17-11-2020, 02:16 PM
पर मैं उस वक्त कुछ नहीं कर सकता था. बस समय की प्रतीक्षा में था, जोकी मुझे अब मिलने वाला था. जिसकी मैंने कल्पना भी नहीं की थी. तो मुझे घर आये ११ दिन के ऊपर हो चुके थे. इस बीच मैंने खूब छेड़ा उन्हें. इधर-उधर हाथ मारता, वो कुछ भी नहीं बोलती थी, उल्टा मुझे चिड़ा देती थी. १२ दिन के बाद, दादी जी का सब क्रियाकर्म ख़तम हुआ और फिर आई वाज अलाउड तो स्लीप ओं बेड, अब तक मैं नीचे जमीन पर ही सो रहा था.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.