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Adultery हर ख्वाहिश पूरी की
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बाबूजी चारपाई पर अपनी आँखों के उपर बाजू रख कर लेटे हुए सोने की कोशिश कर रहे थे,

दरवाजे पर आहट पाकर उन्होने अपने बाजू को हटाकर देखा तो मन्झली चाची सरपे पल्लू डाले उसका एक कोना अपने दाँतों में दबाए खड़ी थी….

बाबूजी सिरहाने की ओर खिसकते हुए बोले… आओ..आओ प्रभा…कोई काम था…?

वो – नही जेठ जी… काम तो कुच्छ नही था, बस चली आई देखने… शायद आपको किसी चीज़ की ज़रूरत हो.. तो.. पुच्छ लूँ..

इतना बोलकर वो चारपाई के नीचे बैठ गयीं…

बाबूजी – अच्छा किया, तुम आगयि…, काम तो कुच्छ नही था, अभी खाना ख़ाके लेटा ही था…

अब कोई बोल- बतलाने को तो था नही… सो लेट गया…, तुम बताओ सब ठीक ठाक से चल रहा है…?

वो – हां ! आपकी कृपा है……., लाइए आपके पैर दबा दूं.. ये कहकर वो चारपाई की तरफ सरक कर नीचे से ही उन्होने बाबूजी की पीड़लियों पर अपने हाथ रख दिए…

बाबूजी ने उनका हाथ पकड़ कर रोकने की कोशिश की, तो वो बोली – लेटे रहिए, बड़ों की सेवा करने से मुझे आशीर्वाद ही मिलेगा…

उन्होने अपना हाथ हटा लिया, और चाची उनके पैर दबाने लगी…

चारपाई थोड़ी उँची थी, और चाची ज़मीन पर अपनी गान्ड टिकाए बैठी थी, सो उन्हें हाथ आगे करके पैर दबाने में थोड़ा असुविधा हो रही थी.. तो वो बोली –

जेठ जी आप थोड़ा मेरी ओर को आ जाइए, मेरे हाथ अच्छे से पहुँच नही पा रहे..

बाबूजी खिसक कर चारपाई के किनारे तक आगये, अब चाची अच्छे से उनके पैर दबा पा रही थी…

हाथ आगे करने से चाची का आँचल उनके सीने से धलक गया, और उनकी चुचियाँ खाट की पाटी से दबने के कारण ब्लाउस से और बाहर को उभर आई,

चौड़े गले के ब्लाउस से उनके खरबूजे एक तिहाई तक दिखने लगे…

बाबूजी उनसे बातें करते हुए जब उनकी नज़र चाची की चुचियों पर पड़ी, तो वो उनकी पुश्टता को अनदेखा नही कर सके, और उनकी नज़र उनपर ठहर गयी…

अब तक उनके मन में कोई ग़लत भावना नही थी चाची के लिए, लेकिन उनकी जवानी की झलक पाते ही, उनके 9 इंची हथियार में हलचल शुरू हो गयी…और वो उनके पाजामे में सर उठाने लगा…

चाची उनके पैर दबाते – 2 जब जांघों की तरफ बढ़ने लगी, तो उनके हाथों के स्पर्श से उन्हें और ज़्यादा उत्तेजना होने लगी, अब उनका मूसल पाजामे के अंदर ठुमकाने लगा…

चाची की नज़र भी उसपर पड़ चुकी थी, और वो टक टॅकी गढ़ाए उसे देखने लगी… मूसल अपना साइज़ का अनुमान बिना अंडरवेर के पाजामे से ही दे रहा था…

हाए राम…. क्या मस्त हथियार है जेठ जी का… चाची अपने मन में ही सोचकर बुदबुदाते हुए अपनी चूत को मसल्ने लगी…

बाबूजी का लंड निरंतर अपना आकार बढ़ाता जा रहा था, जिसे देख-2 कर चाची की मुनिया गीली होने लगी…

उनकी ये हरकत कहीं उनके जेठ तो नही देख रहे, ये जानने के लिए उन्होने एक बार उनकी तरफ देखा, जो लगातार उनकी चुचियों पर नज़र गढ़ाए हुए थे…

बाबूजी को अपने सीने पर नज़र गढ़ाए देख कर उनकी नज़र अपने उभारों पर गयी, और अपनी हालत का अंदाज़ा लगते ही… वो शर्म से पानी-2 हो गयी…

अभी वो अपने आँचल को दुरुस्त करने के बारे में सोच ही रही थी.., कि फिर ना जाने क्या सोच कर वो रुक गयी, और उसके उलट अपने शरीर को उन्होने और आगे को करते हुए अपना आँचल पूरा गिरा दिया…

उनके आगे को झुकने से उनकी चुचियाँ और ज़्यादा बाहर को निकल पड़ने को हो गयी…लेकिन उन्होने शो ऐसा किया जैसे उन्हें इस बारे में कुच्छ पता ही ना हो..

उनके हाथ अब उपर और उपर बढ़ते जा रहे थे… और एक समय ऐसा आया कि उनका हाथ बाबूजी के झूमते हुए लंड से टकरा गया…

चाची का हाथ अपने लंड से टच होते ही बाबूजी के शरीर में करेंट सा दौड़ गया…, उन्होने सोने का नाटक करते हुए अपना एक हाथ चाची की चुचियों से सटा दिया…

अब झटका लगने की बारी चाची की थी, उन्होने बाबूजी की तरफ देखा, तो वो अपनी आँखें बंद किए पड़े थे, फिर उनके हाथ को देखा, जो उनकी चुचियों से सटा हुआ था…

उन्होने धीरे से उनके हाथ को अपनी चुचियों पर रख दिया, और उनके लंड को आहिस्ता- 2 सहलाने लगी…

बाबूजी आँखें बंद किए हुए, आनद सागर में डूबते जा रहे थे…चाची अपनी चूत को अपने पैर की एडी से मसल रही थी…

बाबूजी अपनी आँखें बंद किए हुए ही बोले – प्रभा, तुम भी चारपाई पर ही बैठ जाओ, तुम्हें परेशानी हो रही होगी…नीचे से हाथ लंबे किए हुए..

बाबूजी की आवाज़ सुनते ही चाची झेंप गयी…, उन्होने बाबूजी का हाथ अपनी चुचियों से हटा कर चारपाई पर रख दिया, और उठ कर खड़ी हो गयी…!
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RE: हर ख्वाहिश पूरी की - by nitya.bansal3 - 02-12-2020, 05:54 PM



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