19-03-2019, 06:11 PM
(This post was last modified: 08-04-2021, 10:04 AM by komaalrani. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
देह के रंग
मेरे उत्तेजित शिश्न को पकड़ के भी-
“इसे क्यों छिपा रहे हो, यहाँ भी तो रंग लगाना है या इसे दीदी की ननद के लिए छोड़ रखा है…”
आगे पीछे करके सुपाड़े का चमड़ा सरका के उसने फिर तो… लाल गुस्साया सुपाड़ा, खूब मोटा…
तेल भी लगाया उसने।
आले पर रखा कड़ुआ (सरसों) तेल भी उठा लाई वो।
अनाड़ी तो अभी भी था मैं, पर उतना शर्मीला नहीं।
कुछ भाभी की छेड़छाड़ और खुली खुली बातों ने, फिर मेडिकल की पहली साल की रैगिंग जो हुई
और अगले साल जो हम लोगों ने करवाई।
“पिचकारी तो अच्छी है पर रंग वंग है कि नहीं, और इस्तेमाल करना जानते हो…
तेरी बहनों ने कुछ सिखाया भी है कि नहीं…”
उसकी छेड़छाड़ भरे चैलेंज के बाद…
उसे नीचे लिटा के मैं सीधे उसकी गोरी-गोरी मांसल किशोर जाँघों के बीच… लेकिन था तो मैं अनाड़ी ही।
उसने अपने हाथ से पकड़ के छेद पे लगाया और अपनी टाँगें खुद फैलाकर मेरे कंधे पर।
मेडिकल का स्टूडेंट इतना अनाड़ी भी नहीं था, दोनों निचले होंठों को फैलाकर मैंने पूरी ताकत से कस के, हचक के पेला…
उसकी चीख निकलते-निकलते रह गई।
कस के उसने दाँतों से अपने गुलाबी होंठ काट लिए।
एक पल के लिए मैं रुका, लेकिन मुझे इतना अच्छा लग रहा था।
रंगों से लिपी पुती वो मेरे नीचे लेटी थी।
उसकी मस्त चूचियों पे मेरे हाथ के निशान…
मस्त होकर एक हाथ मैंने उसके रसीले जोबन पे रखा और दूसरा कमर पे
और एक खूब करारा धक्का मारा।
“उईईई माँ…” रोकते-रोकते भी उसकी चीख निकल गई।
लेकिन अब मेरे लिए रुकना मुश्किल था।
दोनों हाथों से उसकी पतली कलाईयों को पकड़ के हचाक… धक्का मारा। एक के बाद एक… वो तड़प रही थी, छटपटा रही थी।
उसके चेहरे पे दर्द साफ झलक रहा था।
“उईईई माँ ओह्ह… बस… बस्सस्स…” वह फिर चीखी।
अबकी मैं रुक गया। मेरी निगाह नीचे गई तो मेरा 7” इंच का लण्ड आधे से ज्यादा उसकी कसी कुँवारी चूत में…
और खून की बूँदें…
अभी भी पानी से बाहर निकली मछली की तरह उसकी कमर तड़प रही थी। मैं रुक गया।
उसे चूमते हुए, उसका चेहरा सहलाने लगा। थोड़ी देर तक रुका रहा मैं।
उसने अपनी बड़ी-बड़ी आँखें खोलीं। अभी भी उसमें दर्द तैर रहा था-
“हे रुक क्यों गए… करो ना, थक गए क्या?”
“नहीं, तुम्हें इतना दर्द हो रहा था और… वो खून…”
मैंने उसकी जाँघों की ओर इशारा किया।
“बुद्धू… तुम रहे अनाड़ी के अनाड़ी… अरे कुँवारी… अरे पहली बार किसी लड़की के साथ होगा तो दर्द तो होगा ही…
और खून भी निकलेगा ही…”
कुछ देर रुक के वो बोली-
“अरे इसी दर्द के लिए तो मैं तड़प रही थी, करो ना, रुको मत… चाहे खून खच्चर हो जाए,
चाहे मैं दर्द से बेहोश हो जाऊँ… मेरी सौगंध…”
और ये कह के उसने अपनी टाँगें मेरे चूतड़ों के पीछे कैंची की तरह बांध के कस लिया और जैसे कोई घोड़े को एंड़ दे…
मुझे कस के भींचती हुई बोली-
“पूरा डालो ना, रुको मत… ओह… ओह… हाँ बस… ओह्ह… डाल दो अपना लण्ड, चोद दो मुझे कस के…”
बस उसके मुँह से ये बात सुनते ही मेरा जोश दूना हो गया और उसकी मस्त चूचियां पकड़ के
कस-कस के मैं सब कुछ भूल के चोदने लगा।
साथ में अब मैं भी बोल रहा था-
“ले रानी ले, अपनी मस्त रसीली चूत में मेरा मोटा लण्ड ले ले… आ रहा है ना मजा होली में चुदाने का…”
“हाँ राजा, हाँ ओह्ह… ओह्ह… चोद… चोद मुझे… दे दे अपने लण्ड का मजा ओह…”
देर तक वो चुदती रही, मैं चोदता रहा। मुझसे कम जोश उसमें नहीं था।
पास से फाग और चौताल की मस्त आवाज गूंज रही थी।
अंदर रंग बरस रहा था, होली का, तन का, मन का… चुनर वाली भीग रही थी।
हम दोनों घंटे भर इसी तरह एक दूसरे में गुथे रहे और जब मेरी पिचकारी से रंग बरसा…
तो वह भीगती रही, भीगती रही। साथ में वह भी झड़ रही थी, बरस रही थी।
थक कर भी हम दोनों एक दूसरे को देखते रहे,
उसके गुलाबी रतनारे नैनों की पिचकारी का रंग बरस-बरस कर भी चुकने का नाम नहीं ले रहा था।
उसने मुश्कुरा के मुझे देखा, मेरे नदीदे प्यासे होंठ, कस के चूम लिया मैंने उसे… और फिर दुबारा।
मैं तो उसे छोड़ने वाला नहीं था लेकिन जब उसने रात में फिर मिलने का वादा किया,
अपनी सौगंध दी तो मैंने छोड़ा उसे। फिर कहाँ नींद लगने वाली थी।
नींद चैन सब चुरा के ले गई थी चुनर वाली।
कुछ देर में वो, भाभी और उनकी सहेलियों की हँसती खिलखिलाती टोली के साथ लौटी।
सब मेरे पीछे पड़ी थीं कि मैंने किससे डलवा लिया और सबसे आगे वो थी… चिढ़ाने में।
मैं किससे चुगली करता कि किसने लूट लिया… भरी दुपहरी में मुझे।
मेरे उत्तेजित शिश्न को पकड़ के भी-
“इसे क्यों छिपा रहे हो, यहाँ भी तो रंग लगाना है या इसे दीदी की ननद के लिए छोड़ रखा है…”
आगे पीछे करके सुपाड़े का चमड़ा सरका के उसने फिर तो… लाल गुस्साया सुपाड़ा, खूब मोटा…
तेल भी लगाया उसने।
आले पर रखा कड़ुआ (सरसों) तेल भी उठा लाई वो।
अनाड़ी तो अभी भी था मैं, पर उतना शर्मीला नहीं।
कुछ भाभी की छेड़छाड़ और खुली खुली बातों ने, फिर मेडिकल की पहली साल की रैगिंग जो हुई
और अगले साल जो हम लोगों ने करवाई।
“पिचकारी तो अच्छी है पर रंग वंग है कि नहीं, और इस्तेमाल करना जानते हो…
तेरी बहनों ने कुछ सिखाया भी है कि नहीं…”
उसकी छेड़छाड़ भरे चैलेंज के बाद…
उसे नीचे लिटा के मैं सीधे उसकी गोरी-गोरी मांसल किशोर जाँघों के बीच… लेकिन था तो मैं अनाड़ी ही।
उसने अपने हाथ से पकड़ के छेद पे लगाया और अपनी टाँगें खुद फैलाकर मेरे कंधे पर।
मेडिकल का स्टूडेंट इतना अनाड़ी भी नहीं था, दोनों निचले होंठों को फैलाकर मैंने पूरी ताकत से कस के, हचक के पेला…
उसकी चीख निकलते-निकलते रह गई।
कस के उसने दाँतों से अपने गुलाबी होंठ काट लिए।
एक पल के लिए मैं रुका, लेकिन मुझे इतना अच्छा लग रहा था।
रंगों से लिपी पुती वो मेरे नीचे लेटी थी।
उसकी मस्त चूचियों पे मेरे हाथ के निशान…
मस्त होकर एक हाथ मैंने उसके रसीले जोबन पे रखा और दूसरा कमर पे
और एक खूब करारा धक्का मारा।
“उईईई माँ…” रोकते-रोकते भी उसकी चीख निकल गई।
लेकिन अब मेरे लिए रुकना मुश्किल था।
दोनों हाथों से उसकी पतली कलाईयों को पकड़ के हचाक… धक्का मारा। एक के बाद एक… वो तड़प रही थी, छटपटा रही थी।
उसके चेहरे पे दर्द साफ झलक रहा था।
“उईईई माँ ओह्ह… बस… बस्सस्स…” वह फिर चीखी।
अबकी मैं रुक गया। मेरी निगाह नीचे गई तो मेरा 7” इंच का लण्ड आधे से ज्यादा उसकी कसी कुँवारी चूत में…
और खून की बूँदें…
अभी भी पानी से बाहर निकली मछली की तरह उसकी कमर तड़प रही थी। मैं रुक गया।
उसे चूमते हुए, उसका चेहरा सहलाने लगा। थोड़ी देर तक रुका रहा मैं।
उसने अपनी बड़ी-बड़ी आँखें खोलीं। अभी भी उसमें दर्द तैर रहा था-
“हे रुक क्यों गए… करो ना, थक गए क्या?”
“नहीं, तुम्हें इतना दर्द हो रहा था और… वो खून…”
मैंने उसकी जाँघों की ओर इशारा किया।
“बुद्धू… तुम रहे अनाड़ी के अनाड़ी… अरे कुँवारी… अरे पहली बार किसी लड़की के साथ होगा तो दर्द तो होगा ही…
और खून भी निकलेगा ही…”
कुछ देर रुक के वो बोली-
“अरे इसी दर्द के लिए तो मैं तड़प रही थी, करो ना, रुको मत… चाहे खून खच्चर हो जाए,
चाहे मैं दर्द से बेहोश हो जाऊँ… मेरी सौगंध…”
और ये कह के उसने अपनी टाँगें मेरे चूतड़ों के पीछे कैंची की तरह बांध के कस लिया और जैसे कोई घोड़े को एंड़ दे…
मुझे कस के भींचती हुई बोली-
“पूरा डालो ना, रुको मत… ओह… ओह… हाँ बस… ओह्ह… डाल दो अपना लण्ड, चोद दो मुझे कस के…”
बस उसके मुँह से ये बात सुनते ही मेरा जोश दूना हो गया और उसकी मस्त चूचियां पकड़ के
कस-कस के मैं सब कुछ भूल के चोदने लगा।
साथ में अब मैं भी बोल रहा था-
“ले रानी ले, अपनी मस्त रसीली चूत में मेरा मोटा लण्ड ले ले… आ रहा है ना मजा होली में चुदाने का…”
“हाँ राजा, हाँ ओह्ह… ओह्ह… चोद… चोद मुझे… दे दे अपने लण्ड का मजा ओह…”
देर तक वो चुदती रही, मैं चोदता रहा। मुझसे कम जोश उसमें नहीं था।
पास से फाग और चौताल की मस्त आवाज गूंज रही थी।
अंदर रंग बरस रहा था, होली का, तन का, मन का… चुनर वाली भीग रही थी।
हम दोनों घंटे भर इसी तरह एक दूसरे में गुथे रहे और जब मेरी पिचकारी से रंग बरसा…
तो वह भीगती रही, भीगती रही। साथ में वह भी झड़ रही थी, बरस रही थी।
थक कर भी हम दोनों एक दूसरे को देखते रहे,
उसके गुलाबी रतनारे नैनों की पिचकारी का रंग बरस-बरस कर भी चुकने का नाम नहीं ले रहा था।
उसने मुश्कुरा के मुझे देखा, मेरे नदीदे प्यासे होंठ, कस के चूम लिया मैंने उसे… और फिर दुबारा।
मैं तो उसे छोड़ने वाला नहीं था लेकिन जब उसने रात में फिर मिलने का वादा किया,
अपनी सौगंध दी तो मैंने छोड़ा उसे। फिर कहाँ नींद लगने वाली थी।
नींद चैन सब चुरा के ले गई थी चुनर वाली।
कुछ देर में वो, भाभी और उनकी सहेलियों की हँसती खिलखिलाती टोली के साथ लौटी।
सब मेरे पीछे पड़ी थीं कि मैंने किससे डलवा लिया और सबसे आगे वो थी… चिढ़ाने में।
मैं किससे चुगली करता कि किसने लूट लिया… भरी दुपहरी में मुझे।