18-03-2019, 08:14 PM
दर्द का मज़ा
दुलारी बोली
" अरे धीरे डालने का दिन नहीं है आज , ... शादी कर के लाये हैं , हचक के डालेंगे ,...
और हचक के पेलेंगे नही तो भौजी की फटती कैसे , १७ साल से नैहर में हमारे भैया के लिए बचा के रखी थीं। "
" चलो चलो तुम सब नीचे आज फड़वातीं हूँ तुम सब ननदों की ,... पता चलेगा ,... मेरे मायके वाले हैं न ,... "
ये मेरी जेठानी की आवाज थी।
" अरे हम भौजाइयां भी तो हैं , चलो आज किसी ननद की बचेगी नहीं , तुम सब को बताएंगी हम , कैसे रोज तुम्हारे भाई हमारे ऊपर चढ़ाई करते हैं न एकदम वैसे ही ,... अपनी ऊँगली तो रोज करती होगी , आज भौजाइयों की ऊँगली का मजा लो ,... "
दूसरी जेठानी बोलीं।
मेरी चीखें बंद हो गयीं थी लेकिन तब भी चेहरे पर दर्द , ... और रुक रुक कर हलकी हलकी चीख
लेकिन तभी मेरी निगाह उनके चेहरे पर पड़ी ,...
उनका चेहरा जर्द ,...
जैसे किसी बच्चे से कोई बहुत मंहगा , खूबसूरत खिलौना टूट गया हो ,.. एकदम उसी तरह सहमा ,....
और मैं सहम गयी ,...
मेरी चीख का असर उनके ऊपर ,... लेकिन बिना सोचे , मेरी बाहें एकदम उनके चारों ओर , कस के भींच लिया मैंने ,
और खुद होंठ उठा के ,
एक दो चार चुम्मी , सीधे उनके होंठों ,... बिना बोले मेरी आँखे , मेरे होंठ मेरी पूरी देह कह रही थी ,
' करो न ,... "
मेरे चेहरे पर दर्द की जगह एक बार फिर चाहत छा गयी थी और वो ,
मेरा ,... हलके से फिर जोर से मेरी चुम्मी का जवाब , कस के चुम्बन से और एक बार फिर धक्का ,
पहले हल्का सा , थोड़ा सहम कर ,... और फिर थोड़ी जोर से ,...
मैंने एक बार फिर कस के पलंग पकड़ लिया था दांतों से होंठों को भींच लिया था , ...
और तय कर लिया था कित्ता भी दर्द हो चीखूंगी नहीं ,
मम्मी ने , भाभियों ने जैसा समझाया सिखाया था , मैंने अपनी जाँघे पूरी तरह फैला रखी थीं ,
कमर के नीचे वहां एकदम अपने को ढीला छोड़ दिया था , तब भी ,
उन्होंने कस के मेरी पतली कमर को दबोच रखा था और कुछ देर में उनके धक्के का जोर ,... सब कुछ भूल के ,...
लेकिन यही तो मैं चाहती थी , इसी दर्द इसी तड़पन का इन्तजार मुझे था
और अब मैं लाज में डूबी लेकिन थोड़ा थोड़ा उनका साथ दे रही थी ,
मेरी देह अब मेरी नहीं थी
रगड़ रगड़ कर , दरेरते , घिसटते , फाड़ते उनका ,.... मेरे अंदर , ....
दर्द तो हो रहा था , बहुत हो रहा था ,....
लेकिन एक नया अहसास , एक नया मजा ,... और कुछ देर बाद ही मेरी आँखे मूंदने लगी ,
मेरी देह कांपने लगी ,
मुझे याद आ रहा था कोई भाभी मुझे चिढ़ा रही थीं ,
तेरा वाला एकदम नौसिखिया लगता है , असली कुंवारा ,... तू एक दो बार मेरे वाले से ट्राई कर लें ,...
मम्मी बोलीं ,
अरे जैसे मछली को तैरना नहीं सीखाना पड़ता , उसी तरह मरद को भी
सच में उनकी उँगलियों को उनके होंठों को जैसे मेरी देह के सारे गोपन रहस्य मालूम पड़ गए हों , ..
और वो मूसलचंद तो था ही मेरी , ऐसी की तैसी के लिए ,
अपने आप मेरी हलकी हलकी चीखें अब सिसकियों में बदल गयीं मेरी आँखे अपने आप बंद हो गयी ,
देह धीरे धीरे एकदम ढीली , जैसे मेरे काबू में न हो
मैं काँप रही थी , तूफ़ान में पत्ते की तरह , ... तेज और तेज ,... फिर धीरे धीरे ,... और
मेरा कांपना रुका नहीं था की वो भी मेरे साथ साथ , और अब मैं एक बार फिर से
बूँद बूँद ,... फिर जैसे बाढ़ आ गयी हो ,
देर तक मैं उन्हें अपनी बाँहों में बांधे रही ,
कुछ देर बाद जब हम थोड़े अलग हुए ,
मेरी निगाह घड़ी पर पड़ी , अभी भी बारह नहीं बजा था , साढ़े ग्यारह बजने वाले थे।
दर्द से मेरी देह चूर चूर हो रही थी , जाँघे फटी पड़ रही थीं , ....
लेकिन उनके चेहरे की ख़ुशी ,... वो बावरापन , ... मेरा सारा दर्द आधा हो गया।
वो एकटक मुझे देख रहे थे , और अचानक उन्होंने मेरे होंठों पर झुक कर ,... एक कस के चुम्मी ले ली ,
और बांहों में दबोच लिया।
और उनके बोल फूटे ,... फिर वो रुके नहीं ,...
' जानती हो जब से उस दिन तुझे देखा था , न बस यही सोचता था ,.. कैसे ,... किस तरह ,...
मुझे लगता नहीं था , तुम ,... सच में बस लग रहा था किसी तरह तुम मिल जाओ ,... बस ,... '
मेरे मुंह से निकलते निकलते रह गया ,
' मिल तो गयी न ,... हूँ अब तो "
लेकिन मैं भी बस उनके चेहरे को देख रही थी ,
और जाने अनजाने मैंने भी अब उन्हें अपनी बाँहों में बांध लिया , रजाई जो एकदम ऊपर से सरक गयी थी ,
एक बार फिर से ,.. लेकिन हम लोगों के चेहरे , गरदन के ऊपर से , एकदम खुले थे ,
और बरसती चांदनी में हम एक दुसरे को अच्छी तरह से देख रहे थे।
उनकी बातों का मरहम , उनकी आँखों के नशे में मेरा दर्द अब एकदम ख़तम हो गया था ,... कभी कभी वो शरारती लड़कों की तरह ,... ललचाते , उनकी ऊँगली मेरे होंठ पर हलके से छू लेते ,
पर मैं पहले दिन से ही उन्होंने जब उस शादी में मुझे देखा था , ... और मैंने उन्हें ,... मैं समझ गयी थी उनकी रातों की नींद जिसने उड़ा ली थी वो मेरे किशोर उभार थे ,
मेरे गदराये उरोज ,... और आज भी उनका मन ,... बोलने की हिम्मत तो उनकी पड़ नहीं रही थी , ...
उन्होंने रजाई थोड़ी और नीचे करने की कोशिश की ,
इरादा मैं समझ रही थी पर बदमाशी क्या वो अकेले कर सकते थे , मैंने एक हाथ से रजाई कस के दबोच ली ,
मेरे हाथ उनके हाथों से जीत सकते थे , पर मैं उनकी आँखों का क्या करती ,
चार आँखों का वो खेल तो मैं पहले दिन ही हार गयी थी , जब उस शादी में मैंने इन्हे सबसे पहले देखा था , ...
उन्हें क्या मालूम था मैं उस चितचोर के आगे सब कुछ उसी दिन ,...
वो चोर मुझसे मुझी को चुरा ले गया था , और उस चोरी का कोई थाना सिक्युरिटी भी नहीं हो सकती ,
और अब वही बदमाश लुटेरी आँखे मेरी आँखों में आँखे डाल के जिस तरह चिरौरी कर रही थीं , मेरी पकड़ थोड़ी सी ढीली हुयी ,
एक और जबरदस्त चुम्मा , और रजाई सरक कर एक बार फिर हम दोनों के कमर तक ,...
मन तो उनका बहुत कर रहा था , लेकिन बहुत हिम्मत कर के उनकी भूखी उँगलियाँ मेरे उभारों पर हलके से ,... और अब मैंने मना भी नहीं किया ,...
उँगलियाँ अब चोर से डाकू हो हो गयीं , एकदम खुल्लम खुला ,
उनकी दोनों हथेलियों सीधे मेरे किशोर उभारों पर , और अब वो छू नहीं रहे थे , बल्कि कस के दबा रहे थे ,
दर्द भी हो रहा था , अच्छा भी लग रहा था , जेठानी की बात भी याद आ रही थी , मना ज्यादा मत करना ,
और अब तो भरतपुर लूट भी चुका था , बचाती क्या और किससे ,
उनसे बचने सिर्फ एक की शरण में जा सकती थी , ...
उन्ही की , ... मेरी आँखों ने उनकी आँखों में झांका , शिकायत की , ... गुहार लगाई ,
और लता की तरह खुद उनकी देह में लिपट गयी ,
उनके हाथों की शरारत कोई कम नहीं हुयी
एक हथेली उनकी मेरी खुली पीठ पर सहला रही थी और दूसरी , और कहाँ,…
मेरे किशोर उभार पर
उस नवल रसिया की सिर्फ दुष्ट उँगलियाँ ही नहीं ,
बल्कि अब अंगूठा भी मेरे निपल को हलके हलके फ्लिक कर रहा था ,
अपने साजन की बाँहों में बंधी , मैं पिघल रही थी ,
रह रह कर सिसक रही थी। वो भी इतना कस के मुझे भींचे दबाये हुए ,
उनके चौड़े सीने के नीचे मेरे किशोर बूब्स दबे मसले जा रहे थे ,
पर अचानक मुझे छोड़ कर वो उठे ,
दुलारी बोली
" अरे धीरे डालने का दिन नहीं है आज , ... शादी कर के लाये हैं , हचक के डालेंगे ,...
और हचक के पेलेंगे नही तो भौजी की फटती कैसे , १७ साल से नैहर में हमारे भैया के लिए बचा के रखी थीं। "
" चलो चलो तुम सब नीचे आज फड़वातीं हूँ तुम सब ननदों की ,... पता चलेगा ,... मेरे मायके वाले हैं न ,... "
ये मेरी जेठानी की आवाज थी।
" अरे हम भौजाइयां भी तो हैं , चलो आज किसी ननद की बचेगी नहीं , तुम सब को बताएंगी हम , कैसे रोज तुम्हारे भाई हमारे ऊपर चढ़ाई करते हैं न एकदम वैसे ही ,... अपनी ऊँगली तो रोज करती होगी , आज भौजाइयों की ऊँगली का मजा लो ,... "
दूसरी जेठानी बोलीं।
मेरी चीखें बंद हो गयीं थी लेकिन तब भी चेहरे पर दर्द , ... और रुक रुक कर हलकी हलकी चीख
लेकिन तभी मेरी निगाह उनके चेहरे पर पड़ी ,...
उनका चेहरा जर्द ,...
जैसे किसी बच्चे से कोई बहुत मंहगा , खूबसूरत खिलौना टूट गया हो ,.. एकदम उसी तरह सहमा ,....
और मैं सहम गयी ,...
मेरी चीख का असर उनके ऊपर ,... लेकिन बिना सोचे , मेरी बाहें एकदम उनके चारों ओर , कस के भींच लिया मैंने ,
और खुद होंठ उठा के ,
एक दो चार चुम्मी , सीधे उनके होंठों ,... बिना बोले मेरी आँखे , मेरे होंठ मेरी पूरी देह कह रही थी ,
' करो न ,... "
मेरे चेहरे पर दर्द की जगह एक बार फिर चाहत छा गयी थी और वो ,
मेरा ,... हलके से फिर जोर से मेरी चुम्मी का जवाब , कस के चुम्बन से और एक बार फिर धक्का ,
पहले हल्का सा , थोड़ा सहम कर ,... और फिर थोड़ी जोर से ,...
मैंने एक बार फिर कस के पलंग पकड़ लिया था दांतों से होंठों को भींच लिया था , ...
और तय कर लिया था कित्ता भी दर्द हो चीखूंगी नहीं ,
मम्मी ने , भाभियों ने जैसा समझाया सिखाया था , मैंने अपनी जाँघे पूरी तरह फैला रखी थीं ,
कमर के नीचे वहां एकदम अपने को ढीला छोड़ दिया था , तब भी ,
उन्होंने कस के मेरी पतली कमर को दबोच रखा था और कुछ देर में उनके धक्के का जोर ,... सब कुछ भूल के ,...
लेकिन यही तो मैं चाहती थी , इसी दर्द इसी तड़पन का इन्तजार मुझे था
और अब मैं लाज में डूबी लेकिन थोड़ा थोड़ा उनका साथ दे रही थी ,
मेरी देह अब मेरी नहीं थी
रगड़ रगड़ कर , दरेरते , घिसटते , फाड़ते उनका ,.... मेरे अंदर , ....
दर्द तो हो रहा था , बहुत हो रहा था ,....
लेकिन एक नया अहसास , एक नया मजा ,... और कुछ देर बाद ही मेरी आँखे मूंदने लगी ,
मेरी देह कांपने लगी ,
मुझे याद आ रहा था कोई भाभी मुझे चिढ़ा रही थीं ,
तेरा वाला एकदम नौसिखिया लगता है , असली कुंवारा ,... तू एक दो बार मेरे वाले से ट्राई कर लें ,...
मम्मी बोलीं ,
अरे जैसे मछली को तैरना नहीं सीखाना पड़ता , उसी तरह मरद को भी
सच में उनकी उँगलियों को उनके होंठों को जैसे मेरी देह के सारे गोपन रहस्य मालूम पड़ गए हों , ..
और वो मूसलचंद तो था ही मेरी , ऐसी की तैसी के लिए ,
अपने आप मेरी हलकी हलकी चीखें अब सिसकियों में बदल गयीं मेरी आँखे अपने आप बंद हो गयी ,
देह धीरे धीरे एकदम ढीली , जैसे मेरे काबू में न हो
मैं काँप रही थी , तूफ़ान में पत्ते की तरह , ... तेज और तेज ,... फिर धीरे धीरे ,... और
मेरा कांपना रुका नहीं था की वो भी मेरे साथ साथ , और अब मैं एक बार फिर से
बूँद बूँद ,... फिर जैसे बाढ़ आ गयी हो ,
देर तक मैं उन्हें अपनी बाँहों में बांधे रही ,
कुछ देर बाद जब हम थोड़े अलग हुए ,
मेरी निगाह घड़ी पर पड़ी , अभी भी बारह नहीं बजा था , साढ़े ग्यारह बजने वाले थे।
दर्द से मेरी देह चूर चूर हो रही थी , जाँघे फटी पड़ रही थीं , ....
लेकिन उनके चेहरे की ख़ुशी ,... वो बावरापन , ... मेरा सारा दर्द आधा हो गया।
वो एकटक मुझे देख रहे थे , और अचानक उन्होंने मेरे होंठों पर झुक कर ,... एक कस के चुम्मी ले ली ,
और बांहों में दबोच लिया।
और उनके बोल फूटे ,... फिर वो रुके नहीं ,...
' जानती हो जब से उस दिन तुझे देखा था , न बस यही सोचता था ,.. कैसे ,... किस तरह ,...
मुझे लगता नहीं था , तुम ,... सच में बस लग रहा था किसी तरह तुम मिल जाओ ,... बस ,... '
मेरे मुंह से निकलते निकलते रह गया ,
' मिल तो गयी न ,... हूँ अब तो "
लेकिन मैं भी बस उनके चेहरे को देख रही थी ,
और जाने अनजाने मैंने भी अब उन्हें अपनी बाँहों में बांध लिया , रजाई जो एकदम ऊपर से सरक गयी थी ,
एक बार फिर से ,.. लेकिन हम लोगों के चेहरे , गरदन के ऊपर से , एकदम खुले थे ,
और बरसती चांदनी में हम एक दुसरे को अच्छी तरह से देख रहे थे।
उनकी बातों का मरहम , उनकी आँखों के नशे में मेरा दर्द अब एकदम ख़तम हो गया था ,... कभी कभी वो शरारती लड़कों की तरह ,... ललचाते , उनकी ऊँगली मेरे होंठ पर हलके से छू लेते ,
पर मैं पहले दिन से ही उन्होंने जब उस शादी में मुझे देखा था , ... और मैंने उन्हें ,... मैं समझ गयी थी उनकी रातों की नींद जिसने उड़ा ली थी वो मेरे किशोर उभार थे ,
मेरे गदराये उरोज ,... और आज भी उनका मन ,... बोलने की हिम्मत तो उनकी पड़ नहीं रही थी , ...
उन्होंने रजाई थोड़ी और नीचे करने की कोशिश की ,
इरादा मैं समझ रही थी पर बदमाशी क्या वो अकेले कर सकते थे , मैंने एक हाथ से रजाई कस के दबोच ली ,
मेरे हाथ उनके हाथों से जीत सकते थे , पर मैं उनकी आँखों का क्या करती ,
चार आँखों का वो खेल तो मैं पहले दिन ही हार गयी थी , जब उस शादी में मैंने इन्हे सबसे पहले देखा था , ...
उन्हें क्या मालूम था मैं उस चितचोर के आगे सब कुछ उसी दिन ,...
वो चोर मुझसे मुझी को चुरा ले गया था , और उस चोरी का कोई थाना सिक्युरिटी भी नहीं हो सकती ,
और अब वही बदमाश लुटेरी आँखे मेरी आँखों में आँखे डाल के जिस तरह चिरौरी कर रही थीं , मेरी पकड़ थोड़ी सी ढीली हुयी ,
एक और जबरदस्त चुम्मा , और रजाई सरक कर एक बार फिर हम दोनों के कमर तक ,...
मन तो उनका बहुत कर रहा था , लेकिन बहुत हिम्मत कर के उनकी भूखी उँगलियाँ मेरे उभारों पर हलके से ,... और अब मैंने मना भी नहीं किया ,...
उँगलियाँ अब चोर से डाकू हो हो गयीं , एकदम खुल्लम खुला ,
उनकी दोनों हथेलियों सीधे मेरे किशोर उभारों पर , और अब वो छू नहीं रहे थे , बल्कि कस के दबा रहे थे ,
दर्द भी हो रहा था , अच्छा भी लग रहा था , जेठानी की बात भी याद आ रही थी , मना ज्यादा मत करना ,
और अब तो भरतपुर लूट भी चुका था , बचाती क्या और किससे ,
उनसे बचने सिर्फ एक की शरण में जा सकती थी , ...
उन्ही की , ... मेरी आँखों ने उनकी आँखों में झांका , शिकायत की , ... गुहार लगाई ,
और लता की तरह खुद उनकी देह में लिपट गयी ,
उनके हाथों की शरारत कोई कम नहीं हुयी
एक हथेली उनकी मेरी खुली पीठ पर सहला रही थी और दूसरी , और कहाँ,…
मेरे किशोर उभार पर
उस नवल रसिया की सिर्फ दुष्ट उँगलियाँ ही नहीं ,
बल्कि अब अंगूठा भी मेरे निपल को हलके हलके फ्लिक कर रहा था ,
अपने साजन की बाँहों में बंधी , मैं पिघल रही थी ,
रह रह कर सिसक रही थी। वो भी इतना कस के मुझे भींचे दबाये हुए ,
उनके चौड़े सीने के नीचे मेरे किशोर बूब्स दबे मसले जा रहे थे ,
पर अचानक मुझे छोड़ कर वो उठे ,