17-11-2020, 02:28 PM
अनादृत पालन-पोषण का एक बड़ा गुण है कि वह शरीर को एकदम अजर-अमर कर देता है. बीमारी आस-पास फटक ही नहीं पाती. मरने के सदर रास्ते बिल्कुल बंद हो जाते हैं. रोग उसके साथ मखौल कर गया, उसे कुछ भी नहीं हुआ. लेकिन यह बात अच्छी तरह समझ में आ गयी
कि संसार में असहाय व्यक्ति को आश्रय देना ही सबसे कठिन है. जिसे आश्रय की दरकार जितनी अधिक होती है, आश्रय की बाधाएं भी उसके लिए उतनी ही विषम बन जाती हैं.
बिंदु के मन से जब मेरा भय मिट गया तब उसे एक और दुष्ट-ग्रह ने दबोच लिया. वह मुझे इस कदर बेइन्तहा प्यार करने लगी कि मैं डर के मारे विचलित हो उठी. प्यार की ऐसी मूर्ति तो इस मायावी-संसार में कभी नज़र नहीं आयी. पुस्तकों में पढ़ा अवश्य था, वह भी स्त्राr-पुरुष के बीच ही. बहुत दिनों से ऐसी कोई घटना नहीं हुई कि मुझे अपने रूप का खयाल आता. अब इतने दिन बाद यह कुरूप लड़की मेरे उसी रूप पर बौरा गयी. आठों पहर मेरा मुंह निहारने पर भी उसके नयनों की आस कभी बुझ ही नहीं पाती थी. कहती, ‘दीदी तुम्हारी यह सलोनी सूरत मेरे अलावा किसी को भी नज़र नहीं आयी.’ जिस दिन मैं स्वयं अपना जूड़ा बांध लेती, उस दिन वह बहुत रूठ जाती. मेरी केश-राशि को अपने दोनों हाथों में झुलाने मात्र से उसके आनंद की सीमा नहीं रहती. किसी दावत में जाने के अलावा मुझे साज-शृंगार की ज़रूरत ही नहीं पड़ती थी. लेकिन बिंदु मुझे तंग कर-करके हमेशा थोड़ा-बहुत सजाती रहती. सचमुच, वह लड़की मेरे पीछे पागल हो गयी थी.
तुम्हारे घर के भीतरी हिस्से में कहीं खाली ज़मीन नहीं थी. उत्तर दिशा की दीवार में नाली के किनारे न जाने कैसे एक गाब का पौधा उग आया? जिस दिन देखती कि उस गाब के पौधे में नयी लाल-लाल कोंपलें निकल आयी हैं, उस दिन जान पड़ता कि धरती पर वास्तव में बसंत आ गया है. और जिस दिन मेरी घर-गृहस्थी में इस अनादृत लड़की के चित्त का ओर-छोर इस तरह रंगीन हो उठा, उस दिन मैंने जाना कि हृदय के जगत में भी बसंत की बयार बहती है- वह किसी स्वर्ग-लोक से आती है, गली के मोड़ से नहीं.
बिंदु की प्रीत के दुसह वेग ने मुझे अस्थिर कर डाला था. मानती हूं कि मुझे कभी-कभार उस पर गुस्सा आ जाता. किंतु, उस प्रीत की भव्य अनुभूति में मुझे अपने स्वरूप की ऐसी छवि दिखलाई पड़ी जो पहले कभी नज़र नहीं आयी. वह मेरा मुक्त स्वरूप है. मुक्त छवि है.
इधर मैं बिंदु जैसी लड़की को इतना लाड़-दुलार कर रही हूं, यह तुम लोगों को बड़ी ज़्यादती लगी. उस नुक्ताचीनी व खटपट का कोई अंत नहीं था. जिस दिन मेरे कमरे से बाजूबंद की चोरी हुई, उस दिन इस बात का आभास देते हुए तुम लोगों को तनिक भी लज्जा नहीं आयी कि उस चोरी में किसी न किसी तरह बिंदु का हाथ है. जब स्वदेशी आंदोलन में लोगों के घर की तलाशियां होने लगीं, तब तुम लोग अनायास ही यह संदेह कर बैठे कि बिंदु सिक्युरिटी द्वारा रखी
गयी स्त्राr-गुप्तचर है. उसका और तो कोई प्रमाण नहीं था, प्रमाण केवल यही था कि वह बिंदु थी.
कि संसार में असहाय व्यक्ति को आश्रय देना ही सबसे कठिन है. जिसे आश्रय की दरकार जितनी अधिक होती है, आश्रय की बाधाएं भी उसके लिए उतनी ही विषम बन जाती हैं.
बिंदु के मन से जब मेरा भय मिट गया तब उसे एक और दुष्ट-ग्रह ने दबोच लिया. वह मुझे इस कदर बेइन्तहा प्यार करने लगी कि मैं डर के मारे विचलित हो उठी. प्यार की ऐसी मूर्ति तो इस मायावी-संसार में कभी नज़र नहीं आयी. पुस्तकों में पढ़ा अवश्य था, वह भी स्त्राr-पुरुष के बीच ही. बहुत दिनों से ऐसी कोई घटना नहीं हुई कि मुझे अपने रूप का खयाल आता. अब इतने दिन बाद यह कुरूप लड़की मेरे उसी रूप पर बौरा गयी. आठों पहर मेरा मुंह निहारने पर भी उसके नयनों की आस कभी बुझ ही नहीं पाती थी. कहती, ‘दीदी तुम्हारी यह सलोनी सूरत मेरे अलावा किसी को भी नज़र नहीं आयी.’ जिस दिन मैं स्वयं अपना जूड़ा बांध लेती, उस दिन वह बहुत रूठ जाती. मेरी केश-राशि को अपने दोनों हाथों में झुलाने मात्र से उसके आनंद की सीमा नहीं रहती. किसी दावत में जाने के अलावा मुझे साज-शृंगार की ज़रूरत ही नहीं पड़ती थी. लेकिन बिंदु मुझे तंग कर-करके हमेशा थोड़ा-बहुत सजाती रहती. सचमुच, वह लड़की मेरे पीछे पागल हो गयी थी.
तुम्हारे घर के भीतरी हिस्से में कहीं खाली ज़मीन नहीं थी. उत्तर दिशा की दीवार में नाली के किनारे न जाने कैसे एक गाब का पौधा उग आया? जिस दिन देखती कि उस गाब के पौधे में नयी लाल-लाल कोंपलें निकल आयी हैं, उस दिन जान पड़ता कि धरती पर वास्तव में बसंत आ गया है. और जिस दिन मेरी घर-गृहस्थी में इस अनादृत लड़की के चित्त का ओर-छोर इस तरह रंगीन हो उठा, उस दिन मैंने जाना कि हृदय के जगत में भी बसंत की बयार बहती है- वह किसी स्वर्ग-लोक से आती है, गली के मोड़ से नहीं.
बिंदु की प्रीत के दुसह वेग ने मुझे अस्थिर कर डाला था. मानती हूं कि मुझे कभी-कभार उस पर गुस्सा आ जाता. किंतु, उस प्रीत की भव्य अनुभूति में मुझे अपने स्वरूप की ऐसी छवि दिखलाई पड़ी जो पहले कभी नज़र नहीं आयी. वह मेरा मुक्त स्वरूप है. मुक्त छवि है.
इधर मैं बिंदु जैसी लड़की को इतना लाड़-दुलार कर रही हूं, यह तुम लोगों को बड़ी ज़्यादती लगी. उस नुक्ताचीनी व खटपट का कोई अंत नहीं था. जिस दिन मेरे कमरे से बाजूबंद की चोरी हुई, उस दिन इस बात का आभास देते हुए तुम लोगों को तनिक भी लज्जा नहीं आयी कि उस चोरी में किसी न किसी तरह बिंदु का हाथ है. जब स्वदेशी आंदोलन में लोगों के घर की तलाशियां होने लगीं, तब तुम लोग अनायास ही यह संदेह कर बैठे कि बिंदु सिक्युरिटी द्वारा रखी
गयी स्त्राr-गुप्तचर है. उसका और तो कोई प्रमाण नहीं था, प्रमाण केवल यही था कि वह बिंदु थी.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.