02-12-2020, 05:46 PM
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अगले महीने रश्मि चाची को पीरियड नही आए, जब ये बात उन्होने मुझे बताई.. तो पता नही मुझे अंदर से एक अंजानी सी खुशी महसूस हुई…
दो दिन बाद उन्हें उल्टियाँ शुरू हो गयी, चाचा मेरे साथ उन्हें डॉक्टर के यहाँ दिखाने ले गये, तो ये बात कन्फर्म भी हो गयी की वो माँ बनने वाली हैं…
चाचा की तो खुशी का ठिकाना ही नही रहा… इधर चाची ने मुझे धन्यवाद के तौर पर एक पूरी रात ही सौंप दी थी, मनमाने ढंग से मज़ा लूटने के लिए…
हम तीन लोगों के अलावा और किसी को पता नही था.. कि ये खुशी उनके जीवन में आई कैसे….. सभी बहुत खुश थे उनके लिए…………………..
मझले चाचा और चाची प्रभावती कुच्छ चिढ़ते थे हम लोगों से, उसका कारण भी बाबूजी की बड़े चाचा से नज़दीकियाँ ही थी,
क्योंकि अपने हिस्से के बाग की आमदनी और ट्यूबवेल का फ्री पानी जो आमतौर पर सबको पता ही था, बाबूजी उनको देते हैं…
जब उनसे इस बारे में पुछा गया, तो उन्होने उनके खर्चे ज़्यादा होने की वजह बताई थी.. इस कारण से मझले चाचा और चाची हम लोगों से खफा रहते थे…
अब चूँकि, फ़ैसला बाबूजी ने लिया था, तो हम में से कोई उनकी बात का विरोध भी नही कर सकता था…
खैर ये बात बहुत पुरानी हो चुकी थी, और अब हालत भी बदल गये थे, तो मेने अब मझले चाचा-चाची से नज़दीकियाँ बढ़ाने का फ़ैसला किया…!
ऐसे ही एक दिन मे खेतों पर घूमता फिरता उनके हिस्से के खेतों की तरफ बढ़ गया.. शाम का वक़्त था, चाचा के साथ चाची भी बैठी हुई मिल गयी…
मंझली चाची थोड़ा दुबली पतली सी हैं, ऐसा नही है की वो शरीरक तौर पर कमजोर हैं, उनके चुचे तो 34डी साइज़ के हैं, और कूल्हे भी थोड़े उभार लिए हैं,
लेकिन कमर बहुत ही पतली सी है… और शायद ये उनके चाचा के साथ खेतों में ज़्यादा मेहनत करने की वजह से होगा.
थोड़ा पैसों की तंगी की वजह से ही वो अपने बच्चों को अपने भाई के पास पढ़ाती थी..
लेकिन जब मामा के बच्चे भी हो गये, और वो भी पढ़ने लिखने लगे तो मामा का रबैईया उनके प्रति रूखा-रूखा सा रहने लगा…
अब उनकी पढ़ाई का खर्चा इन्हें ही देना पड़ता था.
मेने दोनो के पैर छुये, दोनो ने खुश होकर मुझे आशीर्वाद दिया और अपने पास बिठाया.. बातों-बातों में मेने चाची से शिकायती लहजे में कहा…
क्या चाची आप तो पता नही हम लोगों से क्यों नाराज़ रहती हैं, कभी खैर खबर लेने भी घर की तरफ नही आती…
वो – अरे लल्ला ! तुम्हें तो सब पता ही है.. यहाँ खेतों मे काम करना पड़ता है, अब हमारे पास इतने पैसे तो हैं नही कि मजदूरों से काम करवा सकें..
उधर तुम्हारे बाबूजी भी पानी के पैसों में रियायत नही करते,.. उन्हें तो बस चंपा रानी के ही खर्चे दिखाई देते हैं.. हमारी परेशानियाँ कहाँ दिखाई देती हैं..
मे – अभी हाल-फिलहाल में आपने बाबूजी से बात की है क्या..?
वो – नही.. अभी फिलहाल में तो कोई बात नही हुई है… क्यों कुच्छ नयी बात हो गयी है..?
मे – नही ऐसी कोई नयी बात नही हुई… पर मे चाहता हूँ, आप फिरसे उनसे बात कीजिए… मेरा नाम बोल देना.. आप से भी शायद पानी के पैसे ना लें..
वो – क्या ? सच कह रहे हो लल्ला..! जेठ जी मान जाएँगे…?
मे – प्यार से सब कुच्छ हल हो सकता है चाची… आपको तो पता ही है.. पिताजी कितने अकेले-2 हो गये हैं..
अब जो भी उनसे दो प्यार की बातें करता है वो उसी की मदद कर देते हैं… फिर आप तो अपने ही हैं.. आपसे कोई दुश्मनी थोड़े ही है..
मेरी बातों का चाची पर असर हुआ और उनकी बातों से लगने लगा कि वो पिताजी के साथ नज़दीकियाँ बढ़ा सकती हैं…
फिर मेने उनसे सोनू, मोनू के बारे में पुछा तो वो थोड़ा दुखी होकर बताने लगी, कि कैसे अब उनके भाई का वर्ताब बदल गया है..
सोनू ग्रॅजुयेशन के पहले साल में ही था, मोनू 12थ में था, तो मेने कहा कि आप उनको यहीं रख कर क्यों नही पढ़ाती,
अब तो हमारा नया कॉलेज भी खुल गया है.. कम से कम सोनू का अड्मिशन मेरे साथ ही करदो.. चाहो तो बाबूजी की मदद ले सकती हो
उनको मेरी बात जँची, और दोनो ने फ़ैसला किया कि वो सोनू को यहीं कॉलेज में पढ़ाएँगे, और मोनू को एक साल वहीं से 12थ करा देते हैं…
उनसे बात करने के बाद मे ट्यूबवेल की तरफ आगया, खेतों में फिलहाल कोई ऐसा काम नही चल रहा था..
बाबूजी मुझे अकेले बैठे मिले, मे थोड़ी देर उनके पास बैठा, थोड़ा काम धंधे के बारे में समझा..
फिर धीरे से मेने मंझले चाचा चाची से जो बातें हुई, वो कही… उनको भी लगा कि मे जो कर रहा हूँ वो सही है.. घर परिवार में एक जुटता रहे वो अच्छा है..
दूसरे दिन मन्झले चाचा और चाची दोनो ही बाबूजी से मिले और जो मेने उन्हें कहा था वो बातें उन्होने बाबूजी से कही..
तो बाबूजी ने कहा की हां छोटू भी बोल रहा था.. मे भी चाहता हूँ तुम सब खुश हाल रहो..
बड़े चाचा चाची बहुत खून चूस चुके थे, सो बाबूजी ने फ़ैसला किया, कि अब उनके साथ कोई रियायत नही होगी, और जो फ़ायदा वो उनको दे रहे थे वो अब मन्झले चाचा को देंगे…
चाचा चाची बड़े खुश हुए, और मेरी बातों पर अमल करते हुए चाची ने बाबूजी से बात चीत करना शुरू कर दिया…
चाची अब जब भी घर से खेतों को जाती थी, तो वो बाबूजी के लिए भी कुच्छ ना कुच्छ खाने की चीज़ें बना के ले जाती थी…
इस तरह से दोनो परिवारों के बीच की कड़वाहट धीरे – 2 ख़तम होती जा रही थी…
प्रभा चाची ने सोनू को गाओं वापस बुलवा लिया था, मेने उसका अड्मिशन अपने कॉलेज में ही करवा दिया…,
अब उसका शहर का खर्चा भी बचने लगा, और थोड़ा-2 घर खेतों के काम में भी हाथ बंटने लगा था वो..
मेरी कोशिशों ने चाचा चाची की तकलीफ़ों को थोड़ा कम किया था…एक तरह से वो मेरे अहसानमद थे..!
एक दिन बाबूजी अकेले दोपहर में ट्यूबवेल के कमरे में खाना खा कर लेटे हुए थे, तभी मन्झ्ली चाची वहाँ आ गयी…
बाबूजी चारपाई पर अपनी आँखों के उपर बाजू रख कर लेटे हुए सोने की कोशिश कर रहे थे,
अगले महीने रश्मि चाची को पीरियड नही आए, जब ये बात उन्होने मुझे बताई.. तो पता नही मुझे अंदर से एक अंजानी सी खुशी महसूस हुई…
दो दिन बाद उन्हें उल्टियाँ शुरू हो गयी, चाचा मेरे साथ उन्हें डॉक्टर के यहाँ दिखाने ले गये, तो ये बात कन्फर्म भी हो गयी की वो माँ बनने वाली हैं…
चाचा की तो खुशी का ठिकाना ही नही रहा… इधर चाची ने मुझे धन्यवाद के तौर पर एक पूरी रात ही सौंप दी थी, मनमाने ढंग से मज़ा लूटने के लिए…
हम तीन लोगों के अलावा और किसी को पता नही था.. कि ये खुशी उनके जीवन में आई कैसे….. सभी बहुत खुश थे उनके लिए…………………..
मझले चाचा और चाची प्रभावती कुच्छ चिढ़ते थे हम लोगों से, उसका कारण भी बाबूजी की बड़े चाचा से नज़दीकियाँ ही थी,
क्योंकि अपने हिस्से के बाग की आमदनी और ट्यूबवेल का फ्री पानी जो आमतौर पर सबको पता ही था, बाबूजी उनको देते हैं…
जब उनसे इस बारे में पुछा गया, तो उन्होने उनके खर्चे ज़्यादा होने की वजह बताई थी.. इस कारण से मझले चाचा और चाची हम लोगों से खफा रहते थे…
अब चूँकि, फ़ैसला बाबूजी ने लिया था, तो हम में से कोई उनकी बात का विरोध भी नही कर सकता था…
खैर ये बात बहुत पुरानी हो चुकी थी, और अब हालत भी बदल गये थे, तो मेने अब मझले चाचा-चाची से नज़दीकियाँ बढ़ाने का फ़ैसला किया…!
ऐसे ही एक दिन मे खेतों पर घूमता फिरता उनके हिस्से के खेतों की तरफ बढ़ गया.. शाम का वक़्त था, चाचा के साथ चाची भी बैठी हुई मिल गयी…
मंझली चाची थोड़ा दुबली पतली सी हैं, ऐसा नही है की वो शरीरक तौर पर कमजोर हैं, उनके चुचे तो 34डी साइज़ के हैं, और कूल्हे भी थोड़े उभार लिए हैं,
लेकिन कमर बहुत ही पतली सी है… और शायद ये उनके चाचा के साथ खेतों में ज़्यादा मेहनत करने की वजह से होगा.
थोड़ा पैसों की तंगी की वजह से ही वो अपने बच्चों को अपने भाई के पास पढ़ाती थी..
लेकिन जब मामा के बच्चे भी हो गये, और वो भी पढ़ने लिखने लगे तो मामा का रबैईया उनके प्रति रूखा-रूखा सा रहने लगा…
अब उनकी पढ़ाई का खर्चा इन्हें ही देना पड़ता था.
मेने दोनो के पैर छुये, दोनो ने खुश होकर मुझे आशीर्वाद दिया और अपने पास बिठाया.. बातों-बातों में मेने चाची से शिकायती लहजे में कहा…
क्या चाची आप तो पता नही हम लोगों से क्यों नाराज़ रहती हैं, कभी खैर खबर लेने भी घर की तरफ नही आती…
वो – अरे लल्ला ! तुम्हें तो सब पता ही है.. यहाँ खेतों मे काम करना पड़ता है, अब हमारे पास इतने पैसे तो हैं नही कि मजदूरों से काम करवा सकें..
उधर तुम्हारे बाबूजी भी पानी के पैसों में रियायत नही करते,.. उन्हें तो बस चंपा रानी के ही खर्चे दिखाई देते हैं.. हमारी परेशानियाँ कहाँ दिखाई देती हैं..
मे – अभी हाल-फिलहाल में आपने बाबूजी से बात की है क्या..?
वो – नही.. अभी फिलहाल में तो कोई बात नही हुई है… क्यों कुच्छ नयी बात हो गयी है..?
मे – नही ऐसी कोई नयी बात नही हुई… पर मे चाहता हूँ, आप फिरसे उनसे बात कीजिए… मेरा नाम बोल देना.. आप से भी शायद पानी के पैसे ना लें..
वो – क्या ? सच कह रहे हो लल्ला..! जेठ जी मान जाएँगे…?
मे – प्यार से सब कुच्छ हल हो सकता है चाची… आपको तो पता ही है.. पिताजी कितने अकेले-2 हो गये हैं..
अब जो भी उनसे दो प्यार की बातें करता है वो उसी की मदद कर देते हैं… फिर आप तो अपने ही हैं.. आपसे कोई दुश्मनी थोड़े ही है..
मेरी बातों का चाची पर असर हुआ और उनकी बातों से लगने लगा कि वो पिताजी के साथ नज़दीकियाँ बढ़ा सकती हैं…
फिर मेने उनसे सोनू, मोनू के बारे में पुछा तो वो थोड़ा दुखी होकर बताने लगी, कि कैसे अब उनके भाई का वर्ताब बदल गया है..
सोनू ग्रॅजुयेशन के पहले साल में ही था, मोनू 12थ में था, तो मेने कहा कि आप उनको यहीं रख कर क्यों नही पढ़ाती,
अब तो हमारा नया कॉलेज भी खुल गया है.. कम से कम सोनू का अड्मिशन मेरे साथ ही करदो.. चाहो तो बाबूजी की मदद ले सकती हो
उनको मेरी बात जँची, और दोनो ने फ़ैसला किया कि वो सोनू को यहीं कॉलेज में पढ़ाएँगे, और मोनू को एक साल वहीं से 12थ करा देते हैं…
उनसे बात करने के बाद मे ट्यूबवेल की तरफ आगया, खेतों में फिलहाल कोई ऐसा काम नही चल रहा था..
बाबूजी मुझे अकेले बैठे मिले, मे थोड़ी देर उनके पास बैठा, थोड़ा काम धंधे के बारे में समझा..
फिर धीरे से मेने मंझले चाचा चाची से जो बातें हुई, वो कही… उनको भी लगा कि मे जो कर रहा हूँ वो सही है.. घर परिवार में एक जुटता रहे वो अच्छा है..
दूसरे दिन मन्झले चाचा और चाची दोनो ही बाबूजी से मिले और जो मेने उन्हें कहा था वो बातें उन्होने बाबूजी से कही..
तो बाबूजी ने कहा की हां छोटू भी बोल रहा था.. मे भी चाहता हूँ तुम सब खुश हाल रहो..
बड़े चाचा चाची बहुत खून चूस चुके थे, सो बाबूजी ने फ़ैसला किया, कि अब उनके साथ कोई रियायत नही होगी, और जो फ़ायदा वो उनको दे रहे थे वो अब मन्झले चाचा को देंगे…
चाचा चाची बड़े खुश हुए, और मेरी बातों पर अमल करते हुए चाची ने बाबूजी से बात चीत करना शुरू कर दिया…
चाची अब जब भी घर से खेतों को जाती थी, तो वो बाबूजी के लिए भी कुच्छ ना कुच्छ खाने की चीज़ें बना के ले जाती थी…
इस तरह से दोनो परिवारों के बीच की कड़वाहट धीरे – 2 ख़तम होती जा रही थी…
प्रभा चाची ने सोनू को गाओं वापस बुलवा लिया था, मेने उसका अड्मिशन अपने कॉलेज में ही करवा दिया…,
अब उसका शहर का खर्चा भी बचने लगा, और थोड़ा-2 घर खेतों के काम में भी हाथ बंटने लगा था वो..
मेरी कोशिशों ने चाचा चाची की तकलीफ़ों को थोड़ा कम किया था…एक तरह से वो मेरे अहसानमद थे..!
एक दिन बाबूजी अकेले दोपहर में ट्यूबवेल के कमरे में खाना खा कर लेटे हुए थे, तभी मन्झ्ली चाची वहाँ आ गयी…
बाबूजी चारपाई पर अपनी आँखों के उपर बाजू रख कर लेटे हुए सोने की कोशिश कर रहे थे,