19-11-2020, 04:47 PM
उसकी जूठी कॉफ़ी का आधा भरा कप वहीं रखा है। उस कप के साथ वह थोड़ी सी अब भी यहीं है। मैंने चारों ओर देखा, मेरे अलावा वहां एक आध और लोग थे और वे अपने गम में डूबे हुए थे। मेरे दर्द से किसी को कोई सरोकार नहीं था। आश्वस्त होकर मैंने उसका जूठा कप उठा लिया। ठीक लिपस्टिक से बने उसके होंठों के निशान पर मैंने अपने होंठ रख दिये। मैं उसे चूमना नहीं चाहता था, मैं उसके पास होना चाहता था। मैंने एक घूंट में उसकी छोड़ी हुई पूरी कॉफ़ी पी ली। कहते हैं जूठा पीने से प्यार बढ़ता है। ये मैंने क्या किया? घबराहट में मेरे पसीने निकल गये। अभी अभी तो वह कहकर गई है… प्रेम में होना दुष्कर है। जीवन वैसे भी सुगम नहीं, कम से कम प्रेम में जीना तो बिलकुल नहीं।
कितना सरल था जीवन जब हमारे बीच प्रेम नहीं था। प्रेम कब आया। शायद परछाईं सा पीछे लगा हुआ था, एक अदद मौक़े की तलाश में था। अब हमारे बीच है। नहीं, उसने छुआ नहीं है, मैंने भी नहीं देखा है लेकिन अब हमारे बीच है यह हमने जान लिया है!
आजिज मन से दरवाज़े से बाहर देखने लगा। अमूमन ऐसा तब होता है जब किसी का इंतज़ार होता है लेकिन वह जा चुकी है। शायद लौट कर नहीं आयेगी। फिर मैं दरवाज़े के पार क्यूं देख रहा हूं। मुझे इंतज़ार करना अच्छा लगता है जो कभी लौट कर नहीं आयेगी, उसका इंतज़ार। उसने यह नहीं कहा कि अब कभी नहीं आयेगी। लेकिन मैं समझ गया वह नहीं आयेगी। सार्वजनिक स्थलों पर मेरे ‘कैसी हो’ का ‘अच्छी हूं’ जवाब देगी!
मुझे कैफ़े में घुटन होने लगी, मैं जाने को उठ खड़ा हुआ किन्तु पुनः उस रिक्त कुर्सी पर जा बैठा जहां कुछ देर पहले वह बैठी थी। वहां उसके परफ्यूम की हल्की ख़ुशबू अभी भी बची हुई थी। ये वही ख़ुशबू है जो उसने उस दिन भी लगाया था। वह दिन बाक़ी दिनों से अलग था शायद। जब मुझसे “मैंने तुम्हें मिस किया” कहते हुए लिपट गई थी। हम कई महीनों बाद मिले थे, वह अपने पति के साथ थी और आलिंगन बेहद औपचारिक था, किन्तु उसके निष्ठ मन के ओज से मेरी देह तप गई थी।
कितना सरल था जीवन जब हमारे बीच प्रेम नहीं था। प्रेम कब आया। शायद परछाईं सा पीछे लगा हुआ था, एक अदद मौक़े की तलाश में था। अब हमारे बीच है। नहीं, उसने छुआ नहीं है, मैंने भी नहीं देखा है लेकिन अब हमारे बीच है यह हमने जान लिया है!
आजिज मन से दरवाज़े से बाहर देखने लगा। अमूमन ऐसा तब होता है जब किसी का इंतज़ार होता है लेकिन वह जा चुकी है। शायद लौट कर नहीं आयेगी। फिर मैं दरवाज़े के पार क्यूं देख रहा हूं। मुझे इंतज़ार करना अच्छा लगता है जो कभी लौट कर नहीं आयेगी, उसका इंतज़ार। उसने यह नहीं कहा कि अब कभी नहीं आयेगी। लेकिन मैं समझ गया वह नहीं आयेगी। सार्वजनिक स्थलों पर मेरे ‘कैसी हो’ का ‘अच्छी हूं’ जवाब देगी!
मुझे कैफ़े में घुटन होने लगी, मैं जाने को उठ खड़ा हुआ किन्तु पुनः उस रिक्त कुर्सी पर जा बैठा जहां कुछ देर पहले वह बैठी थी। वहां उसके परफ्यूम की हल्की ख़ुशबू अभी भी बची हुई थी। ये वही ख़ुशबू है जो उसने उस दिन भी लगाया था। वह दिन बाक़ी दिनों से अलग था शायद। जब मुझसे “मैंने तुम्हें मिस किया” कहते हुए लिपट गई थी। हम कई महीनों बाद मिले थे, वह अपने पति के साथ थी और आलिंगन बेहद औपचारिक था, किन्तु उसके निष्ठ मन के ओज से मेरी देह तप गई थी।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
