17-11-2020, 02:18 PM
देर ना करते हुए, मैंने साड़ी को उसकी कमर तक उठा दिया और पेटीकोट साड़ी को निकाल फेंका. क्या गजब लग रही थी वो. आँखों पर यकीं नहीं हो रहा था. उसकी पेंटी भीगी हुई थी. शायद उसने पानी छोड़ दिया था. वो शर्मा रही थी और अपने हाथो से उसकी पेंटी को छुपा रही थी. मैंने उसके हाथो को चूमा और हटा दिया और फिर साइड से थाई को खूब चाटा और चूमा. फिर उसकी पेंटी को भी निकाल फेंका.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.