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Adultery दीदी की जेठानी
#31
तुम्हारे घर की दासियां उसका कोई भी काम करने से मना कर देती थीं. उनमें से किसी भी दासी को मैं उसके काम की फरमाइश करती, तब भी वह लड़की संकोच के मारे एकदम जड़वत हो जाती थी. इन्हीं सब कारणों से उस पर मेरा खर्च दिन-ब-दिन बढ़ता गया. मैंने खासतौर से एक अलग दासी रख ली. यह भी तुम लोगों को गवारा नहीं हुआ. बिंदु को पहनने के लिए जो कपड़े देती थी, उन्हें देखकर तुम इतने नाराज हुए कि मेरा हाथ-खर्च ही बंद कर दिया. दूसरे ही दिन से मैंने सवा रुपये जोड़े की मिल की गाढ़ी व कोरी धोती पहननी शुरू कर दी. और जब मोती की मां मेरी जूठी थाली उठाने के लिए आयी तो मैंने उसे मना कर दिया. मैंने खुद जूठा भात बछड़े को खिलाया और आंगन के नल पर बासन मांजे. एक दिन अकस्मात इस दृश्य को देखकर तुम खुश नहीं हुए. मेरी खुशी के बिना तो चल सकता है, पर तुम्हारी खुशी के बिना नहीं चल सकता, यह सुबुद्धि आज दिन तक मेरे भेजे में नहीं आयी.

इधर ज्यों-ज्यों तुम लोगों का रोष बढ़ता जा रहा था, त्यों-त्यों बिंदु की उम्र भी बढ़ती जा रही थी. इस स्वाभाविक बात पर तुम लोग अस्वाभाविक रूप से विभ्रत हो उठे थे. एक बात याद करके मुझे आश्चर्य होता रहा है कि तुम लोगों ने बिंदु को जबरदस्ती अपने घर से खदेड़ क्यों नहीं दिया? मैं खूब जानती हूं कि तुम लोग मन ही मन मुझसे डरते थे. विधाता ने मुझे बुद्धि दी है, भीतर ही भीतर इस बात की तवज्जुह दिये बिना
तुम लोगों से रहा नहीं
जाता था.

अंत में अपनी शक्ति से बिंदु को विदा करने में असमर्थ होकर तुम लोगों ने प्रजापति देवता की शरण ली. बिंदु का वर ठीक हुआ. बड़ी जेठानी बोलीं, ‘जान बची, मां काली ने अपने वंश की लाज रख ली.’

वर कैसा था, मैं नहीं जानती. तुम लोगों से ही सुना कि सब तरह से अच्छा है. बिंदु मेरे पांवों से लिपट कर रोने लगी- ‘दीदी, मेरा ब्याह क्यों कर रही हो भला।’

मैंने उसे समझाते-बुझाते कहा- ‘बिंदु, डर मत, सुना कि तेरा वर अच्छा है.’

बिंदु बोली- ‘अगर वर अच्छा है
तो मुझमें भला ऐसा क्या है, जो उसे पसंद आ सके.’

वर-पक्ष वालों ने तो बिंदु को देखने तक की इच्छा जाहिर नहीं की. बड़ी दीदी इससे बड़ी आश्वस्त हुई.

लेकिन बिंदु रात-दिन रोती रहती. चुप होने का नाम ही नहीं लेती. उसे क्या कष्ट है, मैं जानती थी. बिंदु के लिए मैंने घर में बहुत बार झगड़ा किया था, लेकिन उसका ब्याह रुक जाय, यह बात कहने का साहस नहीं होता था. कहती भी किस बूते पर? यदि मैं मर जाऊं तो इसकी गति क्या होगी?

एक तो लड़की, तिस पर काली-कुरूप लड़की- किसके घर जा रही है? वहां उसकी क्या दशा होगी? इन बातों की चिंता न करना ही उचित है. सोचती तो प्राण सिहर-सिहर उठते.

बिंदु ने कहा- ‘दीदी, ब्याह के अभी पांच दिन और हैं. इस बीच क्या मुझे मौत नहीं आयेगी?’

मैंने उसे खूब धमकाया. किंतु अंतर्यामी जानते हैं, यदि स्वाभाविक ढंग से बिंदु की मृत्यु हो जाती तो मैं राहत की सांस लेती.

विवाह के एक दिन पहले बिंदु ने अपनी दीदी के पास जाकर कहा- ‘दीदी मैं गौशाला में पड़ी रहूंगी, जो कहोगी वह करूंगी. तुम्हारे पांव पड़ती हूं, मुझे इस तरह मत धकेलो.’

कुछ दिनों से दीदी की आंखों में चोरी-चोरी आंसू झर रहे थे, उस दिन भी झरने लगे. किंतु, स़िर्फ हृदय ही तो नहीं होता, शास्त्र भी तो है. उन्होंने कहा- ‘बिंदी, तू क्या जानती नहीं कि पति ही सब-कुछ है- स्त्राr की गति, स्त्राr की मुक्ति. भाग्य में यदि दुख बदा है तो उसे कोई मिटा नहीं सकता.’
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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RE: दीदी की जेठानी - by neerathemall - 17-11-2020, 02:28 PM



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