17-11-2020, 02:28 PM
किंतु, मेरा कमरा फकत मेरा ही तो कमरा नहीं था. इसलिए मेरा काम सरल नहीं हुआ. दो-चार दिन में ही उसके शरीर में लाल-लाल न जाने क्या उभर आया? शायद अम्हौरी या ऐसी ही कुछ बीमारी होगी. तुमने कहा बसंत. क्यों न हो, वह बिंदु थी न? तुम्हारे मोहल्ले के एक अनाड़ी डॉक्टर ने कहा कि दो-एक दिन और पड़ताल किये बिना ठीक से कुछ नहीं कहा जा सकता. किंतु, दो-एक दिन का सब्र किसे होता? बिंदु तो अपनी बीमारी की लज्जा से ही मरी जा रही थी. मैंने कहा, बसंत है तो है, मैं उसके साथ अपने जच्चाघर में रहूंगी; किसी को भी कुछ करने की ज़रूरत नहीं. इस बात पर तुम सभी भड़क कर मेरे लिए संहार की प्रतिमूर्ति बन गये, यही नहीं, जब बिंदु की दीदी भी छद्म विरक्त भाव से हतभागी लड़की को अस्पताल भेजने का प्रस्ताव करने लगीं, तभी उसके शरीर पर से तमाम लाल-लाल दाग विलुप्त हो गये. पर मैंने देखा- तुम सब तो और अधिक व्यग्र हो उठे. कहने लगे अब तो निश्चित रूप से बसंत बैठ गयी है. क्यों न हो, बिंदु थी न?
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.