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Adultery दीदी की जेठानी
#32
असली बात तो यह है कि कहीं कोई रास्ता नहीं था. बिंदु को ब्याह तो करना ही पड़ेगा. फिर जो हो, सो हो.

मैं चाहती थी कि विवाह हमारे घर से हो. किंतु, तुम लोग कह बैठ, वर के ही घर में हो, उनके कुल की यही प्रथा है.

मैं समझ गयी, बिंदु के विवाह में यदि तुम लोगों को खर्च करना पड़े तो तुम्हारे गृह-देवता उसे किसी भांति सह नहीं सकेंगे. इसीलिए चुप रह जाना पड़ा. किंतु, एक बात तुम में से कोई नहीं जानता. दीदी को बताने की इच्छा थी, मगर बतायी नहीं. वरना वे डर के मारे मर जातीं. मैंने अपने थोड़े बहुत गहने लेकर चुपचाप बिंदु का साज-सिंगार कर दिया. सोचा, शायद दीदी की नज़र में पड़ा होगा. किंतु, उन्होंने जैसे देख कर भी नहीं देखा. दुहाई है धर्म की, इसके लिए तुम उन्हें क्षमा कर देना.

जाने से पहले बिंदु मुझसे लिपट कर बोली- ‘दीदी, तो क्या तुम लोगों ने मुझे एकदम ही त्याग दिया.’

मैंने कहा- ‘ना बिंदु, तुम चाहे जैसी स्थिति में रहो, मैं तुम्हें प्राण रहते नहीं
त्याग सकती.’

तीन दिन बीते. तुम्हारे ताल्लुके की प्रजा ने, खाने के लिए तुम्हें जो भेड़ा दिया था, उसे तुम्हारी जठराग्नि से बचाकर मैंने कोयले की, नीचे वाली कोठरी के एक कोने में बांध दिया था. अल्ल-सवेरे ही मैं खुद जाकर उसे दाना-पानी दे आती. तुम्हारे चाकरों पर दो-एक दिन
तो एतबार किया, मगर उसे खिलाने की बजाय, उसीको खा जाने की ललक उनमें ज़्यादा थी.

उस दिन सवेरे कोठरी में गयी तो देखा, बिंदु एक कोने में दुहरी होकर बैठी. मुझे देखते ही मेरे पांवों में गिर कर चुपचाप
रोने लगी.

बिंदु का पति पागल था.

‘सच कह रही है, बिंदी?’

‘इतना बड़ा झूठ तुम्हारे सामने बोल सकती हूं, दीदी? वे पागल हैं. ससुर की राय नहीं थी, इस विवाह के लिए- किंतु, वे मेरी सास से यमराज की तरह डरते हैं. ब्याह के पहले ही वे काशी चले गये. सास ने हठपूर्वक अपने लड़के का ब्याह कर दिया.’

मैं वहीं कोयले की ढेरी पर बैठ गयी. औरत को औरत पर दया नहीं आती. सास कहती है- ‘यह लड़की थोड़े ही है. लड़का पागल है तो क्या हुआ? है तो पुरुष ही.’

बिंदु का पति पहली नज़र में ठीक पागल जैसा नहीं लगता. किंतु, कभी-कभार उस पर ऐसा उन्माद सवार हो जाता कि ताला लगाकर उसे कमरे में रखना पड़ता. विवाह की रात वह ठीक था, किंतु रात भर जगने व अन्य झंझटों के फलस्वरूप दूसरे ही दिन से उसका माथा बिल्कुल खराब हो गया. बिंदु दोपहर को पीतल की थाली में भात खाने बैठी थी. सहसा उसके पति ने भात-सहित थाली उठा कर फेंक दी. हठात न जाने क्यों उसे महसूस हुआ कि बिंदु स्वयं रानी रासमणि है. नौकर ने निश्चय ही सोने की थाल चुराकर रानी को अपने ही थाल में भात परोसा है. यही उसके क्रोध का कारण था. बिंदु तो डर के मारे मरी जा रही थी. तीसरी रात जब सास ने उसे पति के कमरे में सोने के लिए कहा तो बिंदु के प्राण सूख गये. सास को क्रोध आने पर कुछ भी होश नहीं रहता था. वह भी पागल थी, किंतु पूरी तरह से नहीं, इसीलिए वह ज़्यादा घातक थी. बिंदु को कमरे में जाना पड़ा. उस रात स्वामी जब बहुत रात ढलने पर सो गया तो वह किस कौशल से भाग कर चली आयी, इसका विस्तृत विवरण लिखने की ज़रूरत नहीं है.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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RE: दीदी की जेठानी - by neerathemall - 17-11-2020, 02:29 PM



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