैं कमरे मे कुछ खोजने लगा और फिर मुझे वो चीज़ मिल ही गयी ये कंगन थे जो पद्मियनी भाभी ने मुझे दिए थे मिथ्लेश के लिए पर ऐसी मेरी किस्मत थी कहाँ
मैं वापिस गया रसोई मे- निशा ज़रा अपने हाथ आगे करो
वो- किसलिए
मैं- करो तो सही यार
जैसे ही उसने अपने हाथ आगे किए मैने वो कंगन उसे पहनाने लगा
वो- क्या कर रहे हो
मैं- एक तोहफा है तुम्हारे लिए
वो- जानते हो क्या कर रहे हो
मैं- जानता हूँ
वो- मनीष,………….
मैं- चुप रहो अब इतना तो हक है ना तुमपे कि तुमहरे लिए कुछ कर सकूँ
वो- हक … मेरा सब कुछ तुम्हारा ही है मनीष
उसकी कलाईयों मे वो कंगन देख कर दिल को सुकून सा लगा अच्छा लगा निशा ने मुझे गले से लगा लिया फिर हम ने चाय पी कुछ छोटे मोटे काम किए कल से ज़िंदगी को वापिस पटरी पे लाने की कोशिस करनी थी मुझे एजेंसी जाना था और उसे बॅंक , ज़िंदगी का एक दिन और बीत गया था ऐसे ही
अगले दिन
मैं- तुम्हे ड्रॉप कर दूं बॅंक
वो- नही मैं मेट्रो से जाती हूँ तुम कार ले जाओ
मैं- नही , तुम गाड़ी ले जाओ
रोड पे आके मैने ऑटो लिया और बताई उसको अपनी मंज़िल बॉस मुझे देख के खुश था उसने कुछ दिन डेस्कजॉब करने को ही कहा वो भी जानते थे कि अभी मैं फील्ड मे जाने लायक नही काम मे पता ही नही चला कि कब रात हो गयी तो अब चलना ही था मैं वहाँ से चला पर घर जाने का मूड नही था तो एक बॉटल ले ली और बैठ गया ऐसे ही पता ही नही चला कि कब बॉटल आधी से ज़्यादा हो गयी
“कितना पियोगे मेरे फ़ौजी मेंटल घर नही जाना क्या ”
मैने देखा वो खड़ी थी थोड़ी दूर फिर आई और मेरे पास बैठ गयी
मैं-घर है ही कहाँ मेरा
वो- कब तक नाराज़ रहोगे
मैं- अब नाराज़ भी ना रहूं , तुमने अच्छा नही किया मेरे साथ
वो- मैं कहाँ दूर हूँ तुमसे, देखो पास ही तो हूँ तुम्हारे
मैं- तो फिर क्यो चली गयी तुम दूर
वो- ताकि फिर से तुम्हारे पास आ सकूँ
मैं- मुझे दुखी देख खुशी हुई तुम्हे
वो- मैं भी कहा सुखी हूँ देखो , जब तक तुम खुश नही तो भला मैं कैसे खुश रहूंगी
मैं- तो फिर क्यो नही आ जाती वापिस
वो- आ तो गयी हूँ क्या मैं तुमहरे साथ नही हूँ
मैं- बाते ना बनाओ
वो- तुमसे ही सीखा है , मैं कुछ कहना चाहती हूँ तुमसे
मैं- कहो
वो- देखो, निशा अच्छी लड़की है बहुत प्रेम करती है तुमसे और फिर उसका कौन है तुम्हारे सिवा उसका हाथ थाम लो
मैं- पर तुम जानती हो मेरी हर सांस तुम्हारी ही है
वो- वो भी तुम्हारी ही है ज़रा एक बार देखो तो सही वो क्यो ही तुम्हारे लिए क्योंकि वो प्यार करती है तुमसे
मैं- और मैं तुमसे जो हक तुम्हारा है वो मैं कैसे उस से …..
वो- मेरी खातिर
वो मुस्कुरई अब उस क्या जवाब देता मैं क्या कहता मैं
वो- सोचो ज़रा मेरी यही इच्छा है कि तुम निशा से शादी कर लो और मुझे पूरा विशवास है तुम मेरी ये इच्छा भी पूरी करोगे
अब मैं क्या कहता उसको उसने अपना फ़ैसला सुना दिया था अब मैं कहूँ भी तो क्या उसको पर इतना ज़रूर था कि वो दूर होकर भी मेरे पास ही थी बहुत पास शायद मेरे दिल मे मेरी धड़कनो मे
मैं जब घर आया तो रात बहुत बीत गयी थी पर निशा दरवाज़ पे ही बैठी थी मेरे इंतज़ार मे मुझे देख कर उसको थोड़ी तसल्ली हुई मेरे बॅग को साइड मे रखा मैं भी उसके पास ही बैठ गया
वो- आज देर हो गयी
मैं- हाँ
वो-खाना खाओगे
मैं- तुमने खाया
वो- तुम्हारे बिना कैसे खाती
मैं- हाँ फिर ले आओ यही खाते है
कुछ देर बाद वो दो थालिया ले आई उसको अपने पास देख के मैं बहुत अच्छा फील करता था वैसे मुझे भूख नही थी पर अगर मैं नही ख़ाता तो वो भी नही खाती तो फिर मैने भी कुछ नीवाले खा लिए , उसने बर्तन समेटे मैं भी अंदर आ गया कुछ देर बाद वो मेरे पास आ बैठी
मैं- जानती हो निशा, जब तुम दूर थी मैं बहुत याद करता था तुम कहाँ हो किस हाल मे हो, मैं तुम्हे याद हूँ भी या नही
वो- तुम्हे कैसे भूल सकती थी मैं आज जो हूँ तुम्हारे कारण हूँ मैं
मैं- नही रे पगली , तेरी अपनी मेहनत है मैं क्या था एक आवारा जिसकी ना कोई मंज़िल थी ना कोई ठिकाना पर फिर तुम वो दोस्त बनकर मेरी जिंदगी मे आई जिसका हमेशा से मुझे इंतज़ार था और फिर ज़िंदगी बदल गयी कितना कुछ सीखा है तुमसे वो दिन भी क्या दिन थे बस ज़ी तो तभी ही लिए थे अब तो बस सांसो का बोझ ढो रहे है , वो छोटी छोटी बाते कितनी खुशियाँ देती थी दो रोटी थोड़ी सी सिल्वट पर पिसी हुई लाल मिर्च और एक गिलास लस्सी मे ही अपना पेट भर जाता था
और वो जलेबिया जो तुम लाया करती थी क्या महक आती थी उनमे से अब वो कहाँ , निशा जब तुम पानी भरने मंदिर के नलके पे आती थी मैं तुम्हे देखता था कसम से जैसे ही तुम्हारी इन हिरनी जैसी आँखो से आँखे मिलते ही पता नही क्या हो जाता था बस वो दो पल की मुलाकात ही होंठो को मुस्कुराने की एक वजह दे जाती थी
वो- और तुम जो अपने दोस्तो के साथ उल्जुलुल हरकते करते थे जैसे ही मैं आती कितना इतराते थे तुम कितने गंदे लगते थे तुम जब तुम अपने बालो को जेल लगाते थे और उस दिन जब तुम कीचड़ मे फिसल कर गिरे थे कितना हँसी थी मैं
मैं-वो तो मैं तुम्हे इंप्रेस करने के चक्कर मे गिर गया था पर कुछ भी कहो वो भी क्या दिन थे
वो- हाँ ये तो है
मैं- और वो तो बेस्ट था जब जयपुर मे तुम टल्ली होकर सड़क पर घूम रही थी और फिर उल्टी कर दी थी तुमने
वो- तुम्हे याद है वो
मैं- वो कोई भूलने की बात थोड़ी ना है
वो- पता है उसके बाद मैने फिर कभी नही पी
मैं- क्या बात कर रही हो
वो- कसम से
मैं- चल आज फिर आजा एक बार फिर घूमते है रोड पर टल्ली होके
वो- ना बाबा ना अब बात अलग है
मैं- क्या अलग है वो ही तुम हो वो ही मैं हूँ
वो- कही फिर टल्ली ना हो जाउ
मैं- तब भी संभाला था आज भी संभाल लूँगा
वो – एक बात पुछु
मैं- दो पूछ ले यारा
वो- चल जाने दे फिर कभी पूछूंगी मैं बॉटल लाती हूँ
मैं और निशा टुन्न हो चुके थे पूरी तरह से कभी हँस रहे थे कभी रो रहे थे जी रहे थे अपनी यादो मे , बस ये यादे ही तो थी जो अपनी थी मैने निशा की छोटी के रिब्बन को निकाल दिया हमेशा से ही मुझे लड़किया या औरते बस खुले बालो मे ही अच्छी लगती थी
वो- ये क्या किया
मैं- ऐसे ही अच्छी लगती हो तुम
वो- मनीष , तुम यार सच मे ही अजीब हो
मैं- हाँ सब तुम्हारा ही असर है
वो- अच्छा जी और मुझ पर जो ये रंग चढ़ा है ये किसका है
मैं- मुझे क्या पता
वो- तो किसे पता
मैं- तुम जानो
तभी वो थोड़ा सा लड़खड़ाई मैने उसकी कमर मे हाथ डाला और उसको अपनी बाहों मे थाम लिया उसकी छातिया आ लगी मेरे सीने से उसकी साँस मेरे चेहरे को छू गयी वो लहराने लगी मेरी बाहों मे हल्की सी जुल्फे उसके चेहरे पर आ गयी थी मैने उन लटो को सुलझाया उसकी धड़कानों को मैने अपने सीने मे महसूस किया
मैं- देख के चल अभी गिर जाती
वो- तुम जो हो संभालने के लिए
मैं- वो तो है
उसकी गरम साँसे मेरी सांसो को दहका रही थी मैने उसकी कमर को और थोड़ा सा खींच हम एक दूसरे की आँखो मे देख रहे थे उसके होंठ जैसे सूख से गये थे इस से पहले कि वो कुछ कहती मैने धीरे से अपने होंठो से उसके होंठो को छू लिया अगले ही पल उसकी आँखे बंद हो गयी सांसो से साँसे जुड़ गयी वो मेरी बाहों मे ढीली सी पड़ गयी मैं धीरे धीरे से उसको किस करने लगा कुछ देर बाद वो अलग हुई
उसकी गरम साँसे मेरी सांसो को दहका रही थी मैने उसकी कमर को और थोड़ा सा खींच हम एक दूसरे की आँखो मे देख रहे थे उसके होंठ जैसे सूख से गये थे इस से पहले कि वो कुछ कहती मैने धीरे से अपने होंठो से उसके होंठो को छू लिया अगले ही पल उसकी आँखे बंद हो गयी सांसो से साँसे जुड़ गयी वो मेरी बाहों मे ढीली सी पड़ गयी मैं धीरे धीरे से उसको किस करने लगा कुछ देर बाद वो अलग हुई
हम दोनो रोड पर ही बैठ गये, उसने मेरे हाथ को अपने हाथ मे लिया और बोली- मनीष एक बात बोलू
मैं- हूँ
वो- तुझसे ना प्यार हुआ पड़ा है आज से नही बहुत पहले से पर कभी मैं तुझे बोल नही पाई पर आज सोचा बोल ही दूं यार ऐसे मन में कब तक घुट घुट कर सहूंगी मुझे पता ही नही चला कि कब मैं तुझे इतना टूट के चाहने लगी , बस हो गया यार
मैं- मुझे पहले ही पता है निशा
वो- तो फिर तूने कहा क्यो नही
मैं- तुझे भी तो पता है ना
उसने मेरी बॉटल ली और दो चार घूंठ भरे फिर बोली- यार मैं जानती हूँ कि तेरी मिथ्लेश की जगह कोई नही भर पाएगा पर मैं बस तेरे साथ ही रहना चाहती हूँ तेरे सिवा मेरा है ही कौन
मैं- और तेरे सिवा मेरा भी कौन है
नशे से वो हल्के हल्के काँप रही थी
मैं- यार डर लगता है कहीं तू भी उसकी तरह मुझे छोड़ गयी तो
वो- मुझे कहाँ जाना है
मैं- साथ रहेगी ना
वो- मरते दम तक
वो मेरे सीने से लग गयी उसकी आँखो से दो आँसू निकल कर मेरे गालो को छू गये बड़बड़ाते हुए वो कब सो गयी कुछ होश नही मैने उसे बेड पर लिटाया और उसके पास ही सो गया दारू सच मे ही कुछ ज़्यादा हो गयी थी पर मैने आँखे मींच ली इस उम्मीद मे क्या पता आने वाला कल कुछ अच्छा हो सुबह जब मैने देखा तो मामा के लड़के की काफ़ी मिस कॉल आई हुई थी तो मैने सोचा बाद मे ही कॉल कर लूँगा
नहाने जा ही रहा था कि उसका फिर से फोन आ गया
मैं- हाँ भाई
वो- अरे यार कब से कॉल कर रहा हूँ तू फोन क्यो नही उठा रहा
मैं- सो रहा था
वो- सुन बे तू चाचा बन गया है बेटा हुआ है
मैं- ये तो बहुत ही अच्छी खबर आई भाई
वो- हाँ पर सुन तू अभी घर आजा कुँआ पूजन का प्रोग्राम जल्दी ही बन गया है तो तुझे आना ही होगा और कोई बहाना नही चलेगा
मैं- तुझे तो पता ही है यार मेरा दिल नही करता
वो- मेरे भाई , तू यार हम को अपना मानता ही नही है हमेशा ऐसी ही बात करता है अरे हमारे लिए नही तो बेटे के लिए आजा देख तू नही आएगा तो फिर मैं नाराज़ हो जाउन्गा बात नही करूँगा फिर कभी
मैं- तू समझता क्यो नही यार
वो- देख तू ही तो मेरा छोटा भाई है तेरे बिना मेरी क्या खुशी यार आजा ना
मैं- चल ठीक है यारा, कल शाम तक पहुचता हूँ
ज़िंदगी के कुछ दिन और गुजर गये थे वो अपनी तरफ से पूरी कोशिश करती थी कि मेरे होंठो पर एक मुस्कान आ जाए चाहे हल्की सी ही पर मुझे पता नही क्यो खुशी होती ही नही थी कहने को तो जी रहा था पर सांसो का कुछ अता-पता था नही ऐसा नही था कि मैं निशा के बारे मे सोचता नही था हर पल उसकी फिकर रहती थी, ले देके वोही तो थी मेरी जो मिथ्लेश के बाद समझती थी मुझे कभी सोचा नही था ज़िंदगी ऐसे मुकाम पे ले आएगी हमेशा से मेरी कोई बड़ी तम्मन्ना नही थी
बस एक छोटा सा सपना देखा था मैने कि मैं और मिथ्लेश जी सके एक साथ पर गाँव की जिन गलियों मे हम जवान हुए वहाँ पर इतनी घुटन थी कि सांस लेना भी मुश्किल था और हम तो महक उठे थे मोहब्बत की खुश्बू मे पता नही कैसा रंग था उस का वो जो मुझे रंगरेज की तरह रंग गया था उसके रंग मे प्रीत ने जो डोर लगाई थी वो उलझ ज़रूर गयी थी पर टूटी नही थी ये और बात थी कि वो मुझसे आज दूर थी पर दूर होकर भी पास थी मेरे ,
इस दिल पे बस एक ही नाम था मेरी हर सांस बस मिथ्लेश ही पुकारती थी ऐसा कोई दिन नही जब उसकी याद नही आई, वो बहुत कहती थी मुझसे कि फ़ौजी कभी तुझे मेरी याद भी आती है और मैं बस इतना ही कहता था कि यार, तू इस दिल से कभी जाए तो तेरी याद आए जितने भी पल हम ने साथ जिए बहुत कीमती थे मिथ्लेश की बात ही अलग थी और लड़कियो से बस एक गुरूर सा था उसमे उसकी वो बड़ी बड़ी सी आँखे जब वो उनको गोल गोल घुमाती थी तो कसम से दिल साला कुछ ज़ोर से धड़क ही जाता था
जितना भी लिखू मैं उसके बारे मे बस वो कम ही है , खैर, उस दिन मैं और निशा रीना के घर गये थे वो जयपुर थी उन दिनो अब बहन माना था उसको तो मना भी कैसे कर पता उसको रिश्ता ही कुछ था उस से , ये जयपुर शहर से भी अपना कुछ अजीब सा रिश्ता सा बन गया था आजकल तो मामा भी यही रहने लगे थे रीना से एक अरसे से मिला भी नही था पर सच बात तो ये थी कि उसको मना भी नही कर पाया था
निशा की इच्छा थी कि ट्रेन पकड़ ले पर मैने सोचा कि कार से ही चलते है तो हम चल पड़े जयपुर की तरफ रास्ते मे कुछ सोच कर कोटपुतली रुक गये रुक्मणी की याद जो आ गयी थी उसकी शादी पे तो जा नही पाया था तो सोचा कि मिल ही लेते है पता नही क्यो पुराने लोगो की एक कमी सी महसूस करने लगा था मैं अब मम्मी के मामा का घर था तो खूब बाते हुई रुक्मणी चाहती थी कि मैं रुकु कुछ दिन पर मैने उसको फिर मिलने का वादा दिया और रात के अंधेरे मे हम लोग जयपुर आ गये
रीना बहुत खुश थी मुझे देख कर और मैं भी उसे देख कर सबसे अच्छी बात तो ये थी कि इस रिश्ते मे कोई फ़ॉर्मलिटी नही थी बस एक भाई- बहन का प्यार और हो भी क्यो ना हमारा बचपन ही कुछ ऐसा था मैने निशा के बारे मे बताया उसको अब जिकर हुआ तो पुरानी बाते भी निकलनी थी और बातों के साथ मिथ्लेश का ज़िक्र तो होना ही था पर रीना भी समझती थी उसने बातों का रुख़ दूसरी तरफ मोड़ दिया पर वो भी जानती थी कि मिथ्लेश कभी जुदा नही होगी मुझसे
फॅमिली कहने को तो ये एक वर्ड है पर समझो तो बहुत कुछ है और अपनी तो बस यही कहानी थी अपनो ने कभी अपनाया नही कुछ लोगो ने कभी ठुकराया नही दिल से अच्छा लगा थोड़ा टाइम रीना के घर पे बिताके उसका पति भी मस्त इंसान था तगड़ी जमती थी उस से कोई तीन चार दिन वहाँ रहने के बाद हम ने विदा ली उनसे पर इस शहर से कुछ यादे जुड़ी थी जिनको ताज़ा करना था मुझे पर पहले निशा को कुछ शॉपिंग करवानी थी तो हम चांदपॉल चले गये , वैसे निशा एक सिंपल लड़की थी पर मैने फ़ॉेर्स किया तो उसने जम के खरीदारी की
इसी बहाने से उसके चेहरे पर खुशी देखी मैने , पर एक बात पे मैने गौर किया कि उस शोरुम मे निशा एक ड्रेस को बहुत गौर से देख रही थी पर उसने खरीदा नही , वो फिर आगे बढ़ गयी मैं रुक गया मैने सेल्समेन से वो ही ड्रेस देखी वो एक दुल्हन का जोड़ा था और मैं उसके मन की सारी बात समझ गया बिना उसको बताए मैने वो खरीद लिया और चुपचाप छिपा के गाड़ी मे रख दिया
मैं समझता था कि हर लल्डकी का अरमान होता है कि वो दुल्हन बने निशा की भी यही इच्छा थी मैने मन ही मन कुछ सोचा और वैसे भी क्या फरक पड़ता है अब अगर हमारी वजह से अगर एक भी इंसान को ख़ुसी मिले तो बहुत बड़ी बात है ,
मैं- निशा, बियर पिएगी
वो- ना, मुझसे कंट्रोल नही होता फिर खम्खा तमाशा हो जाना है
मैं- कैसा लगा जयपुर आके
वो- अच्छा, काफ़ी टाइम गुज़रा है यहाँ तो यादे है
मैं- हा, पर कुछ बदला बदला सा लग रहा है ना
वो- परिवर्तन तो संसार का नियम है श्रीमान मनीष कुमार जी
मैं- हां जी वो तो है
निशा- वैसे तुम्हे शायद नही अशोक भाई ने तुम्हे बुलाया था और तुम यहाँ पर घूम रहे हो वो नाराज़ हो जाएँगे
मैं- ओह तेरी यार! मैं तो भूल ही गया था
निशा- तुम भूले नही थे बल्कि तुम भाग रहे हो रिश्तो से पर कब तक भागोगे मनीष एक ना एक दिन रुकना पड़ेगा
मैं चुप रहा उसने बड़ी सफाई से मेरे मन की बात पकड़ ली
वो- देखो वो लोग तुम्हारे अपने है और खुशनसीब होते है वो लोग जिनके अपने होते है मेरी बात मानो तुम्हे जाना चाहिए लोगो की खुशियो मे शामिल होने की आदत डालो सबका अपना अपना नसीब होता है अपने मे ये है तो ये ही सही