19-11-2020, 04:36 PM
एक हफ्ते में माँ ने पचासों बार फोन कर दिया था… हर बार एक ही सवाल और नेहा एक ही जवाब देती “माँ मुझे सोचने का वक्त दो।नेहा ने हर बार एक ही बात पर आकर अटक जाती …सबको मरी हुई दीदी की अंतिम इच्छा की पड़ी है…. पर किसी ने एक बार… हाँ सिर्फ एक बार उससे पूछा कि उसकी इच्छा क्या है।मरने वाला तो मरकर चला गया… पर लोग उसे जिंदा लाश बनाने पर क्यों तुले है।”
शनिवार की रात थी…इन दिनों वो बहुत व्यस्त रही शारिरिक रूप से भी और मानसिक रूप से भी ।सप्ताह भर की दौड़-भाग से शरीर थक कर चूर हो गया था। हाथ में कॉफी का मग लिए वो छत पर आ गई। कितने दिनों बाद….हाँ कितने दिनों बाद वो छत पर सुकून के चंद पलों की तलाश में आकर बैठी थी।आसमान में चाँद… बादलों से लुका- छिपी कर रहा था। वो सोचने लगी बादलों और तारों के बीच रहकर भी चाँद कितना अकेला है… वो भी तो आज कितनी अकेली थी…कोई उसे समझने को तैयार नहीं।किसी ने एक बार भी मेरे बारे में नहीं सोचा…सब अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त होना चाहते हैं और मैं… मैं आखिर क्या चाहती हूँ।
नेहा सोचती रही …उसकी आँखों के सामने जीजा जी का थका हुआ चेहरा ….परी और गोलू का मासूम चेहरा… तो कभी माँ का गम्भीर चेहरा उभर कर आ जाता। नेहा ने आँखे मूद ली। आखिर एक लड़की को क्या चाहिए अपनी जिंदगी से …एक खुशहाल परिवार, रुपया-पैसा, घर बस।बस…बस क्या यही चाहिए था उसे।आज अगर वो माँ की बात मानकर शादी कर लें…इस रिश्ते में उसे क्या मिलेगा दीदी की परछाई होने का दर्जा …दूसरी पत्नी …दूसरी माँ…नेहा मन ही मन मुस्कुराने लगी …दूसरी माँ नहीं… सौतेली माँ।
शनिवार की रात थी…इन दिनों वो बहुत व्यस्त रही शारिरिक रूप से भी और मानसिक रूप से भी ।सप्ताह भर की दौड़-भाग से शरीर थक कर चूर हो गया था। हाथ में कॉफी का मग लिए वो छत पर आ गई। कितने दिनों बाद….हाँ कितने दिनों बाद वो छत पर सुकून के चंद पलों की तलाश में आकर बैठी थी।आसमान में चाँद… बादलों से लुका- छिपी कर रहा था। वो सोचने लगी बादलों और तारों के बीच रहकर भी चाँद कितना अकेला है… वो भी तो आज कितनी अकेली थी…कोई उसे समझने को तैयार नहीं।किसी ने एक बार भी मेरे बारे में नहीं सोचा…सब अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त होना चाहते हैं और मैं… मैं आखिर क्या चाहती हूँ।
नेहा सोचती रही …उसकी आँखों के सामने जीजा जी का थका हुआ चेहरा ….परी और गोलू का मासूम चेहरा… तो कभी माँ का गम्भीर चेहरा उभर कर आ जाता। नेहा ने आँखे मूद ली। आखिर एक लड़की को क्या चाहिए अपनी जिंदगी से …एक खुशहाल परिवार, रुपया-पैसा, घर बस।बस…बस क्या यही चाहिए था उसे।आज अगर वो माँ की बात मानकर शादी कर लें…इस रिश्ते में उसे क्या मिलेगा दीदी की परछाई होने का दर्जा …दूसरी पत्नी …दूसरी माँ…नेहा मन ही मन मुस्कुराने लगी …दूसरी माँ नहीं… सौतेली माँ।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
