17-11-2020, 02:29 PM
घृणा व क्रोध के मारे मेरा समूचा शरीर जलने लगा. मैंने कहा- ‘ऐसे धोखे का ब्याह, ब्याह ही नहीं है. बिंदु, तू जैसे रहती थी, वैसे ही मेरे पास रह. देखूं, तुझे कौन ले जाता है?’
तुम लोगों ने उज्र किया, ‘बिंदु झूठ
बोलती है.’
मैंने कहा, ‘उसने कुछ भी झूठ नहीं बताया.’
तुम लोगों ने पूछा, ‘तुम्हें क्यों कर पता चला?’
मैंने कहा, ‘मैं अच्छी तरह जानती हूं.’
तुम लोगों ने भय दिखाया, ‘बिंदु के ससुराल वालों ने सिक्युरिटी को रपट कर दी तो मुश्किल में पड़ जायेंगे.’
मेरा जवाब था- ‘क्या अदालत इस पर गौर नहीं करेगी कि धोखे से पागल व्यक्ति के साथ उसका ब्याह किया है.’
तुमने कहा, ‘तो क्या इसके लिए कोर्ट-कचहरी जायेंगे? क्यों, हमें क्या पड़ी है?’
मैंने कहा- ‘अपने गहने बेचकर, जो बन पड़ेगा, करूंगी.’
तुमने कहा- ‘वकील के घर चक्कर काटोगी?’
भला इसका क्या जवाब देती? सर पीटने के अलावा दूसरा चारा ही क्या था?
उधर बिंदु की ससुराल से आकर उसके जेठ ने बाहर बड़ा हंगामा कर दिया. थाने में रपट करने की बार-बार धमकी देने लगा.
मुझ में क्या शक्ति थी, नहीं जानती- किंतु, कसाई के हाथ से जो गाय प्राण छुड़ा कर मेरे आश्रय में आयी है, उसे सिक्युरिटी के डर से फिर कसाई के हवाले कर दूं, मेरा मन किसी भी तरह यह बात मानने के लिए तैयार नहीं था. मैंने चुनौती स्वीकार करते कहा, ‘करने दो थाने में खबर.’
इतना कहकर मैंने सोचा कि इसी वक्त बिंदु को अपने सोने के कमरे में ले जाकर भीतर से ताला जड़ दूं. मैंने सब जगह तलाश की, बिंदु का कहीं पता नहीं चला. तुम लोगों के साथ जब मेरी बहस चल रही थी, तब बिंदु ने स्वयं बाहर जाकर जेठ के आगे आत्मसमर्पण कर दिया. वह समझ गयी, यदि उसने घर नहीं छोड़ा तो मैं संकट में पड़ जाऊंगी.
बीच में भाग आने से बिंदु ने अपना दुख और बढ़ा लिया. उसकी सास का तर्क यह था कि उसका लड़का उसे खाये तो नहीं जा रहा था. अयोग्य पति के दृष्टांत दुनिया में दुर्लभ नहीं है. उसकी तुलना में तो उसका बेटा सोने का चांद है.
बड़ी जेठानी ने कहा, ‘जिसकी किस्मत ही खराब हो, उसके लिए दुख करना
व्यर्थ है. पागल-वागल कुछ भी हो, है तो स्वामी ही न.’
एक स्त्राr अपने कोढ़ी-पति को कंधों पर बिठाकर वेश्या के घर ले गयी थी, सती-साध्वी का वह दृष्टांत तुम सबके मन में मचल रहा था. दुनिया के इतिहास में कायरता के उस शर्मनाक आख्यान का प्रचार करते हुए तुम लोगों के पौरुष को रंचमात्र भी संकोच नहीं हुआ. इसलिए मानव-जन्म पाकर भी बिंदु के व्यवहार पर तुम लोग क्रोध कर सके, तुम्हारा सिर नहीं झुका. बिंदु के लिए मेरी छाती फटी जा रही थी, किंतु तुम लोगों के लिए भी मेरी लज्जा का अंत नहीं था. मैं तो गांव की लड़की हूं, तिस पर तुम लोगों के घर आ पड़ी; फिर भगवान ने न मालूम किस तरह मुझे ऐसी बुद्धि दे डाली. तुम लोगों की ये सब नीति-कथाएं मेरे लिए नितांत असह्य थीं.
मैं निश्चय-पूर्वक जानती थी कि बिंदु मर भले ही जाय, अब हमारे घर नहीं आयेगी. किंतु, मैं तो उसे ब्याह के एक दिन पहले दिलासा दे चुका थी कि प्राण रहते उसे छोडूंगी नहीं. मेरा छोटा भाई शरत कलकत्ता में एक कॉलेज में पढ़ रहा था. तुम तो जानते ही हो कि तरह-तरह की वालंटियरी करना, प्लेग वाले मोहल्लों में चूहे मारना, दामोदर में बाढ़ आने की खबर सुनकर दौड़ पड़ना- इन सब बातों में उसका इतना उत्साह था कि एफ.ए. की परीक्षा में लगातार दो मर्तबा फेल होने पर भी उसके जोश में कोई कमी नहीं आयी. मैंने उसे बुलाकर कहा, ‘जैसे भी हो, बिंदु की खबर पाने का बंदोबस्त तुझे करना ही पड़ेगा, शरत! मुझे चिट्ठी लिखने का बिंदु साहस नहीं जुटा पायेगी. लिखने पर भी मुझे मिल नहीं सकेगी.’
इस काम की बजाय यदि मैं उसे डाका डालकर बिंदु को लाने की बात कहती या उसके पागल पति का सिर फोड़ने का आदेश करती तो उसे ज़्यादा खुशी होती.
शरत के साथ बातचीत कर रही थी कि तुमने कमरे में आते ही पूछा- ‘फिर क्या हंगामा कर रही हो?’
मैंने कहा, ‘वही जो शुरू से करती आयी हूं. यह हंगामा तो तभी से चालू है जब से तुम्हारे घर आयी हूं- किंतु इसका श्रेय तो तुम्हीं लोगों को है.’
तुमने जिज्ञासा की, ‘बिंदु को लाकर फिर कहीं छिपा रखा है क्या?’
मैंने कहा, ‘बिंदु आती तो उसे ज़रूर छिपा कर रख लेती. किंतु, वह अब आयेगी नहीं, तुम निश्चिंत रहो.’
शरत् को मेरे पास देखकर तुम्हारा संदेह और भी बढ़ गया. मैं जानती थी कि हमारे घर में शरत् का आना-जाना तुम लोगों को पसंद नहीं है. तुम्हें आशंका थी कि उस पर सिक्युरिटी की नज़र है. किसी दिन राजनैतिक मामले में फंस गया तो तुम सबको भी ले डूबेगा. इसीलिए मैं भैया-दूज का तिलक भी किसी के साथ भिजवा देती थी, उसे घर नहीं बुलाती थी.
तुम्हीं से सुना कि बिंदु फिर भाग गयी है. उसका जेठ तुम्हारे घर उसे खोजने आया है. सुनते ही मेरी छाती शूलों से बिंध गयी. हतभागिन का असह्य कष्ट तो समझ गयी, मगर कुछ भी करने का उपाय नहीं था.
तुम लोगों ने उज्र किया, ‘बिंदु झूठ
बोलती है.’
मैंने कहा, ‘उसने कुछ भी झूठ नहीं बताया.’
तुम लोगों ने पूछा, ‘तुम्हें क्यों कर पता चला?’
मैंने कहा, ‘मैं अच्छी तरह जानती हूं.’
तुम लोगों ने भय दिखाया, ‘बिंदु के ससुराल वालों ने सिक्युरिटी को रपट कर दी तो मुश्किल में पड़ जायेंगे.’
मेरा जवाब था- ‘क्या अदालत इस पर गौर नहीं करेगी कि धोखे से पागल व्यक्ति के साथ उसका ब्याह किया है.’
तुमने कहा, ‘तो क्या इसके लिए कोर्ट-कचहरी जायेंगे? क्यों, हमें क्या पड़ी है?’
मैंने कहा- ‘अपने गहने बेचकर, जो बन पड़ेगा, करूंगी.’
तुमने कहा- ‘वकील के घर चक्कर काटोगी?’
भला इसका क्या जवाब देती? सर पीटने के अलावा दूसरा चारा ही क्या था?
उधर बिंदु की ससुराल से आकर उसके जेठ ने बाहर बड़ा हंगामा कर दिया. थाने में रपट करने की बार-बार धमकी देने लगा.
मुझ में क्या शक्ति थी, नहीं जानती- किंतु, कसाई के हाथ से जो गाय प्राण छुड़ा कर मेरे आश्रय में आयी है, उसे सिक्युरिटी के डर से फिर कसाई के हवाले कर दूं, मेरा मन किसी भी तरह यह बात मानने के लिए तैयार नहीं था. मैंने चुनौती स्वीकार करते कहा, ‘करने दो थाने में खबर.’
इतना कहकर मैंने सोचा कि इसी वक्त बिंदु को अपने सोने के कमरे में ले जाकर भीतर से ताला जड़ दूं. मैंने सब जगह तलाश की, बिंदु का कहीं पता नहीं चला. तुम लोगों के साथ जब मेरी बहस चल रही थी, तब बिंदु ने स्वयं बाहर जाकर जेठ के आगे आत्मसमर्पण कर दिया. वह समझ गयी, यदि उसने घर नहीं छोड़ा तो मैं संकट में पड़ जाऊंगी.
बीच में भाग आने से बिंदु ने अपना दुख और बढ़ा लिया. उसकी सास का तर्क यह था कि उसका लड़का उसे खाये तो नहीं जा रहा था. अयोग्य पति के दृष्टांत दुनिया में दुर्लभ नहीं है. उसकी तुलना में तो उसका बेटा सोने का चांद है.
बड़ी जेठानी ने कहा, ‘जिसकी किस्मत ही खराब हो, उसके लिए दुख करना
व्यर्थ है. पागल-वागल कुछ भी हो, है तो स्वामी ही न.’
एक स्त्राr अपने कोढ़ी-पति को कंधों पर बिठाकर वेश्या के घर ले गयी थी, सती-साध्वी का वह दृष्टांत तुम सबके मन में मचल रहा था. दुनिया के इतिहास में कायरता के उस शर्मनाक आख्यान का प्रचार करते हुए तुम लोगों के पौरुष को रंचमात्र भी संकोच नहीं हुआ. इसलिए मानव-जन्म पाकर भी बिंदु के व्यवहार पर तुम लोग क्रोध कर सके, तुम्हारा सिर नहीं झुका. बिंदु के लिए मेरी छाती फटी जा रही थी, किंतु तुम लोगों के लिए भी मेरी लज्जा का अंत नहीं था. मैं तो गांव की लड़की हूं, तिस पर तुम लोगों के घर आ पड़ी; फिर भगवान ने न मालूम किस तरह मुझे ऐसी बुद्धि दे डाली. तुम लोगों की ये सब नीति-कथाएं मेरे लिए नितांत असह्य थीं.
मैं निश्चय-पूर्वक जानती थी कि बिंदु मर भले ही जाय, अब हमारे घर नहीं आयेगी. किंतु, मैं तो उसे ब्याह के एक दिन पहले दिलासा दे चुका थी कि प्राण रहते उसे छोडूंगी नहीं. मेरा छोटा भाई शरत कलकत्ता में एक कॉलेज में पढ़ रहा था. तुम तो जानते ही हो कि तरह-तरह की वालंटियरी करना, प्लेग वाले मोहल्लों में चूहे मारना, दामोदर में बाढ़ आने की खबर सुनकर दौड़ पड़ना- इन सब बातों में उसका इतना उत्साह था कि एफ.ए. की परीक्षा में लगातार दो मर्तबा फेल होने पर भी उसके जोश में कोई कमी नहीं आयी. मैंने उसे बुलाकर कहा, ‘जैसे भी हो, बिंदु की खबर पाने का बंदोबस्त तुझे करना ही पड़ेगा, शरत! मुझे चिट्ठी लिखने का बिंदु साहस नहीं जुटा पायेगी. लिखने पर भी मुझे मिल नहीं सकेगी.’
इस काम की बजाय यदि मैं उसे डाका डालकर बिंदु को लाने की बात कहती या उसके पागल पति का सिर फोड़ने का आदेश करती तो उसे ज़्यादा खुशी होती.
शरत के साथ बातचीत कर रही थी कि तुमने कमरे में आते ही पूछा- ‘फिर क्या हंगामा कर रही हो?’
मैंने कहा, ‘वही जो शुरू से करती आयी हूं. यह हंगामा तो तभी से चालू है जब से तुम्हारे घर आयी हूं- किंतु इसका श्रेय तो तुम्हीं लोगों को है.’
तुमने जिज्ञासा की, ‘बिंदु को लाकर फिर कहीं छिपा रखा है क्या?’
मैंने कहा, ‘बिंदु आती तो उसे ज़रूर छिपा कर रख लेती. किंतु, वह अब आयेगी नहीं, तुम निश्चिंत रहो.’
शरत् को मेरे पास देखकर तुम्हारा संदेह और भी बढ़ गया. मैं जानती थी कि हमारे घर में शरत् का आना-जाना तुम लोगों को पसंद नहीं है. तुम्हें आशंका थी कि उस पर सिक्युरिटी की नज़र है. किसी दिन राजनैतिक मामले में फंस गया तो तुम सबको भी ले डूबेगा. इसीलिए मैं भैया-दूज का तिलक भी किसी के साथ भिजवा देती थी, उसे घर नहीं बुलाती थी.
तुम्हीं से सुना कि बिंदु फिर भाग गयी है. उसका जेठ तुम्हारे घर उसे खोजने आया है. सुनते ही मेरी छाती शूलों से बिंध गयी. हतभागिन का असह्य कष्ट तो समझ गयी, मगर कुछ भी करने का उपाय नहीं था.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.