18-11-2020, 01:19 PM
मैने कहा रात को मैं प्लान बताऊंगा तो वो बोली ठीक है देखते है रिशेप्शन ख़त्म हो गया और हम घर आ गये मैने धीरे से आयशा से कहा कहा सोओंगी कहाँ ? वही बच्चो के साथ मैने कहा ठीक है मैं आऊंगा रात 1 बजे मैं उठा और आयशा के कमरे की तरफ गया उसका दरवाजा खुला था मैने आयशा को उठाया वो हड़बड़ा गई लेकिन मुझे देखते ही चुप हो गयी उस समय आयशा नाइटी मे थी मैने उसे इशारे से पीछे आने को कहा मै उसे सीधे छत पर ले गया वो बोली ये क्या है भैया यहा क्यो लाये हो मैने कहा कोई कमरा खाली नही है इसलिये वो बोली ज़रूरत क्या थी दोपहर को कर तो लिया था ना मैने कहा मज़ा नही आया वो बोली यहाँ कहाँ होगा मैने उसे दिखाया वहा पर पानी की टंकी और छत की पिंजरी के बीच में कुछ जगह थी जहा मैने पहले से एक कंबल लगा रखा था दिसम्बर का महीना था और ठंड अपने जोरो पर थी इसलिये कंबल ओढ़ने के लिये मिला था.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.