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Adultery हर ख्वाहिश पूरी की
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बाबूजी ने अपनी आँखें खोल कर चाची की ओर देखा और बोले – जा रही हो…?

चाची ने कोई जबाब नही दिया, वो अपने पल्लू को अपने दाँतों से चबाती रही…फिर कुच्छ सोच कर वो दरवाजे की तरफ बढ़ गयी…,

बाबूजी ने अपनी आँखें बंद कर ली……

चाची ने दरवाजे के पास पहुँच कर बाहर नज़र डाली, फिर धीरे से उसे अंदर से बंद करके कुण्डी लगा दी, और वापस बाबूजी की चारपाई के पास आकर खड़ी रही…

वो अपनी आँखें बंद किए हुए सोने की कोशिश कर रहे थे, उनका लंड भी अब धीरे - 2 सोने की कोशिश कर रहा था, कि तभी…..

चाची आहिस्ता से चारपाई पर बैठ गयी… और उन्होने उनके लंड को कस कर अपनी मुट्ठी में जकड लिया…

बेचारा अभी सही से बैठा भी नही था, कि फिरसे खड़ा होना पड़ा…..

बाबूजी ने झटके से अपनी आँखें खोल दी… और वो उनकी तरफ देखने लगे…
क्या हुआ प्रभा…गयी नही…? बाबूजी बोले…

वो उनके लंड की तरफ इशारा करते हुए बोली – आपके इसने मुझे जाने ही नही दिया जेठ जी… मुझे अब इसकी ज़रूरत है…देंगे ना ?

बाबूजी – तुम्हारी मर्ज़ी… जब इसने तुम्हें रोक ही लिया है… तो फिर लेलो…

इतना सुनते ही चाची ने उनका पाजामा खोल दिया, और उसे अपने हाथ में लेकर मुठियाने लगी… वो फिरसे फन उठाने लगा…

बाबूजी का मस्त तगड़ा लंड देख कर चाची की चूत, जो पहले ही पनिया गयी थी… और ज़ोर से बहने लगी, उन्होने उसे अपने मूह में भर लिया…

बाबूजी ने भी उनके कड़क मोटे-2 चुचों पर कब्जा जमा लिया और लगे मीँजने…
अहह…. जेठ जी धीरे मसलो……

कुच्छ ही देर में कमरे में तूफान सा आगया, दोनो के कपड़े बदन से अलग होकर एक तरफ को पड़े थे…

फिर चाची अपनी पतली सी कमर और मोटी गान्ड लेकर बाबूजी के लंड पर बैठती चली गयी…

अपने होठों को मजबूती से कस कर धीरे – 2 वो पूरे 9” के सोट को अपनी चूत में घोंट गयी..और हान्फ्ते हुए बोली….

हइईई……..दैयाआअ……जेठ जी कितना तगड़ा लंड है आपका… अब तक कहाँ छुपा रखा था…?

हइई…रामम्म….. कितना अंदर तक चला गया… और वो धीरे – 2 उसके उपर उठक बैठक करने लगी…

बाबूजी भी उनकी पतली कमर को अपने हाथों में जकड कर नीचे से धक्का मारते हुए बोले….

अरे प्रभा रनीईइ… ये तो यहीं था मेरे पास, तुम ही अपनी मुनिया रानी को घूँघट में छुपाये थी…. !

ससिईईईईई….आअहह….जेठ जी….अबतक इस पर किसी और का कब्जा था, तो मे क्या कर्तीईइ…उउउहह…..

आअहह…..प्रभा…सच में तुम्हारी चूत बड़ी लाजबाब है, मेरा लंड एकदम कस गया है… उस मादरचोद चंपा का तो भोसड़ा बन चुका है….

बाबूजी के मोटे तगड़े सोट की कुटाई, चाची की ओखली ज़्यादा देर तक नही झेल पाई…

और वो अपने मुलायम गोल-2 चुचियों को बाबूजी की बालों भारी चौड़ी छाती से रगड़ती हुई झड़ने लगी…

उनके कड़क कांचे जैसे निप्प्लो के घर्षण से बाबूजी भी उत्तेजना की चरम सीमा तक पहुँच गये….

एक लंबी सी हुंकार मारते हुए उन्होने नीचे से चाची को उपर उछाल दिया और अपनी मलाई से उनकी ओखली को भर दिया……

कुच्छ देर का रेस्ट लेकर वो दोनो फिरसे एक बार जीवन आनद में लौट गये, और अपनी जिंदगी भर का चुदाई का अनुभव एक दूसरे के साथ अजमाते हुए… चुदाई में लीन हो गये…

उस दिन के बाद चाची बाबूजी के लंड की दीवानी हो चुकी थी… मौका लगते ही वो उसे अपनी गरम चूत में डलवाकर खूब मस्ती करती….

इस तरह से बाबूजी को एक नयी चूत का स्वाद मिल गया था, और चाची को नये लंड के साथ – 2 कुच्छ मदद….. !

उधर बड़े चाचा और चाची जल भुन रहे थे, उनकी मज़े से आरहि कमाई जो बंद हो गयी थी,

यही नही, आने वाले समय में पानी और बगीचे वाली राहत भी बंद होने वाली थी…

लेकिन वो अब तक काफ़ी पैसा बाबूजी से ऐंठ चुके थे, तो हाल फिलहाल उनपर कोई असर पड़ने वाला नही था…लेकिन अब चाची का भी ज़्यादातर समय खेतों में ही गुज़रता था…

घर पर आशा दीदी ही देख भाल करती थी.. वो और रामा दीदी इस बार ग्रॅजुयेशन फाइनल एअर के एग्ज़ॅम देने वाली थी…

बाबूजी वाली बात उनके बच्चों को पता नही थी… ! नीलू भी ग्रॅजुयेशन फाइनल में था और वो रेग्युलर शहर में रह कर पढ़ रहा था…

एक दिन मुझे कॉलेज से लौटते वक़्त आशा दीदी घर के बाहर ही मिल गयी, जो शायद हमारे घर से ही आरहि थी, मुझे देखते ही वो चहकते हुए बोली…

आशा – ओये हीरो..! कहाँ रहता है आजकल…? अब तो तेरे दर्शन ही दुर्लभ हो जाते हैं.. थोड़ा बहुत इधर भी नज़रें इनायत कर लिया करो भाई….!

मे – ऐसा कुच्छ नही है दीदी.. बस थोडा अब मेने भी घर खेती के काम में हाथ बँटाना शुरू किया है.. इसलिए थोड़ा समय कम मिलता है और कोई बात नही है…

आप बताइए… सवारी किधर से चली आरहि है..?

वो – रामा के पास गयी थी यार ! थोड़ा नोट्स बनाने थे मिलकर… चल आजा थोड़ा बैठकर गप्पें लगते हैं.. अकेली घर में बोर होती हूँ यार !

मे उनके साथ साथ उनके घर आगया… आकर उनके वरामदे में पड़े तखत पर बैठ गये,

वो मेरे साथ सट कर बैठ गयी और पालती मारकर अपना घुटना मेरी जाँघ के उपर रख लिया…

वो – छोटू ! भाई तुझे अपने साथ बिताए पुराने दिन याद आते हैं कि नही..

मे – हां ! क्या मस्ती किया करते थे, हम मिलकर एक दूसरे के साथ.. बड़ा मज़ा आता था नही..!

वो मेरे कंधे और बाजू को सहलाते हुए बोली – हूंम्म…..! फिर मेरे मसल्स को दबा कर बोली.. भाई, तेरे तो मस्त डोले-सोले बन गये है.. एकदम गबरू जवान हो गया है यार…

मे – क्या दीदी आप भी ! नज़र लगाओगी क्या मुझे..? वैसे, पहले से तो आप भी थोड़ा मस्त हो गयी हो.. उनके आमों पर नज़र डालते हुए मेने चुटकी ली…

वो मेरी नज़रों को भांपती हुई बोली – कहाँ यार, इतना भी नही हुआ है..! अच्छा एक बात बता.. तेरे कॉलेज में लड़कियाँ भी पढ़ती हैं..?

मे - हां पढ़ती तो हैं ! क्यों..?

वो मेरी आँखों में देखते हुए बोली – फिर तो लगता है.. तुझे देख कर आहें ही भरती रह जाती होंगी.. है ना ! क्योंकि तू तो किसी को घास ही नही डालता…

मे – ऐसा कुच्छ नही है..! कोई आहें बाहें नही भरती.. वैसे घास ना डालने वाली बात क्यों कही आपने…?

उसने शर्म से अपनी नज़रें झुका ली, फिर थोड़ा मेरी तरफ देख कर बोली – यहाँ भी तो तू किसी को घास नही डालता .. इसलिए कहा है..

मेने हँसते हुए कहा – यहाँ मेरी घास की किसको ज़रूरत पड़ गयी..?

वो अपने उरोजो को मेरे बाजू से सटाते हुए बोली – अगर ज़रूरत हो तो क्या मिलेगी…?

मेने उसके चेहरे की तरफ देखा, उसकी आँखों में प्रेम निमंत्रण साफ-साफ दिखाई दे रहा था..

मेने भी उसकी कमर में हाथ डालते हुए अपने से और सटाया और बोला – कोई माँगे तो सही.. मे तो डालने के लिए कब्से तैयार हूँ..

मेरी बात सुनकर आशा दीदी की आखों में चमक आगयि, और उसने सारी शर्म-झिझक छोड़ कर मेरे गले में अपनी बाहें लपेट दी,

मेने भी अपने होठों को उसकी तरफ बढ़ाया.. तो उसने झट से उन्हें चूम लिया…

गेट खुला है दीदी.. मेने उसे गेट की तरफ इशारा करते हुए कहा.. तो वो भाग कर गेट बंद करने चली गयी… इतने में मे तखत से उठ खड़ा हो गया..

वो वापस आकर मेरे गले में झूल गयी और मेरे होठों पर टूट पड़ी.. मेने भी उसके मस्त उभरे हुए कुल्हों को पकड़ कर मसल दिया..

उसकी गान्ड एकदम कड़क सॉलिड गोल-गोल, मानो दो वॉलीबॉल आपस में जोड़ दिए हों…
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RE: हर ख्वाहिश पूरी की - by nitya.bansal3 - 02-12-2020, 05:56 PM



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